Friday, November 18, 2016

मुस्कान

पलकें उठीं , होंठों पे हँसीं ,
गालों पे डिम्पल ,
ज़ुल्फ़ों ने मुस्कान कुछ छिपाया है ,
इनके ख़ूबसूरती ने दिलों को जलाया है ।

मासूमियत उसकी हर अदा मे महसूस होती है ,
दूर हो कर भी वो पास होती है ,
जिस शाम हो जाए दीदार उसके ,
वो रात हसीन होती है ।

है दिल टूटा भी उसका ,
पर अक्सर दिल लगा जाती है ,
है मोहब्बत दिल मे बहुत ,
पर सच्ची मोहब्बत ना मिल पाती है ।

उड़ना चाहती है वो असमानो मे ,
पर कोई हौसला दे पाता ,
शायद हसीन मुस्कान की मोहब्बत को ,
ख़यालों मे ही उसको ले उड़ जाता ।

है कहीं जब अब दिल से मुस्कुरा रहीं है ,
ख़्यालों मे मुझे वो ला रहीं है ,
ख़ूबसूरत मुस्कान लौट चहरे पे आ रहीं है ,
ना जाने कितने दिलो को जला रहीं है ।

तेरी सीरत का पता नहीं ,
पर होंठों पर मुस्कान देख कुछ हद तक समझ आता है ,
दिल से हो साफ़ बहुत तुम ,
पर तुम्हें कोई दिल समझ नहीं पाता है ।

मुस्कुराओ जी भर के ,
एक रोज़ दिल भी मुस्कुराएगा ,
जिस रोज़ तुम्हारे मुस्कुराने की वजह ,
वो तुम्हारे क़रीब पाएगा ।

Tuesday, November 1, 2016

अड़सा ( कंजस्टेड )

कही रिश्तो में अड़सा होता है ,
कही अपनों में अड़सा होता है ,
हमारी तो मोहब्बत है अड़सा ,
जो हर वक़्त यादो में साथ रहता है |

कभी एक बिस्तर पे हम अडस कर सोते थे ,
पर कोई शिकायत को ना था आता ,
आज कमरे हो गए है अलग अलग ,
फिर भी उन्हें अड़सा है नजर आता |

मोहब्बत गैरो से इतनी भी ठीक नहीं ,
कही अपने बहुत पीछे छूट जाए ,
ज़िन्दगी तो है खुद एक अड़सा ,
पर कही आप रिश्तो में ना अडस जाए |

हमे फक्र है अपनों से मोहब्बत की ,
सिवा उनके , कुछ और समझ नहीं आता ,
दुःख होता है देख उन्हें ,
जिन्हें अपनों से अड़सा ,
गैरो से मोहब्बत हो जाता |

मोहब्बत अपनों से दिल से है ,
दूरियों से वो कहा कम हो पायेगी  ,
कर लो कितनी भी कोशिश ,
ऐ मेरे दोस्त ,
अड़से में ही सही ,
पर आखिरी सांस तक ,
ज़िन्दगी अपनों की खातिर मुस्कुराएगी |

अड़से से ही सही ,
अपनों को अपना के देखो ,
गैरो को ख्यालो से हटा के देखो
अड़से से मोहब्बत हो जायेगी ,
हर किसी अपने में ,
ख़ुद की ख़ातिर ख़ुशी नजर आएगी |

अड़स रहीं ज़िन्दगी का अपना ही मज़ा हैं ,
खुल के तो हर कोई जिया हैं ,
अपनो से मोहब्बत ही तो हैं 'अड़सा' ,
इतने सितम के बाद भी ,
जो साथ खड़ा हैं ।

कई लोगों से बातचीत और उनके अनुभव के आधार पर लिखी गई कविता ।