Wednesday, March 20, 2024

रकीब की बद्दुआ

सिलसिला इश्क़ का तुमसे,
जिस रोज़ से शुरू हुआ,
मानो लग गई हो उसे,
किसी रकीब की बद्दुआ।

वो हर रोज़ कागज़ के पन्नों पर,
जब भी जज़्बात सजोने आता है,
बिखरे हुए शब्दों को देख कर,
नम आंखों से बस लिखता चला जाता है ।

ना मिलती इजाज़त ,
तुमसे खुल कर दिल लगाने की,
ना ही कभी शिद्दत से ,
तुमको कहानियां सुनाने की ।

फिर भी ये मुसाफ़िर,
हर रोज़ तुमसे ही दिल लगाता है,
महफ़िल से गैर मौजूदगी में भी,
सिर्फ तुम्हें ही मौजूद बताता है ।

इश्क़ के किस्सों में,
अब तुम्हारा जिक्र बढ़ने लगा हैं,
मुसाफ़िर भी शायद इस दफा,
ठहर कर इश्क़ में पड़ने लगा है ।

पर क्या तुम लौट कर,
कभी महफ़िल में आओगी,
या फिर हर बार की तरह,
बस रकीब से इश्क़ निभाओगी ।।

Saturday, February 24, 2024

फरेबी इश्क़

क्यों झूठे ख्वाबों से तुम,
इश्क़ की बुनियाद बिछाते हो,
आहिस्ता आहिस्ता मरहम बन कर,
झख्मों को नासूर बनाते हो ।

क्या इल्म नहीं तुमको,
उसकी बर्बादी के किस्सों का,
सब कुछ लुट चुका हो,
जिसके हर हिस्से का ।

बेखबर आज भी मनसूबों से,
वो तुमको अपना बता रही हैं,
ज़हर को समझ कर अमृत,
हर रोज़ पीएं जा रही है ।

बिखरने की आदत हो जिसे,
भला उसे जोड़ कर क्या मिलेगा,
बेहतर की ख्वाइश में,
आख़िर में बत्तर ही मिलेगा ।

नक़ाब उतार कर ख्वाबों का,
उसको सच से मिल आने दो,
जीते जीते मरी हैं कई दफा,
इस दफा मर कर जी जाने दो ।

मनसूबे जब मालूम नहीं ,
तो मंज़िल का पता कैसे बताओगे ,
बन कर आइना तुम भी,
सिर्फ़ दाग ही देख पाओगे ।

जज़्बात और हालात,
सब अभी काफ़ी विपरीत हैं,
हिस्से उसके तुम आज,
कल किसी और की रीत है ।

अकेलापन देखो अब उसका,
उसे कितना सता रहा है,
हर एक अजनबी में उसको,
अपना आशिक़ नज़र आ रहा है ।।

Friday, January 5, 2024

तुम और समंदर


अजनबी बन कर मिला था वो,
और तुमने उसे अपना बना लिया,
प्यास बुझाने को उसकी,
तुमने कुएं को समंदर बना दिया ।

अधूरा रहा सब कुछ,
समंदर के किनारे सा,
छोड़ गया वो भी तुम्हें,
किसी मछुआरे सा ।

हर बार तुम रेत बन कर,
क्यों खुद की तस्वीर बनाती हों,
जान कर भी फितरत लहरों की,
क्यों लहरों से गुजरने को आती हो।

मिटा कर वजूद कई दफा,
लहरों ने तुम्हें सताया हैं,
शायद ही आज तक,
कोई तुम्हें बचाने आया हैं।

किनारे पर पड़े रेत सा,
तुम खुद को क्यों मिटा रही हो,
बन कर शौख किसी और का,
क्यों इश्क़ जता रही हो ।

खोया है तुमने बहुत कुछ,
समुंदर के रेत की तरह,
पर अब और नहीं खोना हैं,
गैरमौजूदगी से तुम्हारे .. समंदर को रोना है ।

वैसे ,

समंदर से इश्क़ तुम्हें,
और भी गहरा होने लगेगा,
जिस रोज़ बाहों में भर कर,
वो तुम्हें किनारे पे छूएगा।

क्योंकि तब अंदाज इश्क़ का,
बेहद ही खास होगा,
उस पल समंदर अंदर और बाहर,
दोनों ही तेरे साथ होगा ।

छोड़ कर तन्हां नहीं,
सीपियों को साथ लायेगा,
हर दफा जब भी ,
तुझसे वो गुजर कर जाएगा ।।

सर्द हवाएं

सर्द हवाओं के झोका में,
ये कैसी गर्माहट है,
फिज़ा के बदले अंदाज़ से,
देखो कितनी राहत हैं।

चाय की हर चुस्की में,
लबों से जज़्बात पिघलने लगें,
इश्क़ में आज अरसों बाद,
चाय सा वो जलने लगें ।

गुजरने को जब वक्त गुजारा,
मानो दिल उस पर हार गए,
पिघलते जज्बातों के बाद,
भूल वो अपना ही संसार गए।

वो निहारता ही रहा राह,
उसके आने के इंतजार में,
पड़ा रहा जिंदा लाश सा,
बर्फीले पहाड़ में ।

गुजर कर सर्द हवाओं से,
जब वो कहीं और घर बसाने लगें,
मौजूद फिज़ा में खुशबू उसकी,
और भी उलझाने लगें।

आहिस्ता आहिस्ता तन ,
और मन भी सर्द पड़ने लगें,
छोड़ कर जिस्म अपना,
वो किसी और की जाना बनने लगें।

लेकिन 

इश्क़ के बर्फीले तूफान में,
शायद हम जैसे बहुत ही ख़ास होंगे,
हर रोज़ चाय की चुस्कियों के संग,
जो तूफान के बाद भी साथ होंगे ।

बर्फीले मौसम से इश्क़,
तुमने मुझे सिखा दिया,
सर्द पड़े इस दिल में,
जबसे अपना घर बसा लिया ।।

Wednesday, January 3, 2024

तेरी झलक

गुजरते लम्हों के कई किस्से,
जब उससे गुजर रहे थे,
खामोश लबों से कम,
आंखो से वो सब कह रहे थे।

थम गया था पल उसका,
चंद लम्हों की ख्वाइश में,
अल्फाज़ की बारिश,
और खुशियों की आजमाइश में।

दर्द जो दिल में था,
अब आखों पर आने लगा,
आहिस्ता आहिस्ता झूठी मुस्कान,
पलकों पर छिपाने लगा ।

तूफान से उस रोज़ ,
कई अरसे के बाद गुजरा था,
शिद्दत से जब वो अजनबी,
किसी मुसाफ़िर से मिल रहा था।

दर्द में बहुत रह लिया दिल उसका,
अब शिद्दत से मुस्कुराने लगा,
बन कर अजनबी ही सही,
उन लम्हों में वो खो जाने लगा।

उस रात के किस्से,
जो उसके हिस्से होने लगे,
अजनबी के संग उन लम्हों को,
वो खुल कर वो जीने लगे ।

सुनो,

कह दो सब कुछ निगाहों से,
जो दिल में छिपा कर रखा है,
झूठी मुस्कान से चेहरे पर,
मुखौटा जो लगा रखा है ।

बन कर अजनबी "मुसाफ़िर" का,
चंद लम्हें जी आओ,
एक और दफा शिद्दत से,
खुल कर मुस्कराओ।

क्योंकि जचता है कोई नूर तुम पर ,
तो वो तुम्हारी मुस्कान हैं,
आंखो का काजल और .. 


कुछ नहीं.. बस इतना सा पैगाम है !