Thursday, May 26, 2022

पहेली का दरवाज़ा

एक रिश्ता है अल्फाज़ का ,
उलझी जिसकी पहेली हैं,
दुनिया से बिलकुल परे ,
वो किसी खिड़की पे खड़ी अकेली है ।

बारिश की हर बूंद जिसके ,
मन को भीगा रही हैं,
लौट कर फिर से वो ,
अल्फाज़ में उलझी जा रही है ।

कल्पना के इस सफ़र में ,
गर कोई उसका साथी हैं,
महज मौजूदगी ही जिनकी ,
दोनों के लिए काफी है ।

अल्फाज़ के लिए वो पहेली ,
पहेली के लिए उसके अल्फाज़ हैं ,
क्या खूब छिपा लेते दोनों ,
एक दूसरे के जज़्बात हैं ।

है बहुत कुछ आज भी अधूरा ,
वक्त जो पूरा कर जाएगा ,
खोल कर दरवाज़ा जब कभी ,
वो दिल में उतर जाएगा ।

खोल कर दरवाजा ,
पहेली आज पहले ही खड़ी हैं ,
ना कोई हलचल ना हड़बड़ी ,
वो बिल्कुल खामोश पड़ी है ।।

Wednesday, May 25, 2022

अंधेरा इश्क़

इश्क़ निभाने रात में ,
वो सिर्फ़ अंधेरी रातों में आता है ,
दिन के उजाले से पहले ही ,
कहीं और गुम हो जाता है ।

ना लगाता दिल किसी से ,
ना दिल में बस पाता हैं,
सौदा खूबसूरत रातों का कर के ,
सौदागर बन जाता है ।

अंधेरी रातों में अक्सर ,
ये इश्क़ करने जब आता है ,
इश्क़ का तो पता नहीं ,
पर तन्हाई मिटाता हैं ।

भूल कर अपनी मोहब्बत ,
कैसे हर कोई इसका हो जाता हैं ,
तन्हा रातों में जब कभी ,
ये दरवाज़े पे आ जाता है ।

एक रात का इश्क़,
आज कल हर रात हो रहा हैं,
बन कर महबूब किसी गैर का ,
किसी गैर की बांहों में सो रहा है ।

जिस्मानी इश्क़ में ,
रूह ना जाने कहां खो गई ,
आज रात इस डगर ,
कल कहीं और सो गई ।।

बेवफ़ा को वफ़ा

मेरे इश्क की परिभाषा बदल कर ,
तुमने इश्क़ करना सीखा दिया ,
हर मुश्किल को पार कर के ,
तुमने मुझे मुझसे मिलवा दिया ।

सह कर मेरे हर दर्द को ,
मुझे चोट से बचाती रही ,
अधूरे इश्क़ को मेरे ,
दुनिया को पूरा बताती रही ।

तुमसे करके वादा वफा का ,
बेवफाई मैं निभाता रहा ,
दिल में बसी हो तुम कह कर ,
आंखे किसी गैर से मिलाता रहा ।

परवाह नहीं की तुमने कभी ,
तुमको इस इश्क़ में क्या मिला ,
तुमने तो सब कुछ लुटा दिया ,
क्या अच्छा और क्या बुरा ।

तुम बन कर प्रेरणा मेरी ,
मुझे इश्क़ सिखाने लगी हो ,
मेरी हर उलझन को ,
एक पल में सुलझाने लगी हो ।

खैर ,

इश्क़ में चंद ही खुशनसीब मुझ जैसे ,
बेवफाई के बाद भी वफा पाते हैं ,
वरना बहुत है महफ़िल में ,
जो बर्बाद हो जाते हैं ।।

फरेब इश्क

आज फिर मिला मैं उससे ,
बिछड़ने के बाद ,
सब कुछ हो उठा जिंदा ,
उसके मिलने के साथ ।

मिट गया था हर ज़ख्म,
और अब वो मुस्कुरा रही थी ,
किसी गैर के बाहों को ,
अपना घर बता रही थी ।

इश्क़ में हो कर भी किसी के ,
वो इश्क़ तलाशती रहती थी ,
ये अदा आज भी उसकी ,
हुबहु पहले जैसी थी ।

है खड़ा वो पास उसके ,
मुझ जैसे बर्बाद होने को ,
चंद रोज के बेवफाई के बाद ,
एक रोज खाक होने को ।

मैं आज भी तन्हा ,
और बेकार पड़ा हूं ,
इश्क़ में बर्बाद हो कर ,
किसी चौराहे पे खड़ा हूं ।

मालूम नहीं मेरे हिस्से ,
कब वो गैर आयेगा ,
जो इस जिंदा लाश से ,
शिद्दत से इश्क़ निभायेगा ।

चंद खुशनसीब ही इश्क में,
हर रोज़ क़ातिल बन पाते हैं ,
साँसे छीन ,ज़िंदा लाश की
किसी मुर्दे से दिल लगाते हैं ।।

Thursday, May 5, 2022

हमारी जिंदगी

कुछ टूट रहे पत्ते ऊपर से ,
कुछ नीचे से पेड़ उग रहें  ,
अपने ही अरमानों को ,
हम अपने फैसलों से कुचल रहें ।

हां जिंदगी भी गुलजार हैं ,
और जब तक जिंदा है हम ,
पर खुद के फैसलों से ,
थोड़े शर्मिंदा हैं हम ।

क्या करें इस जिंदगी का ,
जो हर पल में बदल जाती हैं ,
एक पल करती बेहद मोहबब्त ,
अगले ही पल बेवफा बन जाती है ।

हर सुबह के बाद शाम ,
और हर खुशी के बाद गम ,
हर रोज़ बार बार मर कर भी ,
देखो अब तक जिंदा हैं हम ।

पर हम जैसा मुसाफ़िर भला ,
कभी कहां ठहर पाता हैं ,
उजाड़ कर बागीचा अपना ,
किसी और का गुलजार कर जाता है ।

खुशकिस्मत हम जैसे ,
और भी इस महफिल में बैठे हैं,
कुछ हो रहें बर्बाद खुद से ,
कुछ "आबाद" हम जैसे हैं ।।