Sunday, December 29, 2019

ग़ायब

ना जाने क्यूँ ग़ायब है ख़ुशियाँ ,
ना जाने क्यूँ तेरा इंतज़ार है ,
ना जाने क्यूँ उलझी हु तुझमें ,
ना जाने ये कैसा प्यार है ।

हर सुबह खुलते ही आँखे ,
देखने को जिसे ख़्वाब संजोये थी ,
टूट गये अरमा उस पल ही ,
सामने जब ख़ामोशी मेरे खड़ी थी ।

दिन जो कट जाते थे जल्दी ,
और रात ख़्वाब बन उड़ जाता था ,
हर पल उसकी मौजूदगी से ,
ख़ुशनुमा हर लम्हा हो जाता था ।

तेरी ग़ैर मौजूदगी अब सताती है ,
ख़ुशियाँ बेवजह अधूरी रह जाती है ,
हाले दिल मैं किसे अपना सुनाऊँ ,
दिल में तेरे तस्वीर को कैसे छिपाऊँ ।


उलझी हु माँझे सी बन कर तुझमें ,
बन पतंग मुझे उड़ा ले जा ,
मेरी ख़ुशियाँ मुझे लौटा कर ,
ग़लतियों की सज़ा दे जा ।

ग़ायब हो तुम ,
ग़ायब तुम्हारा एहसास है ,
फिर भी तेरे लौट आने का ,
ज़िंदा मुझमे आस है ।

ग़ायब हो तुम ,
ग़ायब तुम्हारा एहसास है !!

Thursday, December 26, 2019

बात उस रात की ..!!

उस रात अंधेरे मंज़र में ,
आसमा भी मायूस पड़ा था ,
ना थी रोशनी चाँद की ,
ना ही तारों का जमावड़ा ।

सुनसान से पड़े जज़्बात ,
उलझते मेरे अल्फ़ाज़ ,
तभी ख़्याल तेरा आया ,
था साथ जो हज़ारों सवाल लाया ।

भूल कर अपनी वो मोहब्बत ,
जिसे आख़िरी मान बैठे थे ,
तुझसे मिलने की हड़बड़ी में ,
ख़ुद से अनजान हो रहे थे ।

निकल कर अपने पते से ,
कुछ दूर ही चला था ,
मानो तुझसे जा ,
मैं उस पल ही मिला था ।

यू तो छाया घनघोर अंधेरा ,
पत्तों ने डालियों से मानो था मुँह फेरा ,
हवायें भी भूल गयीं हो रास्ता ,
या शायद रखना नहीं चाहता था कोई ,
उस मोहब्बत की तरह .. मुझसे वास्ता ।

बस अब टूट कर बिखरने ही वाला था ,
ना जाने कहाँ से तुम आ गई ,
तन्हाई से भी हो सकती है मोहब्बत ,
ये बात तब जा कर समझ आ गई ।

था नहीं मालूम ,
ये रात फिर लौट कर आयेगी ,
तन्हाई को समेटे ख़ुद में ,
मुझसे मोहब्बत कर जायेगी ..
ये रात फिर लौट कर आयेगी ॥

Sunday, December 22, 2019

मैं इज़हार करता हु .. वतन से प्यार करता हु !!

तुम गोलियों से मार रहे ,
धमाके लगा जश्ने बाज़ार रहे ,
हर तरफ़ मातम का मंज़र है ,
शोर कहाँ हो रह कम है ।

कहीं ख़ामोशी को कमज़ोरी समझ ,
तुम चिल्ला रहे ,
कहीं ग़ैरों की ख़ातिर ,
अपनो का ख़ून बहा रहे ।

मातम पर देखा है मुस्कुराते तुमको ,
बेवजह दे वास्ता “किसी” का ,
मासूमों का ख़ून बहाते हो ,
मजहबी करवाई उसे बतलाते हो ।

मंज़ूर नहीं सरकार अगर तो ,
वोट के वक़्त कहाँ छिप जाते हो ,
देते हो दुहाई संविधान की ,
जब भी उलझ जाते हो ।

जन के गड़ना से भी दिक्कत ,
जन गण से घबराते हो ,
देश के गीत को ,
जब मज़हबी रंग दे जाते हो ।

चंद घंटो की करवाई कह कर ,
सच तुम संसद का झुठलाते हो ,
गवाह रहाँ हैं मुल्क ये ,
जब मिटाने इस संसद को आते हो ।

क्यू दिक्कत नहीं होती सबको ,
आप चिल्लाते है ,
देश से आगे अक्सर ,
मजहब को रखते देखे जाते हो ।

कलाम को भगवान मान ये देश पूजता है ,
औरंगज़ेब की क़ुर्बानी सोच मन कुचेटता है ,
सहमत का क़र्ज़दार है ,
क्यूँ हो नहीं सकता तू भी इतना वफ़ादार है ।

देश सबका है ,
एक दफ़ा मज़हबी चादर उठा के देखो ,
एक दफ़ा इसे अपना बना के देखो ,
एक दफ़ा सिने से लगा के देखो ।

सुनने को ये मुल्क हम सबसे ,
बेताब है ... चलिये
मैं इज़हार करता हु .. वतन से प्यार करता हु !! ...

.... और आप !!

स्त्री

सेम डिग्री सेम पोज़िशन ,
डिस्क्रिमिनेशन का “अजेंडा” वाला फ़ेज़ है ,
कह देते आकर दो चार लाइन ,
बेवजह हो रहे वो चेप है ।

शादी बच्चे कर लूँगी मैं ,
किसकी क्या एज है ,
मालूम है मुझे सब ,
आज़ाद हु नहीं कोई “केज” है ।

मेरी मौजूदगी मौलूम ना हो ,
ऐसा मुमकिन कहाँ हो पाता है ,
कभी माँ , कभी बेटी , कभी बहू ,
वो कई रूप में मुझे देख पाता है ।

उसकी फ़िक्र जब भी अपनो को सताती है ,
बन जवाब सवालों का वो हँसाती है ,
मेरे अकेले होने पर भी सब साथ होते है ,
मेरी नींद से ही वो सोते है ।

मेरी पहचान दुनिया ख़ूब जानती है ,
सवालों का जवाब मुझे मानती है ,
हैं अपने इतने मेरे ,
दुनिया को क्या दिखाना ,
सिंगल हु या कमिटेड ,
जान कर क्या करेगा ज़माना ।

छू ले मुझे कोई ग़लती से ,
ये ग़लतियाँ नहीं होती ,
बेवजह ही उलझ कर जज़्बातों में ,
ग़ैरों को अपना नहीं लेती ।

पढ़ लिख कर आज़ाद बनी हु ,
भरोसा अपनो का लिये खड़ी हु ,
शादी से भागूँगी नहीं ,
प्यार के इस बंधन में बँधने को ,
तैयार खड़ी हु ।

जो भी हो डिग्री मेरी ,
हर ज़िम्मेदारी निभाऊँगी ,
कम्पैरिजन कर के अपना अपनो से ,
रिश्ते नहीं उलझाऊँगी ।

वो मिल कर आये किसी से ,
या मैं किसी से मिलने जाऊँ ,
फ़र्क़ नहीं पड़ता है ,
एक दूसरे को समझ कर ही ,
परिवार चलता है ।

मेरे कपड़ों की शिकायत होती नहीं ,
ना ही कोई नज़रें मेरे जिस्म पर घुमाता है ,
बेवजह उलझती नहीं मैं किसी से ,
ना एडवाईज़री कोई मुझ तक लाता है ।

मेरे घर से होगी शुरुआत ,
सिखेगा बच्चा मेरा ,
वो घूर कर निगाहे नहीं घुमायेगा ,
सम्मान से नज़रें मिलायेगा ।

आओ बन कर आदर्श घरों का ,
परिवार अपना बचाते हैं ,
देवी मानते अपनो को ,
दिल से अपनाते है ।

आओ “स्त्री” का फ़र्ज़ निभाते हैं ,
आओ ये दुनिया बचाते हैं ,
ग़ैरों को अपना बनाते है ,
आओ कुछ नया कर जाते है ।

मैं बेटी बन पापा की ताक़त हो जाती हु  ,
पत्नी बन पति की ख़ुशियाँ हो जाती हु ,
बहू बन घर सजाती हु ,
माँ बन सबकी इज़्ज़त करने की ,
परवरिश दे जाती हु ।

और हाँ रही बात ,
मेरे आज़ाद होने की ,
मैंने चुना वो जहाँ है ,
क़ैद होती नहीं बेटियाँ वहाँ है ।।

Saturday, December 14, 2019

ख़ैर

क्यूँकि मोहब्बत होना ज़रूरी है ,
टूटते दिल की मजबूरी है ,
नहीं तो पत्थरों से चिंगारी जलती है ,
लगती नहीं आग सूरत बदलती है ।

फ़ासले जो फ़ैसलों से बढ़ने लगे थे ,
जान कर भी वो अजनबी कहने लगे थे ,
मान कर सच उनके जज़्बात को ,
मोहब्बत से हम रूठने लगे थे ।

सिलसिला शुरू हुआ था जो कल ,
कल क्यूँ थमने को आया था ,
आज़ाद आवारा दिल मेरा ,
पिंजड़े में क़ैद हो आया था ।

ख़ैर हर दफ़ा जीत ले दिल कोई ,
ये ज़रूरी नहीं ,
लुटेरे बहुत है इस जहाँ में ,
कोई किसी से कम नहीं ।

क्यूँ तेरी मौजूदगी अब रुलाती है ,
ख़ामोशी में भी वो चिल्लाती है ,
ना रहना तेरा बेहतर होगा ,
इस एहसास से दिल बेख़बर होगा ।

क्यूँकि ख़ैर नहीं ...ख़ैर क्या कर पायेंगे ,
उलझ कर जज़्बातों के खेल में ,
कभी राजा , कभी वज़ीर ,
तो कभी सिपाही बन जायेंगे ।।

Monday, November 18, 2019

बेफ़िक्र

क्यूँकि चलना ज़रूरी होता है ,
मंज़िल की तलाश में ,
आसमान से भी होता है ऊँचा ,
ख़्वाब उड़ता आकाश में ।

कभी ऊझलते तार ज़िंदगी के ,
कभी सुलझ जाते है ,
अजनबी कई दफ़ा अपने ,
अपने अजनबी हो जाते है ।

डर लगता है खोने का ,
पाने से घबराते ,
पास आकर भी मंज़िल के ,
दूर हम हो जाते ।

कभी ग़म के बादल ,
कभी ख़ुशियों की होती बारिश ,
बेवजह हो कर भी साथ ,
ज़िंदगी बन जाती लावारिस ।

क्यूँकि फ़िक्र जो होती साथ है ,
डर से गुज़रती हर रात है ,
क्यूँ नहीं बेफ़िक्र हो जाते ,
छोड़ सब हर पल मुस्कुराते ।

क्या ज़रूरी है वजह का ,
बेवजह ज़िंदगी में ,
क्यूँ जी नहीं लेते ज़िंदगी ,
अपनी ख़ुशी में ।

बेफ़िक्र हो कर आज हम ,
ख़ुशियाँ मनाते है ,
बीत गये लम्हों का मालूम नहीं ,
आओ इन लम्हों में ज़िंदगी जी जाते है ।

Tuesday, October 22, 2019

आज़ाद “आवारा” दिल

आज़ाद चिड़ियाँ सा ,
दिल अमूमन है होता ,
कभी इस डाल कभी उस डाल ,
है वो हो लेता  ।

ना रहता क़ैद पिंजड़े में ,
ना छोटी सी दुनिया सजाता ,
उड़ कर खुले आसमान में ,
आसमान को घर बताता ।

क़ैद कर के दिल को ,
क्यूँ किसी पर क़ुर्बान कर जाये ,
क्यूँ नहीं आज़ाद कर के ,
हर दफ़ा शिद्दत से मोहब्बत कर जाये ।

ना एहसासो का समंदर होगा ,
ना सुख जाने पर बंजर होगा ,
ना दिखेंगे पैरों के निशा उनके ,
जिनके जाने पर ये मंज़र होगा ।

ना खायेंगे क़समें तोड़ जाने को ,
ना निभायेंगे वादे साथ आने को ,
ना ही जज़्बातों में जंग होगी ,
बेवजह ना वो मेरे संग होगी ।

कौन कहता है आती है मौत ,
उस ज़िंदगी के जाने से ,
कौन कहता है आ जाती है ज़िंदगी ,
एक दफ़ा फिर से मौत से मिल आने से ।

आज़ाद “आवारा” दिल ,
कभी किसी का दिल नहीं दुखाता ,
धड़कनो के बदलते शोर से ,
अपने रास्ते लौट जाता ।

Friday, October 18, 2019

आँसू

दिल में भरे हर बोझ को ,
एक पल में जो हर लेता है ,
नम पलकों को कर के ,
गालों को तर देता है ।

कभी ख़ुशी में बहता ,
कभी ग़म में बरस जाता ,
बेवजह भी अक्सर ,
ये आँखों से छलक आता ।

ना कोई रंग होता इसका ,
ना ही होता कोई मौसम ,
ना ही कोई साथी ,
ना ही कोई हम दम ।

ना जाने क्यूँ लोग इसे ,
अक्सर छिपाते है ,
आते ही इसके सामने ,
बेवजह ही इसे मिटाते है ।

देता होगा ग़म ज़माने को ,
वजह किसी के मुस्कुराने को ,
पर कोई इससे दिल नहीं लगाता ,
कोई मोहब्बत की क़समें नहीं खाता ।

बहा कर ख़ुद को ग़ैरों की ख़ातिर ,
सुकून दिल को दे जाता है ,
पत्थर हो चले दिल को ,
अपने निर्मलता से पिघलाता है ।

ये आँसू ही है ,
जो ग़म और ख़ुशी ,
दोनों में साथ निभाता है ,
बेरंग हो कर भी .. रंग छोड़ जाता ।।

मेहंदी

तेरे नाम की मेहंदी ,
हाथो पर सजाई थी ,
साज सँवर कर चूड़े संग ,
खिलने को वो आई थी ।

मोहब्बत सा गाढ़ा रंग उसका ,
वक़्त के साथ खिल रहा था ,
निगाहे उनसे और दिल उससे ,
जब मिल रहा था ।

धड़कनो के शोर को छिपा रही थी ,
माँग में सिंदूर जब लगा रही थी ,
देखा था चाँद के बाद जिसे ,
क्यूँ आज नज़र नहीं आया ।

थामा था हाथ अब जिसका ,
कल क्यूँ उससे ये मेहंदी अनजान थी ,
तुझे इससे मोहब्बत ,
और तू उसकी जान थी ।

चंद लम्हों में उम्र भर का साथ ,
कैसे छूट जाता है ,
फीका पड़ने से पहले रंग मेहंदी का ,
मोहब्बत बदल जाता है ।


मेहंदी बिना बोले सब कह जाती है ,
खिलने पर जब वो आती है ,
ख़ुशबू में होती जिसके मोहब्बत ,
गर नहीं .. तो फीकी पड़ जाती है ।

मेहंदी हर दफ़ा सच्ची हो ,
ये ज़रूरी नहीं ,
खिलना हर दफ़ा उसका सिर्फ़ “तेरे लिये” ,
उसकी मजबूरी नहीं ।।

Sunday, October 13, 2019

इश्क़ तेरा

हर रोज़ बदलते जज़्बातों के ,
हर रोज़ भूलते वादों के ,
गर नहीं बदला कुछ एक है ,
वो है ... इश्क़ तेरा ..!

सुबह के ताज़गी से भी जादा ताज़ा ,
दिन के रंगो से रंगीन ,
सर्द पड़ते मौसम से गर्म ,
और शाम के लालिमा से हसीन ,
गर कुछ है .. इश्क़ तेरा ।

दिल के धड़कनो पर राज जिसका ,
मेरी मोहब्बत पर नाज़ जिसको ,
हर लम्हे में होता जो साथ मेरे ,
गर कुछ है .. इश्क़ तेरा ।

मेरी मायूस होने पर जो हँसाता ,
मेरे रूठ जाने पर जो मनाता ,
मेरे जाने पर पीछे पीछे आता ,
गर कुछ है .. इश्क़ तेरा ।

मेरी ज़िंदगी भी एक .. और मौत भी ,
वो ही समंदर और रेत भी ,
वही दिन और और वही रात ,
गर कुछ है .. इश्क़ तेरा ।

आख़िरी साँस तक मैं ,
जिसका साथ निभाऊँगा ,
हर मोड़ पर मिल जाऊँगा ,
गर कुछ है .. इश्क़ तेरा ।।

ग़ुस्सा

पहली दफ़ा तुमसे जब मिला था ,
चेहरा टमाटर हो चला था ,
तुम देख जिसे खिलखिलाई थी ,
उस रोज़ जब मिलने आई थी ।

ना मालूम था पता घर का ,
ना दिल का कोई ठिकाना था ,
थी तुम तब भी ख़ामोश ,
जब रास्ता अनजाना था ।

खोने के डर से ,
तेरे रास्तों पर चलने लगे ,
बेवजह उन रास्तों पर भी ,
तुम हमसे उलझने लगे ।

सोचा छोड़ कर बीच रास्ते ,
अपना पता ढूँढ लाते है ,
इन अनजान रास्तों पर ,
अजनबी बन जातें है ।

जाने लगे क़दम जब अलग रास्तों पर ,
पहली दफ़ा वो लड़खड़ाये थे ,
लौट आये फिर उन्ही रास्तों पर ,
जहाँ छोड़ उन्हें आये थे ।

पैरों के निशा उन रास्तों पर ,
एक क़दम भी ना बढ़े थे ,
वो थोड़े मायूसी से ,
एक कोने में जा पड़े थे ।

देख मुझे फिर से वो सताने लगे ,
बेवजह ही अनजान रास्तों पर जाने लगे ।

मिल ही गया पता मंज़िल का मुझे ,
तेरे दिल तक ही तो था जाना ,
लगने लगे थे रास्ते पहचाने से ,
जिन रास्तों पर था तेरा ठिकाना ।

क्यूँ टमाटर हो चला चहेरा मेरा ,
इस बार दिल मुस्कुराया था ,
धड़कनो में मौजूदगी उसकी ,
अब जा कर सब समझ आया था ।

ग़ुस्से से भी करते है मोहब्बत ,
मोहब्बत ने बतलाया था ,
फिर सताने जब मुझे ,
मेरे पास वो आया था ।।

उम्मीद

बिखर कर शीशे के टुकड़ों सी ,
जा गिरी थी जब , ज़िंदगी ,
उल्फ़तो के आफ़तों से ,
जा मिली थी ज़िंदगी ।

लगा जब सब छूट सा गया ,
मेरा मैं मुझसे रूठ सा गया ,
ना मिली शाम उस रात चाँद से ,
रूठी हो मानो चमचमाते आसमान से ।

हर दफ़ा कोशिश शिद्दत से करता मैं ,
दूर हो कर उसके पास रहता मैं ,
फिर भी सब ख़त्म सा मालूम होता है ,
जब पास हो कर भी वो दूर होता है ।

कभी सूरज के उगने से पहले ,
जो आँखों में चमक जाता था ,
जिस्म मेरा जिसकी ख़ुशबू से ,
हर दफ़ा महक जाता था ।

अब उग कर सूरज सुबह को ,
शाम में छिप जाता है ,
इंतज़ार में उसके लौट आने के ,
वक़्त अक्सर रूठ जाता है ।

मालूम नहीं कब तुम लौट कर आओगे ,
मेरी आँखों को चमकाओगे ,
फिर महकेगा जिस्म मेरा तेरी ख़ुशबू से ,
कब रूठे वक़्त को मनाओगे ।

है उम्मीद बस इतनी सी ,
फिर से मैं मुस्कुराऊँगा ,
आज़ाद हो चला दिल मेरा ,
कही क़ैद कर जाऊँगा ।।

Saturday, September 14, 2019

मासूम ऊँगली

उँगलियो को ख़ून में ,
सान कर शान से मैं कह रहा ,
दिमको को मार कर ,
सरदार मैं जो बन रहा ।

है जुमला यही , यही क़ानून है ,
ख़ून से सनी उँगलियाँ ,
उनका ही क़सूर हैं ।

है पड़ी सड़क पर ऊँगली ,
ख़ून से सनी हुई ,
कौन कह रहा है पड़ी ख़ामोश वो ,
यू ही मरी हुई ।

क्यू बता कर दीमक उसे ,
बदनाम किये जा रहे ,
अजेंडा उँगलियों की मौत पर ,
उँगलियाँ से चला रहे ।

कब तक अपनी उँगलियों से ,
ख़ून तू यू बहायेगा ,
किसी को राम ,
किसी को रावण बनायेगा।

अरे रुकिये ...

था हिस्सा मैं भी उस भीड़ का ,
उँगलियों काट कर फ़ेक दिया ,
जिसने भी उनकी आज़ादी को ,
बीच में आकर रोक दिया ।

आज़ाद उँगलियों को क़ैद कर ,
उनकी आज़ादी के लिए आँसू बहाते हो ,
बेवजह क्यूँ ख़ून से सनी उँगलियों ,
पर चिल्लाते हो ।

मोटर साइकल का तो पता नहीं ,
कार से कोई अपना आया था ,
देख ख़ून से सनी उँगलिया ,
बड़े उल्लास से मुस्कुराया था ।

थी खड़ी भीड़ और भी ,
पर कोई उसे हसने से नहीं रोक पाया ,
अधमरे पड़े ऊँगली को ,
था कुचलने जो वो आया ।

उन हज़ारों के भीड़ में ,
काश कोई एक हिम्मत जुटा पाया होता ,
ख़ामोश हो रही ख़ून में लटपथ ऊँगली ,
को बस इतना समझाया होता ।

क्यू कर दिया क़ुर्बान ख़ुद को ,
ख़ातिर उसके शौक़ के ,
शोक में जो हंस रहा होगा ,
उँगलियों के मौत पे ।

सज गया दरबार उसके जनाज़े का ,
क्या ख़ूब था अन्दाज़ क़ातिल का ,
देख सब हैरान हो गये ,
घड़ियालों आँसू लिये जब “क़ातिल बाबा”
रो गये ।

पाखंड का भी अंत होना जरूँगी हैं ,
आख़िर क्या इनकी मज़बूरी है ,
क्यूँ नहीं उठी उँगलियाँ लिए कलम ,
क्या ख़ून में सना होना ज़रूरी हैं ।

इन उँगलियों को आज़ाद कर ,
हम नहीं चिल्लायेंगे ,
बेवज फ़िज़ूल मैं ख़ून नहीं बहाएँगे ,
सच को ना देंगे झुकने ,
ना झूठ को उठायेंगे ।

बेवजह ख़ून से सनी ना होंगी उँगलियों ,
स्याही से सजायेंगे ,
आज़ाद उँगलियों से ,
एक अखंड हाथ बनायेंगे ।

बस अब और नहीं ...

ख़ून से सनी उँगलियों को ,
लेकर मातम नहीं मनायेंगे ,
बेफ़िज़ूल में कोस कर सरदार को ,
अजेंडा नहीं चलायेंगे ..
एक नया भारत इन उँगलियों से ,
हम लिख कर जायेंगे ।

Friday, September 13, 2019

गुज़ारिश

ये जो ठंडी सी हवाओं में ,
पत्तों के छाओ में ,
चिड़ियों की चटचटाहट ,
और वो मेरी बाँहों में ।

रख कर सिर अपना कंधे पर मेरे ,
ख़्याल उनके बुन रही थी ,
क़रीब बैठी थी बेहद मेरे ,
पर साथ उनके चल रही थी ।

यू जो फेरते उँगलियों ,
बालों पर उसके ,
हवा ने रूख मोड़ दिया ,
सर्द हवाओं ने सिलसिला तोड़ दिया ।

देखती थी टकटकी लगाये ,
निगाहे जो हर वक़्त मुझे ,
आज वो नज़रें चुरा रही थी ,
कुछ तो वो छिपा रही थी ।

ना ही चेहरे पर वो नूर था ,
ना जाने मेरा क्या क़सूर था ,
धड़कते थे दिल में धड़कनो की तरह ,
जा रहा वो अब मुझसे दूर था ।

रोकने की कोशिश कर के ,
दिल नहीं दुखाना चाहता था ,
हो चुकी मोहब्बत किसी और की ,
हक़ नहीं जताना चाहता था ।

अब जा रही हो जो मेरे दिल से दूर ,
उनसे दूर कैसे जाओगी ,
गर छोड़ दिया उसने इस दफ़ा ,
कंधे पर रखने सिर किसके .. तुम आओगी ।

किन्नर

आज की सुबह कुछ ख़ास थी ,
माँ के चेहरे पर ख़ुशी बेशुमार थी ,
पापा को बेटी प्यारी ,
वंश को बेटे की दरकार थी ।

माँ के जिस्म से अलग होने को ,
वक़्त मेरे जितने पास आ रहा था ,
ना जाने क्यू माँ से ,
ख़ुद को मैं दूर पा रहा था ।

ऐसा पहली दफ़ा होने को आया था ,
पैदा होने पर रोता सुन ,
कोई नहीं मुस्कुराया था ,
मेरी पहचान से मातम छाया था ।

माँग रहे थे दुआ सभी जब,
क्यू दुआ क़बूल नहीं हो पाई ,
ना आया बेटा , ना आई बेटी ,
किन्नर थी ... माँ के घर आई ।

क्यूँ नहीं कोख में मुझे मिटा दिया ,
क्यूँ मुझे ऐसा बना दिया ,
कोख से जन्मी थी जिस माँ के ,
उसने भी ठुकरा दिया ।

क्यूँ नहीं बन पायी पापा की लाड़ली ,
ना ही बन पाया घर का लाल ,
पैदा होते ही छोड़ दिया ,
क्यूँ मुझे मेरे हाल ।

माना की मैं अलग हु जिस्म से ,
पर दिल मेरा भी धड़कता हैं ,
माँ की ममता और परिवार की ख़ातिर ,
हर वक़्त तड़पता है ।

यू तो पहचान मुझे मेरी मिल गई ,
पर आज भी अपनो से अनजान रह गई ,
ना वो मुझे अपनाते , ना अपना बनाते ,
हाय हाय “ किन्नर “ ... कह ,
अक्सर आगे बढ़ जाते ।

वक़्त वो भी ज़रूर आयेगा ,
जा मेरी पहचान जान कर ,
दुनिया मुझे अपनायेगी ,
उस रोज़ माँ भी सीने से लगाएगी ।।

Saturday, August 24, 2019

शिकायत

मेरे आने से तेरे जाने तक ,
तेरे आने से मेरे जाने तक ,
कुछ जो हर पल साथ था ,
वो एक उलझा एहसास था ।

ना बदला वक़्त ना बदली ख़ुशी ,
आज भी रहती है अक्सर बेरुख़ी ,
बस यूँही हम मुस्कुराते जाते ,
एक तरफ़ा मोहब्बत उनसे कर आते ।

कभी वो मुस्कुराती ,
कभी बेवजह रूठ जाती ,
होश में तो मालूम नहीं ,
अक्सर नींद में ख़्वाब बन आती  ।

रंग होंठों का लाल ,
पलकों पर काजल कमाल ,
गाल पर वो छोटा तिल ,
बसता था जहाँ मेरा दिल ।

बस चंद लम्हों में अरमा,
टूटे काँच सा बिखर गया ,
जिस पल वो शिकायत मेरी ,
ख़ुद की मौजूदगी से कर गया ।


नहीं मालूम इश्क़ सच्चा ,
या झूठा होता हैं ,
ये “शिकायतों” वाला दौर ,
शुरू में कहाँ होता है ।

ख़ैर अच्छा हैं ,
“शिकायत “ फ़रिश्ता बन कर आता हैं ,
उलझे रिश्तों में क़ैद पंछी को ,
पिंजड़े से आज़ाद कर जाता हैं ।

शुक्र हैं शिकायत से कोई शिकायत नहीं ,
वरना होती मोहब्बत शायद दुबारा कभी ।।


Friday, August 23, 2019

ज़ख़्म

तेरे हाथों की मेहंदी ,
आँखों का नूर ,
करते थे मोहब्बत जिनसे ,
बिछड़े ना जाने क्यूँ हजूर् ।

पहली मुलाक़ात , पहली बात ,
बिछड़ते हम , मिलते जज़्बात ,
कुछ लम्हों का साथ ,
और वो मुलाक़ात ।

एक स्पर्श से हुआ शुरू सफ़र ,
ना जाने कैसे थम गया ,
खाते थे क़समें वादे जन्मो के ,
चंद लम्हों में था जो छिन गया ।

लगा मालूम जैसे ,
सब लूटा बैठे हम ,
दिल से धड़कन को ,
जुदा कर बैठे हम ।

तस्वीर जो आईना समझ निहारते थे ,
ख़ुद को जिसमें वो सँवारते थे ,
एक रोज़ अनजाने में टूट गया ,
मानो वो भी इस बेरुख़ी से रूठ गया ।

वक़्त के साथ मरहम बन यादें ,
एहसास के ज़ख़्म को भरने लगी ,
उन्हें उसके क़रीब ,
मुझे उनसे दूर करने लगी ।

लौट कर वक़्त फिर वही आया है ,
मालूम नहीं किसने खोया ,
किसने पाया है ।

पर अब ना वो बात है ,
ना ही वो जज़्बात है ,
ना ही वो “स्पर्श”
और ना ही अब वो साथ है ।

बस चंद यादें , ज़ख़्मों के निशा और उलझे अल्फ़ाज़ है ।।

Friday, August 16, 2019

आज़ादी

वाह रो लिया मैंने आज के मातम पर ,
कल की चीख़ पर बहरा गया था ,
थे वो भी इंसा लूटी थी अबरू जिनकी ,
बेघर सड़क पर आ पड़े थे ,
लाखों छोड़ घर अपना जब जा रहे थे ।

ख़ैर आप को क्या ,
आप आज उनकी चीखे सुन लीजिये ,
छिने नहीं घर , ना लूटी आबरू ,
आप उनके सिने पर ही रख सर रो लीजिये ।

याद है आज भी हर क़ुर्बानी ,
चाहे हो शहीद औरंगज़ेब या
कोई बुरहॉन वानी ,
देखा था मंज़र मिट्टी में मिलते दोनो को ,
एक पर जहाँ चंद जनाज़े तक आये थे ,
वही दूसरे के मौत पर “वो “ भीड़ लाये थे ।

शहीदों की बात ना करे तो बेहतर होगा ,
खोया हैं लाखों ने अपनो को ,
ख़ैर आप को उनकी चीख़ो से क्या होगा ।

मना लीजिये मातम आप आज पर ,
शायद सुकून मिल जाये ,
आज़ाद हुआ “ताज” भारत का ,
फिर ग़ुलाम ना हो जायें ।

ख़ैर आप को क्या आज़ाद भारत से ,
आप तो पिंजरे में क़ैद ,
मंदिर मस्जिद में उलझने वाले  ,
मालूम होते है ।।

इंसानियत ना सही तो कोई बात नहीं ,
मिट्टी का क़र्ज़ निभा जाओ ,
माँ भारती के वीरों के बलिदानो को ,
यू मिट्टी में ना मिलाओ ।

हुआ है भारत एक जहाँ अब ,
आओ वही भारत बनाते है ,
जहाँ है एक धर्म एक मजहब ,
सब भारतीय कहलाते है ।

और हाँ ...
नहीं जीता कोई आज़ाद देश हमने ,
अपनो को आज़ाद कराया है ,
भारत माँ के शीश पर ,
आज़ादी का तिलक लगाया है ।

जय हिंद जय भारत

Saturday, August 10, 2019

बेचारी मोहब्बत

ऐसी मोहब्बत का क्या फ़ायदा ,
जहाँ इश्क़ करने की इजाज़त ना हो ,
बेवजह हम उलझे हो उनके ख़्यालों में ,
जिन्हें हमारी चाहत ना हो ।

हर सुबह उठते ही ज़िक्र,
जिसका उसे आता है ,
फोने पर लगी तस्वीर उसकी ,
देख नम आँखो से वो मुस्कुराता है ।

मालूम नहीं क्यू इस क़दर ,
वो इतने दूर हो गये ,
मिलते नहीं ख़्वाबों मे भी अब तो ,
आख़िर क्यू इतने मजबूर हो गये ।

कल तक के क़समें वादे ,
नाजाने अब कौन निभायेगा ,
मालूम नहीं इस ज़िंदगी में ,
कौन बन कर ...
सच्ची वाली मोहब्बत आयेगा ।

दिल के धड़कनो पर ,
कहाँ किसी का ज़ोर है ,
तेरे जाने से कही जादे ,
उसके आने का शोर है ।

बस मोहब्बत अब ख़्यालों में ,
और नहीं कर पायेंगे ,
जो नहीं मिली मंज़िल गर ,
इन्ही रास्तों पर लौट आयेंगे ।

चाहत थी नहीं जिसे हमसे ,
उससे ही मोहब्बत कर जायेंगे ,
एक दफ़ा फिर और सही ,
हम दिल तोड़ने को लायेंगे ।

मोहब्बत .. उससे ही करते जायेंगे ।।

Tuesday, July 30, 2019

बदनाम “मोहब्बत”

वक़्त के साथ रिश्ते बदल जाते है ,
आज इनसे , कल उनसे दिल लगाते है ,
वो हँसाती , हम रुलाते है ,
बस अक्सर यूही दीवाने हो जाते है ।

ना होती चाहत सच्ची वाली ,
ना ही वो होता आख़िरी बार है ,
लग जाये जहाँ दिल हमारा ,
हो जाता वहीं सच्चा प्यार है ।

जिसको समझ सच्ची मोहब्बत ,
ज़िंदगी उसके नाम कर दी ,
वक़्त के बदलें के साथ ,
सच्ची मोहब्बत बदनाम कर दी ।

कल तक वाली ज़िंदगी से बेहतर ,
आज ज़िंदगी लगने लगी ,
कंधो पर सुकून से रखते थे सर जिसके ,
‘आप कौन’ अब वो कहने लगी ।

क्यूँकि हम जीते हैं हर दफ़ा ,
अपनी ही शर्तों पर ,
बस वक़्त के साथ ,
चाहत बदल जाती हैं ।

कभी वक़्त के साथ वो मुकरती ,
कभी हम चले जाते है ,
बेवजह हर दफ़ा ,
बदनाम मोहब्बत को कर जाते है ||

Sunday, July 28, 2019

फूँल

तोड़ कर लाते है जान किसी की ,
किसी के ख़ुशी के लिये ,
बना गुलदस्ता उसके लाशों का ,
देते है अक्सर हम ,
किसी रिश्ते की ज़िंदगी के लिये ।

रंग उसके फिर भी नहीं बेरंग होते ,
ना ही मायूसी नज़र आती है ,
बिछड़ कर ज़िंदगी से अपने ,
ख़ुशियाँ हमें दे जाती है ।

मौक़ा हो ज़िंदगी का या मौत का ,
हर दफ़ा वो छोड़ अपनो का साथ ,
हमसे मिलने चली आती है ,
बिना उसके मौजूदगी के ,
कुछ कमी रह जाती है ।

काँटो से घिर कर भी ,
नहीं कभी घबराती है ,
मुश्किलों में भी हँसते रहना ,
हमें वो सिखाती है ।

ख़ुशबू से जिसके शमा ,
हर वक़्त महकता हैं ,
जो छोड़ कर अपनी धड़कन ,
दूसरों के लिये धड़कता है ।


मुर्झा जाती है मोहब्बत पहले ,
फूँल तो वक़्त लगाते है ,
अंग्रेज़ी वाले फ़ूल बन ,
हम फिर उन्हें तोड़ने आ जाते है ।

मालूम नहीं कोई अपनी मौत पर,
इस क़दर कैसे मुस्कुरा लेता है ,
ख़ातिर औरों के मोहब्बत की ,
ख़ुद को गवा देता है ।

Sunday, July 21, 2019

ख़्वाबों वाली मोहब्बत

कही हवा का शोर ,
कही दिलो का ज़ोर ,
उल्फ़त में उलझी ज़िंदगी ,
फैली चारों ओर ।

हर दफ़ा वाली मोहब्बत से ,
थोड़ी अलग बात थी ,
ना उलझे थे एहसास , ना जज़्बात ,
ना वो मेरे पास थी ।

इस दफ़ा उसकी मौजूदगी ,
बेहद ख़ास थी ,
अजब सी अदा और दीवानगी ,
जिसके आस पास थी ।

सिलसिला बिना निगाहों के हलचल के ,
धड़कनो को बढ़ा रहा था ,
तेरे लौट जाने का दर्द ,
अब सता रहा था ।

पड़े ख़ामोश अब तक जज़्बात ,
कुछ कहने को आ रहे थे ,
कम थी क्या क़ातिलाना मासूमियत ,
जिससे वो कहर ढा रहे थे ।

बस जो चले गये वो ,
मेरे होश में आते ही ,
क्यू आ जाते है लौट कर ,
मेरे ख़्वाबों  में जाते ही ।।

Saturday, July 20, 2019

अधूरी दास्ताँ

डरने को किसने कहा ,
जो इतना ग़म दिखा रहे हो ,
मोहब्बत थी मुझे भी तुमसे ,
ये क्यू नहीं बता रहे हो ।

जितना जता रहे आज दर्द ए दिल ,
कल गर थोड़ा भी निभा लिया होता ,
ना होती ये दूरियाँ ,ना होता दर्द ,
हम आज भी मुस्कुरा रहे होते ,
और शायद उसकी वजह तुम होते ।

किन राहों पर कर रहे इंतज़ार ,
ज़रा हमें भी बताओ ,
क्यूँकि मैं आज भी .. गुज़रती हु उन राहों से ,
एक दफ़ा हमारी राहों पर आओ  ।

हाँ मैं आज भी खाई क़समें निभा रही हु ,
बेहद मुस्कुरा रही हु ,
बस बदला है , तो वो तेरी अधूरी मौजदगी ,
जिसे मैं छिपा रही हु ।

बड़ा ख़ुशनसीब होता दिल मेरा ,
गर जो तू मुझे समझ पाया होता ,
मंज़िल भी मिल जाती मोहब्बत की ,
गर तूने साथ निभाया होता ।

क्यूँकि मेरी पहली , मेरी आख़िरी ,
मोहब्बत तुम हो ,
कैसे तुम्हें बताऊँ ,
मेरी धड़कनो को कैसे तुम्हें सुनाऊँ ।

इतना वक़्त क्यूँ लगा रहे ,
क्यूँ नहीं उन रास्तों पर लौट आ रहे ,
क्यूँ इस दिल को तड़पा रहे ,
क्यूँ नहीं एक दूजे के हो जा रहे ।

तेरे इंतज़ार में और कितना इंतज़ार होगा ,
ना जाने कब फिर तुझसे प्यार होगा ,
हो वक़्त गर , उन राहों पर लौट आना,
एक दफ़ा फिर मेरे हो जाना ।।

Thursday, July 18, 2019

प्यार बाटने चला

बस डरता हु ..
आज भी दिल लगाने से ,
एक दफ़ा फिरसे टूट जाने से ,
मोहब्बत में फ़ना हो कर ,
रूठ जाने से ।।

तेरा इंतज़ार बड़ी शिद्दत से कर रहा ,
मैं आज भी उन रहो पर ,
जहाँ साथ चलने को तू आई थी ,
उम्र भर साथ रहने की कसमें खाई थी ।

शायद तू आज भी वो क़समें निभा रही होगी ,
होगी जहाँ भी मुस्कुरा रही होगी ,
बस बदला होगा कुछ तो वो मेरा साथ होगा ,
मेरे बदले थामा तूने किसी और का हाथ होगा ।

बड़ा ख़ुशनसीब होगा दिल वो ,
जिसपर तू क़ुर्बान हो गई ,
मंज़िल भी मिल गई होगी मुक़्क़दर की ,
शायद  मेरी ज़िंदगी तुझसे अनजान हो गई ।

क्यूँकि मानता था पहली मोहब्बत को ,
आख़िरी मैं आज तक ,
मेरी साँसे नीलाम हो गई ,
जिस पल वो अनजान हो गई ।

उन राहों से गुज़रना जो कभी ,
मेरी रूह का एहसास पाओगी ,
सच्ची मोहब्बत बँटती नहीं ,
शायद तब समझ पाओगी ।

ख़ैर , गर भूल गये होंगे वो रास्ते ,
कैसे हमें जान पायेंगे ,
गर ना होगी उनसे उसको सच्ची मोहब्बत ,
ख़ुद बख़ुद एक रोज़ समझ जायेंगे ।।

Tuesday, July 16, 2019

पापा


होता वक़्त कम पास जिसके ,
मुझे सीने से लगाने को ,
आती नहीं अदाईगी जिसे ,
मोहब्बत जताने को ।

करते नहीं बया अपनी ख़ुशी ,
ना दर्द दिखाते है ,
देख ले सुकून से जो सपने हम ,
चैन से हमें सुलाते है ।

होती है बातें थोड़ी कम ,
पर बहुत कुछ सिखाते है ,
चंद आँखो की हरकत और
इशारों से हम समझ जाते है ।

मालूम नहीं होता उनके भूख का ,
पर हमें भर पेट खिलाते ,
कभी प्यार कभी फटकार से ,
अपना एहसास छोड़ जाते ।

बस इंतज़ार होता उन्हें एक लम्हे का ,
कब मेरे नाम से वो जाने जाये ,
ज़िंदगी भर के इस उम्मीद को ,
उतार सिने से मुझे गले लगाये ।

पापा  अभिमान है ,
पापा सम्मान है ,
पापा  गौरव और ,
पापा  ही ज्ञान है ।

Friday, July 12, 2019

सहमी आँखे


वो सहमी सी आँखे ,
होंठों पे नज़र का टिका ,
बिखरी ज़ुल्फ़ें ,
निगाहों को मेरा था जिसने रोका ।

अजब सी बेताबी ,
और बढ़ती बेचैनी ,
कैसे निगाहो को उलझा रही थी ,
दिल के धड़कनो को बड़ा रही थी ।

हर दफ़ा जब भी देखता उसको ,
नज़रें चुरा लेती ,
थमते धड़कनो के एहसास को ,
फिरसे बढ़ा देती ।

हर लम्हा अब ,
दिन सा लगने लगा ,
दरमियाँ जो थी हलचल हमारे ,
जब वो थमने लगा ।

रुकने को था सफ़रनामा ,
निगाहों के इस शोर का ,
बस तभी हुआ कुछ ऐसा ,
जिस पर नहीं उनका कोई ज़ोर था ।

वो मुस्कुराई ,थोड़ा शर्मआई ,
पहली दफ़ा जब कुछ कहने को आई ,
लगा अब दरमियाँ इश्क़ होने को हैं ,
जिसमें दिल खोने को है।

पर वक़्त को कुछ और था मंज़ूर ,
एक पल में जाने लगा जब वो दूर ,
मैं रोक नहीं पाया ,
दरमियाँ हो रही हलचल,
रुकने को था तब आया ।

चलो इस मोहब्बत को ख़्वाब समझ ,
हम भूल जाते हैं ,
एक दफ़ा फिर इन निगाहों से ,
इश्क़ करने जाते है ।।

Wednesday, June 26, 2019

तितली

हल्की हल्की बारिश की बूँद ,
और होता सवेरा ,
बादलों से घिरा असमां ,
ढूँढ रही थी वो अपना बसेरा ।

रंग बिरंगे रंगो से सजी ,
सूरज की किरणो से चमक रही थी ,
पत्तों से छलक कर बूँद बारिश की ,
उस पर जब पड़ रही थी ।

मदमस्त वो कभी इस डाली ,
कभी उस पेड़ पर छिप जा रही थी ,
कभी उड़ खुले आसमा मे ,
शमा को ख़ूबसूरत बना रही थी ।

सर्द होते मौसम में ,
वो एक गर्म सा एहसास थी ,
अंधेरे में जगमगाता दीया ,
ऐसा वो विश्वास थी ।

एक ज़ोर का तूफ़ान आया ,
देख जिसे मैं घबराया ,
पर वो ना रुकने को तैयार थी ,
उड़ने को फिर से बेक़रार थी ।

मन भी तितली सा लगता है ,
लिये रंग हज़ारों चमकता है ,
कभी इस डाल कभी उस पेड़ ,
बस उड़ता चला जाता है ।

क्यू ना दिल को भी ,
तितली बनाये ,
रंगबिरंगे उम्मीदों के संग ,
पंख लगा कर जो उड़ जाये ।।

Monday, June 24, 2019

सिलसिला

 पहली नज़र ..पहली मुलाक़ात ,
होने लगी थी जबसे बात ,
ना वो कुछ कहते , ना हम सुनाते ,
ख़ामोश रह कर आँखों से सब कह जाते ।

हुआ शुरू जो था सिलसिला ये ,
अब हर रोज़ चलने लगा था ,
कल तक निगाहो को मिलाने वालों का ,
अब दिल भी मिलने लगा था ।

बड़ी ठंडक और सुकून देते थे पल वो ,
जब कभी वो मेरे क़रीब आ जाते ,
समेटे पहाड़ों से ऊँचे अल्फ़ाज़ ,
ना जाने कहा छिप जाते ।

हर रोज़ जब भी देखता उसे मुस्कुराते ,
गालों पे बन कोहिनूर डिम्पल बन आते ,
देख अदा जिसकी ख़ूबसूरत ,
बस आँखों से ही हम इश्क़ में डूब जाते ।

जो सिलसिला आँखों से शुरू हुआ ,
ना जाने कहाँ ख़त्म होगा ,
नहीं फ़ुर्सत उन्हें सुनने की मुझे ,
इस सिलसिला का क्या हश्र होगा ।


अब भी होती है बातें निगाहों से अक्सर ,
पर अब हम नज़रें उनसे चुराते ,
कमबख़्त कौन रोके इस चालू दिल को ,
एक दफ़ा फिर आइये सिलसिला चलाते ..

आइये एक दफ़ा फिर नज़रें मिलाते ,
आइये एक दफ़ा फिर उनमें खो जाते ।।

Saturday, June 8, 2019

बस ... और नहीं

रात के अंधेरे में ,
सब जगमगा रहे थे ,
सुनसान से होते रास्तों पर ,
जब हम चलने को आ रहे थे ।

रुक .. थाम कर उम्मीद लिये ,
हम एक जगह ठहर गये ,
आई पुकार कर मंज़िल की बस ,
जिस पर हम चढ़ लिये ।

थे और भी साथ मेरे , मुझ जैसे ,
लगा नहीं कुछ अलग वैसे ,
पर तभी एक भेड़िया पास आया ,
देख जिसे मन घबराया ।

सुकून के नींद में ,
जब सब सो रहे थे,
उस वक़्त हम इज़्ज़त की भीख माँग ,
बहुत रो रहे थे ।

छुआ जैसे उसने मुझे समझ कोई खिलौना ,
मैं ज़ोर से थी चिल्लाई ,
पर उस घनी रात और सुनसान रास्तों पर ,
मेरी आवाज़ नहीं थी कही पहुँच पाई ।

जिस्म को मेरे नोच दरिंदो ने ,
अपनी हवस की भूख थी मिटाई ,
ज़िंदा लाश बन कर पड़ी थी मैं ,
फिर भी उन्हें रहम ना आई ।

चंद लम्हों में मैं इस दुनिया से चली गई ,
सवाल बहुत पीछे छोड़ गई ,
शायद अब कुछ बदल जाये ।

शायद ...अब बस और नहीं ,
किसी की इज़्ज़त कोई नीलाम कर पाये ,
शायद मेरा दर्द इतिहास बन जाये ,
शायद अब देश बदल जाये ।।

बस और नहीं ..!!

Thursday, May 16, 2019

मेरा पहला प्यार

बस उम्र की दहलीज़ पकड़ कर ,
दो राहें पर जाने वाले थे ,
नन्हा था दिल ज़रूर मेरा ,
पर हम ठहरे दिल वाले थे ।

हमने देखा जो पहली दफ़ा उसे ,
उसकी सुलझी ज़ुल्फ़ें .. मासूम निगाहे ,
किसी कोने में चुप चाप खड़ी थी ,
मेरी निगाहों को क़रीब जाने की हड़बड़ी थी ।

पहली दफ़ा धड़का था दिल मेरा ,
कुछ अलग से अन्दाज़ में ,
मालूम नहीं था हो गया इश्क़ ,
इसी आग़ाज़ में ।

उसके गालों का तिल और थिरकते क़दम ,
हम सब उसपर लूटा चुके थे ,
मालूम नहीं होता जब ख़ुद का पता ,
उस उम्र में उसे दिल में बसा चुके थे ।

आज मिल गई मुझे मंज़िल ... लगा ऐसा ,
जब पहली दफ़ा वो पास मेरे आई थी ,
सुनसान से थे जज़्बात और लम्हे ,
पर प्यार में सच्चाई थी ।

जब कोयल सी लगी बोली मीठी उसकी ,
बस मैं ख़्वाबों में खो गया ,
कहा था पहली दफ़ा कुछ उसने मुझसे ,
सुन जिसे इश्क़ में उसके.. मैं रो गया ।

खोना ना कभी सीखा था ,
और पाना लगा अब ना होगा मुमकिन ,
रंग लिये हाँथों में लाल ,
भर दी माँग मैंने उसी दिन ।।

उस दिन के बाद ,
हर पल वो दूर जाने लगी ,
बड़ती उम्र के साथ दिल लगाने लगी ,
हुआ मालूम तब इस दिल को कही ...,
कमबख़्त एक तरफ़ा सी थी पहली मोहब्बत मेरी ।। 

Saturday, May 11, 2019

माँ

आँखे खुली जो पहली दफ़ा ,
नज़र मुझे तू आई ,
बस मेरी पहली चीख़ पर ,
थी तू मुस्कुराई ।।

सिने से लगा कर मुझको ,
ख़ुद में छिपा लेती ,
होता नहीं इक पल भी दूर ,
मुझे आदत बना लेती ।

हर सुबह सूरज से पहले वो आ जाती ,
उम्मीद और हौसला दे मुझे जगाती ,
फिर भी मैं जा कर सो जाता ,
देख जिसे माँ को ग़ुस्सा आता ।।

चहरे पे ग़ुस्सा और हाथो में छड़ी ,
होती थी अक्सर माँ खड़ी ,
देख जिसे मैं झट से जग जाता ,
तब जा कर माँ को चैन आता ।

शाम को जब भी लौट कर मैं ,
घर को वापिस आता ,
इंतज़ार में बैठी माँ की ख़ुशी ,
देख मैं भी खिलखिलाता ।

बस अब यही उसकी ज़िंदगी बन गई ,
भूल हर दर्द मुझ में खो गई ,
एक रोज़ सूरज पहले आ गया ,
देख जिसे मैं घबरा गया ।

ख़ामोश थी जिसकी आँखे ,
होंठों पर ना थी कोई हँसी ,
और ना ही थी हाथों में छड़ी ।।


शायद माँ अब दूर ... बहुत दूर जा चुकी थी ।।

Sunday, April 28, 2019

ग़ुस्ताख़ दिल


खुली जो आँख इतनी रात अंधेरे ,
आँखो से छलक रहे थे आँसु मेरे ,
ख़्वाब टूट कर बिखर चुके थे ,
हमसे अब वो भी रूठ गये थे ।

दिल में लिए भार अब सताने लगे ,
लगा मालूम जबसे वो जाने लगे ,
करते थे बेइंतहा मोहब्बत जिससे ,
उसकी यादों को हम मिटाने लगे ।

तेरे गालों पर तिल , होंठों पर शराब ,
मुस्कुराती निगाहे , मेरी नियत ख़राब ,
वो ज़िंदगी आँखों से गुज़र कर जाने लगी ,
तेरी हँसी अब रुलाने लगी ।

मख़मल सा लगता था बिस्तर जो ,
बैग़ैर तेरे चुभने को आता है ,
होती नहीं मौजूदगी तेरी  ,
मायूस हो कर दिल फिर सो जाता है ।

तेरा हर एहसास , तेरी हर याद ,
हम ख़ुद में छिपा लेते ,
गर कह देती एक और दफ़ा ,
खुदा से भी तुझको चुरा लेते ।

ख़ैर एक और सुबह आने को है ,
ये रात , तेरी याद और ये लम्हे ,
सब बीत जाने को है ,
मोहब्बत एक दफ़ा फिर हो जाने को है ।।

Saturday, April 6, 2019

एक अजनबी


शाम ढल कर रात हो चली ,
पहली दफ़ा जब निगाहे उनसे मिली ,
हम आ रहे थे छोड़ कर उम्मीद जहाँ ,
दे रही थी हिम्मत किसी अजनबी को वहाँ ।

देख उसकी इस अदा को ,
हम एक ज़ुल्म कर बैठें ,
पलट कर देखा था ख़ुद को भी कभी नहीं ,
लौट कर उस रास्ते पे उसके क़रीब जा बैठे ।

पिले गुलाबी सूट में सज कर ,
मानो अप्सरा आन पड़ी थी ,
खुली ज़ुल्फ़ और उनसे ढकीं निगाहे ,
देख जिन्हें धड़कने बड़ रही थी ।

हो गई दूर नज़रों से गायब ,
फिर भी ख्याल मन को आ जाते ,
अजनबी सूरत से ख़ूबसूरत सीरत ,
मानो एक दफ़ा फिर मोहब्बत करने चले जाते ।

बस अभी छोड़ कर कर जाने वाले थे ,
जिसे एक ख़्वाब मान मजधारे ,
लिये खुले ज़ुल्फ़ और मासूम निगाहे ,
आ गये थे बेहद क़रीब फिरसे हमारे ।

मानो थम सा गया हो सब ,
एक पल के लिये ,
कैसे बतायें हो गये उस अजनबी के हम ,
हर पल के लिये ।।

Friday, March 29, 2019

ग़लतफ़हमी

क़लम में स्याही थोड़ी और दवात ख़ाली ,
अल्फ़ज़लो का सिलसिला अब भी जारी ,
कौन सा रौब्ब , कौन सी ख़ुमारी ,
चलो दूर कर जाते है ग़लतफ़मी तुम्हारी ।।

मिल कर बिछड़ने जाना का ग़म ,
उन्हें अक्सर सताता है ,
प्यार को सदियों की ज़रूरत नहीं ,
एक पल में हो जाता है ।

कौन कहता है टूट कर दिल बिखर जाता है ,
ख़ून बन आँसू बहने को आता है ,
होती है बेताबी कुछ इस क़दर ,
टूटने से जादे दिल लगने का डर सताता है ।

होती है मुलाक़ात जब भी उन निगाहों से ,
इश्क़ छलकने को आता है ,
भूल कर दर्द और उस दिल को ,
फिर वो मोहब्बत करने लग जाता है ।

कभी जो लगे अल्फ़ाज़ महज अफ़वाह ,
एक दफ़ा उस दिल से मिल आना ,
धड़कता है जो सिर्फ़ ख़ातिर तेरे ,
उफ़्फ़्फ़्फ ... ये ग़लतफ़हमी ....
बेहतर होगा इसे भूल जाना ।।

Thursday, February 14, 2019

चलो मोहब्बत कर के आते है


हर रोज़ फ़िज़ा में घुलते ख़ुशबू ,
अक्सर बदल से जाते है ,
कभी महकता है गुलाब , कभी चमेली ,
चलो मोहब्बत कर के आते है ।

मिलता है सुकून कभी बाँहों मे ,
कभी कंधो पे सो जाते है ,
अक्सर बदले सुकून के साथ ,
चलो मोहब्बत कर के आते है ।

रातों को जगना अब भी जारी है ,
कभी साथ तेरे कट जाते थे जो जल्दी ,
अब भारी लगते जाते है  ,
चलो मोहब्बत कर के आते है ।

रूठ कर मान जाते कभी ,
कभी मान कर रूठ जाते है ,
इरादतन अंदाज़े दिल का क्या ,
चलो मोहब्बत कर के आते है ।

मिल जाता हर दफ़ा दिल सच्चा ,
बस साथ उसका झूठा हो जाता है ,
फिर तलाश में दिल के  ,
चलो मोहब्बत कर के आते है ।

कभी सीरत का देते हवाला ,
कभी जिस्म जादू चला जाता है ,
सूरत तक जाने की फ़ुर्सत कहा ,
चलो मोहब्बत कर के आते है ।

पिछली दफ़ा से गहरा है मेरा प्यार ,
हर बार यही क्यू लगता है ,
बदलते दौर में जिस्म , जान और ज़िंदगी ,
नहीं लगता कोई एक सच्चा है ..!

ख़ैर छोड़ो आओ फिर तलाश में ,
इरादतन लग जाते है ,
वजह जो भी हो ,
चलो मोहब्बत कर के आते है ।।