Tuesday, June 30, 2020

चमन की बहार

ये इश्क़ की ज़ंजीरो में ,
बँधा एक दिल है ,
छोटी सी ख़्वाहिश जिसकी ,
दूर बहुत मंज़िल है ।

ख़्वाबों से ख़्यालों तक का सफ़र ,
था बहुत शानदार ,
ख़ूबसूरत वो और उसकी अदायें ,
खिच ले मुझे अपनी ओर हर बार ।

सच से बस उतना ही था फ़ासला ,
जितना वो हमें पहचानते थे ,
आज भी हम थे उनके लिये अनजान ,
बस इतना ही वो जानते थे ।

दूसरों की आँखों में ,
बसी उसकी तस्वीर ,
कैसे नज़रों से उतार लाते ,
कैसे ख़्वाबों को तोड़ पाते ।

मोहब्बत हमने भी की थी ,
पर हाले दिल किसी बताते ,
ख़्वाबों में है सिर्फ़ साथ मेरे ,
कैसे बस इतना सा सच सुनाते ।

धड़कनो से माँगा उधार हो तुम ,
सच्चा प्यार हो तुम ,
ख़्वाबों में ही सही ,
चमन की बहार हो तुम ।। 

Monday, June 15, 2020

मेरे मौत की ख़बर

जिस रोज़ मिले ख़बर मेरे मौत की,
चंद शब्दों के फ़ूल छोड़ जाना।
रिश्ता जो निभाया ना कभी,
उसपर इमोटिकॉन्स वाले आँसू बहाना।।

ज़िंदगी के मतलब को,
मर कर कैसे जताते हैं ।
सीख लो कला ये उनसे,
जो मौत के बाद ज़िंदगी मे आते हैं।।

था परेशान बहुत उस दौर में,
कहानियाँ भी थी अनगिनत ।
पर किसको सुनाता,
ज़िंदा रहने पर मिलने कौन है आता।।

चलो अब तो वो शोर भी,
दफ़्न मेरे अंदर ही हो गया।
मौत की बाँहों मे जाकर,
जिस पल मैं सो गया।।

ज़िंदगी थी साथ ज़िंदगी के ,
काफ़ी अरसे तक मेरे ,
भूल जायेगा चंद लम्हों में वो ,
जो था नहीं कभी साथ मेरे । 

ख़बर मेरे मौत की भी पुरानी होगी,
धुँधली जिसकी कहानी होगी।
फिर आँसू बहाने को वो तैयार होंगे,
मौत के पास जाने को ना जाने ,
कितने और बेक़रार होंगे।।

गर हो सके तो मेरी मौत पर ,
ना आंसू बहाना।
वो चंद लम्हा ही सही ,
किसी अपने को दे आना ।

वरना जंग-ए-ज़िंदगी से,
और कहानियाँ मौत की।
आये दिन सुनते जाएंगे ,
चंद शब्दों वाले फ़ुल वो छोड़ जाएंगे।।

Wednesday, June 10, 2020

मैं दिल्ली हूं

मैं ज़िंदा लाश बन ,
कहीं लावारिस पड़ी हूं।
कहीं आख़िरी है साँस बची ,
कहीं मौत की गोद में पड़ी हूं।
मैं दिल्ली हूं।

मालिक मेरे छोड़ कर मुझे ,
मेरे अपने गिनाते है ,
क़ैद कर मेरे बच्चों को ,
मुझे ख़ूनी बताते है ,
मैं दिल्ली हूं।

मेरे घर में ना दरवाज़े ,
ना ही दिलों में थी कभी दूरियां
पहले जलाया जिस्म को मेरे ,
दंगो के आग से ,
आख़िर क्या थी मजबूरियाँ ।

मैं आज अपने-पराये के जंग में ,
आत्मीयता को ही खो रही हूं,
सो रहे मालिक मेरे बंद कमरे में ,
और मैं खुले आसमां में रो रही हूं ,
मैं दिल्ली हूं ।

ना कोई पूछ रहा हाल मेरा ,
ना कोई ज़िंदगी बचा रहा है ,
आख़िर क्यूँ है भूख इतनी ,
क्यों मेरा जिस्म नोच कर मालिक खा रहा है ,
मैं दिल्ली हूं।

मैं गर बच गई जीवित
लौट कर ज़रूर आऊँगी ,
बंद घरों में ज़िंदा लाश ,
दुनिया को दिखाऊँगी ।

कौन कहता दिलवाले रहते यहाँ ,
मौत के सौदागर बने बैठे मालिक जहाँ ,
वक़्त ज़रूर जवाब दे जायेगा ,
मेरे मिट जाने पर वो ,
किस पर हुकूमत चलायेगा ।

मैं दिल्ली हुँ ,
ज़िंदा लाश क़ब्र के पास ।।

Sunday, June 7, 2020

गुमसुम ज़िंदगी

माना की अंधेरा बहुत है मगर ,
दीया तो जलाना होगा ,
बुझ चुके उम्मीद के दीपक को ,
फिरसे जगमगाना होगा ।

साथ थे कल सब पराये ,
आज सब अपने साथ है ,
पर लगता नहीं कुछ अपना ,
उलझे सब जज़्बात है ।

होंठों पर ना अब आती हँसी ,
ना आँखें नम होने को आती है ,
मायूसी घेरे बैठे चारों ओर मेरे ,
मुझे ख़ामोश कर जाती है ।

मौलूम नहीं पता कब ,
कोई अपना मिलने को आयेगा ,
लावारिस हो चुकी ज़िंदगी को ,
क्या वो पहचान पायेगा ।

गुमसुम सी ज़िंदगी मेरी ,
शायद कुछ ऐसी ही हालत तेरी ,
पर कैसे तुझे हाले दिल सुनाये ,
कैसे तुझमें गुमसूदा हो जाये ।

Monday, June 1, 2020

ग़ज़ल

मेरी दिल के धड़कनो से पुछो ,
कैसा हाल हो चला है ,
एहसास जुड़े तुझसे ,
वो शब्दों में पिरो चुका है ।

स्याही तेरा एहसास ,
क़लम तेरे जज़्बात ,
आँखे तेरी वजह ,
और ये कायनात ।

तेरे ज़िक्र भर होने से ,
सब बदल सा जाता है ,
थमने को आ चुके दिल को,
फिर से वो धड़काता है ।

ना कभी हम होते साथ ,
ना कभी बहुत दूर ,
यक़ीनन है मजबूरियाँ बहुत ,
पर क्यूँ ? बताना ज़रूर ।

मेरे हर शब्द पर हक़ तेरा ,
दिल पर तेरा राज़ ,
सजाते जिन्हें लफ़्ज़ों में पिरो कर ,
हर दिन और रात  ।

मुमकिन है की हम ना मिले कभी ,
फिर भी तुम्हें लिखता जाऊँगा ,
तुम बनोगी ग़ज़ल मेरी ,
स्याही और क़लम से ,
हर दफ़ा सजाऊँगा ।

गर ना मिले खत मेरा कभी ,
आख़िरी समझ लेना ,
क्यूँकि याद रहे धड़कनो के ,
आख़िरी शोर पर भी ,
हक़ सिर्फ़ तेरा ।