Thursday, July 28, 2016

साथ

पहली दफ़ा नज़र गयीं तो ,
कुछ वक़्त गुज़र चुका था ,
हो गई थी मायूस वो ,
अनजाने मे मैं आगे बड़ चला था ।

मिली नज़र जो पहली दफ़ा ,
उसको ख़ुद से जुदा पाया  ,
देख जिसे मैं ख़ुद को ,
कुछ वक़्त ख़ामोशी को था दे आया ।

उसकी हँसी , उसका अन्दाज़ ,
उसकी निगाहे , उसके अल्फ़ाज़ ,
सब बेचारगी मे पड़े थे ,
और वो यू ही सामने मायूस खड़े थे ।

मिलते ही निगाहे ,
वो उन्हें चुराने लगीं ,
दिल मे हो रहीं हलचल को ,
मुस्कुरा के छिपाने लगी ।

देखती है निगाहे उनकी फ़ुरसत से हमें ,
पर अब नज़रें नहीं चुराती ,
निगाहों से ही अब अक्सर वो ,
हर बात कह जाती ।

सिलसिला जो हुआ है शुरू ,
अब ना थम पायेगा ,
हैं हम हर पल साथ तेरे ,
ये बहुत जल्द समझ आएगा ।

उम्मीद

है शाम अंधेरी घनी सी ,
घनघोर अँधेरा छाया है ,
हैं मंज़र ख़ौफ़ का ,
हर ओर मौत का साया है ।

मैं देखू जिधर कही भी ,
कुछ नज़र नहीं आता ,
हैं उम्मीद तेरे आने की ,
सोच जिसे मैं मुस्कुराता ।

मैं थाम कर दामन अपनो का ,
कुछ आगे बस बड़ा था ,
पीछे मूँड़ कर देखा तो ,
सुनसान रास्ता पड़ा था ।

छोड़ गये वो हमें अपनो कीं ख़ातिर ,
हम उन्हें अपना कहते रह गए ,
वो पकड़ ग़ैरों का दामन ,
हमें कोसते रह गए ।

हुई ख़ता बस इतनी हमसे ,
हम अपनो कीं ख़ातिर जीते मरते है ,
वरना सच कहें ,
आप को आप के अपने ,
ही अक्सर कोसा करते है ।

चलो ख़ुशी है इस बात कीं ,
ख़ुशी है आज भी मेरे साथ ही ,
रोशनी जल्द वो लायेंगीं ,
इस घनघोर अंधेरे को मिटायेंगीं ।

अपनो कीं ख़ातिर जीने मरने वाले ,
हम यूँही अपना फ़र्ज़ निभाएँगे ,
छिपा लो कितनी भी चमक मेरी ,
एक रोज़ हम सबकी ख़ातिर जगमगाएँगे ।

Saturday, July 16, 2016

ख़ामोशी

है ख़ामोशी का मंजर चारो ओर ,
घनघोर अँधेरा पसरा है ,
है साथ नहीं कोई मेरे ,
तन्हाइयो मे टूट कर दिल बिखरा है |

मैं देख रहा इधर उधर ,
कही कोई दिख जाए ,
तन्हाई के इस आलम मे ,
कोई अपना मिल जाए |

मैं हो कर भी साथ सभी के ,
ख़ुद को तनहा पाता हु ,
वक़्त के साथ बदलते देख अपनो को ,
मायूस हो जाता हु ।

मैं करता इजहार खुल के ,
अपनो से मोहब्बत का ,
पर कोई सुन नहीं पाता ,
अक्सर सोच जिसे मैं ख़ामोश हो जाता ।

काश इस शहर मे ,
हमें कोई अपना मिल जायें ,
चल रहाँ दौर जो ख़ामोशी का ,
शायद वो थम जाए ।

है भरोसा ,
ख़ामोशी तु एक रोज़ दूर जायेंगी ,
जो हो गया वास्ता हलचल से मेरा ,
तू मुझ जैसे ख़ुद को तनहा पायेंगी ।

उस रोज़ ख़ामोशी से ख़ामोश हो ,
तू ख़ूब आँसू बहायेंगीं ,
ख़ामोशी भी ख़ामोश हो कर ,
कहीं गुम हो जायेंगी ।