Wednesday, May 9, 2018

आँखें .. नम सी क्यूँ है

अभी बस नज़रें उठी ही थी ,
थम गई किसी ओर ,
होंठों पे थी हँसी ,
छिपा रही थी जो कोई शोर ।

जाने अनजाने हम सब जान गये ,
छिपे राज पहचान गये ,
शोर अब बस होने को था ,
वो पलके अपनी भिगोने को था ।

तभी एक सन्नाटा सा आया ,
आँखे में मोती टिमटिमाया ,
हल्के हल्के अब बारिश हो रही थी ,
पलकों से गिर गालों को भिगो रही थी ।

पूछ बैठी वो हमसे ,
क्या आँखो से पड़ पाते हो ,
कह दिया झट से हमने ,
वही जो दिल में छिपाते हो ।

अनजान सा रिश्ता है हमारा ,
तुम्हें जो नहीं है गवारा ,
फिर भी निभाते हो ।

वो अलग बात है ,
हर रोज़ बिन कुछ कहे ,
ख़्वाबों से मिल आते हो ,
क्यूँ निगाहों को मेरे .. अक्सर
नम कर जाते हो ।।

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