Tuesday, December 31, 2013

बेवफा साहेब


मैं हुँ सत्ता की चाभी ,
सर पे जो मुझे चढ़ा लिया ,
मानो सत्ता के मुकाम को ,
पल भर मे पा लिया .

एक रोज अचानक मैं ,
चर्चा मे आ गयी ,
लाखो के सर पे ,
कुछ ही दिनों मे छा गयी .

मैं कभी गुरु के सर पे  ,
तो कभी चेले के सर पे आ जाती ,
पर चेले के चाल को ,
कभी नहीं समझ पाती .

चेले ने छीन कर गुरु से ,
मुझे अपना बना लिया ,
साहेब बन बैठा वो मेरा ,
जब ताज की तरह उसने ,
मुझे अपने सर पर लगा लिया .

अब मैं इस सर से , उस सर पर  ,
अक्सर चली जाती ,
लेकिन सिर्फ साहेब के इशारो पे ,
एक साथ कई जगहो पर दिख जाती ..

अब जनता दरबार से ,
सत्ता के द्वार तक ,
मैं सब मे ख़ास हो गयी ,
साहेब संग उनकी जनता के ,
सर का ताज हो गयी .

हर रोज कुछ नया लिख कर ,
साहेब संग मुझे ले जाते ,
बिना कुछ कहे खुद से ,
मुझसे जनता तक सन्देश पहुँचाते .

अब जनता को मैं ,इतना भा गयी ,
मुझे हर वक़्त साहेब के संग देख कर ,
वो भी साहेब की ओर खिची आ गयी .

मुझे कभी नहीं छोड़ने की ,
उस रात उन्होने बात कही ,
अगली सुबह मफ़लर के साथ सही ,
पर मैं उनके सर का ताज रही .

एक रोज अचानक ,
साहेब वो मुकाम पा गए ,
जनता का सरदार बन कर ,
हर ओर छा गए .

पर भूल गए उसे ,
जिसे भूल से भी ,
कभी भूल नहीं पाते थे ,
हर वक़्त बड़े शान से ,
सर पर अपने सजाते थे .

मिलते ही सत्ता की चाभी ,
भूल गए ,
कोई हमसफ़र संग उनके था भी .

अब भूल कर कभी कभार ,
मुझे संग ले आते ,
बेवफाई खुद जनता से कर के ,
मुझे गुनेहगार बताते .

साहेब तो बेवफाई ,
उसी रोज ही कर बैठे थे ,
ज़िस रोज गुरु से छीन कर मुझे ,
अपना कर बैठे थे .

अब डर बस इतना लगता है ,
कही मेरे और गुरु जैसे ,
जनता को ना भूल जाए ,
 भ्रमित कर के उन्हे भी ,
सत्ता के नशे मे चूर हो जाए .

मेरे ''प्यारे साहेब'' ,
कही फिर से बेवफा ना बन जाए ,
और मुझ जैसे जनता से भी ,
बेवफाई कर जाए ..

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Tuesday, October 29, 2013

शायद .. हम मिल चुके है

उस रोज़ जब तुम आई थी ,
पहली नज़र मे मुस्कुरायी थी ,
देख जिसे अरसो बाद ,
दिल ने ली अंगड़ाई थी .

निगाहो का निगाहो से खेल जब हुआ ,
न जाने क्यों लग रहा था ,
पहले भी इन निगाहो का ,
कही मेल है हुआ .

मै कुछ कहता , उससे पहले ,
तुमने खुद से परिचीत कराया ,
जान कर मेरा नाम ,
बड़ी ही हैरानी से ,
मेरे दिल की बात को ,
तुमने अपने लाब्जो से सजाया .

तुम पूछ बैठी वो ,
जो मै नहीं पूछ पाया ,
'' शायद हम मिल चुके है ''

सुन कर इस बात को ,
उस पल उस रात को ,
मैने यादो को हर और घुमाया ,
पर तेरे सवाल का जवाब नहीं मिल पाया .

और तो और ,
एक बात समझ नहीं आई  ,
मेरे दिल की बात ,
तुम अपने होठो पर कैसे लायी .

तुम्हारे आंखो मे एक जादू है ,
दिल पर खुद का काबू है ,
कर ली है बंद निगाहे मैने ,
कही देख तेरी निगाहो मे ,
हो न जाए दिल बेकाबू है .

देखती हो अक्सर जब मुझे ,
देखता हु मै भी तुम्हे ,
पर निगाहे छिपा लेता हु ,
तुम्हारे मुस्कान से मुस्कुरा देता हु .

रूठ कर मेरी बातो से ,
जब तुम चली गयी ,
देखा भी नहीं पलट कर ,
एक बार ही सही .

तेरे आने के इंतज़ार मे ,
राह हम ताकते रहे ,
आएँगी कभी तू लौट कर ,
यही सोच रात रात भर जागते रहे .

सोचा ना था ,
ये सफ़र इतना छोटा होगो ,
इतनी सी बात से ,
दिल उसका टुटा होगा ,
उसकी यादो से नाता मेरा छूटा होगा .

और तो और ,
उसके जाने के बाद ,
वक़्त भी हमसे रूठा होगा .

अब ना जाने फिर कब मिलेंगे ,
और अगर कभी मिल गए तो ,
अजनबी बन कर ,
फिर से वही कहेंगे ,
'' शायद हम मिल चुके है "

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डेडिकेटेड टू आल शॉर्ट टर्म लव स्टोरीज एंड ऑफ़कोर्स यू मिस नेहरू :p

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Saturday, October 5, 2013

प्रेरणा ..... नारी होने का गर्व


आज माँ के कमरे मे कोई आया था  ,
बेटी है कोख मे जान ,
उसने मुझे मिटाने का ,
फरमान सुनाया था .

उसी रात माँ ने ,
एक ऐसा कदम उठाया था ,
जिससे मेरा जन्म ,
साकार हो पाया था .

माँ उस रात घर का चौखट लांघ गयी ,
मै और माँ उस जालिम दुनिया से आज़ाद हुई ,
और इसी कदम के साथ ,
उस रात एक नए पहेल की शुरुआत हुई  .

मै अब इस दुनिया मे आ गई थी ,
माँ की उम्मीद जगमगा गई थी ,
बार बार मुझे निहार वो ,
ख़ुशी से सिने से लगा रही थी .

पहली दफा चलने को ,
माँ की उंगली थामी थी ,
खुद के कदमो पर चलना है ,
उस रोज़ ही मैंने ठानी थी .

मै लड़खड़ाते हुए , अब चलने लगी थी ,
कभी इधर कभी उधर गिर कर ,
खुद के कदमो पे ,
आगे बड़ने लगी थी .

मेरा स्कूल मे वो पहेला दिन था ,
जीवन मे पहली दफा ,
जो कुछ पल ,
माँ के बिन था .

जब कक्षा मे प्रथम आई थी मै ,
संग अपने सखियों को ,
जितने का जज्बा दे पायी थी मै .

एक बड़ा परिवर्तन तब आया था ,
जब भरे समाज मे ,
मुझे छेड़ रहे उस दरिंदे को ,
मैंने खुद ही सबक सिखाया था .

खड़े वह हजारो मे ,
मुझे कोई नहीं बचाने आया था ,
देख मेरे साहस को ,
वहा कड़ी महिलाओं मे ,
खुद की रक्षा करने का ,
जज्बा आया था .

आज मैंने देश के रक्षा मे ,
शस्त्र उठाया था ,
देख इस परिवर्तन को ,
समाज के सोच मे बड़ा बदलाव आया था .

आज जब बोर्डर पर मै ,
दुश्मनों से लड़ रही थी ,
ज़िन्दगी की जंग हार कर ,
देश को जीत की ओर कर रही थी .

तभी मेरे मन मे एक सवाल आया ,
क्यों हमे समाज मे ,
कमजोर समझा जाता है ,
क्यों हमारे साहस को कम आक़ा जाता है .

इस सोच को हमें बदलना है ,
संग औरो से कंधे मिला ,
उनके संग चलना है .

आज मेरी माँ ,
मेरे शहीद होने पर ,
आँसू नहीं बहा रही थी ,
गर्व से सबको मेरी पहेचान बता रही थी .

मेरी कुर्बानी ने ,
देश की महिलाओं मे ,
एक जज्बा ला दिया,
उनकी ताकत का ,
उन्हे एहसास दिला दिया .

आखिरकार मैंने ,
मैंने अपनी ताकत का परचम लहरा दिया ,
इस भ्रमित समाज के भ्रम को मिटा ,
एक नई सोच उदाहरण के तौर पर ,
समाज मे ला दिया .

मै कौन हु ,
आज आप को बताती हु ,
नकली सामाजिक मुखौटे को हटा कर ,
अपनी असली पहेचान बताती हु ,
मै "" नारी "" के नाम से ,
इस जग मे जानी जाती हु .


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Sunday, August 18, 2013

गुस्ताखी माफ़

तेरा यु भीड़ मे अलग से आना ,
आते ही पूरी लगन से व्यस्त हो जाना , 
आगे बड़ कर लोगो का हाथ बटाना ,
याद है अब भी मुझे .

तेरा इस कमरे उस कमरे मे जाना ,
फिर उस कमरे से इस कमरे मे आना ,
अपनी मौज़ूदगी हरपल दर्ज करना ,
याद है अब भी मुझे .

पहली दफा निगाहो ने ,
जब गौर से तुझे देखा ,
कलम उठ गयी थी खुदबखुद ,
दिल मे कुछ धर कर बैठा ,
याद है अब भी मुझे .

किसी तरह दिल को समझाया ,
मन को फिर से काम पर लगाया ,
पर निगाहो को तुझे देखने से ना रोक पाया ,
याद है अब भी मुझे .

जब पहली दफा कुछ कहने को ,
तुम मेरे पास आई ,
निगाहो ने मेरे दम तोड़ दिया ,
जुबा ने साथ छोड़ दिया ,
याद है अब भी मुझे .

जब तुम खुद के पलकों से ,
पलके मिला रही थी ,
नींद बहुत जोर से तुम्हे आ रही थी ,
तभी अचानक मैने तुम्हे बुलाया ,
ख्वाबो  की दुनिया से तुम्हे जगाया 
याद है अब भी मुझे .

मेरे कविताओ की भाषा हिंदी ,
जिसकी युवा पीड़ी मे है मंदी ,
फिर भी तुमने बड़ी मुश्किल से पड़ उन्हे ,
मुझे निराश नहीं कराया ,
मुस्कुराते हुए उन्हे " आल आर नाइस " बताया 
याद है अब भी मुझे .

उस वक़्त कुछ पल के लिए ,
जब हमारी निगाहे मिली थी ,
दिल मे मच गयी थी खलबली ,
याद है अब भी मुझे .

कविता किसने लिखी वाली बात पे ,
जब तुम जोर जोर से खिल खिलाई ,
होठो पर हाथ रख कर ,
मुस्कराहट अपनी छिपाई ,
याद है अब भी मुझे .

क्यों तुमसे मिल कर आज ,
कुछ अलग सा लगा ,
शायद हम पहली बार नहीं मिल रहे ,
ऐसा दिल ने कहा ,
याद है अब भी मुझे .

जब हम वहा से बाहर आये ,
संग दोनों ने  जाने को कदम बढाये ,
मैने कुछ पूछना ही चाहा ,
की तुम खुद बताने लगी ,
कौन हो तुम ,
ये बात कुछ हद तक समझ आने लगी ,
याद है अब भी मुझे .

बस तुम्हे हर बात के लिए ,
हर वक़्त साथ के लिए  ,
" शुक्रिया " कहना है ,
ना चाह कर भी हमे दुर रहना है ,
पर अलविदा कभी नहीं कहना है .

और हां , बस गम इस बात का है ,
तुम्हारा नाम क्या है ,
ये पूछ नहीं पाया ,
ये बात अभी कविता लिखते वक़्त याद आया ,
गुस्ताखी माफ़ !!!!! 


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Wednesday, August 14, 2013

जननी


सुनो लाडली ,
तुम्हे कुछ बताना है ,
तुम्हे ना अपनाने की वजह समझाना है .

मै मानती हु ,
मैने तुम्हे मिटाया ,
पर क्या तुम जानती हो ,
क्यों मैने ये कदम उठाया .

मै भी कभी लाडली थी अपने माँ की ,
उसको भी था मुझपर नाज़ ,
जन्म होते ही मेरा , घर मे ,
कई दिनों तक बंद था सब काम काज़ .

मै तो नन्ही परी थी तब ,
पर पता लगा नहीं बचपन बिता कब ,
अब मै बड़ी हो रही थी ,
ये जान मेरी माँ रो रही थी .

आज दीपावली का त्यौहार था ,
घर मे आ रहा ढेरो उपहार था ,
दिये जला मै भी ख़ुशी मना रही थी ,,
घर के बाहर की दुनिया ,
शायद आज देख पाऊ
ये सोच कर बार बार दरवाजे पर जा रही थी .

मै आज पहली बार घर से बाहर आई ,
देख मुझे उस दरिन्दे ने ,
निगाहे गोल गोल घुमाई ,
ये देख घबरा कर मै ,
जोर जोर से माँ माँ चिल्लाई .

पापा ने जान कर ये बात ,
मुझे खूब खरी खोटी सुनाई ,
आज मुझे माँ क्यों रोती थी अक्सर ,
कुछ हद तक बात समझ आई .

अब दुखो ने मुझे पूरी तरह घेर लिया था ,
ज़िन्दगी ने माँ से मुह फेर लिया था ,
अब मै और लाचार , कमजोर हो गई ,
एक अलग सी दुनिया मे खो गई .

आज घर पर मेरा रिश्ता आया था ,
एक नया एहसास फिर मन मे गुन गुनाया था ,
हो कर घर से विदा मैने ,
ससुराल की ओर कदम बढाया था .

इस जीवन को मैने सारे दुःख भूल ,
अभी नए सोच से शुरू ही किया था ,
आचानक एक रोज़ दहेज़ की खातिर ,
ससुराल वालो ने मुझे घर से खदेड़ दिया था .

किसी तरह से पापा ने पैसा जुटाया ,
लक्ष्मी के संग अपनी लक्ष्मी को विदा कराया ,
माँ क्यों रोती थी अक्सर ,
आज ये बात समझ आया .

आज फिर कोई मेरे कमरे मे आया था ,
जोर जोर से मुझपर चिल्लाया था ,
बेटी है कोख में मेरे ,
ये जान कर उसने मुझे ,
तुम्हे मारने के लिए उकसाया था .

लाडली , इन्ही कुछ वजहों से ,
मैने आंसू घोट , खून बहाया था ,
माँ की चाहत छोड़ ,
तुम्हे मिटाया था .

और सुनो लाडली ,

मै नहीं चाहती थी ,
तुम इस दुनिया मे आओ ,
मुझ जैसे त्रस्त हो कर दुनिया से ,
तुम भी किसी लाडली को मिटाओ .


आज हमारे देश मे हजारो की संख्या मे ऐसी महिलाये है जो आज स्वतंत्रता के 67 वर्षो के  बाद भी स्वतंत्र नहीं है , आखिर क्यों ?????

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Monday, August 12, 2013

तेरा स्पर्श


तेरा वो गालो पर पहेला स्पर्श ,
दिल मे तूफ़ान भड़का गया ,
छोड़ गई थी जो होठो के निशा ,
आइने मे देखते ही उन्हे ,
वो इजहारे मोहब्बत करा गया .

मै क्यों नहीं तुझे समझ पाया था ,
क्यों मैने तुझे इतना सताया था ,
शायद ये स्पर्श ही था ,
जिसने तेरी मोहब्बत का मुझे एहसास दिलाया था .

तेरी आंखो मे देख कर ख़ुशी ,
जब उनमे खुद को तलाशने लगा ,
मै तो तेरी आंखो मे बसा हु ,
तब ये राज़ पता चला .

दिल मे उठे इस तूफ़ान को ,
कैसे मै काबू मे लाऊ ,
दिल मे छिपे बातो को ,
अल्फाजो मे कैसे सजाऊ .

मोहब्बत तो तब से थी तुझसे ,
जब से थी तुझे मुझसे ,
पर मे कैसे तुझे बताता ,
मुझे तो इश्क का इज़हार भी करने नहीं था आता .

तेरे संग बिताये वो कुछ हसीन पल ,
क्यों हर पल अब उस पल सा लगता है ,
ज़िन्दगी में आने से तेरे ,
फिर से जीने का दिल करता है .

ये स्पर्श जो भी है ,
पर इसमे एक सच्चाई है ,
अंजान दो दिलो को ,
करीब लाई है . 

मे अपने इस हसीन एहसास को ,
अल्फाजो मे कैसे सजाऊ ,
दिल करता है मेरा ,
तेरे जैसे ही मै भी ,
तेरे गालो पर एक स्पर्श छोड़ जाऊ . 

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Friday, August 2, 2013

शुक्रिया एहसास

मैंने इश्क का इज़हार तो कर दिया उससे ,
पर निभा ना सका ,
महसूस तो कर लिया उसे हद तक ,
पर पा न सका .

हर पल हर लम्हा अब भी याद है हमे ,
जब बावले आशिक थे हम तेरे ,
पर ये क्या से क्या हो गया ,
जब मुझे तुझमे खोना था ,
मै खुद मे खो गया .

हर सुबह जब तेरी आवाज़ ,
मेरी कॉनो मे चहचहाटी थी ,
आंखो में तेरा चहेरा आते ही ,
चहरे पर ख़ुशी खुद बखुद आ जाती थी .

वक़्त वो भी था जब ,
मै तुझे अक्सर रुलाता था  ,
सिर्फ कभी कभी हँसाता था ,
फिर भी तेरा साया हर वक़्त ,
मुझ पर नज़र आता था .

तेरा एहसास एक पहेली बन गयी ,
समझ नहीं आया ,
ज़िन्दगी मे तू क्यों आई ,
और फिर निकल गई .

सोच कर बाते तेरी ,
स्याही पन्नो पर फ़ैल जाती है ,
पन्ने पर फैले लिखे शब्द मेरे ,
बहते आशुओ की गवाही दे जाती है .

मै क्या कहू तुझसे ,
बस इन ही कहना है ,
ऐ एहसास तुझ बिन ही अब मुझे रहेना है ,
बस तुझे मुझसे दूर जाने के लिए ,
"" शुक्रिया "" कहना है .

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Saturday, July 6, 2013

लाडली .... .... मुझे भी जीने दो

ये कविता मेरी श्रधांजलि है उन सभी बेटियों ( लाडली ) को जिन्हे जन्म से पहले ही मार दिया जाता है . 


सुनो माँ , मै आ रही हु ,
संग अपने ढेरो खुशिया ला रही हु ,
देख तेरे चहरे पे ख़ुशी ,
मै भी खिलखिला रही हु .


माँ , एक बात बतानी है तुझको ,
पर थोडा घबरा रही हु ,
माँ मै बेटा नहीं बेटी हु ,
पर ये सिर्फ तुझे बता रही हु .


क्या हुआ माँ ,
क्यों तू उदास हो गई ,
कहा तेरे चहरे की हँसी खो गई .


माँ , तू ये क्या करा रही है ,
डाक्टर से क्या दिखा रही है ,
नज़र लग जाएगी मुझे किसी की ,
क्यों तू अपनी लाडली को सबको दिखा रही है .



माँ क्या भरोसा नहीं है मुझ पर ,
क्यों तू मुझे मिटा रही है ,
मेरे बहते आंसू को देख कर भी ,
तू क्यों नहीं रहम खा रही है .


माँ तू भी कभी लाडली थी ,
क्यों ये भूल जाती है ,
मुझे जीवन देने से फिर क्यों ,
तू कतराती है .


सोचा था आज धनतेरस को ,
तू कुछ नया लाएगी ,
पर क्या पता था ,
तू अपनी इस लक्ष्मी रूपी लाडली को ,
आज के पावन दिन ही मिटाएगी .


माँ मै जा रही हु ,
तेरी खुशिया तुझे लौटा रही हु ,
दुखी नहीं हु तुझसे मै ,
दुखी हु खुद से मै ,
ये तुझे बता रही हु मै .


मुझे जब भी जीवन पाने की उम्मीद आती है ,
क्यों तू मुझे मिटाती है ,
लाडली तू भी थी कभी अपने माँ की ,
क्यों ये भूल जाती है ,
क्यों मुझे जीवन देने से ,
 तू इतना घबराती है .


माँ , एक निवदेन है तुझसे ,
मुझे जब भी तू मिटाना ,
किसी को ना बताना ,
इस श्रृष्टि के सबसे हसींन शब्द '' माँ '' को ,
कलंकित ना  कराना .


और सुनो माँ .....
हो सके तो अब ना ,
किसी लाडली को मिटाना .


यहाँ हैरान करने वाली बात ये भी  है की कुछ किस्सों मे बेटियों को जन्म से पहले ही मार देने की पहेल पुरुष से पहले महिलाये ही कर रही है . ( दुखद: )
हमे अपनी और समाज की सोच बदलनी होगी वरना वो दिन दूर नहीं जब माता भी कुमाता कही जाएँगी .

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Friday, June 7, 2013

दास्तान

मेरी आवाज़ पहेचान लो तुम ,
मुझे मुझसे जान लो तुम ,
क्या था मै , क्या हु मै  ,
आज बता ही देता हु ,
हर छिपे राज से , पर्दा हटा ही लेता हु .

आज कल तुम्हे , कुछ जादा याद करते है ,
संग बिताये लम्हों को ,
सॊच कर कभी हँस ,
तो कभी रो लिया करते है .

क्या फर्क था उसमे और मुझमे ,
तब तक समझ नहीं आया ,
जब तक असल वजह मुझे ,
हमारे म्यूच्यूअल फ्रेंड ने नहीं बताया .

कह दिया होता तो २ करोड़ की मेट्रो से ना  आता ,
उसकी तरह मै भी लाखो वाला कार ले आता ,
तुम कहती थी तुम्हे डुड लुक नहीं भाता ,
अब तो कोई डुड देखते ही ,
तुम्हे उसमे अपना अगला बॉय फ्रेंड नज़र आता .

वक़्त का ये बदलाव देखो ,
अब ना ही एहसास का आभास है ,
और ना ही स्पर्श की आश है ,
अब तो ज़िन्दगी मानो सुखा समन्दर है ,
जिसकी बुझ नहीं रही प्यास है .

वक़्त दर वक़्त अकेलापन आ रहा है ,
संग अपने तन्हाई ला रहा है ,
दिल घबरा रहा है ,
दिमाग समझा रहा है ,
ये कला बादल ज़िन्दगी की रौशनी को ,
अपने अन्धेरेपन मे छिपा रहा है .

ये क्या होता जा रहा है ,
कुछ समझ नहीं आ रहा है ,
ज़िन्दगी की कलम का माँझी
खुदबखुद  ,
अल्फाजो को पन्ने पे सजा रहा है .


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Friday, May 10, 2013

तेरे इश्क मे

काफी अरसे बाद कलम उठाई कुछ लिखने को पर पता नहीं क्यों कलम चलने को तैयार नहीं और तो और शब्दों ने मानो मुझसे तलाक ले लिया हो फिर भी इन बिसम परिस्थितियो मे एक छोटा सा प्रयास आप लोगो के बीच .
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तेरे इश्क मे हम क्या से क्या हो गए ,

तेरे ज़िन्दगी मे आते ही ,

हम अपनों से भी मीलों जुदा हो गए .


हम किस कदर थे तेरे इश्क मे दीवाने ,

ए एहसास मिलते ही तुझसे हम ,

हो गए अपनी ही दुनिया से बेगाने .


पता भी ना था हमे ,

ये एहसास किस हद तक साथ निभाएगी ,

कभी सोचा ना था ,

कुछ ही लम्हों मे वो ,

बिना कुछ कहे साथ छोड़ जाएगी .


एक वक़्त था जब तेरे इश्क मे ,

कुछ कर गुजरने की चाहत थी ,

संग तेरे रहेने से ,

ज़िन्दगी मे सुकून और राहत थी .


एक लम्हा ऐसा भी आया था ,

मानो हर शब्द मे तेरा नाम ,

और तो और

हर रूप मे तेरा ही चहेरा छाया था .


तेरे इश्क मे क्या से क्या हो गए ,

शब्द भी बेवफ़ा हो गए ,

कलम की स्याही भी रूठ गई ,

मानो लिखने की वजह ही छुट गई .

  तेरे इश्क मे हम क्या से क्या हो गए ,

तेरे ज़िन्दगी मे आते ही ,

हम अपनों से भी मीलों जुदा हो गए .



( खुदा हाफ़िज़ )


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