ये कविता मेरी श्रधांजलि है उन सभी बेटियों ( लाडली ) को जिन्हे जन्म से पहले ही मार दिया जाता है .
सुनो माँ , मै आ रही हु ,
संग अपने ढेरो खुशिया ला रही हु ,
देख तेरे चहरे पे ख़ुशी ,
मै भी खिलखिला रही हु .
माँ , एक बात बतानी है तुझको ,
पर थोडा घबरा रही हु ,
माँ मै बेटा नहीं बेटी हु ,
पर ये सिर्फ तुझे बता रही हु .
क्या हुआ माँ ,
क्यों तू उदास हो गई ,
कहा तेरे चहरे की हँसी खो गई .
माँ , तू ये क्या करा रही है ,
डाक्टर से क्या दिखा रही है ,
नज़र लग जाएगी मुझे किसी की ,
क्यों तू अपनी लाडली को सबको दिखा रही है .
माँ क्या भरोसा नहीं है मुझ पर ,
क्यों तू मुझे मिटा रही है ,
मेरे बहते आंसू को देख कर भी ,
तू क्यों नहीं रहम खा रही है .
माँ तू भी कभी लाडली थी ,
क्यों ये भूल जाती है ,
मुझे जीवन देने से फिर क्यों ,
तू कतराती है .
सोचा था आज धनतेरस को ,
तू कुछ नया लाएगी ,
पर क्या पता था ,
तू अपनी इस लक्ष्मी रूपी लाडली को ,
आज के पावन दिन ही मिटाएगी .
माँ मै जा रही हु ,
तेरी खुशिया तुझे लौटा रही हु ,
दुखी नहीं हु तुझसे मै ,
दुखी हु खुद से मै ,
ये तुझे बता रही हु मै .
मुझे जब भी जीवन पाने की उम्मीद आती है ,
क्यों तू मुझे मिटाती है ,
लाडली तू भी थी कभी अपने माँ की ,
क्यों ये भूल जाती है ,
क्यों मुझे जीवन देने से ,
तू इतना घबराती है .
माँ , एक निवदेन है तुझसे ,
मुझे जब भी तू मिटाना ,
किसी को ना बताना ,
इस श्रृष्टि के सबसे हसींन शब्द '' माँ '' को ,
कलंकित ना कराना .
और सुनो माँ .....
हो सके तो अब ना ,
किसी लाडली को मिटाना .
यहाँ हैरान करने वाली बात ये भी है की कुछ किस्सों मे बेटियों को जन्म से पहले ही मार देने की पहेल पुरुष से पहले महिलाये ही कर रही है . ( दुखद: )
हमे अपनी और समाज की सोच बदलनी होगी वरना वो दिन दूर नहीं जब माता भी कुमाता कही जाएँगी .
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