Monday, November 18, 2019

बेफ़िक्र

क्यूँकि चलना ज़रूरी होता है ,
मंज़िल की तलाश में ,
आसमान से भी होता है ऊँचा ,
ख़्वाब उड़ता आकाश में ।

कभी ऊझलते तार ज़िंदगी के ,
कभी सुलझ जाते है ,
अजनबी कई दफ़ा अपने ,
अपने अजनबी हो जाते है ।

डर लगता है खोने का ,
पाने से घबराते ,
पास आकर भी मंज़िल के ,
दूर हम हो जाते ।

कभी ग़म के बादल ,
कभी ख़ुशियों की होती बारिश ,
बेवजह हो कर भी साथ ,
ज़िंदगी बन जाती लावारिस ।

क्यूँकि फ़िक्र जो होती साथ है ,
डर से गुज़रती हर रात है ,
क्यूँ नहीं बेफ़िक्र हो जाते ,
छोड़ सब हर पल मुस्कुराते ।

क्या ज़रूरी है वजह का ,
बेवजह ज़िंदगी में ,
क्यूँ जी नहीं लेते ज़िंदगी ,
अपनी ख़ुशी में ।

बेफ़िक्र हो कर आज हम ,
ख़ुशियाँ मनाते है ,
बीत गये लम्हों का मालूम नहीं ,
आओ इन लम्हों में ज़िंदगी जी जाते है ।