Monday, October 22, 2012

बंद आंखे


आज मेरी आंखो को ,
बंद आंखो का ख्याल आया ,
आज सपने मे मुझे ,
एक बड़ा सवाल आया .

बंद होकर भी आंखे ,
न जाने  कैसे सब देख पाती है ,
जो खुली आंखे भी न देख पाए ,
वो उन्हे खूब समझ जाती है .

मेरा वो कुछ पल बंद आंखो का एहसास ,
न जाने  मुझे कैसे एक नई दुनिया दिखा गया ,
बंद आंखो के सारे वहेम को ,
मेरे जहेन से मिटा गया .

कितनी हसीन दुनिया है वो ,
जहा लोगो रूप रंग से नहीं भापा जाता ,
यहाँ हर रूप रंग वाले को ,
निश्वार्थ भाव से अपनाया है जाता .

सोचता हु अक्सर अब मै ,
दोषी हम है या हमारी आंखे .......

बिना दुनिया देखे जब लोग  ,
दुनिया वालो को अपनाते है ,
तो फिर हम दुनिया देखने वाले ,
किसी को अपनाने मे क्यों इतना घबराते है . 

सोच बदलनी  है अब हम सब को ,
वक़्त की ऐसी पुकार है ,
बंद आंखो से भी सपने सच करने वालो के जज्बे को  ,
मेरा सलाम है .

अन्त में मेरा एक छोटा सा पैगाम है ,
वो हम जैसे नहीं -- इसी सोच पर अब लगाना विराम है ,


 कदम बढ़ाये इन्हे कदम बढ़ाने मे 

आज हमारे देश मे ना जाने कितने ही दृष्टि वाधित लोग हमारी वजह से अपनी ज़िन्दगी के हर लक्ष्य को पूरा नहीं कर पा रहे है .....
कितना अजीब है हम हमेशा उनके बढते कदम को रोक देते है और उसकी वजह होती है हमारी वो सोच जिसका कोई आधार नहीं है . 
आज ना जाने किंतने ही दृष्टि वाधित अलग अलग वर्ग मे अपना हुनर दिखा चुके है .... 
किसी मज्जिल तक जाने के लिए कदम बढाने की जरुरत होती है ....

Antarchakshu के प्रयास को मेरा सलाम 


Copyright © 2012 shashankvsingh.blogspot.in™, All Rights Reserved.