Thursday, June 20, 2024

दिलरुबा

उसकी आंखों से गुजरी निगाहें मेरी,
पूरे संसार को मैंने उसमें पा लिया,
होठों से गुजरी निगाहें जब,
उसकी मुस्कान को दिल में बसा लिया ।

उसकी बिखरी जुल्फों में,
जब मैं खुद को उलझाने लगा,
दिल की धड़कनों के शोर को,
उससे भी छिपाने लगा ।

सुलझा कर लटों को अपने,
वो मुझे झुठलाने लगी,
बिखरे रिश्तों के किस्से को,
अपनी नम आंखों से बताने लगी ।

इश्क़ के गज़ब किस्से सुने आज तक,
पर ये किस्सा थोड़ा खास था,
बहुत बिछड़ों का बना जो आसरा,
दिलबर नहीं इस दिलरुबा के पास था ।

जंग इश्क़ में जो जायज़ हैं,
उसे हम हर रोज़ लड़ते रहेंगे,
दिलबर बन कर दिलरुबा के,
इश्क़ में आहिस्ता आहिस्ता पड़ते रहेंगे ।।

Sunday, June 9, 2024

उलझन

अनगिनत जज्बातों के संग,
देखो कैसे वो उलझी पड़ी रही,
होठों पर रख कर झूठी मुस्कान,
अंदर से बस रोती रही ।

ना पूछता कोई हाल उसका,
ना वो किसी को बता पाती,
इश्क़ के अनगिनत धब्बों को,
वो खूबसूरत निशा बताती ।

मिले मुसाफ़िर राहों में जो,
वो उसकी मंजिल भटकता रहें,
अपने मंजिल को बता कर दुनिया,
उसकी दुनिया को झुठलाते रहें।

हर जख्म के भरने से पहले,
कोई नया ज़ख्म दे जाता रहा,
कर के वादा इश्क़ का उससे,
बेवफाई निभाता रहा ।

सब कुछ लुटा कर आज वो,
देखो कैसे बेसुध खड़ी हैं,
फिर किसी मुसाफ़िर के खातिर,
गुमनाम रास्तों पर बढ़ रही हैं ।

सिलसिला तलाश का,
तब तक ख़त्म नहीं होगा,
उलझे जज्बातों में जब तक,
सुलझा "इश्क़" नहीं होगा ।।