हमें हर रोज़ सताते हैं,
मरहम सोच कर जब वो ,
घाव को खरोचने लग जाते हैं।
उम्मीद लगा कर बैठे हम ,
जिसे हर रोज़ वो तोड़ जाते हैं ,
वादा आखिरी मंजिल का कर के ,
बीच रास्ते कहीं छोड़ जाते हैं ।
सिलसिला इश्क़ में बेवफाई का ,
अब बड़ा ही आम है ,
सुबह को है जो आप की जिंदगी ,
शाम में उससे जिंदगी अनजान हैं ।
इश्क़ में अकेला होना बेहतर है ,
तन्हां होने से ,
इश्क़ में ना होना बेहतर है ,
हर रोज़ रोने से ।
आप भी तो इश्क़ में हैं ,
या इश्क़ तलाश रहे हैं ,
आप का इश्क़ कैसा था ,
जिसके आप पास रहे हैं ।