दिल पे पत्थर रख कर ,
हम एक महल बना रहे थे ,
हीरों से सज़ा कर ,
उसे दुल्हन बना रहे थे ।
कुछ दूर नो निकले थे अभी ,
हम पीछे आ रहे थे ,
धड़कनो को महल की ख़ातिर ,
आहिस्ता से धड़का रहे थे ।
तभी शाम होने को आ गई ,
अँधेरा संग जो ला गईं ,
लगा अब वो जगमगा उठेगी ,
रोशन इस पल को ख़ुद करेगी ।
तभी ज़ोर का एक झटका आया ,
दिल से टूट कंकड़ , जा महल से टकराया ,
हीरा नहीं शीशा था वो ,
तब जा कर ये दिल समझ पाया ।
आज भी जब कही अंधेरे में ,
कुछ भी चमकता पाता हु ,
टूटना मत ऐ दिल ,
बस यही समझाता हु ..।।
फिर हर बार की तरह ,
दिल पर पत्थर रख महल बनता हु ..!!
हम एक महल बना रहे थे ,
हीरों से सज़ा कर ,
उसे दुल्हन बना रहे थे ।
कुछ दूर नो निकले थे अभी ,
हम पीछे आ रहे थे ,
धड़कनो को महल की ख़ातिर ,
आहिस्ता से धड़का रहे थे ।
तभी शाम होने को आ गई ,
अँधेरा संग जो ला गईं ,
लगा अब वो जगमगा उठेगी ,
रोशन इस पल को ख़ुद करेगी ।
तभी ज़ोर का एक झटका आया ,
दिल से टूट कंकड़ , जा महल से टकराया ,
हीरा नहीं शीशा था वो ,
तब जा कर ये दिल समझ पाया ।
आज भी जब कही अंधेरे में ,
कुछ भी चमकता पाता हु ,
टूटना मत ऐ दिल ,
बस यही समझाता हु ..।।
फिर हर बार की तरह ,
दिल पर पत्थर रख महल बनता हु ..!!