Monday, October 24, 2022

झूठी मुस्कान

होठों पर झूठी मुस्कान लिए ,
दिल में जख्म ताज़ा है ,
अधूरा इश्क़ है तुम्हारा ,
या उसका वादा है ।

तुम आज़ाद परिंदा बन कर ,
किस कैद में बैठी हो ,
शोर है चारों तरफ़,
फिर भी खामोश ही रहती हो ।

कुछ सुना नहीं तुमने ,
कुछ अनसुना कर दिया ,
फरेब और फरेबी के दौड़ में ,
तुमने खुद को अजनबी कह दिया । 

छोड़ कर अधूरे रास्ते में तुम्हें,
उसने क्या गुनाह कर दिया ,
तुमने भी तो इश्क़ में ,
किसी और को खुदा कह दिया ।

क्या आज भी तुम ,
इस सच को झुठलाओगी ,
नम आंखों पे बिखरे काजल ,
अपने हाथों से छिपाओगी ।

ख़त्म करो इस कैद को ,
और आज़ाद हो जाओ ,
इश्क़ में बर्बाद नहीं,
किसी का इश्क़ बन जाओ ।।

Saturday, September 24, 2022

मेरा रकीब

अपनी वो मुस्कराहट ,
अब बस मुझे लौटा दो ,
एक और दफा इस मुसाफ़िर को ,
उसकी मंजिल तक पहुंचा दो । 

इस जंग में साथ तुम्हारे ,
मैं हर पल खड़ा रहूंगा ,
खुद को बेहतर बनाने की ,
एक आखिरी कोशिश करूंगा ।

मेरे शब्दों को चुरा कर मुझसे ,
तुम कौन से किस्से लिख रही हो ,
सब कुछ कर के मेरे हिस्से ,
अपने हिस्से क्या कर रही हो ।

इश्क़ में बर्बाद हो कर ,
भला किसे दुआ मिली हैं,
मुझे तो तेरे आने के बाद ,
लगा जैसे जिंदगी मिल गई है ।

क्या इश्क़ में मुझ जैसा ,
कोई और भी बदनसीब होगा ,
जिसकी मोहब्बत में ,
वो खुद ही रकीब होगा।

मधु की मोहब्बत

खामोशी में मेरे शोर को ,
अब सुनना छोड़ दो ,
अपने हिस्से के गम भी ,
तुम मेरी ओर मोड़ दो ।

मैं इश्क़ निभा कर तुमसे ,
हर रोज़ तुम्हें रुलाता हूं,
कर के जुल्म खुद से ,
गुनहगार तुम्हें बताता हूं ।

फिर भी साए की तरह ,
तुम मेरे साथ चलती हो ,
मेरी ख्वाइशों के आगे ,
अपने अरमान कुचलती हो ।

ना पता दिन का तुम्हें,
ना रात का इंतजार है ,
मेरी ही दुनिया में ,
बसा तुम्हारा संसार है ।

सब कुछ लुटा कर भी ,
तुम कैसे मुस्कुरा लेती हो ,
छिपा कर हर गम अपना ,
मुझसे इश्क़ निभा लेती हो ।

सच सच बताना ,
मुझसे भी बेहतर ,
कैसे मुझे पढ़ रही हो ,
खुद से भी ज्यादा ,
मुझसे मोहब्बत कर रही हो ।।

Wednesday, August 31, 2022

खैर छोड़ो

क्या गुजरना है तुम्हें ,
किसी अनछुए शोर से ,
इस दफा गुजरने देना ,
दोनों ही ओर से ।

तुम रोक कर मुझको ,
अब और कितना जलाओगी,
खाक में मिलाते मिलाते मुझे ,
मुझमें ही मिल जाओगी ।

सब्र का बाढ़ तोड़ कर ,
हद से बेहद हो जाओ ,
एक और दफा शिद्दत से ,
पहेली बन जाओ ।

चंद लम्हों में पूरी जिंदगी ,
इस दफा जी आते हैं,
बन कर कोई ख़्वाब,
तुझसे गुजर जाते हैं ।

हां इस दफा .. थोड़ा ,
खैर छोड़ो,
कुछ नहीं ..
हम लौट जाते हैं ।।

Thursday, July 21, 2022

सौदेबाज का इश्क़

क्यों नहीं ठहर कर ,
थोड़ा आराम करते हो ,
एक से ही सही ,
इश्क़ खुलेआम करते हो ।

दिल की धड़कनों का सौदा ,
सरेआम करते हो ,
दाम लगा कर इश्क़ का ,
उसे नीलाम करते हो ।

क्यों करते हो इश्क़ ऐसा ,
जिसमे कत्लेआम करते हो ,
कत्ल तुम करो किसी का ,
पर इल्ज़ाम उसके नाम करते हो । 

इश्क़ के किस्सों में ,
जो इश्क़ को बदनाम करते हो ,
किसी गैर की मोहबब्त ,
किसी गैर के नाम करते हो ।

क्या इश्क़ में सीखा यही ,
या किसी ने दिल दुखाया है ,
इश्क़ में पड़ कर भी ,
क्यों इश्क नहीं मिल पाया है ।।

तुम्हारी कहानी

ख्वाइशों में कैद जिंदगी जिसकी ,
ख़्वाब भी उसके अधूरे हैं ,
मिला सब कुछ बिखरा जिसको ,
फिर भी कहते हम पूरे हैं ।

उंगली थाम कर अपनी ,
जिसने चलना सीखा है ,
बचपन में खुद को ,
बड़ा होते देखा है ।

ना साथ मिला कभी ,
ना कोई साथी बन पाया ,
मतलब होते पूरा ,
हर किसी ने उसे गैर बनाया ।

आज भी घर की तलाश में ,
वो कैद हो जाते हैं,
किसी और पिछड़े में जाकर ,
अनजाने में फस जाते हैं ।

मंजिल की तलाश और घर ,
वक्त आने पर मिलेगा ,
किसी रोज़ कोई अजनबी ,
जब उसे अपना कहेगा ।

बाकी और भी जंग ,
अभी बाकी है ,
रखना भरोसा ,
तू खुद में काफी है ।।

Thursday, June 30, 2022

इश्क़ के किस्से

इश्क में और भी गम ,
हमें हर रोज़ सताते हैं,
मरहम सोच कर जब वो ,
घाव को खरोचने लग जाते हैं।

उम्मीद लगा कर बैठे हम ,
जिसे हर रोज़ वो तोड़ जाते हैं ,
वादा आखिरी मंजिल का कर के ,
बीच रास्ते कहीं छोड़ जाते हैं ।

सिलसिला इश्क़ में बेवफाई का ,
अब बड़ा ही आम है ,
सुबह को है जो आप की जिंदगी ,
शाम में उससे जिंदगी अनजान हैं ।

इश्क़ में अकेला होना बेहतर है ,
तन्हां होने से ,
इश्क़ में ना होना बेहतर है ,
हर रोज़ रोने से ।

आप भी तो इश्क़ में हैं ,
या इश्क़ तलाश रहे हैं ,
आप का इश्क़ कैसा था ,
जिसके आप पास रहे हैं ।

Wednesday, June 29, 2022

दाग़

ये इश्क़ जिसमे दाग़ हैं,
वो इश्क़ में दिखता क्यों नहीं,
बिछड़ने पर महबूब के ,
कभी मिटता क्यों नहीं ।

ना होती उनसे कोई शिकायत ,
और ना जुल्म उनके नज़र आते ,
आते ही जिंदगी में किसी इश्क़ के ,
वो गुनेहगार बन जाते ।

साथ जो सुंदर और अटूट होता ,
कैसे मैला होकर छूट जाता हैं,
बदलाव के इस दौर में ,
शायद इश्क़ से मन भर जाता है ।

पर उन लम्हों का क्या ,
जो आज भी तन्हा बैठे हैं ,
आप के गुजर जाने के बाद भी ,
आप के इश्क़ को ही ,
जो सब कुछ मान बैठे हैं ।

किसी दाग को मिटा कर ,
कोई और दाग़ हम लगाते हैं ,
श्वेत चादर ओढ़े इश्क़ पे ,
अक्सर दाग़ छोड़ जाते हैं ।

पर कोई तो इस दाग को भी ,
खुद ही मिटाएगा ,
इश्क़ में सिर्फ किसी एक के ,
खुद को रंग जाएगा ।

कहीं वो आप तो नहीं ....!

Saturday, June 18, 2022

गुनाह

तुमको पाकर भी शायद ,
खो दिया है मैंने ,
बंद दरवाजों में बहुत ,
रो लिया है मैंने ।

इश्क़ निभाते निभाते ,
कब ज़ख्म कुरेतने लगे ,
फेरती उंगलियों से ,
अब गला रेतने लगे ।

तुम पर लूटा कर सब ,
मैं खुद लूट गया ,
महल के ख़्वाब देखते देखते ,
कहीं सड़क पर सो गया ।

वादा किया था निभाने का ,
वो भी तुम तोड़ गए ,
इश्क़ में तन्हाई मेरे हिस्से ,
तुम जाते जाते छोड़ गए ।

वक्त के साथ तुम ,
सब कुछ बदलने लगे हो ,
मुझे छोड़ कर ,
किसी गैर से मिलने लगे हो ।

खैर ,
इश्क में बहुत बदनाम सुने होंगे ,
पर बर्बाद कभी सुना है क्या ,
इश्क़ के बदले इश्क़ मांगना ,
कोई गुनाह है क्या ?!।

Thursday, May 26, 2022

पहेली का दरवाज़ा

एक रिश्ता है अल्फाज़ का ,
उलझी जिसकी पहेली हैं,
दुनिया से बिलकुल परे ,
वो किसी खिड़की पे खड़ी अकेली है ।

बारिश की हर बूंद जिसके ,
मन को भीगा रही हैं,
लौट कर फिर से वो ,
अल्फाज़ में उलझी जा रही है ।

कल्पना के इस सफ़र में ,
गर कोई उसका साथी हैं,
महज मौजूदगी ही जिनकी ,
दोनों के लिए काफी है ।

अल्फाज़ के लिए वो पहेली ,
पहेली के लिए उसके अल्फाज़ हैं ,
क्या खूब छिपा लेते दोनों ,
एक दूसरे के जज़्बात हैं ।

है बहुत कुछ आज भी अधूरा ,
वक्त जो पूरा कर जाएगा ,
खोल कर दरवाज़ा जब कभी ,
वो दिल में उतर जाएगा ।

खोल कर दरवाजा ,
पहेली आज पहले ही खड़ी हैं ,
ना कोई हलचल ना हड़बड़ी ,
वो बिल्कुल खामोश पड़ी है ।।

Wednesday, May 25, 2022

अंधेरा इश्क़

इश्क़ निभाने रात में ,
वो सिर्फ़ अंधेरी रातों में आता है ,
दिन के उजाले से पहले ही ,
कहीं और गुम हो जाता है ।

ना लगाता दिल किसी से ,
ना दिल में बस पाता हैं,
सौदा खूबसूरत रातों का कर के ,
सौदागर बन जाता है ।

अंधेरी रातों में अक्सर ,
ये इश्क़ करने जब आता है ,
इश्क़ का तो पता नहीं ,
पर तन्हाई मिटाता हैं ।

भूल कर अपनी मोहब्बत ,
कैसे हर कोई इसका हो जाता हैं ,
तन्हा रातों में जब कभी ,
ये दरवाज़े पे आ जाता है ।

एक रात का इश्क़,
आज कल हर रात हो रहा हैं,
बन कर महबूब किसी गैर का ,
किसी गैर की बांहों में सो रहा है ।

जिस्मानी इश्क़ में ,
रूह ना जाने कहां खो गई ,
आज रात इस डगर ,
कल कहीं और सो गई ।।

बेवफ़ा को वफ़ा

मेरे इश्क की परिभाषा बदल कर ,
तुमने इश्क़ करना सीखा दिया ,
हर मुश्किल को पार कर के ,
तुमने मुझे मुझसे मिलवा दिया ।

सह कर मेरे हर दर्द को ,
मुझे चोट से बचाती रही ,
अधूरे इश्क़ को मेरे ,
दुनिया को पूरा बताती रही ।

तुमसे करके वादा वफा का ,
बेवफाई मैं निभाता रहा ,
दिल में बसी हो तुम कह कर ,
आंखे किसी गैर से मिलाता रहा ।

परवाह नहीं की तुमने कभी ,
तुमको इस इश्क़ में क्या मिला ,
तुमने तो सब कुछ लुटा दिया ,
क्या अच्छा और क्या बुरा ।

तुम बन कर प्रेरणा मेरी ,
मुझे इश्क़ सिखाने लगी हो ,
मेरी हर उलझन को ,
एक पल में सुलझाने लगी हो ।

खैर ,

इश्क़ में चंद ही खुशनसीब मुझ जैसे ,
बेवफाई के बाद भी वफा पाते हैं ,
वरना बहुत है महफ़िल में ,
जो बर्बाद हो जाते हैं ।।

फरेब इश्क

आज फिर मिला मैं उससे ,
बिछड़ने के बाद ,
सब कुछ हो उठा जिंदा ,
उसके मिलने के साथ ।

मिट गया था हर ज़ख्म,
और अब वो मुस्कुरा रही थी ,
किसी गैर के बाहों को ,
अपना घर बता रही थी ।

इश्क़ में हो कर भी किसी के ,
वो इश्क़ तलाशती रहती थी ,
ये अदा आज भी उसकी ,
हुबहु पहले जैसी थी ।

है खड़ा वो पास उसके ,
मुझ जैसे बर्बाद होने को ,
चंद रोज के बेवफाई के बाद ,
एक रोज खाक होने को ।

मैं आज भी तन्हा ,
और बेकार पड़ा हूं ,
इश्क़ में बर्बाद हो कर ,
किसी चौराहे पे खड़ा हूं ।

मालूम नहीं मेरे हिस्से ,
कब वो गैर आयेगा ,
जो इस जिंदा लाश से ,
शिद्दत से इश्क़ निभायेगा ।

चंद खुशनसीब ही इश्क में,
हर रोज़ क़ातिल बन पाते हैं ,
साँसे छीन ,ज़िंदा लाश की
किसी मुर्दे से दिल लगाते हैं ।।

Thursday, May 5, 2022

हमारी जिंदगी

कुछ टूट रहे पत्ते ऊपर से ,
कुछ नीचे से पेड़ उग रहें  ,
अपने ही अरमानों को ,
हम अपने फैसलों से कुचल रहें ।

हां जिंदगी भी गुलजार हैं ,
और जब तक जिंदा है हम ,
पर खुद के फैसलों से ,
थोड़े शर्मिंदा हैं हम ।

क्या करें इस जिंदगी का ,
जो हर पल में बदल जाती हैं ,
एक पल करती बेहद मोहबब्त ,
अगले ही पल बेवफा बन जाती है ।

हर सुबह के बाद शाम ,
और हर खुशी के बाद गम ,
हर रोज़ बार बार मर कर भी ,
देखो अब तक जिंदा हैं हम ।

पर हम जैसा मुसाफ़िर भला ,
कभी कहां ठहर पाता हैं ,
उजाड़ कर बागीचा अपना ,
किसी और का गुलजार कर जाता है ।

खुशकिस्मत हम जैसे ,
और भी इस महफिल में बैठे हैं,
कुछ हो रहें बर्बाद खुद से ,
कुछ "आबाद" हम जैसे हैं ।।

Thursday, April 28, 2022

खुद सा इश्क़

एक अनजान सी लड़की ,
जो खुद से अजनबी बन कर बैठी हैं,
तन्हाइयों से कर के बातें,
खुद को कोसती रहती है ।

हर रोज़ थामती दामन उस सच का ,
जो खुद को झुठलाता हैं,
चंद पल की रौशनी के बाद ,
अंधेरों से घिर जाता है ।

उम्मीद के टूटते ही ,
वो खुद बिखर जाती हैं ,
हर किसी को अपना मान ,
सब से दिल लगाती है ।

वो ख्वाइशों से निकल कर ,
जब आजमाइशों से गुजरती है ,
खुद के नफ़रत से भी ,
वो इश्क़ करने लगती है ।

चंद पल में हमसफर बनते ,
अगले ही पल रास्ते बदल जाते हैं ,
छोड़ कर मुसाफिर जब उसे ,
किसी और रास्ते निकल जाते हैं ।

दिल लगाने ही किसी दिल से ,
दिल साथ छोड़ जाता है ,
इश्क़ शिद्दत से निभा कर भी ,
उसे सुकून कहां मिल पाता है ।

बन कर मुसाफ़िर सा ,
अजनबी रास्तों पर भाग रही है ,
वो आज भी खुद सा इश्क़,
हर इश्क़ में तलाश रही हैं ।।

Friday, April 15, 2022

इश्क़ में शर्त

क्या बगैर इश्क़ के भी ,
कहीं इश्क़ होता है क्या ,
इश्क़ की चाहता में ,
कभी कोई इश्क़ में रोता है क्या ?

ना पता होता इश्क़ के खुशबू का ,
ना वो कोई श्रृंगार से सजता है ,
इश्क़ में इज़हार का पता नहीं ,
हर दफा इनकार ही मिलता है ।

वक्त को पिंजड़ों में कैद ,
जज़्बातों को जो झुठलाता है ,
महबूब को छोड़ कर सबसे ,
शिद्दत से इश्क़ निभाता है ।

बेहद इश्क़ में होकर भी ,
जो इश्क़ की हदें बताता हैं ,
इश्क़ दिल की धड़कनों से कम ,
आंखों से ज्यादा बहाता है ।

क्या कभी इश्क़ में ,
अधूरा इश्क़ भी रह जाता है ,
सच्चे इश्क़ की दास्तां ,
एक पल में झुठलाता है । 

क्या सच में इश्क़ ,
इश्क़ की शर्ते बताता है ,
बेवजह बेमतलब इश्क़ ,
किस्मत वालों को मिल पाता हैं ?

खैर ,
इश्क मुबारक इश्क़ को ,
और आप को मुबारक उसकी आशिकी ,
इश्क़ के बगैर देखो ज़रा,
कितनी खूबसूरत है मेरी जिदंगी ।

Sunday, April 10, 2022

पेशेवर आशिक़

कभी किसी के इश्क़ से ,
इश्क़ कर देखना ,
वो तुमसे इश्क़ करने लगेगा ,
गर इश्क़ में वो अधूरा रहेगा ।

लगेगा जैसे इश्क़ लौट कर ,
अब फिर से जिंदगी में आने को है ,
छोड़ कर इश्क़ को अपने ,
तुमसे दिल लगाने को है ।

पल भर में जिंदगी ,
जहन्नुम से जन्नत लगने लगेगी ,
जिस रोज़ शिद्दत से आकर ,
इश्क़ करने को वो कहेगी ।

लौट कर जिंदगी में उसके ,
फिर कोई नया शख्स आयेगा ,
तुमसे भी बेहतर जो ,
उससे इश्क़ निभायेगा ।


अभी तो ठीक से उसे ,
मैंने जाना भी नहीं था ,
या फिर उसने मुझे,
कभी अपना माना ही ना था ।

क्योंकि पेशेवर आशिक़ तो ,
ऐसे ही इश्क़ निभाते हैं,
किसी नए के आने पर ,
फिर से इश्क़ में पड़ जाते हैं ।।

Wednesday, April 6, 2022

चलो कुछ बात करो

माना की वक्त नहीं पास तुम्हारे ,
ना ही वक्त बैठा है साथ तुम्हारे ,
फिर भी थोड़ा तुम साथ चलो ,
चलो कुछ बात करो ।

जिंदगी दौड़ी नहीं फिर भी थकान हैं ,
हलचल के बाद भी सब सुनसान है ,
फिर भी थोड़ा तुम दौड़ पड़ो ,
चलो कुछ बात करो ।

बारिश को आ जाने दो ,
जी भर कर भीग आने दो ,
अब और उलझन में ना फसो ,
चलो कुछ बात करो ।

उलझी हुई पहेली को अब सुझाते हैं ,
अल्फाज़ से चलो मिल कर आते हैं ,
बस तुम पीछे ना मुड़ो ,
चलो कुछ बात करो ।

रात तो ऐसे ही रुक जाने को ,
चांद को बादलों में छिप जाने दो ,
बस तुम ऐसे ही रहो ,
चलो अब बस तुम कहो ।

सुनो ...चलो कुछ बात करो ।।

Friday, April 1, 2022

अधूरा इश्क़

हर रोज़ इश्क़ के जंग में ,
कुछ तो नई बात होती है ,
मुश्किलों से घिरी जिंदगी ,
फिर भी मेरे साथ होती है ।

सपने जिसके चांदनी रात से ,
मैं उसका अमावस की रात ,
बन कर जिंदगी में आया हूं ,
संग सिर्फ़ अंधकार लाया हूं ।

नाज़ुक कड़ियों को जोड़ कर ,
एक रास्ता दोनों ने बनाया है ,
पर फुरसत के दो पल भी ,
कहां नसीब हो पाया है ।

हर रोज़ छूटने के डर से ,
अब और सताने लगा हूं ,
जिंदगी के आंसुओ से ,
खुद को भीगाने लगा हूं ।

खुश किस्मत होंगे चंद मुझ जैसे ,
जिन्हें तुम जैसा कोई मिलता होगा ,
हर रोज़ ज़ख्म खा कर भी ,
जो दूसरों के जख्म भरता होगा ।

अब तुमसे मेरी सुबह ,
और तुमसे ही शाम है ,
इश्क़ तुमसे ए जिंदगी ,
अब खुलेआम है ।।

Thursday, March 31, 2022

कागज़ के फूल

और जब निगाहें मेरी ,
उनके दीदार को तरस रही थी ,
हर दफा गुजर कर भी हमसे ,
एक पल भी वो ना ठहर रही थी ।

कागज़ का फूल ओढ़े ,
वो मेरे अरमानों को कुचल रही थी ,
मानों छोड़ कर मुझे ,
किसी और से मिल रही थी ।

देखा जब एक और दफा ,
निगाहों ने दम तोड़ दिया ,
इश्क़ की इजाज़त नहीं ,
बस ये जानते ही ,
दिल ने धड़कना छोड़ दिया ।

कागज़ के फूल सा ,
अब कोई और उसे छिपा रहा है ,
पूछने पर पहचान जो ,
उसका महबूब बता रहा है ।

टूट कर दिल मेरा ,
काग़ज़ के फूल से साथ पड़ा हैं ,
मेहबूब जिसका ,
हम दोनों को कुचलने को ,
राहगीर बन कर खड़ा है ।

क्या हर इश्क़ करने वाले को ,
ऐसे ही सताया जाता है ,
बना कर महबूब शिद्दत से ,
रकीब के हाथों कत्ल कराया जाता है ।

कागज़ के फूल सा दिल मेरा ,
पड़ा हैं सुख कर जलने को ,
छोड़ कर महबूब का दामन ,
ख़ाक में मिलने को ।।

Wednesday, March 30, 2022

कंधा

देख कर तेरी आंखों में ,
वो कल याद आने लगा ,
बीता हर पल संग तेरे ,
अब मुझे सताने लगा ।

चंद पल के साथ में ,
जिंदगी भर का एहसास था ,
दूर हो कर भी मुझसे ,
तेरा हर एक लम्हा मेरे पास था ।

देखती निगाहें तेरी मुझे ,
आज फिर पुकार रही हैं ,
नजरों में बसा कर अपने ,
दिल में उतार रही हैं ।

आसमान में तारे आज कुछ ,
कम टिमटिमा रहें है ,
चांद से शायद ,
तुझ जैसे वो भी शर्मा रहें हैं ।

आंखो से बहते आंसू ,
मोती बन कर गालों पे आ रहें ,
और फेर कर उंगलियां जिनपर ,
हम हाथों से सहला रहें ।

किस्सा एक और दर्द का ,
वो मुझे सुना रही है ,
छोड़ कर अपनी मोहब्बत को ,
मेरे पास आ रही है ।

इश्क़ में अक्सर कंधा ,
बेहतर इश्क़ निभाता है ,
चंद पल के साथ में ,
जिंदगी भर का एहसास छोड़ जाता है ।

इश्क़ की किताब

मेरे इश्क़ के किताब के ,
महज़ एक शब्द से ,
कब वो किताब बन गया ,
मेरे हर गम हर खुशी का ,
अब वो हिसाब बन गया ।

था नहीं मालूम सफ़र का मुझे ,
फिर भी मुसाफ़िर खुद को ,
मैं बुलाता था ,
बिना मंजिल के भी ,
अजनबी रास्तों पर रुक जाता था ।

ठहर कर मुसाफ़िर ने ,
खुद के सच को झुठला दिया ,
पड़ कर शिद्दत से मोहब्बत में उसके ,
खुद को भी भुला दिया ।

क्या इश्क़ में हर कोई ,
ऐसे ही सब लुटाता हैं ,
या फिर इश्क़ में मुसाफ़िर सा ,
हर कोई ठहर जाता है ।

इश्क़ के किताब का शब्द ,
अब खुद किताब बन गया ,
इश्क़ में हो कर भी बर्बाद ,
इश्क़ को आबाद कर गया ।

इश्क़ की दास्तां बन कर मुसाफ़िर ,
मैं दुनिया को सुना रहा हूं ,
किताब के हर शब्द को ,
सिर्फ़ अपना बता रहा हूं ।

Thursday, February 17, 2022

जिस्मानी इश्क़

ना परवाह जिसे ,
दिल के मासूमियत की ,
ना उससे जुड़े ,
शख्स के अहमियत की ।

उसे तो इश्क़ में बस ,
जिस्म नज़र आता हैं ,
अक्सर जो किसी के भी,
इश्क़ में पड़ जाता है ।

भूख नहीं मिटती जिसकी ,
जिस्म के मिल जाने तक ,
निभाता शिद्दत से इश्क़ ,
जिस्म में बस जाने तक ।

उसकी निगाहों का क्या कहना ,
उसे तो सब एक से लगते हैं ,
दिल का तो पता नहीं ,
बस जो जिस्म देखते रहते हैं ।

भला क्यों नहीं वो रुह से ,
कभी दिल लगाता हैं ,
जिस्म के बदले ,
रूह में बस जाता हैं ।

ख़ैर इश्क़ तो वो भी निभाता है ,
पर साथ नहीं चल पाता है ,
जिस्म की चाहत लिए बैठा ,
भला रूह कहां देख पाता है ।।

Wednesday, February 16, 2022

रूहानी इश्क़

है तलब इश्क़ की मुझे ,
पर जिस्म नहीं भाता है ,
क्या बगैर जिस्म की चाहत के ,
कोई इश्क़ मुकम्मल नहीं हो पाता है ।

सूरज और चांद को देखने वाले ,
कबसे जिस्म देखने लगे ,
हम भी इश्क़ की तलाश में ,
उन जैसों को जिस्म बेचने लगें ।

इश्क़ के हर सुख को हमने ,
हमेशा सच ही माना हैं ,
पर जिस्म का होना होता है जरूरी ,
ये तो हमने नहीं जाना है ।

जो गैर दिल से जुड़ा ,
उसे अपना बना लिया ,
जिस्म छोड़ कर ,
जिस पर सब लूटा दिया ।

पर मुझ जैसा इश्क़ ,
मुझे आज तक मिला क्यों नहीं ,
छोड़ कर चाहत जिस्म की ,
मेरे रूह तक ही कोई रहा क्यों नहीं ।

जिस्म मुझे किसी का भी ,
कभी नहीं लुभाता हैं ,
गर ये हैं कोई गुनाह ,
तो बस यही गुनाह मुझे भाता है ।।

फरेबी

हर कोई इश्क़ के लिए ,
मरा जा रहा हैं ,
देखो हमें तो इश्क़ में ,
मारा जा रहा है ।

हर पल ख्यालों में जिसके ,
उसे मेरा ख्याल क्यों नहीं ,
इतने उलझनों के बाद भी ,
मुझसे कोई सवाल क्यों नहीं ।

वक्त देने पर भी वक्त से ,
वो हर वक्त कहीं गुम रहता हैं ,
क्यों उसके जिक्र में छोड़ कर मुझे ,
अक्सर कोई और रहता है ।

ठहर कर क्यों नहीं मुझ तक ,
वो अपना सब लूटा जाता हैं ,
ना जाने किसी अधूरेपन की तलाश में ,
वो बस किसी और से मिल आता है ।

मैं तो ठहर गया था उस तक ,
उसे अपना आखिरी मुकाम मान कर ,
ना जाने क्यों वो नहीं ठहरा ,
मुसाफ़िर को अपना मान कर ।

इश्क़ में और कितना ,
वो मुझे हर रोज मारेगा ,
उतार कर नकाब फरेब का ,
कभी तो झूठ भी सच से हारेगा ।।

Thursday, February 10, 2022

रक्त चरित्र

एक पीड़ा हैं जो आती है ,
रक्त बन बह जाती है ,
हर गुजरे लम्हों के ,
अक्सर बहुत सताती है ।

कमज़ोर कड़ी नाज़ुक घड़ी ,
सब कुछ बदल देती है ,
दर्द से गुजर कर भी ,
अक्सर वो मुस्कुरा लेती है ।

उम्र के एक छोर से ,
जिंदगी के डोर तक ,
नाता उसका रहता है ,
कोई उसे रोग ,
तो कोई दवा कहता है ।

थम जाता सफ़र जिसका ,
किसी जीवन के आने से ,
रखता है खुद को दूर जो ,
खुद को बहाने से ।

जन्म की उम्मीद मिटते ही ,
ये खुद को मिटा जाता है ,
क्या खूब अपना चरित्र ,
ये दुनिया को दिखाता है ।

रक्त चरित्र हो जिसका ,
उसे कोई रंग क्या रंग पायेगा ,
हर सुबह सूरज के उगने जैसे ,
वो भी अपने वक्त पर रक्त बहायेगा ।

इश्क़ हो तुम

मुझे अब इश्क़ तुमसे ,
क्यों और गहरा होने लगा हैं ,
क्यों दिल की हर धड़कन पर ,
तेरा नाम रहने लगा है ।

रात के अंधेरे से शुरू सफ़र ,
दिन का उजाला बन गया हैं ,
तेरी हर एक अदा का जादू ,
मुझपर क्या खूब चल गया है ।

लड़ना झगड़ना और फिर ,
तुझे जी भर कर रुलाना ,
किसी और की मोहब्बत कह कर ,
अक्सर बेवजह सताना ।

जबसे गुजर कर शाम से ,
तू चांद से मिल गई है ,
देख ना खुद को आईने में ,
खातिर मेरे ... 
तू कितना बदल गई है ।

इश्क़ के हर किस्से में तू ,
सिर्फ़ अब बस तू ही रह जाना ,
मुझ जैसे किसी रोज़ तू भी ,
मुझे अपनी जिंदगी कह जाना ।

इश्क़ का ये किस्सा ,
जो मैं आज पढ़ रहा हूं ,
यकीन मानों ए जिंदगी ,
इस पल भी ,
मैं सिर्फ तुमसे गुजर रहा हूं ।।

Tuesday, February 1, 2022

बहरूपिया इश्क़

इश्क़ क्या है भला वो ,
जिसमे रकीब का भला ना हो ,
इश्क़ कैसा इश्क़ वो ,
जिसमें हर रोज़ सज़ा ना हो ।

इश्क़ की कहानियों में ,
सिर्फ़ वफा पर ही क्यों इतराते हो ,
किसी और की बेवफाई से पहले ,
क्यों नहीं खुद ही बेवफा बन जाते हो ।

इश्क़ के किस्से हर रोज़ ,
जो दुनिया हमें दिखाती हैं ,
क्यों बंद होते दरवाजों के ,
एक पल में कहीं खो जाती हैं ।

इश्क़ भला इश्क़ कैसा ,
जिसमें बिछड़ने की सज़ा ना हो ,
आप के जाने से पहले ही ,
इश्क़ को कोई और इश्क़ मिला ना हो ।

इश्क़ के पिंजड़े में कैद ,
अभी कितनो को पंख फैलाने हैं ,
छोड़ कर किसी अधूरे इश्क़ को ,
किसी के पूरे हो जाने हैं ।

इश्क़ में पड़ कर भी ,
इश्क़ में पड़ना बाकी हैं ,
मिल गया हमराही जरूर ,
पर हमसफ़र बनना बाकी हैं ।

Thursday, January 27, 2022

इश्क़ का दौर

जिस तरह मायूस दिल ,
खामोशी से सब कह रहा था ,
पहली दफा सी मोहब्बत से ,
आज फिर ये दिल गुजर रहा था ।

दर्द लेकर किसी गैर का ,
किसी अपने को सता रहा था ,
वफा के बदले मैं उससे ,
बेवफाई किए जा रहा था ।

खुशियों का वादा कर के ,
हर रोज़ उसे रुलाता हूं ,
पागल हूं शायद मैं ,
जो प्यार नहीं समझ पाता हूं ।

दर्द भरे जीवन में उसके ,
मरहम बन कर आया था ,
पर कहां उसके जख्मों को ,
मेरा इश्क भर पाया था ।

ख़्वाब सजा कर वो मेरे ,
दुनिया जिसे बताती हैं ,
हर रोज़ किसी किस्से से ,
खुद को उलझाती हैं ।

ना मैं रुका ना वो रुकी ,
फिर भी रुकने का डर सताता हैं ,
क्या सच में हर किसी का इश्क़ ,
इतना ही उलझाता हैं ।

मुश्किल है डगर जरूर ,
पर मुमकिन उसे बनाना हैं ,
हर देखते ख़्वाब को ,
सच कर जाना हैं ।

हैं उलझने तो क्या हुआ ,
इश्क़ तुमसे ही निभाएंगे ,
पहली नहीं तो क्या हुआ ,
आखिरी मोहब्बत जिसे बनाएंगे ।।

Wednesday, January 26, 2022

सफ़र


आज सुबह के सवेरे से ,
रात के गुजरे अंधेरे से ,
सब बदलने वाला था ,
देश की खातिर मैं जंग लड़ने वाला था ।

आज जब पहली बार ,
घर की चौखट से ,
मां की रक्षा के लिए कदम बढ़ाए थे ,
जज्बातों में उलझकर थोड़ा लड़खड़ाए थे ।

मां जो अपनी आखों के ,
आंसू छिपा रही थी ,
पापा की फेरती निगाहें ,
हाले दिल सुना रहीं थी ।

डर सा लग रहा था ,
उनको छोड़ जाने पर ,
क्या होगा इनका ,
मेरे नहीं लौट कर आने पर ।

और भी थे अनगिनत सवाल ,
जो मेरे जहन में आ रहे थे ,
हौसला और मुस्कुराहट से ,
जिनको हम छिपा रहे थे ।

जब मां ने चूमा माथा मेरा ,
मानो स्वर्ग में जा चुका था ,
मौजूद हर शख्स वहा ,
मेरे लंबे उम्र की दुआ कर रहा था ।

पता नहीं फिर इन रास्तों पर ,
कभी लौट कर आऊंगा क्या ,
मां के गोद में फिर कभी ,
सिर रख सो पाऊंगा क्या ?

याद तुम भी आओगी मुझे ,
और तुम्हारी वो बाते ,
चुपके चुपके मिलने वाली ,
वो खूबसूरत रातें ।

अरे पगली ,
तेरा जिक्र इस लिए नहीं किया ,
तू मेरी बहन नहीं ,
तू मेरी जान है ,
कहती है ना ,
हम दोनों दो जींद एक जान है ।

चल पड़ा मैं अनंत सफर में ,
देश का हो जाने के लिए ,
मां के मिट्टी का ,
कर्ज चुकाने के लिए ।।

हमसफ़र

ख़बर जब मेरे मौत की ,
आज मेरे शहर में आयेगी ,
जब लिपट कर मेरे लाश से ,
उनपर वो अपने अश्रु बहाएगी ।

हां छोड़ जा रहा तुमको मैं ,
तुम्हारे इस हाल में ,
जिंदगी के अनगिनत ,
उलझे जंजाल में ।

पर है भरोसा तुम पर  ,
तुम इस दौर से भी निकल जाओगी ,
मुझ जैसे तुम भी ,
देश की खातिर रक्त बहाओगी ।

बहुत हुआ अश्रु का बहना ,
अब और इसे मत बहाना ,
शान से लेकर तिरंगा ,
तुम उसे फहराना ।

जो लगे डर कभी ,
मेरा एहसास तुम्हारे साथ होगा ,
वो बर्दी मात्र नहीं है मेरी ,
मेरी रूह का उसमें एहसास होगा ।

है मुश्किल ये जानता हूं मैं ,
खुद को गुनेहगार मानता हु मै ,
छोड़ गया इस हाल में मैं तुम्हें ,
इसका कसूरवार खुद को मानता हूं मैं ।

था मेरे हिस्से में बस ,
इतना ही तुम्हे दे पाने को ,
देश के खातिर रक्त बहाने ,
और तुझसे मोहब्बत निभाने को ।

मैं चला अब अपने सफर पर ,
तुम भी अब खड़ी हो जाओ ,
ठीक मुझ जैसे ,
तुम भी देश के लिए रक्त बहावो ।

मांग में सिंदूर नहीं अब तुम्हारे ,
मैं जिसे मिटा बैठा हु ,
देश के लिए जिंदा रहे रूह मेरी ,
इस लिए तुम्हारे रूह में आ बैठा हूं ।

मैं रहूंगा जिंदा तब तक ,
जब तक तुम्हारी जिंदगी है ,
यही तो ख़ूबसूरत हमारी ,
ताउम्र की बंदगी है ।

उठ खड़े हो साथी ,
अभी तुमको लड़ना बाकी है ,
मिटा दो आंखो से अश्रु ,
कुछ रक्त बहना बाकी है ।।

खत

आज मेरे नाम ,
एक ख़त आया था ,
जिसमें तेरा कोई ,
पैगाम आया था  ।

हां बीत गए कुछ महीने ,
या शायद पूरा एक साल ,
भूल गया बताना ,
तुमको अपना हाल ।

हर रोज सुबह उठता हु जब ,
तेरी याद बहुत सताती है ,
चुपके चुपके आंखो की ,
नमी में तू छिप जाती है ।

हर रात सोने से पहले ,
तेरा ख्याल मुझे सताता है ,
बाहों में आ जाओ तुम ,
सोच कर ये दिल सो जाता है ।

कभी खाली पेट जो सोता मैं ,
तुम आकर ख्वाबों में , 
भर पेट मुझे खिलाती हो ,
हर दफा जब भेजे खत में ,
इज़हारे मोहब्बत कर जाती हो ।

हां लगता है दर खोने का तुमको ,
फिर भी नहीं घबराता हु ,
तेरे खत के इंतजार में ,
और जीता चला जाता हूं ।

हर दफा जब पढ़ता उसको ,
आखिरी मान लेता हु ,
मालूम नहीं कल सुबह ,
मेरे हिस्से में है भी की नहीं ,
हर शाम तुझे जी लेता हूं ।

तेरा खत फिर मिला मुझे ,
रक्त से जो भरा हुआ था ,
अल्फाज़ नहीं बस उसमें ,
तेरी तस्वीर से वो खत सजा हुआ था ।

देख कर तेरे खत को ,
एक बूंद तेरे गाल पर ,
मेरी आंखों से जा गिरी ,
बस इतनी सी थी खत में ,
कहानी तेरी मेरी ।।

Friday, January 21, 2022

बर्बाद इश्क़

इश्क़ में तो हूं मैं कई रोज़ से ,
पर कई रोज़ से इश्क़ कहां है ,
दिल धड़कता तो बेशक है मेरा ,
पर दिल की धड़कन कहां है ।

एक ही दिल को कई दिलों से ,
उसके एक सा लगाने पर ,
मैं रोज़ मनाता जिसको ,
हर दफा रूठ जाने पर ।

कितना मज़ा मुझे सताने में ,
ए जिंदगी तुझे आ रहा हैं ,
इश्क़ मेरा जब छोड़ कर ,
किसी और की बाहों में जा रहा है ।

मुक्कमल मेरी हर ख्वाइश हो रही ,
इश्क़ में बर्बाद होने की ,
हर दफा उसके हर झूठ के बाद ,
खुद को आंसुओ से भिगोने की ।

दर्द मैंने भी कम दिया क्या इश्क़ में ,
जो वक्त सब दोहरा रहा हैं ,
कह कर मोहब्बत मुझसे सच्ची ,
किसी और को महबूब वो बता रहा है ।

इश्क़ ना हो तो बेहतर है ,
इश्क़ में बर्बाद होने से ,
किसी गैर को अपना कह कर ,
उसकी बाहों में सोने से ।

इश्क़ तेरा ये रंग भी ,
आज मैंने देख लिया ,
अंजाने में ही सही ,
"सुनो जान" मैंने सब देख लिया ।।

झलक

आज लगा जैसे कोई ,
मेरी दुआ कबूल हो गई ,
या फिर अंजाने में उससे ,
ये अधूरी भूल हो गई ।

देख लिया उस शख्स को ,
जिसकी निगाहें ही देख पाते थे ,
मालूम नहीं रूह पढ़ने वालों से ,
वो चेहरा क्यों छिपाते थे ।

कितना सुकून और सादगी आंखो में ,
चेहरे पर क्या खूब नूर था ,
यकीनन वो किसी खुशनसीब का ,
मानो शायद कोहिनूर था ।

थम गई आंखे मेरी ,
और बस उसे निहारने लगा ,
चंद पल में खो ना दू दीदार ,
आंखो से दिल में तस्वीर उतारने लगा ।

अधूरे इश्क़ सा अधूरा दीदार भी ,
क्या खूब हमें सिखाता हैं ,
हर रोज़ उसके पूरी झलक के इंतजार में ,
अधूरी तस्वीर को ही वो पूरा बताता हैं ।

गर कभी निगाहों ने उसे पूरा देखा लिया ,
तो दिल को कैसे मैं मनाऊंगा ,
गालों पर डिंपल और तिल से ,
कैसे अपनी नज़रे हटाऊंगा ।

खैर दीदार तेरा अधूरा ही ,
अब मुझे बेहतर लगने लगा है ,
जबसे धड़कनों का शोर ,
तेरे अधूरे दीदार से बढ़ने लगा है ।।

Wednesday, January 19, 2022

बाली

देख कर निगाहों में उसके ,
बस हम देखते रह जाते हैं ,
भला क्या ही देखे और ,
जब झुमको पे रुक जाते हैं ।

यकीनन बाली भी झुमके सी ,
उन्हें खूबसूरत बना रही होगी ,
सज कर कानों पे जो ,
अनगिनत दिलों को जला रही होगी ।

शांत , शालीन और सुंदर ,
श्रृंगार में और भला क्या होता हैं ,
बिना किसी हलचल के भी ,
जिसकी मौजूदगी से शोर होता है ।

बाली की खामोशी ,
क्या खूब शोर मचाती हैं ,
बिना हवा के झोंको के भी ,
दिल में बस जाती हैं ।

बस चुकी दिल में तस्वीर जिसकी ,
भला कैसे उसकी खूबसूरती नकारू ,
कोहिनूर कहूं उसे मैं ,
या फिर चांद कह कर पुकारू ।

हम भला इतने खुशनसीब कहां ,
जो वो कभी हमसे भी गुजर कर जायेंगे ,
कुछ पल आईने में निहारने के बाद ,
हमारी निगाहों के सामने ठहर जायेंगे ।।

आखिरी टुकड़ा

तेरे जाने के बाद मुझे ,
तेरा एक जुठा तौफा मिला है ,
वो आखिरी टुकड़ा पड़ा हैं पास मेरे ,
जो तूने मेरे नाम करा है ।

लबों पर बसा कर इसको ,
दिल में उतार ले जाऊ ,
या समझ कर जुठा किसी गैर का ,
कूड़े में फेक आऊं ।

बड़े ही कश्मकश से गुजर रहा ,
आज मेरा ये दिल हैं ,
क्या सच में ये टुकड़ा ही ,
इस रिश्ते की आखिरी मंजिल है ।

मैं फेक इसको भला ,
क्यों किसी गैर को होठों से लगाने दू ,
जुठा भला उसका कैसे ,
किसी और को अब मैं खाने दूं। 

अमृत सा लगने वाला हर जुठा ,
आज जहर सा क्यों लग रहा हैं ,
मेरे हिस्से का जुठा ,
अब किसी और के ,
होठों से क्यों गुजर रहा है ।

छोड़ कर तूने मुझे ,
एक पल में लावारिश बना दिया ,
खा कर तेरा आखिरी टुकड़ा ,
मैंने खुद को मिटा दिया ।

क्या सच में आखिरी निशानी ,
आपको इतना सताती हैं ,
जिंदगी सी लगने वाली मोहब्बत ,
मौत बन जाती है ।

आखिरी टुकड़ा तेरा आज भी ,
थोड़ा छूटा पड़ा हैं ,
तेरे मरने के इंतजार में ,
वो जुठा पड़ा हैं ।

गर थी मोहबब्त मुझसे थोड़ी ,
तो आखिरी टुकड़े को होठों से लगा जाना ,
अमृत से बन चुके जहर को ,
तुम भी चख आना ।

जिंदगी का तो पता नहीं ,
पर मैं मिलने जरूर आऊंगी ,
आखिरी टुकड़े का वास्ता ,
मौत के बाद ही सही ,
बस तेरी हो जाऊंगी ।।

आखिरी कोशिश

तेरे जाने के बाद से ,
सब कुछ मैं भूलने लगी हूं ,
बीता हुआ कल मान कर तुझे ,
आज में जीने लगी हूं ।

हर याद जुड़ी जो तूझसे ,
अब धुंधली होने लगी हैं ,
चल होने को हैं सवेरा ,
जिंदगी मुझसे कहने लगी है ।

एक टुकड़ा तेरे हिस्से का ,
आज भी मैंने बचा कर रखा है ,
आखिर टुकड़ा मान कर जिसे ,
दुनिया से छिपा रखा है ।

ना हुई ख्वाइश मेरी पूरी ,
ना रहें हम ताउम्र साथ में ,
सब कुछ तो खो दिया मैंने ,
तुझे पाने के फ़िराक में ।

मेरे हर अंत की शुरुआत तुमसे ,
तो भला ये किसी और के हिस्से ,
कैसे कभी जा पायेगा ,
लौटने पर तेरे आने पर ,
बस तेरे ही हिस्से आयेगा ।

मेरे लिए ये आखिरी टुकड़ा नहीं ,
मेरी आखिरी कोशिश होगी ,
मुक्कमल ना हो सकी ख्वाइश ,
शायद इस आखिरी टुकड़े से पूरी होगी ।।

Saturday, January 15, 2022

गैर

मैंने बदल कर नज़रिया इश्क़ का ,
अपने इश्क़ को बदनाम किया हैं ,
तोड़ कर दिल जबसे किसी अपने का ,
किसी गैर के नाम किया है ।

ना पता मेरे मंजिल का मुझे ,
ना ठहरने का कोई ठिकाना हैं ,
मालूम नहीं क्यों छोड़ आए वो गलियां ,
जिनमें गुजरा एक जमाना है ।

सब कुछ तो ठीक था कल तक ,
आज ना जाने कैसे सब बर्बाद हो गया ,
सारे वादे कसमें तोड़ कर ,
चंद लम्हों में उससे मैं आज़ाद हो गया ।

जिंदगी सी लगने वाली मोहबब्त ,
मौत से बत्तर अब क्यों लग रही हैं ,
खामोश तो पहले से थे हम दोनों ,
फिर इतना शोर जिंदगी क्यों कर रही है ।

मैं तड़प रहा हर दिन हर रात ,
वो दिन आखिर आया ही क्यों था ,
पहली और आखिरी दफा मैंने ,
बेवजह उसे इतना सताया क्यों था ।

क्या सच में इश्क़ मुकम्मल नहीं होता ,
सच्चा इश्क़ निभाने पर ,
छोड़ कर चले जाते हैं अपने ,
किसी गैर के आ जाने पर ।

खैर ,

इश्क़ में हर रोज़ निकलते हैं ,
कई मुसाफ़िर किसी की तलाश में ,
कुछ हो जाते दफ्न कब्र में ,
कुछ रह जाते जिंदा किसी लाश में ।।

Sunday, January 9, 2022

इश्क़ का दरिया

इश्क़ में डूब कर हमने ,
बहुत मोहब्बत कर ली है ,
अब तैर कर इस समंदर में ,
इसके दरिया पे जाना है ।

बहुत सहा है इस दिल ने ,
कई बार खुद को मनाया हैं ,
सीख कर तैरना जिसने खुद से ,
खुद को डूबने से बचाया हैं। 

लहरों के ज़ख्म आज भी ,
दिल का दर्द बढ़ाते हैं ,
दरिया के आने के इंतजार में ,
फिर डूबने लग जाते हैं ।

इश्क़ के इस समंदर में ,
दरिया महज एक ख्वाब हैं ,
शायद दिल को ही नहीं मंजूरी ,
ख़त्म हो ये सिलसिला आज है ।

और भी बहुत से सीप ,
अब भी मोतियां बचाए बैठे हैं ,
चीर कर सीना जिनका ,
जिनसे हम मोतिया चुराते रहते हैं ।

डूब लो समंदर में थोड़ा और ,
क्योंकि तैरना तो आता हैं ,
क्या करे इस कमबख्त दिल का ,
हर रोज़ जिसे कोई नया भा जाता है ।

क्या इश्क़ नहीं

ऐसा नहीं की इश्क़ नहीं मुझे तुमसे ,
पर अब इश्क़ करना ही नहीं हैं ,
एक और दफा तड़प तड़प कर ,
मुझे जिंदा रहते मरना ही नहीं है ।

आज तक इस दिल ने ,
बस ठोकर ही तो खाया है ,
बहुत जुल्म और जिल्लत सह कर ,
ये दिल संभल पाया है ।

इश्क़ के सौदागर कई गुजरे ,
तुमसे दिल लगाने से पहले ,
झूठा और फरेब इश्क़ ,
तुम्हारे जताने से पहले ।

मैं बिखर कर टुकड़ों में ,
जज़्बात दुनिया से छिपाता हूं ,
तेरे दिए हर दाग को ,
हर रोज़ मिटाता हूं ।

पर आंखे मेरी बड़ी जालिम हैं ,
वो कुछ छिपा नहीं पातीं ,
देख कर हर खूबसूरत इश्क़ को ,
बस बहने लग जाती ।

लगता है डर उसे ,
फिर से टूट जाने का ,
इश्क़ में सब लूटा कर ,
लावारिश हो जाने का ।

अब और नहीं इश्क़ करना ,
किसी गैर को अपना कहना ,
वक्त मेरे ज़ख्म भर जाएगा ,
जिस रोज़ मुझ जैसा कोई ,
मेरी जिंदगी में इश्क़ बन कर आयेगा ।।

Friday, January 7, 2022

गैर इश्क़

मैंने इश्क़ में हर हद को ,
सिर्फ़ तेरे लिए पार किया ,
तूने क्यों नहीं मुझसे ,
मुझ जैसा प्यार किया ।

मैं तेरे हर इनकार को ,
इज़हार मान लेती थी ,
तेरी हर जुल्म को ,
मरहम का नाम देती थी ।

ना चढ़ा था मुझे किसी का,
आज तक फितूर हैं ,
बस मेरे हिस्से तेरी खुमारी ,
बस इतना ही मेरा कसूर है ।

फिर भी तुझको ही ,
मैंने अपना संसार माना था ,
पर तेरे दिल ने हमेशा मुझे ,
कोई गैर जाना था ।

गैर इश्क़ में तूने कर के ,
मुझे इश्क़ करना सीखा दिया ,
बड़े ही नाज़ुक से दिल को ,
तूने पत्थर का बना दिया ।

बर्बाद नहीं इश्क़ में कोई ,
सब आबाद होने आते हैं ,
कुछ अपनों से इश्क़ निभाते ,
कुछ गैर के हो जाते हैं ।।

Tuesday, January 4, 2022

तुम एक ख़्वाब

जिंदगी से मांग मांग कर भीख ,
अब मैं थकने लगा हूं ,
किसी अपने की तलाश में ,
किसी गैर को "तुम" कहने लगा हूं ।

तुम हो कहां भला ,
क्यों इतना वक्त लगा रही हो ,
खूबसूरत सजाए सपनो को ,
क्यों किसी और के हिस्से करा रही हो ।

हर गम और हर खुशी ,
का तुम मेरे आधार बनो ,
आ जाओ बस अब जिंदगी में ,
और मेरा आखिरी इजहार बनो ।

मुश्किल बहुत हैं सफर मेरा ,
डगर भी डगमगाया हैं ,
बहुत ने छोड़ा साथ मेरा ,
पर वो तो मेरा साया हैं ।

मेरे हर ख़्वाब को जो ,
सच में बदल कर दिखायेगा ,
मुझसे भी बेहतर इश्क़ ,
जो मुझसे निभायेगा ।

एक ना एक रोज़ तो ,
अपने श्रृंगार में वो भी ,
माथे पर बिंदी सजाएगी ,
मांग में मेरे नाम का सिंदूर लगाएगी ।

बस अब इंतजार मेरा ,
मानो बस ख़त्म होने को है ,
एक और रात के ख़्वाब में ,
जो अब खोने को है ।

तुम हो जहा भी ,
बस लौट कर अब आ जाओ ,
ख़त्म करो सिलसिला ख़्वाब का ,
और मेरा सच बन जाओ ।।