Wednesday, April 29, 2015
काश .... ये पल थम जाए
हम तुझे मीलों दूर से निहारा करते थे ,
धर्म , जात , रूप रंग , सब भूल भाल के ,
तुझसे ही मोहब्बत करते थे .
मिली जो नरजे कभी कभार ,
तेरी निगाहो को स्वेत हम पाते ,
झट से जाकर ख्यालो मे ,
अपनी तस्वीर से उन्हे रंग जाते .
हर दफा जो हमने इजहार किया ,
तब तब उन्होने इंकार किया ,
पर दिल को तेरा इंकार ना भाया ,
कमबख्त खाकर भी ठोकर कई दफा ,
तेरे पीछे चला था आया .
मेरी कोशिश जहा एक ओर जारी थी ,
वही तू किसी और को भी लगती प्यारी थी ,
पर किस-किस से तुझे बचाता ,
कमबख्त दिल तो आखिर दिल है ,
मुझपे ना सही किसी और पे ही आ जाता .
जो पहली और शायद आखिरी दफा ,
हम बेहद करीब आये ,
हम उन्हे देख ,
और वो उसे देख मुस्कुराई ,
तब जा कर ,
हम तो कभी थे ही नहीं ,
ये बात समझ आई .
बस वक़्त से गुजारिश है ,
काश ये लम्हा यु ही थम जाए ,
जो कह ना पाया दिल अब तक दिल से ,
वो दिल से आज कह जाए .
तू थी नहीं मेरी ,
पर पाने की कोशिश हर पल करता रहा ,
ख्यालो मे ही सही तुझे अपना बनाऊंगा ,
कौन कहता है एक तरफ़ा मोह्हबत नहीं होती कामयाब ,
मैं ऐसा कर दिखाऊंगा .
उम्मीद का दीया ,
जल रहा है दिल के संग ,
आखिर सांस तक उसे जलाउंगा.
तेरी तस्वीर बसा कर निगाहो मे ,
तुझे हर वक़्त खुद के करीब पाउँगा .
जो ठहर जाए ये लम्हा ,
तो इसे अपनी रग रग मे बसा लू ,
इस वक़्त की खशबू से ,
समां को खुशनुमा बना दू .
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मरा नहीं , आवाज़ बना हु
Sarकार बनता हु ,
उम्मीद भरी नजरो से टक-टकी लगता हु ,
पर साल दर साल सरकार बदल जाते ,
हम जस के तस उन्हे देखते रह जाते .
क्या फर्क पड़ा लोगो को ,
जो देख मुझे लटके ,
थोड़ा भी ना घबराये ,
सोचा था शायद सरकार बचा लेंगे मुझे ,
पर मेरे मरने तक वो माइक भी ना पकड़ पाये .
एक वक़्त हुआ करता था ,
जब सरकार खम्बों पर चढ़ जाते ,
पर हाय रे राजीनीति ,
देख कैसा हुआ तेरा असर ,
मानस को भी लटके देख ,
वो ख़ामोशी के पल्लू मे छिप जाते .
मैं मौत मरा गरीबी की ,
पर वो क्यों मुझे बचाते ,
मैं बच जाता ,
तो वो घड़ियाली आंसू कैसे बहाते .
मैं बड़ी उम्मीदो से उनके कहने पर आया था ,
पर हुआ हैरान देख कर बदले रंग उनके ,
जब सरकार ने मेरे अपनों पर ही ,
मुझे बेघर करने का आरोप लगाया था .
एक ओर मौसम की मार पड़ी थी ,
खेतो मे लक्ष्मी लाचार पड़ी थी ,
तो वही साहेब के खातिर ,
सरकार हमे ग्राहक बनाने को बेक़रार खड़ी थी .
मैं मरा या मारा गया ,
सोच कर ये ,
खुद को ठगा पता हु ,
कही कोई और ना ठगा जाए ,
मुझ जैसा ,
सोच यही घबराता हु .
मेरी मौत का फैसला सही था या गलत ,
आप ही बताये ,
क्या अब जागेगा किसान ,
या फिर ठगा जाएगा ,
सोच यही मन घबराये .
मैं मरा नहीं , आवाज़ बना हु ,
चिंगारियों से मिल कर आग बना हु ...
जलाये रखियेगा इस आग को ... शायद समां इससे ही रोशन हो जाए