Thursday, December 28, 2017

हाय रे हया

कुछ क़दम अभी बस मैं चली थी ,
रोशनी सी आँखो में पड़ी थी ,
देखने को मुझे इस दफ़ा ,
कुछ जादे लोगों में होड़ लगी थी ।

कुछ आवाज़ दे रहे थे ,
कुछ तस्वीर ले रहें थे,
मैं कुछ समझ नहीं पाई ,
तभी ‘ग़ौर से देखिए ‘ ऐसी एक आवाज़ आई ।

हया जो अब तक चादर में ढकी थी ,
घबरा कर वो अब ठिठुर रही थी ,
सहमी ही वो एक दफ़ा फिर ,
किसी कोने में जा वो पड़ी थी ।

कुछ देर बाद जब ,
टीवी में ख़ुद को पाया ,
थे ये भी हया के दरिंदे ,
तब समझ आया ।

अब तक जो सिर्फ़ कुछ जान रहें थे ,
अब हर आँखे मुझे पहचान रही थी ,
बस मैं ही अपनी इस पहचान से ,
अनजान खड़ी थी ।

किसी ने मेरे आबरू को छेड़ा था ,
किसी ने उसे दुनिया में बिखेरा था ,
किसे गुनहगार बताऊँ ,
हर क़दम पर बन चुकी पहचान को ,
कैसे मैं अपनाऊँ ।।

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Saturday, November 4, 2017

शब्द .. जो आख़िरी होते

स्याही के आख़िरी बूँद से ,
कुछ ऐसा लिख जायेंगे ,
आख़िरी शब्द होंगे ज़रूर मेरे ,
पर कुछ गहरा कह जायेंगे ।

भीगी पलकों से गिर कर आँसू ,
लिखें शब्दों को धुँधला कर जाएँगे ,
साफ़ तो लिखा होगा मैंने ज़रूर ,
पर धुँधला नज़र आयेंगे ।

वो शब्द होंगे अगर आख़िरी ,
फिर तो तय हैं ,
रूह बन हम किसी और ,
दुनिया में चले जायेंगे ,
मुस्कुराता हुआ चहेरा ,
आप को मुस्कुराने के लिए छोड़ जायेंगे ।।

अब लगता हैं वक़्त तेरे मुस्कुराने का हैं ,
दूर मेरे जाने का हैं ,
आसमान में बन कर एक तारा ,
टिमटिमाने का हैं ।।

कभी जो ख़्वाबों में आयें ,
नींद को थाम लेना ,
कुछ वक़्त ही सही ,
साथ रह लेना ।

थक कर हार गया मैं ,
मुँह फेर ज़िंदगी से ,
सबको छोड़ कर जा रहाँ ,
थोड़ा रो , तो थोड़ा मुस्कुरा रहाँ ।।

दूर बहुत दूर ... अब मैं जा रहाँ ।।

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Thursday, November 2, 2017

तुम

अभी बस हम ख़ुशी से हटे थे ,
जा जब तुझसे मिले थे ,
सोचा ना था यादें से उनके निकल ,
तेरे हो चले थे ।।

ना तेरा मेरा कोई रिश्ता था ,
ना थी कोई पहेचान ,
थे कल तक जो अजनबी ,
अब नहीं थे अनजान ।।

तुम से मिलकर ... तुम से मिला था ,
अजनबी अब अनजान ना रहाँ था ,
हो रहीं थी बातें बेशुमार ,
होने लगीं थी मोहब्बत फिर एक बार ।।

तभी मधुशाला ने क्या खेल खिलाया ,
गड़ा मुर्दा जाग आया ,
देख जिसे , ख़ुद को तुमने ,
ज़िंदा लाश बनाया ।।

खो दिया तुम को मैंने ,
अब कहाँ तुम आओगी ,
वक़्त के साथ ,
एक हसीन याद बन जाओगी ।।

पर फ़र्क़ होगा थोड़ा ,
और को हम लिखकर सुनाते ,
तुम पर हम लिखते जाते ,
पड़ जिसे वो भी ‘तुम’ से मोहब्बत कर जाते ।।
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Wednesday, October 11, 2017

काजल ... आँखो का



यूँ जो तनहा सा किसी कोने में ,
एक दिल पड़ा था ,
जा जिससे मेरा दिल मिला था ।

आँखो से होती थी बातें ,
वादों से होती थी मुलाक़ातें ,
ये सिलसिला बस चलने ही लगा था ,
उनका दिल कहीं और चल पड़ा था

जो तमन्ना थी मेरी ,
वो अधूरी रह गई ,
दिल से मिला दिल उनका ,
मेरी आँखे देखती रह गई ।

चल पड़ा ये सिलसिला ,
अब बड़ता जा रहाँ था ,
डूब कर वो इश्क़ के समुन्दर में ,
उन्हें , उनके और क़रीब ला रहाँ था ।

एक रोज़ अनजान राहों पर ,
निगाहे टकरा गई ,
आँखे देख मायूस उनकी ,
बात समझ आ गई ।

दिल का दर्द पिघल गया ,
आँसु काजल लिए साथ बह गया ,
फिर एक दफ़ा ये निगाहे ,
उनकी आँखो में डूब कर देखता रह गया ।।

Saturday, September 9, 2017

अनजान निगाहें




यू जो हम ढूँढ रहे थे उन्हें ,
कही किसी राहों में ,
जा टकराई निगाहे मेरी ,
किसी अनजान निगाहों से ।

मैं चलता कुछ आगे ,
उससे पहले ही निगाहे थम गई ,
रुक गया 'वक़्त' भी ख़ातिर मेरे ,
देख जिन्हें वो थोड़ी सहम गयी ।

अभी जो शुरू ही हुआ था ये सिलसिला ,
आँखों से ख़ुशी होंठों पे आ गई ,
दिल में थी कसक जो मेरी ,
उन्हें वो पूरा करा गई ।

ख़ूबसूरत होगी शायद सूरत उनकी ,
पर सीरत दिलदार है ,
टूटा है दिल उनका .. , मगर ,
निगाहों में आज भी प्यार है ।

यू तो अब भी मेरी तलाश अधूरी हैं ,
निगाहे में छिपी मोहब्बत अधूरी हैं ,
अनजान राहों पे ,
मिले जो कभी किसी दफ़ा ,
फिर बतलाएँगे ।

हुआ क्या था हाले दिल ,
देख अनजान निगाहों को ,
ये आप को समझाएँगे ।

निगाहे होती अगर अबतक अनजान ,
तो शायद ये दिल उसपर आ जाता ,
ढूँढ रहा था जिसे वो ,
शायद वो मिल जाता ।।



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Sunday, May 21, 2017

नाज़ुक


मैंने देखा जो उन्हें पहली दफ़ा ,
नज़रें गई थी थम ,
सहेमी सी बैठी थी एक कोने में ,
जहाँ जा पहुँचे थे हम ।

उम्मीद भरी निगाहों से ,
वो पलकें उठा रहीं थी ,
देख इस अजनबी को  ,
वो नज़रें चुरा रही थी ।

नाज़ुक सा दिल जिसका ,
अदा में सादगी है ,
खुदा ने क्या ख़ूब बनाया हैं ,
सीरत भी पाक सी हैं ।

हैं जो मालूम हो चला हमें सब ,
आज भी वो अनजान हैं ,
दिल तो हैं सिने में मेरे ,
पर वो उसकी जान है ।

वो लाल रंग भी क्या ख़ूब खिला है ,
रोशन हो उठा समा हैं ,
देख जिसे भी , आज दूर तक ,
इस नाज़ुक दिल पर वो फ़िदा है ।

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Tuesday, April 25, 2017

आवाज़

रोज़ सुबह हल्के अंधेरे में ,
चिड़ियाँ मधुर गीत गुनगुनाती है ,
तभी किसी कोने से ,
ज़ोर की आवाज़ आती हैं ।

मैं समझ नहीं पाता बोल ,
सो ख़ामोश हो जाता हु ,
एक दफ़ा फिर ख़ुद को ,
नींद की ओर ढकेल जाता हु ।

जब आती है ख़ामोशी लौट ,
शोर थम जाने के बाद ,
चिड़ियाँ फिर गुनगुनाती है ,
सुकून भरे गीत गाती है ।

आवाज़ से नहीं ,
अन्दाज़ से शिकायत हैं हमें ,
किसी धर्म से नहीं ,
इंसान से चाहत हैं हमें ।

जो सुनता वो शोर से ,
हम ज़ोर से ही चिल्लाते ,
क्यूँ खामखां दबी आवाज़ में ,
उसके दर को जाते ।

मैं मुझे पसंद है ,
इसका बिलकुल मतलब नहीं ,
वो उसे पसंद हैं ।

आवाज़ ज़रूरी हैं ,
उठाने के लिए ,
पर नींद से नहीं ,
कुछ गुनगुनाने के लिए ।

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Sunday, April 23, 2017

नूर

मैं जी रही थी ज़िन्दगी ,
बड़ी ज़ोर शोर से ,
ख़ामोशी ने थाम लिया ,
ना जाने किस ओर से ।

मैं बड़ रहीं थी ओर मंज़िल के ,
मंजलि पीछे हो चली ,
ख़ूबसूरत सपनो की ख़ातिर ,
मैं अपनो को खो चली ।

थामा था हाथ बहुत भरोसे से ,
लगा हुए हम अधूरे से पूरे से ,
पर उस रोज़ हम भी टूट गए ,
जिस रोज़ वो हमें ख़ामोशी से छोड़ गए ।

लगा मानो सब ख़त्म हो गया ,
मेरी एक नादानी से ,
मेरा मैं भी मुझसे दूर हो गया ।

ख़ुद को तलाशने मैं अब निकल पड़ी ,
लोगों ने ली निगाहे थी फेर कहीं ,
आइना भी मुझे ना पहेचान सका ,
वो भी नूर से अनजान रहा ।

बदल रहीं इस दुनिया को ,
मैं थी पहचान गई ,
जीती थी जिस ज़िन्दगी की ख़ातिर ,
आज मेरी वो ग़ुलाम हुई ।


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