Tuesday, October 28, 2014

दिल है की मानता नहीं

तेरी मुस्कान से मोहब्बत करू ,
तो तेरी आँखे बुरा मान जाएंगी ,
गाल के तिल पर आजाये दिल अगर ,
तो जुल्फ को आँचल बना वो उन्हे छिपाएंगी .

आज भी सोचता हु ,
तुम हो कौन , और क्यों हम मिले ,
उड़ता हुआ पंक्षी हुआ करता था ,
तेरी खूबसूरती के जाल मे कैसे हम फंसे .

तेरे इंकार को इजहार समझ बैठे ,
सोचा जो था ना कभी ,
वो दिल का हाल कर बैठे .

तेरी पहली झलक जितनी हसीन थी ,
अंदाज़ से तू उतनी ही नमकीन थी ,
चहेरे पर लिए हुस्न का भंडार ,
दिल को कर दिया मेरे तार तार .

घायल तो कर दिया था पहली नजर मे तूने ,
पर फिरसे अब जख्म ताज़ा होने लगे थे ,
जहा उम्मीद कर रहा था जख्मो पर मरहम की ,
वहां तुम अपनी बेरुखी से उन्हे खरोच रहे थे .

सोचता हु कभी कभी ,
तुम तो करीब आने से रही ,
हम खुद ही दूर चले जाते है ,
पर क्या करे इन निगाहो का ,
जो हर किसी मे तेरा ही अक्स पाते है .

...... एक आखिरी तोफा तेरे लिए 
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