Friday, March 27, 2020

फ़रेबी

जो ये फ़रेब करता दिल ,
जा एक रोज़ ,
फ़रेबी दिल से मिला था ,
हो रही फ़रमाइशों के बीच ,
वो मेरी पसंद बन चुका था ।

धड़कने को धड़कन ,
धड़क भी जाता ,
मेरा हो चुका दिल ,
मुझसे मिलने को भी आता ।

पर ये एहसास ख़्वाब ही रह गये ,
ना जाने क्यूँ वो हमसे दूर हो गये ,
ना फ़रेब था मेरी इरादो में ,
ना ही किये किन्हीं वादों मे ।

कुछ तो था दरमियाँ दिलों के ,
वक़्त जिसे थामे खड़ा था ,
लूटा चुका अपनी ज़िंदगी मुझपर जो ,
वो बेख़बर किसी और के ख़्यालों मे पड़ा था ।

सपना था जो टूट चुका ,
मेरा माही मुझसे रूठ चुका ,
दिल फिर लगाया होगा उनसे उसने ,
फ़रेब समझ छोड़ दिया होगा जिसने ।

ये जंग है दिल की ,
जिसमे हार कर भी जीत जाते है ,
जीत कर भी अक्सर ,
दिलवाले हार जाते है ।

ये फ़रेबी दिल ,
फिर निकल पड़ा है ,
लूटने को दिल धड़कनो से ,
तैयार पड़ा है ।

Saturday, March 14, 2020

ख़ुशबू


मोहब्बत दिल के धड़कनो से ,
होती है मालूम सिर्फ़ ,
ऐसा बिलकुल नहीं ,
ख़ुशबू तेरी , मेरी साँसो में ,
धड़कनो को धड़का रही ।

जो गुज़री तो क़रीब से मेरे ,
ना तेरा दीदार हुआ ,
ना ही नज़रें दो चार हो गई ,
फिर भी दिल तू धड़का गई ,
तेरी ख़ुशबू साँसो में बसने को आ गई ।

मोहब्बत देगी दस्तक फिरसे ,
कुछ इस अन्दाज़ में ,
मालूम नहीं था धड़केगा दिल ,
ख़ातिर , ख़ुशबू लपेटे लिबाज में ।

क्यूँकि अब इस झट पट वाली मोहब्बत को ,
कोई एक नाम चाहिये था ,
निगाहों में बसाने को तस्वीर उसकी ,
उसकी निगाहों से पैग़ाम चाहिये था ।

उस भीड़ में जितना वो ,
मुझसे दूर जा रही थी ,
ख़ुशबू उसकी मुझे ,
उतना ही क़रीब ला रही थी ।

आख़िर निगाहों ने कोशिश कर ,
दिल को और धड़का दिया ,
जब निगाहों ने उसकी निगाहों में ,
ख़ुद को उलझा दिया ।

उसकी ख़ुशबू और वो ख़ूबसूरत आँखें ,
हम अपना सब लूटा बैठे थे ,
एक दफ़ा फिर अजनबी से ,
दिल टूटने को लगा बैठे थे ।

ग़लतफ़हमी थी मेरी ,
की दिल इस बार भी टूट जायेगा ,
था नहीं मालूम ,
ख़ुशबू रूह में बस कर ,
ताउम्र वो मेरा हो जायेगा ।

तेरी ख़ुशबू से अब होती हर सुबह ,
और शाम है ,
फेरती उँगलियाँ तेरी सर पर मेरे ,
देती आराम है ।

तेरी ख़ुशबू .. !!

Sunday, March 1, 2020

बेक़रार

अब .. जाना तो था मुझे  ,
कुछ यादें छोड़ कर ,
चंद लम्हों की वो ,
मुलाक़ातें छोड़ कर ।

जुगनुओं की ख़ातिर ,
सूरज ढलने को खड़ा था ,
सर्द होती हवाओं ने ,
जब उसकी ज़ुल्फ़ों को छुआ था ।

हरकतों से अंजान इशारों के ,
मिलते बिछड़ते निगाहो के ,
अब कुछ बात होने ही लगी थी ,
पर क्या करते जब जाने की हड़बड़ी थी ।

घटते वक़्त के साथ ,
हम कुछ क़रीब आ रहे थे ,
अजनबी एहसास छिपा कर ,
कुछ बता रहे थे ।

कुछ तो था दरमियाँ हमारे ,
जीना था बस इन यादों के सहारे ,
बिछड़ने को अब हम तैयार थे ,
समझ बैठे थे .. वक़्त के इशारे को ..इजहार थे ।

ख़त्म हो गया था सिलसिला हमारा ,
पर था नहीं दिल को जो गवारा ,
कुछ तो बाक़ी रह गया था ,
शायद दिल, निगाहों से कुछ कह गया था ।

पलट कर बस आख़िरी बार ,
देखने को उसे जैसे ही हम मुड़े थे ,
मानो उनकी भी निगाहे मिलने को ,
बेक़रार पड़े थे ।

ख़त्म नहीं ये शुरुआत है ,
कुछ दरमियाँ दिलों के ख़ास है ,
दूर हो कर भी ,
जो मेरे पास है ।।