Monday, September 29, 2014

ये तुम .... कही तुम तो नहीं

तुम जब बड़ी तसल्ली से हमे निहारती हो ,
आंखो से ही जान हम पर वारती हो , 
सोचता हू बस उसी वक़्त , 
दफनाए हुए अरमां को अल्फाज़ो से कह जाऊ , 
तुम तो कह देती हो संगीत बना कर बातो को ,
पर मैं बेसुरा कैसे गा कर हाल ए दिल सुनाऊ .

 यु तो तेरे जाने के बाद ,
तेरी मौजूदगी का आभास हुआ ,
और जब तू लौट कर आई ,
तब आईने संग मेरी निगाहो को ,
तुझसे मोहब्बत का एहसास हुआ .

 तुझे देख कर ही ,
सुबह की शुरुआत होती है ,
तेरी ही मुस्कुराहट से ,
चहरे पर मेरे मुस्कान होती है .

यु तो कभी ऐसा हुआ नहीं ,
तुझ जैसे यहाँ पहले कभी ,
किसी ने भी था ,
दिल को छुआ नहीं .

ये जानते हुए भी ,
तेरी मोह्हबत पर किसी और का राज है ,
दिल हर रोज़ तुझपर आज जाता है ,
और हमेशा की तरह ,
अपनी बातो को कहने से रह जाता है .

तेरा मुस्कुराना , तेरा रूठ जाना ,
आईने से हमसे नजरे मिलाना ,
तो कभी खो कर कही और ,
भूल कर जमाने को हमे देखते रह जाना .

तेरी हर अदा को निगाहो से तो नहीं ,
पर दिल से देख लेता हु ,
चाहत का तो पता नहीं ,
पर हर रोज़ कुछ लम्हों के लिए ही सही ,
तुझसे मोह्हबत कर लेता हु .

ये पता नहीं ,
इस रिश्ते का आगे क्या होगा ,
पर जहा तक बात तेरी मौजूदगी की है ,
मेरे हर लम्हे मे तेरा जिक्र होगा .

सोचने लगी हो अगर तुम ,
ये तुम कही तुम तो नहीं ,
तो फिक्र मत करो ,
अगर नहीं मंजूर मेरी मोहब्बत ,
तो ये तुम , तुम नहीं .


Copyright © 2014 shashankvsingh.blogspot.in™, All Rights Reserved

Wednesday, September 17, 2014

इतेफाक


तेरी अदाओ का कश्मकश ,
तेरी आंखो का जादू ,
हर वक़्त करता था ,
मेरे दिल को जो बेकाबू .

अब ना जाने तुम कहा ,
साथ सबको ले गयी ,
दिल की चाहत तुझे चाहने की ,
अधूरी ही रह गयी .

यु तो दिल तुम ,
तब ही मुझे दे बैठी थी ,
जब देखते ही पहले दफा ,
अपनी मोहब्बत को भुला ,
मुझसे आशिक़ी कर बैठी थी .


पर तब दिल मेरा दगा दे गया ,
समझा नहीं तेरे इशारे को ,
और छोड़ कर बीच मझदार में तुझे ,
किसी और का हो गया .

पर जब लौट दिल मेरा ,
सब लूटा , हार कर ,
तब तेरे दिल ने तुझसे कहा ,
इस दिल से तू मत प्यार कर .

तेरा प्यार तब तेरी ताकत था ,
जीभर करता तुझसे चाहत था ,
पर तोड़ तेरा दिल वो भी चला गया ,
और मैं तेरे बिखरे दिल को जोड़ता रह गया .

यु तो कई दफा ,
दिल से दिल को हमने मिलाया था ,
पर तोड़ कर दिल को ,
कभी तुमने कभी हमने ,
खुद से एक दूसरे को दूर पाया था.

एक दफा फिर दिल तुझसे ,
अब मोहब्बत करने का करता है ,
पर उससे पहले जान ले हम  ,
मुझसे आशिक़ी को दिल तेरा क्या कहता है .

बस करीब हम इतने आ जाये ,
की अब दगा हम दूरियों को दे जाए ,
भूलने से भी ना भूले हम अपनी आशिक़ी को ,
आओ ऐसी मोहब्बत कर जाए ..


अब तुम मेरे और
हम तुम्हारे बन जाए ,
आओ भुला कर हर बातो को ,
दिल मे अब तक दबी बात कह जाए .
आओ अब ऐसी मोह्हबत कर जाए ..

Copyright © 2014 shashankvsingh.blogspot.in™, All Rights Reserved

Thursday, September 11, 2014

कल्पना की कल्पना

सोचा ना था कभी ,
वो फिर लौट कर आएगी ,
जब गुजर रहा है वक़्त तन्हाइयो से भरा ,
तब वो अपनी मौजूदगी से उन्हे मिटाएगी .

यु तो हम आज अनजान से है ,
पर दिल का रिश्ता बहुत पुराना है ,
ख़फ़ा हो कर चली गयी थी उर रोज़ ,
पर दिल आज भी उसका दीवाना है .

वक़्त के कमाल को बस देख रहा हु ,
कल तक जो दूर थी बहुत ,
करीब आने पर उसके ,
ठण्ड पड़ी निगाहों को ,
उसकी खूबसूरती से सेक रहा हु .

तुझ संग अरसो बाद ,
आज हम अलफ़ाज़ सजा रहे थे ,
पर दूर जितने थे तुझसे ,
खुद को तेरे उतना ही करीब पा रहे थे .

तेरी आंखो में जो नशा तब था ,
आज जहर बन जहन मे उतर गया ,
खूबसरती तेरी मुस्कान से जो जुडी थी ,
आज एक बार फिर मेरा  ,
हाल-ए-दिल कह गया .

यु तो तेरे आने से मुझे  ,
डर तेरे फिर से जाने का लग रहा है,
पर लगता है नहीं पड़ेगी जरुरत ,
किसी और फेवीक्विक की अब कभी ,
ऐसा मेरा दिल कह रहा है .

जो मोह्हबत कल थी हमारे दरमियाँ ,
काश वो फिर लौट आये ,
अब हर सुबह तुझसे शुरू हो ,
और हर शाम तुझपे ख़त्म हो जाए .


LOL ;) 



Copyright © 2014 shashankvsingh.blogspot.in™, All Rights Reserved

Saturday, September 6, 2014

सुकून मिला

तेरी आँखों में देखकर उस झलक को ,
लगा जैसे कोई हुस्ने दीदार था ,
देखा था पहली दफा आइने में तुम्हे ,
उस रोज़ ही आइने से कर बैठा प्यार था.

कुछ करीब अब जब हम आ रहे थे ,
निगाहों से निगाहें मिला रहे थे ,
ना तुम कुछ बोली , ना मैं कुछ कह पाया ,
मानो जैसे निगाहों मे वो नहीं था भाया.

यु तो मैं दूर था तुझसे ,
पर ना जाने तुम कैसे करीब ले आई ,
दिल नहीं देता था इजाज़त ,
फिर कैसे मेरी निगाहों मे ,
तूमने अपनी तस्वीर बनाई .

मेरे हर सुर को ,
अब ताल मिलने लगा था ,
मानों लग रहा हो ऐसे ,
जैसे कोई अपना बन रहा था .

तेरी मासूमियत , तेरी हरअदा ,
लगने लगी थी मुझको सबसे जुदा ,
अब मैं तेरे और करीब आने लगा था ,
दिल की बातो को संगीत बना ,
तुझको सुनाने लगा था .

पर तुम कुछ कहती ,
या मैं सुन पाता ,
उससे पहले तुम चली गई ,
और फिर क्या ,
सूने आइने को ,
मेरी नम आँखे देखती रह गई .

बहते आंसुओ के संग  ,
तेरी तस्वीर को भी बहा दिया ,
फिर भी सुकून ना मिला ,
हाल दिल का अब ,
बद से बत्तर था हो चला .

उस रोज़ जब उठा तो ,
लगा सपने मे खोया हु मैं ,
देख कर आइने मे उन निगाहो को ,
एक बार फिर दिल दे बैठा था मैं .

तुम थी कहां ये पता नहीं ,
पर दिल को अब भाने लगी थी ,
दूर थी बहुत मुझसे ,
पर करीब आने लगी थी .

एक बार फिर ,
हम साथ खड़े थे ,
और हमेशा की तरह ,
आइने से निगाहो को देख रहे थे .

तभी आइना मिलते निगाहो को देखमुस्काया ,
और कहने लगा ,
तेरे आने से मुझको ,

सुकून मिला , सुकून मिला .... शशांक विक्रम सिंह 'श्रीनेत'

Copyright © 2014 shashankvsingh.blogspot.in™, All Rights Reserved

Friday, September 5, 2014

गुरु .. मेरे मार्ग दर्शक

माँ को छोड़,
जब पहली दफा स्कूल को आया था,
परायो के बीच,
निस्वार्थ भाव से आप ने ही अपनाया था.

मैं निकल पड़ा था अनजान सफर पर,
ना रास्तो का ज्ञान, ना मंजिल का था पता,
तब आप ने राह दिखाई थी ,
लगने लगे थे रास्ते आसान,
और तब पहली दफा मैंने,
मंजिल को खुद से बेहद करीब पाया था. 

यू तो पापा ने खरीद दी थी कलम,
और माँ ने उसे चलाना सिखाया था,
पर जिस रोज़ जब आप ने,
उन नन्हे हाथो को पकड़ कर,
'' लिखा था,
उस रोज़ ही पहली दफा मै कुछ,
खुद लिख पाया था.


माँ ने भेजा था टिफ़िन बना कर,
पर तब खुद खाना नहीं आया था,
एक बार फिर आप ने मेरे हाथो को,
अपने हाथो का सहारा दे कर,
खाना, खाना सिखलाया था.

जब एक रोज़ चलते चलते,
कदम मेरे लड़खड़ाये थे,
उस रोज़ भी आप के हाथो के सहारे हम,
फिर खड़े हो पाये थे.

उस रोज़ जब गलती कर के,
उसे छिपा रहा था,
तब पहली दफा,
उन हाथो ने गालो को कुछ यू छुआ,
की आंसू, आंखो से गिरने को विवश हुआ.

गिरते आंसुओ की धार देख,
आप जोर से चिलाये,
जिसे देख मैं घबरा गया,
ऐसा लग रहा हो,
जैसे आप नहीं कोई और,
आप के रूप में हो आ गया.

यू तो माँ भी अक्सर गुस्साती थी,
पर रोता देख मुझे
वो भी रोने लग जाती थी,
पर आप का गुस्सा देख,
उन लम्हों मे माँ की बहुत याद आती थी.

मैं समझता नहीं, और आप समझाते,
अक्सर अनजान रास्ते पे चलने को अकेला छोड़ जाते,
पर याद है उन रास्तो की यादे,
जहां भटकते ही रास्ता,
मार्दर्शन के लिए मेरे पीछे आ जाते.

तब तो कभी अच्छा, कभी बुरा लग जाता,
आप मे अपनों से जादे गैर नजर आता,
सोचता क्यों आप वक़्त के साथ बदल गए,
मेरी बातो को क्यों नहीं समझ रहे.


पर आज जब मैं उन रास्तो से,
मंजिल की ओर जा रहा हूं,
आप के ही पदचिन्हो को,
उन राहो पर पा रहा हूं.

एक बात बतानी है आज आप को ..........

आज समझ आया,
जिन रास्तो को अनजान समझ मैं,
जाने से घबराता था,
क्यों भटक जाने पर,
खुद के आस पास आप को पता था.

उन राहो के दोनों ओर,
ढेरोंकंकड़ पत्थर पड़े देख मैं घबरा गया,
उन पत्थरो पर देख,
आप के हाथो के निशा और लहू,
सब समझ आ गया.

जिन राहो पर मंजिल थी मेरी,
उन रास्ते को आपने खुद चलकर,
उन्हे आसान बनाया,
और तो और कभी इसका एहसास भी नहीं था हमको हो पाया.


माँ के तो फटकार मे भी प्यार ढूंढ लेता था,
पर आप को क्यों नहीं समझ पाया,
पूजते तो हम बिन देखे ईश्वर को भी है,
फिर आप को क्यों पूज्य नहीं था हमने बनाया.

आप की महानता अपरम्पार है,
माँ जैसा आपका सच्चा स्नेह और प्यार है,
इंसान के रूप मे ... हे गुरुदेव,
आप ही ईश्वर के सच्चे अवतार है ...

गुरुजनों के चरणों में कोटि- कोटि प्रणाम ...


Happy Teachers’ day J

जिस तरीके से एक कुहार जब माटी का घड़ा बनता है तब उसे बाहर से थपथपाते है और अंदर से सहलाता है , ठीक उसी तरह हमारे गुरुजन भी हमारे साथ उसी तरह का व्यवहार करते है लेकिन जैसे इंसान को कहार का थपथपाना दीखता है , सहलाना नहीं ठीक वैसे ही हमे भी अपने गुरु की मार फटकार तो दिखाई दे जाती है लेकिन उसमे छिपा प्यार नहीं ... मेरी ये कविता संपूर्ण रूप से मेरे गुरुजनो को समर्पित है .. वो तमाम गलतियों के लिए हाथ जोड़ कर छमा चाहता हु और जीवन मे जो भी उपलब्धिया हांसिल की है उनके लिए आप का शुक्रियादा करना चाहता हु ....



Copyright © 2014 shashankvsingh.blogspot.in™, All Rights Reserved