Friday, June 7, 2013

दास्तान

मेरी आवाज़ पहेचान लो तुम ,
मुझे मुझसे जान लो तुम ,
क्या था मै , क्या हु मै  ,
आज बता ही देता हु ,
हर छिपे राज से , पर्दा हटा ही लेता हु .

आज कल तुम्हे , कुछ जादा याद करते है ,
संग बिताये लम्हों को ,
सॊच कर कभी हँस ,
तो कभी रो लिया करते है .

क्या फर्क था उसमे और मुझमे ,
तब तक समझ नहीं आया ,
जब तक असल वजह मुझे ,
हमारे म्यूच्यूअल फ्रेंड ने नहीं बताया .

कह दिया होता तो २ करोड़ की मेट्रो से ना  आता ,
उसकी तरह मै भी लाखो वाला कार ले आता ,
तुम कहती थी तुम्हे डुड लुक नहीं भाता ,
अब तो कोई डुड देखते ही ,
तुम्हे उसमे अपना अगला बॉय फ्रेंड नज़र आता .

वक़्त का ये बदलाव देखो ,
अब ना ही एहसास का आभास है ,
और ना ही स्पर्श की आश है ,
अब तो ज़िन्दगी मानो सुखा समन्दर है ,
जिसकी बुझ नहीं रही प्यास है .

वक़्त दर वक़्त अकेलापन आ रहा है ,
संग अपने तन्हाई ला रहा है ,
दिल घबरा रहा है ,
दिमाग समझा रहा है ,
ये कला बादल ज़िन्दगी की रौशनी को ,
अपने अन्धेरेपन मे छिपा रहा है .

ये क्या होता जा रहा है ,
कुछ समझ नहीं आ रहा है ,
ज़िन्दगी की कलम का माँझी
खुदबखुद  ,
अल्फाजो को पन्ने पे सजा रहा है .


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