Thursday, January 23, 2020

सर्द सड़क

उन सर्दियों की वो रात ,
वादियों में दफ़्न ज़िंदा लाश  ,
सर्द होती मेरी साँसे ,
और बचे चंद अल्फ़ाज़ ।

फिर वो सर्द वाली रात,
लौट कर आई है  ,
मुझ जैसे लाखों का ,
हुजूम वो लाई है ।

फ़र्क़ बस इतना है ..!

सड़क पर आज बैठी हो तुम ,
उस रात मैं लेटी हुई थी ,
ढका है कम्बल में ख़ुद को तुमने ,
मैं फटे कपड़ों से जिस्म ढक रही थी ।

तुम लाई हो साथ बच्चों को ,
मैं पेट में लिए उसे मर रही थी ,
तुम आवाज़ कर रही बुलंद अपनी ,
मैं ख़ामोश पड़ रही थी ।

तुम लड़ रही हो घर के ख़ातिर ,
किसी ग़ैर का बचाने को ,
छिन लिया था किसी अपने ने ,
उस रात मेरे आशियाने को ।

तुम भी हो ज़िंदा ,
और तुम्हारे अपने भी ,
मर रहे थे हम सब ,
और हमारे सपने भी ।

नहीं था कोई सड़कों पर,
ख़ातिर हमारे आया ,
लाशों को समझ बेवा ,
नोच उन गिद्धों ने था खाया ।

बैठी हो तुम भी सड़क पर ,
रोक कर अपनो का रास्ता ,
थी पड़ी लाशें हमारी भी सड़कों पर ,
अपनो का था नहीं जिनसे वास्ता ।

मैं लौट कर जब भी आऊँगी ,
आशियाना फिर से सजाऊँगी ,
सड़कों को कर आज़ाद ,
सबको रास्ता दिखाऊँगी ।

मैं लौट कर आऊँगी ....!!

Saturday, January 18, 2020

मोमबत्ती

आँखों में आँसू उसके ,
चहरे पर ख़ामोशी ,
हिम्मत से लड़ी थी “माँ” ,
हार जंग इंसाफ़ की आज घर लौटी ।

लाखों की भीड़ लिये ,
हम सड़कों पर आये थे ,
बलात्कारियों को फाँसी ,
कुछ ऐसे नारे लगाये थे ।

बदलते वक़्त के साथ ,
हम सब कुछ भूल गये ,
माँ को छोड़ अकेले ,
अपनी दुनिया में खो गये ।

मिला जो इंसाफ़ उस बेटी को ,
एक दरिंदा हुआ आज़ाद था ,
कुछ चंद पैसे और मशीन ,
लेकर “मालिक” से बना उस्ताद था ।

इंसाफ़ के इस लड़ाई मे ,
माँ उतरी है दलदल वाली खाई में ,
हर कोशिश में हार रही ,
फिर भी लड़ने को तैयार रही ।

आज जिनको सड़कों से ,
सत्ता मे लेकर आये थे ,
मालूम नहीं था चंद वोटों के लिये ,
वो इंसाफ़ रोकने आये थे ।

क्यूँकि “बेटी” हम सब की है ,
आओ उस माँ के पास जाते है ,
सड़कों पर क़ब्ज़े के इस दौर में ,
सत्ता की भूख मिटाते है ।


आओ सभी मिल कर फिर से,
सड़कों पर आते है ,
बुलंद कर आवाज़ अपनी ,
“मालिक” को जगाते है ।

माँ जिसको छोड़ दिया लाखों ने ,
आओ हम फिर उसका साथ निभाते है ,
बुझ गई मोमबत्तियों को छोड़ ,
उम्मीद और भरोसे का दिया जलाते है ।

आओ चलो सड़कों पर उतर कर ,
माँ का साथ निभाते है !!

Saturday, January 11, 2020

मालूम नहीं

तुझसे मोहब्बत हुई कब ,
कहाँ और कैसे ,
यक़ीन मानो .. मालूम नहीं ।

तेरी पहली मुलाक़ात ,
और उसमें हुई हर बात ,
और उस वक़्त के हालत ,
यक़ीन मानो .. मालूम नहीं ।

एक रोज़ फिर मिला था तुझसे ,
पर तुम वक़्त निकाल नहीं पाई ,
थी शायद कहीं जाने को आई ,
लेकिन कहाँ ?
यक़ीन मानो .. मालूम नहीं ।

कब चंद लम्हों की बातों को ,
रात छोटे लगने लगे ,
अजनबी से पहचाने लगने लगे ,
आख़िर क्यूँ ?
यक़ीन मानो ... मालूम नहीं ।

हर रात चाँद से पहले सोने वाला ,
तुम्हें बिना देखे अब सोता नहीं ,
पर ऐसा क्यू ??
यक़ीन मानो .. मालूम नहीं ।

जान कर भी जा रही जान ,
तेरी आँखों में डूब कर ,
तैरना मंज़ूर नहीं होता ,
क़सम से ?
यक़ीन मानो .. मालूम नहीं ।

ज़िंदगी भर ज़िंदगी के लिये ,
हम सब लूटा आये थे ,
ख़त्म उस सिलसिले को ,
आज ख़ुद कर आये थे ,
लेकिन क्यूँ ?
यक़ीन मानो .. मालूम नहीं ।।

शायद


दिल के लगने से ,
दिल के बिछड़ने तक ,
मुझसे मिलने और
उनसे जुलने तक ।

मेरी पहली मुलाक़ात ,
से आज फिर वो मिल रहे होंगे ,
मेरे जाने पर ,
मोम से जज़्बात पिघल रहे होंगे ।

होगा हाथ फिर थामा मेरा ,
बड़ी शिद्दत से आज उन्होंने ,
कसमें भी ख़ूब खा रहे होंगे ,
ख़्वाब फिर सज़ा रहे होंगे ।

ख़ुशबू से मेरे महक रहा होगा शमा ,
और अल्फ़ाज़ो से वो सज़ा रहे होंगे ,
पिघल कर बहने को आ रहे जज़्बात ,
आँखों में दिखा रहे होंगे ।

क्यूँकि जाना ज़रूरी है अब ,
वो रुकने को मिन्नते किये जा रहे होंगे ,
आख़िरी नो हो मुलाक़ात ये ,
फ़ैसला कुछ ऐसा सुना रहे होंगे ।

मैं तो आज भी हु वही वैसे खड़ी ,
बस वो कोई और मुझ सा ढूँढ लाये होंगे ,
भूल कर तस्वीर मेरी ,
पहली हो मोहब्बत मेरी .. पहेली बुझाये होंगे ।

शायद मुझसे मिलने भी पहली दफ़ा ,
किसी मैं को छोड़ आये होंगे ,
मेरे संग बीते हर लम्हे को ,
कही और जी कर आये होंगे ।

शायद .. आज फिर मुझसे मिलने ,
वो कहीं आये होंगे !!

Monday, January 6, 2020

वो आँखे

तेरी आँखो में आज देखा था पहली दफ़ा .. शायद ,
कुछ मुस्कुरा सी रही थी ,
जज़्बात छिपा सी रही थी ,
ख़्वाब सज़ा सी रही थी ,
तेरी आँखो में देखा था पहली दफ़ा आज .. शायद !!

यू तो देखते थे कई दफ़ा तुमको ,
तुम्हारे भेजे ख़त में ,
पर कभी ठीक से निहार नहीं पाये ,
शायद आँखो में तुझे उतार नहीं पाये ।

गुमनामी के रिश्तों में उलझें ,
हुए हमारे तार है ,
अजनबी आज भी हो तुम मेरे लिये ,
बातें यू हो जाती दो चार है ।

कभी देखा ना ग़ौर से इतना ,
या शायद कुछ नया सा एहसास है ,
तेरी आँखो में बसी उसकी मोहब्बत ,
या काजल का रंग कुछ ख़ास है ।

आँखो से बातें करने उसके ,
अब हम नहीं जाते ,
दिल में बसी तस्वीर उसकी ,
देखते ही अजनबी बन रुक जाते ।

देखा था ग़ौर से तेरी आँखो में आज ...
शायद ,
ख़ूबसूरत है वो तेरी मोहब्बत सी !!!