Monday, July 9, 2012

एहसास

तुम मुझसे दूर हो बहुत ,
पर लगता ऐसा है जैसे दिल के बिलकुल पास हो ,
मेरे हर सोच , हर कदम , हर मुस्कान मे ,
लगता है जैसे बसा तुम्हारा एहसास हो  .

वक़्त बे वक़्त कभी अगर तुम्हारा एहसास ,
कुछ पल के लिए इस दिल से दूर जाता है ,
ना चाह कर भी ,
हर तरफ सन्नाटा सा छा जाता है .

पहले से अब कुछ बदल गया हु मै ,
पहले से अब कुछ समहल गया हु मै ,
तेरे एहसास का ही असर है ये ,
लम्हों को लाब्जो मे बदलने लग गया हु मै .

तेरे होंटो की हँसी ,
आंखो की चमक ,
चहरे का तेज़ ,
बातो की कला ,
दिल का साफ़ होना ,
भा गया है मुझे कुछ इस कदर ,
की चाह कर भी दूर तुझसे ,
नहीं रह सकता ऐ हमसफ़र .

जिस दुनिया मे अभी हो तुम ,
उसमे ही अपना संसार बसाना ,
बस जाते जाते हमसे कभी ,
संजीवनी रूपी एहसास ना ले जाना .

भूल से भी भूल ना जाना तुम ,
की हम तुम्हे कभी भूल पायेंगे ,
क्या हुआ इस बार बसर कर लो ,
किसी अपने के संग ज़िन्दगी ,
अगले जनम  पूरी ज़िन्दगी संग तेरे बिताएंगे .

एक गुजारिश है तुमसे ,
जिस ज़िन्दगी के संग अभी ज़िन्दगी है तुम्हारी ,
उसे ज़िन्दगी भर निभाना ,
हमारा क्या है , हम तो मुसाफिर है ,
आज यहाँ शायद कल कही और हो  ठिकाना ,
अच्छा सुनो .............. ,
भूलना पडे अगर हमे तो भूल जाना .

--------- शशांक विक्रम सिंह

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