जो हर बार उलझ जाते थे,
वादा पूरी जिंदगी का कर के,
एक पल में ही तोड़ आते थे ।
क्यों नहीं ठहर कर,
हाले दिल तुमने जाना कभी,
इश्क़ के हर लम्हें में तुम थे जिसके,
उसको तुमने अपना माना नहीं ।
फूल से कोमल दिल को उसके,
तुमने कांटों से क्यों घेरा था,
इश्क़ में पड़ कर किसी गैर के,
एक पल में तुमने मुंह फेरा था ।
बर्बाद बहुत थे इश्क़ में पहले ही,
तुमने कुछ और नाम जोड़ दिए,
पत्थर से दिल ने तुम्हारे,
कितनों के उम्मीदों को तोड़ दिए ।
बिखरे टुकड़े दिल के अब भी,
वफ़ा नहीं किसी से करते हैं,
इश्क़ निभाना तो दूर बहुत,
इश्क़ जताने से भी डरते हैं ।
खैर,
क्या इश्क़ निभाना सीखा तुमने,
या अब भी वही इश्क़ दोहराते हो,
कर के वादा सुलझाने का,
उलझा कर चले आते हो ।।