Tuesday, March 30, 2021
कुछ कहना है
हाथ थामा था उस रोज ,
छोड़ने के लिए नहीं ,
कुछ पल में ही ,
रिश्ता तोड़ने के लिए नहीं ।
माना की हद से बेहद ,
गुजर रहे थे हम ,
अल्फाजों में उलझ कर ,
कुछ बहक रहे थे हम ।
आंखों में थे अनगिनत सवाल ,
और तुम जवाब दिए जा रहे थे ,
हम भी उन्हें पढ़ कर ,
और सवाल किए जा रहे थे ।
था यकीनन वो लम्हा सबसे खूबसूरत ,
गुजरते रात के बाद का चमकता सूरज ,
फिर भी हम चांद तारों में थे उलझे ,
हमारे जज़्बात कहा थे अब सुलझे ।
पर वो लम्हा आखिरी होगा ,
ऐसा कभी सोचा ना था ,
तेरी मौजूदगी को तरस कर ,
पहले कभी खुद को .. ऐसे कोसा ना था ।
भरने को आए थे ज़ख्म ,
और घाव दे गए ,
अंजाने में ही सही ,
हम गुनाह कर गए ।
पर अब भी कुछ कहना है ,
तेरी हसी ही तेरा गहना है ,
आंखो में है नूर गजब का ,
देखते जिनमें हमें रहना है ।
लौट आओ एक आखिरी दफा ,
अभी बहुत कुछ कहना है ।।
Monday, March 29, 2021
खुद से बात
मेरे इस बदलाव से ,
मेरा ही नुकसान होगा ,
शायद ये वो नहीं ,
जो मेरा आखिरी मुकाम होगा ।
किसी की खुशियों के जिद्द मे ,
खुद को नीलाम कर आओ ,
ऐसे तो नहीं थे तुम ,
वक्त है .. अपनी दुनिया मे लौट आओ ।
पहली नजर पहला एहसास ,
लगी खूबसूरत और खास ,
क्या पता सब एक तरफा था ,
उसके खुशियों के लिए ,
जो वो इतना तरसा था ।
चंद लम्हों में कैसे कोई इतना ,
करीब आ जाता है ,
वही चंद लम्हों में ही ,
बहुत दूर चला जाता है ।
गर सफर लंबा और ,
खुबसूरत हो सकता था ,
अंजाने में हुई गलतियों को ,
वो माफ कर सकता था ।
पर जब जरूरत ही नहीं ,
उसे तुम्हारे मौजूदगी की ,
क्यों उसे अपनी मौजूदगी जता रहे हो ,
सुनसान रास्तों पर उसे ढूंढते जा रहे हो ।
तुम्हारे हिस्से में गर लिखी है खुशी ,
एक रोज मिल जायेगी ,
मत लगाओ उन रास्तों पर फरियाद ,
जहां वो कुछ नहीं सुन पायेगी ।
शायद मैंने ही कुछ जादे ,
सोच लिया था ,
बेवजह ही किसी गैर के ज़ख्म का ,
दिल पे बोझ लिया था ।
वक्त लगेगा जरूर खुद को मानने में ,
तेरी तस्वीर झुटलाने में ,
पर कोई तो होगा .. कही जरूर ,
बेवजह ही मेरा साथ निभाने मे ।
Sunday, March 28, 2021
अजनबी
मेरे शब्द खाली पड़ गए थे ,
उस रोज जब तुम सामने आ खड़े थे ,
था यकीनन एहसास बहुत खूबसूरत ,
जब आंखों से ही हम सब पढ़ रहे थे ।
पहली दफा लगा था डर मुझे ,
शब्दों को सजाने में ,
थी मुश्किल तेरी खुबसूरती को ,
अल्फाजों में बताने में ।
मैं खो गया था चंद लम्हों के लिए,
और गुनाह कर बैठा ,
माना था इशारा खुदा का जिसे ,
उसे जुदा कर बैठा ।
उसकी आंखों का रंग ,
या हो गालों पर तिल ,
खूबसूरती हर अदा में उसके झलकती होगी,
शायद लगती होगी वो और भी खूबसूरत ,
जब पैरों में पायल खनकती होगी ।
मैंने जैसा मांगा था खुदा से इनायत ,
वो जानशीन हुबहू वैसी है ,
लगा जरूर वक्त मुझे ये बताने में ,
आखिर ये मजबूरियां , दूरियां कैसी हैं ।
सूरत से खूबसूरत सीरत जिसकी ,
और क्या हमें चाहिए ,
एक दफा हो सके तो ,
लौट आइए ।
अजनबी ही सही ..
उनकी मौजूदगी काफी है ।।
Saturday, March 27, 2021
इत्तेफाक
उस रोज बजी दरवाजे की घंटी ,
सब बदलने वाला था ,
उसकी पहली झलक के बाद ,
दिल मचलने वाला था ।
वो बातें लंबी होती गई ,
और वक्त छोटा पड़ गया ,
बड़ी मुश्किल से टूटा सफर ,
जब कोई और उसे मिल गया ।
पहली ही मुलाकात में ,
वो हमें सब कुछ बता गए ,
कुछ वक्त भी मांगा उन्होंने .. कभी कभी ,
और हम झुठला गए ।
कैसा है ये सफरनामा ,
क्या है इसका मुकाम ,
जो भी बीता वक्त साथ में ,
यकीनन खूबसूरत बहुत है वो "इंसान"।
बिन कुछ कहे उसके ,
हम सब जान गए ,
पहली ही मुलाकात में ,
हम पहचान गए ।
पर कर बैठे गलती उसे खो देने की ,
एक रोज अंजाने में ,
शायद था सफर इतना सा ही ,
हमारे जिंदा रह जाने में ।
रंग भी एक आंखो का ,
ढंग भी एक बातों का ,
आखिर कैसा ये इतेफाक है ,
अजनबी हो कर भी लगता ख़ास है ।
कैसे उसको मैं इतना जान गया ,
कैसे इतना पहचान गया ,
जवाब अब भी अधूरा है ,
शायद वक्त करे जिसे पूरा है ।।
Thursday, March 25, 2021
अलविदा
गर आंखे होती है सच्ची ,
तो सच ही देखा होगा ,
खूबसूरती छिपी निगाहो में उनके ,
सब ने देखा होगा ।
पर देखा जो हमने ,
वो मोती के आंसू थे ,
गाल लाल और सिसकियों से ,
लगते वो खूबसूरत काफी थे ।
है मासूम वो ,
या हम गलतफहमी पाले बैठे है ,
ये तो वक्त बतायेगा ,
पर बेवजह अब मोती ,
आंखों से नहीं बहने को आयेगा ।
कब कैसे और क्यों शुरू हुआ ,
मुश्किल है ये बता पाना ,
अजनबी बेशक हैं हम आज भी ,
कल क्या हो किसने जाना ।
खत्म होना ही लिखा है गर नसीब में,
हमे ये भी मंजूर है ,
बहते मोती हमें मुबारक ,
तेरा ना कोई कसूर है ।
गर नहीं हो तुम मेरी तकदीर में ,
हम यकीनन लौट जायेगा ,
वादा है ,
मेरी आंखे से अब मोती ,
आप बहा ना पाएंगे ।
यकीनन हम दूर बहुत दूर ,
वक्त के साथ चले जायेंगे ,
लौट कर शायद फिर कभी ,
हम ना आ पायेंगे ,
दूर बहुत दूर चले जायेंगे ।
अलविदा
Wednesday, March 24, 2021
खता
वो शाम आई ही क्यों ,
जब अंधेरे में उसे गुम होना था ,
उसे कुछ हद तक पहचान ही क्यों ,
जब कुछ पल में ही अंजान होना था ।
चंद रोज और अनगिनत लम्हें ,
हम बेहद बदल रहे थे ,
लगा नहीं हम , हम थे ,
शायद अब संभल रहे थे ।
नज़र हटाना तस्वीर से जिसके ,
मुश्किल हो चला था ,
खुशियों से संवारने की थी जिद्द जिसे ,
वो खफा कर चला था ।
बिछड़ने का गम नहीं ,
क्योंकि था वो कोई हमदम नहीं ,
गम हैं उसके बेवजह रूठ जाने का ,
अंजाने में ही सही .. दिल दुखाने का ।
अनगिनत सवाल अब भी ,
अपने जवाब तलाश रहे है ,
कुछ तो हुई है यकीनन खता ,
वो बिन कुछ कहे दूर जा रहे हैं ।
खैर,
कोई अपना तो ऐसे जाता नहीं ,
जैसे तुम गए हो ,
एक झटके में ही सब तोड़ कर ,
बेवजह मुंह मोड़ गए हो ।।
Tuesday, March 23, 2021
एकतरफा
यकीनन पहली दफा तो ,
ये मुलाकात ना थी ,
कुछ सच्ची कुछ झूठी ,
जिसमे बात ना थी ।
था तो बस कुछ वक्त ,
और अनगिनत सवाल ,
जो अधूरा ही रह गया ,
जिस पल वो ... खामोशी से कुछ कह गया ।
मैंने सुना भी सिद्दत से उसे ,
और सच भी बयां हो गया ,
जो पहली दफा में ही ना जाने कैसे ,
अजनबी ना रह गया ।
क्यों जिद है उसको अब हंसाने की ,
खुशियां झोली में उसके ... अनगिनत दे आने की ,
हैं तो बहुत "अपने" उसके जो उसे हंसाते है ,
ना जाने क्यों फिर भी हम "खुश" रहने की फरियाद लगाते है ।
अक्सर छोड़ कर अधूरे में ,
रात के अंधेरे में ,
चांद तारों के संग .. वो छोड़ जाते है ,
बिन कुछ कहे .. मुंह मोड़ जाते है ।
माना की हु नहीं कोई अपना ,
और गैर सा तुम बनाते हो ,
अधूरे में ना जाने क्यों छोड़ ,
जब अक्सर चले जाते हो ।
कहना था कुछ तुमसे ,
पर शब्द नहीं है ,
उलझ रहा मैं एहसासों के जाल में,
शायद अब सच यही है ।
गर है तो ऐसा क्यों है ,
है तो आखिर वो "अजनबी" है !!
Sunday, March 21, 2021
अधूरा
कुछ खत्म हुए कहानियां की शुरुआत हो तुम ,
अधूरे उलझे और उजड़े जज्बातों की सौगात हो तुम ,
हो बेशक बेखबर कल के सुनहरे मौसम से ,
आज शाम के आंधी के बाद की बरसात हो तुम l
हो तुम अंजान बेशक आज मुझसे ,
पर खुद से तो हर रोज अंजान हो ,
पहचानना मुश्किल है नहीं तुमको ,
पर तुम खुद लिए हो अपनी ,
अधूरी पहचान हो l
सपनों में जीने की आदत लिए ,
नींद से बेहद दूर हो तुम ,
ख्वाबों में सजाए उम्मीदों की ,
पोटली के संग ... मजबूर हो तुम ।
सिर्फ दिल ही नहीं धड़कन भी अब ,
धड़कना छोड़ने लगे थे ,
जिस रोज बिखरते ख्वाबों से ,
तुम मुंह फेरने लगे थे l
तुम पल को चुरा लो कुछ पल के लिए ,
ये पल हर पल मुमकिन नहीं ,
जज्बातों में उलझी तुम हो खुद ,
कोई और निकाले बेवजह ... ये मुमकिन नहीं ।
आइना है गर मौजूद सामने ,
एक दफा निहार आओ ,
श्रंगार जो है अधूरा अब तक ,
लाकर होठों पर हसीं और आंखों में चमक ,
उसे पूरा कर जाओ ।
जाओ बेशक लौट कर जहा जाना है ,
बेवजह ही नहीं खुद को अब सताना है ,
है लिखी खुशिया जिंदगी में गर ,
तो मुस्कुराओ ... मुस्कुराओ !!
Monday, March 1, 2021
उलझन
क्यों बहाना आसूं ,
जब रक्त बह रहा है ,
क्यों ठहेरना एक पल में ,
जब वक्त चल रहा है ।
हर सुबह के बाद शाम भी है ,
खुशियों के कीमत का दाम भी है ,
है गम बेचने वाले भी मौजूद ,
क्योंकि उसके खरीदार भी है ।
थाम लो एक दफा वक्त को कैद में ,
शायद पल भी ठहर जाए ,
खूबसूरत हो लम्हा तो अच्छा ,
वरना शायद वो पल ही वजह बन जाए ।
उलझन लिए नज़रे चुरा रहे है ,
जान कर भी अजनबी बने जा रहे है ,
गर हो उम्मीद कायम खुद में खो जाने की ,
तो गुमनामी से क्यों घबरा रहे है ।
वक्त के साथ सब धूल जायेगा ,
यादों में भी जिक्र ना हो पायेगा ,
बेहतर है अभी मुस्कुरा लेते है ,
कुछ पल ही खुद में खो जाते है ।
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