Friday, December 31, 2021

तलाश

कोई तो होगा मुझ जैसा ,
जो मुझसे भी इश्क़ निभायेगा ,
हद से बेहद होते मेरे मन को ,
हर बार समझ पायेगा ।

मेरी हर फिक्र में जिसको ,
सिर्फ़ मोहब्बत नज़र आयेगी ,
सवालों के नहीं ,
एहसासों के फूल बरसाएगी ।

हर सुबह जिसका दीदार ,
मेरे आंख खुलने से पहले होगा ,
बंद आंखो में जिसके ,
सिर्फ मेरा जिक्र रहता होगा ।

मेरे उलझन के बढ़ जाने पर ,
हर दफा सुलझाएगी ,
थाम कर हाथ मेरा ,
हर बार मुझे गले से लगाएगी ।


कल्पना नहीं किसी रोज़ ,
वो मेरा सच बन कर आयेगी ,
मुझ जैसे वो भी मुझसे ,
हुबहु शिद्दत से इश्क निभायेगी ।

इंतजार में तब तक उसके ,
चलो मुसाफ़िर बन जाते हैं ,
हर सुबह पड़ कर इश्क़ में किसी के ,
शाम को किसी और से दिल लगाते हैं ।

सिर्फ़ इश्क़ करना नहीं  ,
मुझे इश्क़ में उसे जीना हैं ,
उसके नहीं आने तक तक जिंदगी में ,
हर गुजरते इश्क़ को खोना हैं ।।

मुसाफिर का सफर

ए जिंदगी जिस सफर पे ,
आज कल तू लेकर चल रही हैं ,
यकीनन कुछ तो खूबसूरत ,
बस होने को है ।

इंतजार हर शख्स में था जिसका ,
वो शायद मिलने को हैं ,
या फिर कोई उस जैसा ,
मिल कर बस बिछड़ने को है ।

जिंदगी ने चंद रोज़ में जो दिखाया ,
वो इतने सालो से क्यों गुम था ,
क्यों कुछ बेहतर की कोशिश में ,
हर कोशिश में कुछ कम था ।

जिंदगी और भी बहुत कुछ ,
अब तुझे दिखाना हैं ,
गर आज नहीं बेहतर तो क्या हुआ ,
कल खूबसूरत बनाना हैं ।

ख़्वाब था कल जो मेरा ,
आज वो सच होने लगा हैं ,
आज के सच को देख कर ,
कल के ख़्वाब सजोने लगा हैं ।

जिंदगी चल इस दफा ,
हम तुझे मुसाफिर बनाते हैं ,
बिना रुके किसी मंजिल पर ,
बस चलते जाते हैं ।

और तुम .. मुबारक हो ,
बेहतर कल की ख्वाइश में ,
आज भूल बैठे हो ,
क्या तुम भी खुद को ,
कोई मुसाफिर माने बैठे हो ।।

Thursday, December 23, 2021

तेरी गलियां

मुसाफ़िर के सफ़र में ,
उसका हमसफ़र उसे मिला था ,
पहली दफा उसकी गलियों से ,
जब वो गुजर रहा था ।

ना कोई ख्वाइश थी मुसाफ़िर की ,
ना वो कोई फरमाइश लेकर आई थी ,
जब दूसरी दफा इन्हीं गलियों में ,
फिरसे वो टकराई थी ।

सिलसिला मुलाकातों का ,
फिर से शुरू हो गया ,
पहली दफा किन्हीं रास्तों पर ,
जाकर मुसाफ़िर ठहर गया ।

ना कोई और रास्ता ,
ना गलियां अब दिखाई देती हैं ,
मुसाफ़िर को ठहर जाने की ,
वो हर रोज़ दुहाई देती हैं ।

इश्क़ भी मुकम्मल हुआ दोनों का ,
गुजरते दौर के साथ ,
मिल गई मंजिल भी उसे ,
उसकी गलियों से गुजरने के बाद ।

आखिर चलते चलते मुसाफ़िर ,
किसी एक रास्ते पर ठहर गया ,
उसकी गलियों से गुजरते गुजरते ,
उसके दिल में उतर गया ।

अब तो उसकी मंजिल भी एक ,
मोहबब्त भी एक हैं ,
क्या फर्क पड़ता गर ,
गली के आगे रास्ते अनेक हैं ।

ठहर गया मुसाफ़िर ,
ख़त्म उसकी तलाश हुई ,
जिस रोज़ इन गलियों में ,
जिंदगी से मुलाकात हुई ।।

Tuesday, December 21, 2021

एक सा इश्क़

चल दिल किसी और तरफ चल ,
दिल लगाने के लिए ,
मत ठहर उस गली और ,
खुद को सताने के लिए ।

बैठे हैं और भी दिल ,
तेरे दिल के इंतजार में ,
निभाने को बेहतर इश्क़ ,
पड़ कर तेरे प्यार में ।

ना कोई फरियाद होगी जहां ,
और ना एक तरफा एहसास होगा ,
हर पल हर लम्हा , 
दोनों का खूबसूरत और खास होगा ।

गम में आंसू भी साथ बहेंगे ,
मिल कर दोनों साथ हसेंगे ,
जी भर कर बाते होंगी ,
अनगिनत मुलाकाते होंगी ।

हर दिन में कुछ नई बात होगी ,
हर रोज़ एक नई शुरुआत होगी ,
हर रोज़ कई नए किस्से होंगे ,
जो दोनों के हिस्से होंगे ।

मिलेगा एक रोज़ तुमसे भी दिल ,
जो तुम जैसा धड़कता होगा ,
दूर जाने पर इश्क़ के ,
जो तुम जैसा तड़पता होगा ।

छोड़ दो उस दिल को ,
जो दिल किसी और को दिए बैठा हैं ,
शायद तुम जैसे वो भी ,
एक तरफा इश्क़ में पागल रहता है ।

Tuesday, December 14, 2021

बेशरम

शाम के इस अधेरे से ,
अब डर लगने लगा हैं ,
ना जाने क्यों आसमां ,
अब बादलों से घिरने लगा हैं ।

हर सच और विश्वास ,
एक झूठ से बिखरने लगे हैं ,
हमें छोड़ कर जबसे ,
वो किसी गैर से मिलने लगे हैं ।

ना वास्ता मेरी मोहबब्त का ,
ना मेरे शिद्दत भरे एहसास का ,
ना ही किसी रकीब की खातिर ,
टूटे किसी अटूट विश्वास का ।

बना कर रखा था जिसको ,
मैंने अपना आखिरी आस ,
देखो मज़ाक जिंदगी का ,
उसे आ गया कोई और रास ।

छोड़ कर चला गया मुसाफ़िर ,
अंजना किसी राहों में ,
जा कर होगा पड़ा ,
किसी और की बाहों में ।

मैं फिर भी खोल कर बाहें ,
बेशर्मी अपनी दिखाऊंगा ,
रकीब का जूठा ,
अपने होठों से लगाऊंगा ।।

शिकायत

ए इश्क़ मुझसे तू ,
जरा किसी रोज़ ,
फुर्सत से मिलने आना ,
छोड़ कर सारा बहाना ।

बैठ कर उस रोज़ ,
हम दोनों बातें करेंगे ,
एक दूसरी के खिलाफ ,
मिल कर लिखेंगे ।

और भी बातों का कारवां ,
हम दोनों जारी रखेंगे ,
बस इस दफा दिल की भी ,
एक बारी रखेंगे ।

क्यों सच देकर तुझको ,
मैंने सिर्फ झूठ पाया ,
क्या तूने मुझसे भी पहले ,
किसी की मोहब्बत को था झुठलाया ।

क्या दिल लगाने की सजा ,
तू सिर्फ़ मुझे देने आया हैं ,
या फिर तू ये जुल्म ,
पहले भी कर आया हैं ।

दिल के टूट टुकड़ों से ,
इस दफा फिर मिलेंगे ,
आना कभी फुर्सत से ,
थोड़ी और बातें करेंगे ।।

Tuesday, December 7, 2021

अहमियत

किसी एक शख्स के आने पर ,
आप सब कुछ छोड़ देते होंगे ,
जिंदगी से मंजिल तक के ,
हर रास्ते को मोड़ देते होंगे ।

हर दुख हर सुख जिससे ,
आप का जुड़ने लगता होगा ,
खामोश पड़े धड़कनों को ,
जो शोर से भरता होगा ।

जिसकी पल भर की मौजूदगी भी ,
एक जिंदगी सी लगती होगी ,
दूर जाने पर जिसके ,
मौत भी कम लगती होगी ।

जिसके नज़रंदाज़ करने भर से ,
आप कही गुम हो जाते होंगे ,
आखिर भीड़ में हो कर खड़े ,
खुद की मौजूदगी जताते होंगे ।

आप की नज़र और नज़रिया ,
दोनों ही सच बताते होंगे ,
छोड़ कर उस शख्स को ,
हर किसी को झुठलाते होंगे ।

हर दफा जब अंजाने में ,
कोई और आप से टकराता होगा ,
दिल घबरा कर आपका ,
उस शख्स की याद दिलाता होगा ।

आप किसी को अपनी ,
अहमियत जताते होंगे ,
वो किसी और को ,
अपने जिंदगी बताते होंगे ।

कुछ ऐसे ही दौर से ,
दिल हर रोज़ गुजरता होगा ,
जब किसी के इंतजार में ,
दिल बेकरार रहता होगा ।।

Monday, December 6, 2021

हुस्न को नहीं समझते

रूह में जीने वाले ,
हुस्न कहां देख पाते हैं ,
दो घड़ी की चाहत नहीं ,
ताउम्र साथ निभाते हैं ।

वक्त के साथ एहसास और इजहार ,
दोनों ही बदल जाते हैं ,
जब कभी निभाने वाले ,
उसे शिद्दत से निभाते हैं ।


जिंदगी भर वो दिल ,
किसी एक से लगाते हैं ,
बेहद ही सादगी से ,
वो उस दिल में उतर जाते हैं ।

जिंदगी भर का जिसे ,
आखरी सच वो बताते हैं ,
छोड़ कर जाने पर जिंदगी के ,
वो उसे छोड़ पाते हैं ।

क्या कमाल की मोहब्बत ,
वो दुनिया को सिखाते हैं ,
लगता हैं जैसे कोई सच नहीं ,
सिर्फ़ ख़्वाब में ही आते हैं ।

हुस्न को समझने वाले नहीं ,
हम तो रूह में बसने वालों में आते हैं ,
भला हम क्या जाने ,
हुस्न को समझने वाले क्या समझ पाते हैं ।।

बर्बाद

जब भला मैं सारे सच ,
बिना कहे जान गया था ,
तो इस अधूरे सच से ,
कैसे अंजान रह गया था ।

सच और झूठ के बीच ,
आज झूठ पहले आया था ,
उसके हर एक बदले अंदाज में ,
जिसे मैं देख पाया था ।

ना वो कशिश थी रोज़ सी ,
ना रोज़ जैसा मिजाज़ था ,
पहुंचा तो बेशक मुझतक वो ,
पर कुछ बदला वो आज था ।

वक्त का पहिया घूम कर ,
आज मेरे हिस्से सब ला रहा ,
मैंने जैसे सताया था उसे ,
आज मुझे वो सता रहा ।

तोड़ कर भरोसा उसने ,
मुझे आज़ाद कर दिया ,
शुक्रिया बहुत उसका ,
जो उसने शुक्रिया कह दिया ।

कभी किसी रोज़ कोई ,
सिर्फ़ रूह में बसने आयेगा ,
मुझसे भी बेहतर जो ,
मुझसे इश्क़ निभायेगा ।

इंतजार में बस उसके ,
हम ऐसे ही इश्क़ लुटाएंगे ,
होंगे कभी खुद बर्बाद ,
कभी किसी और को कर जाएंगे ।।

शायद

आज फुर्सत से कुछ पल ,
वो मेरे सामने बैठा था ,
खामोश कर के लब अपने ,
आंखो से कुछ कह रहा था ।

देख कर रंग झुमकों का ,
सब याद ताज़ा हो गए ,
मानो जैसे लौट कर हम ,
फिर से उन रास्तों पर लौट गए ।

माथे पर बिंदी उसके ,
क्या खूब जचती हैं ,
हर दफा जब किसी एक रंग से ,
वो अक्सर ऐसे ही सजती हैं ।

दिल कुछ और दिमाग कुछ और ,
उसकी कहानी बता रहें हैं ,
नज़रे फेर कर हमसे ना जाने ,
वो क्या क्या छिपा रहे हैं ।

फेर कर उंगलियां लटों पर अपने ,
वो अपने चहरे से जुल्फ हटा रही थी ,
गालों पर बसे उस मुस्कुराहट को ,
खुल कर दिखा रही थी ।

और भी जज़्बात जुड़े हैं तुमसे ,
वक्त आने पर बताएंगे ,
लिख दिया जो लिखना था ,
बाकी दिल की धड़कनों से सुनाएंगे ।

हैं फासल जो दूर इतना ,
वक्त के साथ मिट जाएगा ,
थाम कर हाथ किसी रोज़ ,
चंद कदम वो चलने को आयेगा ।।

... शायद !!

Wednesday, December 1, 2021

इंतजार रहेगा

गुजरा वक्त लम्हों में ,
कितना लंबा लग रहा हैं ,
मानो जैसे इस फ़रियाद को ,
एक अरसा हो चला हैं ।

बहुत से एहसास और अल्फाज़ ,
हमने मिल कर सजाएं हैं ,
दूर हो तुम मुझसे तो क्या ,
हम कहां तुम्हें भूल पाएं हैं ।

तुम मेरे हर सच को ,
हमेशा जिंदा कर देती हो ,
फुर्सत के दो पल जब भी ,
अपने हिस्से कर लेती हो ।

तुम अक्सर छोड़ कर जब ,
महफ़िल से जाया करती थी ,
इंतजार रहेगा सुनने के इंतजार में ,
रुक जाया करती थी ।

पर कहां अब जाने को ,
तुम महफिलों में आती हो ,
कर के पराया अपने ही घर को ,
किसी और का घर बसाती हो ।

रहेगा इंतजार लौटने का तुम्हारे ,
लौटने पर और शब्द सजाएंगे ,
बाकी रहे जज़्बात तुमसे ,
फिर कभी और बताएंगे ।।

Monday, November 29, 2021

तुम कौन हो

तुम कौन हो मेरी ,
और क्या मैं तुम्हारी पहचान बताऊं ,
पहले मैं तो तुम्हें ,
तुम कौन हो ये जान जाऊं ।

तुमको मैं अपना सुकून कहूं ,
या फिर बेकरारी बढ़ाऊ ,
तुम्हारी मुस्कुराहट के बदले ,
मैं अपना सब कुछ लुटाऊ ।

तुम मेरी हर उलझन को ,
कैसी सुलझाने लगी हो ,
मुझ से भी बेहतर ,
तुम मुझे पहचानने लगी हो ।

तुम मेरे जिक्र में हो हर पल ,
पर फिक्र मेरी तुम्हें सताती हैं ,
बिना कुछ कहे लबों से अपने ,
तुम्हारी आखें सब कह जाती हैं ।

हर दफा गुजर कर जब भी तुम ,
मुझसे कही दूर जाती हो ,
अंजाने में ही सही ,
पर तुम मुझे बहुत सताती हो ।

तुम कौन हो भला ,
जरा खुल कर मुझे बताओ ,
मेरे ख्याल से निकल कर ,
कभी सामने आ जाओ ।

आओ ज़रा खुल कर महफ़िल में ,
सब इंतजार में बैठें हैं ,
तुम कौन हो भला ,
ये मुझसे पूछते रहते हैं ।

तुम मेरा सुकून , 
तुम मेरी खुशी हो ,
तुम मेरा आखिरी सच ,
तुम ही जिंदगी हो ।।

Wednesday, November 24, 2021

आखिरी सच

तुम मेरा आखिरी सच हो ,
जिसको मैं झुठलाऊंगा नहीं ,
बाहों में भर कर सुकून से ,
ले जाऊंगा कहीं ।

तुम मेरा वो सच होता ख़्वाब हो ,
जिससे जुड़ी पूरा कायनात हो ,
तुम मेरी सिर्फ़ खुशी हो ,
दुनिया मेरी जिसमें बसी हो ।

तुम्हारे चेहरे पर मुस्कुराहट ,
हर रोज़ मैं सजाऊंगा ,
वक्त के साथ हर खूबसूरत लम्हा ,
तेरे हिस्से कर जाऊंगा ।

तुम बन कर मेरा सच ,
हर ख़्वाब सजा जाना ,
गर लगा कभी उलझने ,
तो सुलझा जाना ।

आकर मेरी बाहों में ,
मेरा सुकून मुझे लौटा दो ,
लम्हों के मोहताज इस शख्स को ,
उसकी खुशी से मिलवा दो ।

Monday, November 22, 2021

मजबूर

मुझसे ऐसी क्या गलती हुई ,
जो तुम इतनी खफा हो गई ,
हर पल वफ़ा निभाने वाली जिंदगी ,
चंद लम्हों में बेवफ़ा हो गई ।

वादा ना कभी तोड़ा मैंने ,
ना कोई रास्ता मोड़ा मैंने ,
फिर भी क्यों तुम जुदा हो गई ,
किसी बात से तुम खफा हो गई ।

हर जिक्र तेरा मुझको ,
दिन रात अब सताने लगा हैं ,
वफ़ा निभाने पर भी तुझसे ,
मुझे बेवफ़ा बताने लगा हैं ।

ना याद हैं मेरी कोई कसम ,
ना सच तुम मनाने को तैयार हो ,
क्या सच में आज कल तुम भी ,
किसी और इश्क़ के लिए तैयार हो ।

तुम्हारे आने के बाद जिंदगी में ,
मेरे सब बदल गया था ,
पहले से भी ज्यादा ,
अब मैं संभल गया था ।

छोड़ कर बीच रास्ते मुझे ,
मुझसे क्यों तुम इतनी दूर हो गई ,
इश्क़ में भला किसके तुम ,
इतनी मजबूर हो गई ।।

बिंदी

कोई ख़्वाब देखा था मैंने ,
या मैं किसी सच से मिल रहा था ,
माथे पर अपने बिंदी से ,
जब मेरा मेहबूब सज रहा था ।

चांदनी रात में वो ,
किसी चांद सा चमक रही थी ,
अपने इस श्रृंगार से वो ,
खुद में जब वो उलझ रही थी ।

पलकें उसकी थम गयी ,
जब आईने में खुद को निहारा ,
और फ़िर अपने सच को ,
क्या खूब उसनें नकारा ।

मैं मंद मंद बस मुस्कुराता रहा ,
खुबसूरती उसकी झुठलाता रहा ,
निगाहों में बस चुके इश्क़ को ,
दिल में बसाता रहा ।

माथे से जब उसनें ,
बिंदी को हटा दिया ,
लगा किसी सच को 
एक पल में झुठला दिया l

Sunday, November 21, 2021

दिल के ज़ख्म

तुम ही मेरी हर खुशी ,
और हर गम का हिसाब थी ,
तुमसे जुड़ी हर बात ,
मेरे लिए पूरी कायनात थी ।

तुम थी मेरे दिल में ,
और धड़कनों को बढ़ाती थी ,
हर दफा खामोशी से ,
बहुत शोर कर जाती थी ।

तुमसे हर दफा गुजरने पर ,
मैं सुकून से जा मिलता था ,
जब कभी मेरी निगाहों से , 
तू बन कर अजनबी गुजरता था ।

तुमसे इश्क़ के बदले भला ,
कहां कभी कुछ भी मांगा था ,
मैंने तुम्हें ही अपना ,
आख़िरी मुकाम माना था ।

हर शाम के गुजरने पर ,
रात का इंतजार होता था ,
लम्हों के कुछ पल भी ठहरने पर ,
दिल बेकरार होता था ।

छोड़ कर मुसाफ़िर को ,
तुमने रास्ता बदल लिया ,
पलकों पर आंसू और 
दिल को जख्मों से भर दिया ।

क्या सच में इश्क़ में ,
अक्सर ऐसा ही होता हैं ,
सच्ची मोहब्बत करने वाले का दिल ,
जख्मों से भरा होता हैं ।। 

Saturday, November 20, 2021

लौट आओ

आज की सुबह ,
हर रोज़ जैसी ना थी ,
होठों पर मुस्कुराहट कम ,
आंखो में नमी थी ।

तुम थी बाहों में मेरे ,
पर दिल में क्यों नहीं थी ,
क्या सच में इश्क़ में मेरे ,
कोई कमी थी ।

रात भर ख़्वाब में ,
बस तुमको देखता रहा ,
सच मान कर ख़्वाब को ,
पलके भिगोता रहा ।

तुम मेरी खुशी हो ,
और मेरे सुकून का सबब ,
तुम हो कितनी अज़ीज़ ,
ये जानता हैं मेरा रब ।

लौट कर बाहों में मेरे ,
आकर फिर से बस जाओ ,
शिद्दत से मुझे भी ,
खुद जैसा इश्क़ सिखाओ ।

सुनो .. इधर आओ ,

ठहर कर इस दिल में ,
दिल को जरा धड़काओ ना ,
एक और दफा सुकून से ,
मेरी खुशी बन जाओ ना ।।

Friday, November 19, 2021

इश्क़ की प्याली

अगर मैं चाय होता ,
फुक फुक कर तुम ,
क्या मुझे भी होठों पर लाती ,
गले से उतारते हुए ,
अपने दिल में बसाती ।

मैं जलता हर दफा ,
तुमसे गुजरने को ,
तुम जैसी चाय से मोहब्बत ,
सिर्फ़ तुम से करने को ।

तुम जैसे शिद्दत से ,
प्याली को होठों पर लाती हो ,
क्या सच में मुझसे ज्यादा ,
तुम चाय से इश्क़ निभाती हो ।

जिसकी हर छुवन में ,
गर्माहट का एहसास होता हैं ,
बस कर लबों पर जो ,
हमेशा सुकून का आस होता हैं ।

खुशबू मेरे जाने के बाद भी ,
फिज़ा में महकती रहेगी ,
क्या किसी रोज़ तुम भी मुझसे ,
कड़क चाय सी मोहबब्त करोगी ।

चाय से दिल तो ,
हर शख्स लगता हैं ,
पर चाय सा इश्क़ ,
कहां सबको मिल पाता हैं ।

इश्क़ में हैं सब उसके ,
पर उसको सबसे इश्क़ कहां हैं ,
बस जाए जिसके भी रूह में ,
उसका तो घर बस वहां हैं ।

बाहों को समझ कर प्याली ,
क्या तुम मुझको उसमें भर पाओगी ,
उतनी ही तलब से ,
क्या मुझे भी होठों से लगाओगी ।।

तुम हो कौन

चांद हो तुम मेरा ,
या चांदनी रात हो ,
दूर हो कर भी ,
लगती बेहद पास हो ।

सर्द मौसम की गर्माहट ,
या बर्फीले पहाड़ हो ,
हर एहसास जो जुड़े तुमसे ,
वो बेहद कमाल हो ।

सुकून हो तुम मेरा ,
या चैन-ए-करार हो ,
पहली तो बिल्कुल नहीं ,
पर क्या आखिरी इज़हार हो ।

खुशी हो मेरी तुम ,
तुम ही मेरा इकरार हो ,
गुजरते लम्हों के बदले ,
मिला जैसे कोई उपहार हो ।

तुम हो कोई संगीत सी ,
धुन जिसका तैयार है ,
एक और जिंदगी जीने को ,
दिल जिसका बेकरार है ।

तुम से जुड़ी हैं जिंदगी ,
जिसका तुम आधार हो ,
चंद फासलों के बाद भी ,
बाहों में जिसके संसार हो ।।

Thursday, November 18, 2021

रंजिश

कुछ पल लगा जैसे वो ,
मुझसे बेहद खफा है ,
आज जब लगी वो दूर ,
मुझसे पहली दफा है ।

खता हुई क्या मुझसे कुछ ,
क्यों वो खामोश खड़ी है ,
क्यों नहीं बढ़ रहे कदम उसके ,
इतनी पीछे क्यों चल रही है ।

आंखो में दुनिया उसके ,
गालों पर सारा नूर हैं ,
बिखरी जुल्फ कांधे पर ,
होठों पर किसका कसूर हैं ।

सारे ख़्वाब और सच ,
सब एक पल में खोने लगे ,
लगा जैसे वो छोड़ कर हमें ,
किसी और के होने लगें ।

उसकी बातें और उसकी मुलाकाते ,
सब आंसू के साथ बह गए ,
जिस रोज़ एक आखिरी दफा ,
वो हमसे अलविदा कह गए ।

रंजिश इश्क़ में भला कभी ,
कहां कोई निभा पाता हैं ,
बिना धड़कन के दिल बेचारा ,
कहां जिंदा रह पता हैं ।

आ जाता हैं कोई और दिल ,
फिर से दिल लगाने को ,
रंजिश की आग बुझा कर ,
इश्क़ सीखना को ।।

Wednesday, November 17, 2021

आखरी आस

जिस करवट मुड़ रही हैं जिंदगी ,
मैं उस करवट हो लेता हूं ,
मुसाफ़िर के इस सफ़र में ,
किसी हमसफ़र को चुन लेता हूं ।

जो मेरा सुकून हो ,
और हो सिर्फ़ मेरी खुशी ,
उलझनों में उलझ कर भी ,
मुस्कुराती हो जिसकी ज़िंदगी । 

हर पल हर डगर जो मेरे साथ हों ,
अटूट जिसका विश्वास हो ,
पहली का तो पता नहीं ,
पर ताउम्र जो मेरी आखरी आस हो ।

नज़र हो जिसकी पारखी ,
और नज़रिया ईमानदार हो ,
पहली नज़र वाला इश्क़ ,
जो एक दम शानदार हो ।

उसका का तो पता नहीं ,
पर वो मेरा आखिरी प्यार हो ,
जिंदगी भर मैं उसके ,
और वो मेरे लम्हों का कर्ज़दार हो ।

ख़्वाब हैं जो आज मेरा ,
सच में उसका कभी दीदार हो ,
साथ मेरे पास मेरे जो रहे हमेशा ,
मन में न कोई सवाल हो ।।

Tuesday, November 16, 2021

कल बताऊँगा

तुमसे कहनी हैं एक बात ,
आज कह दूं क्या ,
या छोड़ कर कल पर ,
जिसे रहने दूं क्या ।

दिल से जुड़ा मेरा ,
एक खूबसूरत पैगाम हैं ,
लिखा जो मैंने सिर्फ ,
तुम्हारे नाम हैं ।

ना बात तुम्हारे हाथ ,
थामने से जुड़ी हैं ,
ना बाहों में भरने की ,
कोई मुझे हड़बड़ी हैं ।

आँखों में तुम्हारे ,
छिपा एक पैगाम है ,
लिखा उसमें लेकिन ,
किसी और का नाम है l

होठों पर ये हसीं नहीं ,
तुमने दुनिया बसाई हैं ,
इज़हार-ए -इश्क की दास्तान ,
पूरी कायनात को सुनाई है ।

मुझे भी तुम्हें कुछ,
बहुत जरूरी बताना हैं ,
अपने एक आंजने सच से ,
तुम्हें वाकिफ कराना हैं ।

चलो रहने देते हैँ,
कल पक्का बताऊँगा ,
फुर्सत से मिलने जब ,
तेरे घर आऊंगा ।।

साथ

तुम मेरी आदत नहीं ,
मेरी ताकत बनना ,
हर वक्त हर लम्हा ,
बस मेरे साथ चलना ।

ना कभी कोई दूरी ,
ना कभी कोई मज़बूरी ,
कुछ भी तो नहीं है ,
रिश्ते में इश्क़ से जरूरी ।

खुद को मेरी आंखो में ,
हर रोज़ ऐसे ही संवारना ,
अपनी तस्वीर मेरे दिल में ,
हर दफा ऐसे ही उतारना ।

बन कर मेरा सुकून ,
एक आख़िर सच बन जाना ,
हो चाहे कुछ भी ,
बस शिद्दत से साथ निभाना ।

तुम बस ऐसे ही पास मेरे ,
हमेशा हर पल साथ मेरे ,
मेरा साथ निभाना ,
फिर कभी इतना दूर मत जाना ।

ना मांगा कुछ भी तुमने मुझसे ,
ना मैं कुछ दे पाया हूं ,
सिवाए कुछ उलझन और सवालों के ,
क्या ही मैं तेरे हिस्से कर पाया हूं ।

फिर भी ,
रहोगी ना हर पल .. 
हर लम्हा साथ मेरे ?? 
.... बोलो !!!

हुआ क्या हैं ?

मुझे हुआ क्या हैं आज कल ,
ये हर कोई सोच रहा हैं ,
फिर भी भटके मुसाफ़िर से रास्ता ,
अपनी मंजिल का पूछ रहा है ।

पर तुम भी ये सवाल पूछोगी ,
मैंने कभी ऐसा सोचा ना था ,
इस तरह कभी बीच रास्ते ,
मुझे किसी ने पहले रोका ना था ।

हाल दिल का मेरा तुमसे बेहतर ,
भला और कौन जान पायेगा ,
क्या है इजाज़त किसी और दिल को ,
जो हमसे कोई दिल लगाएगा ।

तुम्हारा असर इस दिल पर ,
देखा कितना होने लगा हैं ,
होश में होकर भी महफ़िल में ,
बस तुझमें खोने लगा हैं ।

हर अल्फाज़ से तुम सजी हो ,
और हर कहानी तुम्हारी हैं ,
जिक्र में भला आएगा कैसे ,
जब इश्क़ रूहानी हैं ।

हुआ कुछ भी नहीं मुझे ,
बस अब तुम्हें और जीने लगा हूँ ,
हर बार और शिद्दत से ,
हर रोज़ मिलने लगा हूँ ।।

दीदार

जब कुछ पल के लिए तुम ,
मुझसे दूर जाने लगी थी ,
थाम कर हाथ मेरा ,
मेरे पास आने लगी थी ।

आज वक्त की सुई गुजरने में ,
कितना वक्त लगा रही हैं ,
इंतजार तेरे दीदार का ,
हर गुजरते पल में बढ़ा रही हैं ।

आखिरी दफा हैं इस जिंदगी में ,
जब तुम मुझसे इतनी दूर हो ,
अपनी निगाहों में उलझन ,
और उसकी मौजूदगी से मजबूर हो ।

देख रहा तुम्हारी आंखों में जो ,
कहीं उसको किसी का दीदार ना हो जाए ,
कर रहा इंतजार जो सिर्फ तुम्हारा ,
कहीं उसकी झलक वो ना पा जाए ।

दिल की धड़कन का हाल ,
अब ये कैसा हो रहा हैं ,
बदलने लगा हैं शोर जिसका ,
जबसे तू मुझसे दूर हो चला हैं ।

बैठा हैं जो थाम कर हाथ तुम्हारा ,
हर पल हर लम्हा तुम्हारे इंतजार में ,
क्या बंद आंखो को आया ख्याल मेरा ,
या जिक्र तुम्हारे किसी सवाल में ।।

Monday, November 15, 2021

सच

तुम मेरा सुकून ,
तुम ही मेरा करार हो ,
पहला नहीं पर आखिरी ,
मेरी ख्वाइशों का संसार हो ।

इज़हार-ए-इश्क़ तुमसे भला ,
हम कहां कभी कर पायेंगे ,
दूर हो कर भी पास तेरे ,
हर वक्त जिक्र में लाते आ जाएंगे ।

देख कर आंखो में तुम्हारे ,
अब हम खोने लगे हैं ,
हर दिन हर रात बस तेरे ,
अब हम होने लगे हैं ।

होठों पर हसीन शरारत तुम्हारी ,
जब गालों पर आकर बस जाती हैं ,
ना चाह कर भी हर दफा ,
मेरी बेकरारी बढ़ जाती है ।

जुल्फ जब कभी तुम्हारे ,
चेहरे को आकर ढकते हैं ,
फेर कर उंगलियां अपनी ,
हम जुल्फ हटा दिया करते हैं ।

थाम कर हाथ मेरा ,
क्यों रुक नहीं जाती हो ,
हर गुजरते लम्हों में आकर भी पास ,
क्यों दूर चली जाती हो ।

तुम मेरा वो सच बन गई हो ,
जिसका पता अब सबको हैं ,
क्यों नहीं पता तुम्हें ,
जो पता मेरे रब को हैं ।।

सोचो अगर

सोचो अगर किसी रोज़ ,
मैं कही सच में खो गया ,
अपने सुकून की जगह ,
किसी और का हो गया ।

सोचो अगर किसी रोज़ ,
तुम मुझसे खफा हो गई ,
या पल भर के लिए ,
बेवजह ही जुदा हो गई ।

सोचो अगर किसी रोज़ ,
कोई तुम्हें मुझसे चुरा ले गया ,
मेरे सुकून को एक पल में ,
हर पल के लिए अपना कह गया ।

सोचो अगर किसी रोज़ ,
कोई मुझे तुमसे चुरा ले गया ,
क्या मुझे ढूंढने तुम आओगी ,
या बिन ढूंढे आगे बढ़ जाओगी ।

क्या तुम भी छोड़ कर मुझे ,
किसी और का हो जाओगी ,
बताना जरूर क्या कभी मुझे ,
किसी और से बांट पाओगी ।

या फिर ,
बन कर मेरा सुकून ,
हर वक्त ऐसे ही उलझाओगी ,
भर कर बाहों में अपने ,
सिर्फ़ अपना कर जाओगी ।

बताना जरूर ........
क्या कभी तुम मुझे ,
किसी और से बांट पाओगी ।।

Sunday, November 14, 2021

एक ख़्वाहिश

तुम्हारे हिस्से इस जिंदगी की ,
वो कौन सी खुशियां कर जाऊं ,
ना रह कर भी इस जहां में ,
जिंदगी तुम्हारी खुशियों से भर जाऊं ।

हर दर्द और हर गम का खज़ाना ,
जिसे तुमने आज भी कहीं छिपा रखा है ,
क्या सच में तुमने मिटा दिया सब ,
या आज भी कहीं लिखवा रखा है ।

आंखो में देख कर तुम्हारे ,
बस सोचता हूं कह दूं हर बात ,
लौटा दू हर एक लम्हा ,
और गुजरी अधूरी रात ।

इश्क़ के मायने और मतलब ,
तुम सब बदलने लगी हों ,
गुजर कर निगाहों से मेरे ,
जबसे दिल में उतरने लगी हो ।

थाम कर हाथ तुम्हारा जब भी बैठता हूं ,
मानो उस पल में ही ठहर जाता हूं ,
करती हो बात जब कभी जाने की ,
हर दफा सोच कर जिसे डर जाता हूं ।

तुम हो सुकून मेरा हर पल ,
तुम्हारा सुकून मेरा बनना बाकी हैं ,
जिस पल भी गुजरों तुम मुझसे ,
मुझ जैसा सुकून मिल जाए तुमको ,
मेरे लिए बस यही काफी है ।।

Saturday, November 13, 2021

तेरी आंखे

पहली दफा निगाहों से तुम्हारे ,
जिस रोज़ मेरी बात हुई ,
पहली दफा हम दोनों की ,
खुल कर मुलाकात हुई ।

तुम खामोश हो कर बस मुझे ,
शिद्दत से निहार रही थी ,
दूरियों को मिटा कर ,
मेरे बाहों में आ रही थी ।

चांद आसमान में रौशन ,
और तारे भी चमक रहे थे ,
दो अजनबी आज पहली दफा ,
एक दूसरे से मिल रहे थे ।

थाम कर हाथ तुम्हारा ,
जब मैं कुछ दूर चलने लगा ,
तुमने मुझको रोक दिया ,
ना जाने क्यों बीच रास्ते टोक दिया ।

पहला स्पर्श और उसकी खुमारी ,
अब तो बस चढ़ने लगी थी ,
जिंदगी जब पहली दफा ,
जिंदगी से मिलने लगी थी ।

सुकून तेरी आँखों में है,
या है मेरी नज़रों की तस्वीर में,
या फिर उलझने लगा है दिल,
हमारी उलझी तक़दीर में ll

ठहरने आना

वक्त होता नहीं पास कभी ,
वक्त निकालना पड़ता हैं ,
ठहर कर निगाहों में तुम्हारे ,
दिल में तुन्हें उतारना पड़ता है ।

करता हूं कोशिश हर दफा ,
जब भी तुम्हें करीब लाने की ,
ले आती हो जिक्र वक्त के ,
चंद पल में ख़त्म हो जाने की ।

सच कहूं तो सुकून के सिवा ,
कुछ भी और देख नहीं पाता हूं ,
हर दफा जब सुकून की तलाश में ,
तुम्हारे निगाहों में डूबने आता हूं ।

फेर कर उंगलियां चेहरे पर तुम्हारे ,
हर बार जब जुल्फ को सुलझाता हूं ,
हर एक स्पर्श से तुम्हारे ,
मैं ख़ुद ही उलझ जाता हूं ।

थाम कर हाथ मेरा जब सुकून से ,
अपने गालों पर रोक लेती हो ,
मानों जैसे किसी मुसाफ़िर को ,
रास्ते में उसके टोक देती हो ।

फासला अब मिटने लगा हैं ,
और फ़ैसला हमें मालूम नहीं ,
भर कर बाहों में सुकून से ,
ले जायेंगे उन पहाड़ों पे कभी ।

कभी तुम आना फुर्सत से ,
अपना वक्त देने के लिए ,
चंद पल में गुजर जाने नहीं ,
जिंदगी भर ठहरने के लिए ।

कभी आना फुर्सत से तुम ,
सिर्फ मेरी होने के लिए ।।

Friday, November 12, 2021

घड़ी

रंगो में उलझी जिंदगी का श्रृंगार ,
भला बेरंग कैसे कर पायेगा ,
जब तक उसके हिस्से वक्त ,
सही वक्त नहीं लेकर आयेगा ।

देखा जब पहली दफा तुम्हें ,
तबसे ही दिल बेकरार हैं ,
मालूम नहीं इंतजार किस घड़ी का ,
दिल तो हर वक्त तैयार है ।

सुकून के पल से जिंदगी तुम्हारी ,
अब थोड़ी गुजरने लगी हैं ,
जबसे वक्त के सुई सी मोहब्बत  ,
बिना रुके तुमसे मिलने लगी है ।

मैं देख कर तुम्हें होते जुदा खुदसे ,
फिर भी देखो मुस्कुरा रहा हूं ,
वक्त के साथ बदलते एहसास पर ,
कुछ नया लिख कर सुना रहा हूं ।

तुमसे जुड़ा हर रंग और उसका एहसास ,
वक्त भला कहां मिटा पायेगा ,
देखना गुजरते वक्त के साथ ,
ये रिश्ता और भी गाढ़ा हो जायेगा ।

चढ़ेगा रंग इस दफा इश्क़ का कुछ ऐसा ,
तेरी खुशबू फिज़ा में हर ओर महकेगी ,
देखना एक रोज़ खुद इस घड़ी से ,
रुक जाओ .. तुम कह दोगी ।

उतार कर घड़ी हाथों से अपने ,
जब वक्त किसी के हिस्से करने आओगी ,
देखना वक्त के गुजरने से पहले ,
दिल में उसके बस जाओगी ।

हर रोज़ इश्क़


उसका बदला मिजाज़ और सच ,
अब सब बदलने लगा हैं ,
जबसे किसी अजनबी से ,
वो हर रोज़ मिलने लगा है ।

मेरी बातें और अनगिनत मुलाकाते ,
क्या वो सब भूल जायेगा ,
या फिर एक और दफा ,
उससे भी मेरे जैसे कसमें खायेगा ।

चंद लम्हों में मुकम्मल इश्क़ को ,
जिंदगी भर का साथ बतायेगा ,
किसी रोज़ उसको भी वो ,
सब ख़त्म कह कर चला जायेगा ।

अजनबी जिसकी पहचान से ,
वो आज तक खुद भी अंजान हैं ,
कहता हैं आज कल सबसे ,
वो अजनबी ही उसकी जान हैं । 

हर दिन और हर रात ,
अब उसके ही किस्से सुनाता हैं ,
भला एक सी बात एक सा इश्क़ ,
कैसे वो हर किसी से कर पाता है ।

मेरे हिस्से की हर खुशी ,
और उसके हिस्से का गम ,
वक्त के साथ सब कम होने लगा हैं ,
जबसे अजनबी को अपना कहने लगा है ।

हर इश्क़ करने वाले की ,
अधूरा इश्क़ ही कड़वी सच्चाई हैं ,
आज तक जिंदगी भर खुशी ,
किस खुशनसीब को मिल पाई है ।।

Wednesday, November 10, 2021

सब ख़त्म

मेरी भीगी पलकों पर तेरा तोहफ़ा ,
इश्क़ सा गुजरने लगा हैं ,
आज कल तो दिन रात ,
किसी नदी सा बहने लगा है ।

जिंदगी भर का साथ ,
एक पल में खत्म हो गया ,
जिस पल "सब खत्म" कह कर ,
वो मुझसे गुजर गया ।

था नहीं मालूम खुशी जिंदगी से ,
कुछ इस अंदाज में जायेगी ,
बन कर चंद लम्हों की खुशी ,
ताउम्र का गम छोड़ जायेगी ।

ना पता अब दिन का मेरे ,
ना रात का ठिकाना हैं ,
जिंदगी तो बस जी रहा ,
मौत को भी आना हैं ।

जिस रोज जिंदगी मुझसे ,
सब ख़त्म कहने आयेगी ,
तुझ जैसे मेरी रूह भी ,
एक पल में इस जिस्म को छोड़ जायेगी ।

वादे , इरादे , कसमें और साथ ,
भला कैसे सब एक पल में ,
कोई तोड़ कर जिंदगी से जाता हैं ,
क्या सच में यही इश्क़ सिखाता है ।

It's Over

Once in Moon light ,
Darkness entered through the door ,
I was not prepared for it ,
So ran away to close the door .

She rested in my arms every night ,
And I held her very tight ,
She Refused to sleep ,
And said "I don't want be your peace" .

I was all shattered and lost ,
Almost felt I died ,
No one was around to listen ,
How much I tried .

She fought but came back ,
Every time more stronger ,
Never knew she'll go ,
And will never return after .

I cried I begged for peace ,
But she clearly denied ,
She said "it's over" ,
That one dark night .

My arms are still longing for her ,
I wonder if she'll return ever ,
Holding me tightly in her arms ,
And all to be mine forever .

Even if she'll not come back ,
I will love her forever ,
My heart says ,
Babe it's not Over .

बेवजह

वजह क्या हैं जो तुमको ,
हम हर रोज़ उलझाते हैं ,
मालूम नहीं पता तुम्हारा ,
फिर भी घर तक आते हैं ।

ना पता मंजिल का मुझे ,
ना मेरे पीछे कोई हुजूम है ,
सुकून हो तुम मेरे लम्हों की ,
बस इतना ही मालूम है ।

मिट रहे फासले यकीनन ,
पर कदम सिर्फ़ मैं बढ़ा रहा ,
तुम तो अब भी हो वही खड़ी ,
बस मैं पास आ रहा ।

तुमसे मिल कर बिछड़ने का ,
डर अब सताने लगा हैं ,
हर रात जबसे ख्वाबों में भी ,
तू मेरे आने लगा है ।

हर पल का इंतजार तेरा ,
किसी इजहार सा लगता है ,
दूर हो कर भी जो मेरे ,
हर वक्त पास सा लगता है ।

पहली दफा गुजर रहा मैं ,
किसी ऐसे अजनबी से हूं ,
लग रहा जैसे मैं गुजर रहा ,
अपने जिंदगी से हूं ।

तुम हो सुकून मेरी और ,
तुम ही हो मेरी हर वजह ,
क्या सच में नहीं होता क्या ,
कुछ भी बेवजह ।।

Monday, November 8, 2021

तुम कहो


तुम कहो तो तुम पर ,
एक किताब लिख दूँ ,
पूरी की पूरी अपने हिस्से की ,
कायनात लिख दूँ ।

तुम कहो तो तुम पर ,
सारी खुशियां लूटा दूँ ,
हर एक पल का कर्ज ,
बस एक पल में चुका दूँ ।

तुम कहो तो तुम पर ,
एक ग़ज़ल बना दूँ ,
अल्फाज़ के श्रृंगार से ,
तुमको सजा दूँ ।

तुम कहो तो तुम पर ,
एक नया धुन बना दूँ ,
तुम जैसे उसको भी ,
दुनिया को सुना दूँ ।

तुम कहो तो तुम पर ,
एक तस्वीर बना दूँ ,
हर रंग से भर कर जिसको ,
तेरी पहचान बता दूँ ।

तुम कहो तो तुम पर ,
अपना सब लूटा दूँ ,
होकर सिर्फ तुम्हारा ,
तुम्हें तुमसे चुरा लूँ ।

एक दफा कहो ना ,
तुम पर क्या बना दूँ ?

तुम पर चाँद सजा दूँ ,
या कायनात झुका दूँ ,
बस एक दफा कहो ,
तुम पर क्या बना दूँ ?

Saturday, November 6, 2021

तेरा इंतजार

शुक्रिया आप का ,
मुझे मेरे सुकून से मिलवाने के लिए ,
चंद लम्हों में अरसे भर की ,
खिलखिलाहट दे जाने के लिए ।

इन लम्हों को अब मैं ,
अपने पास सजा कर रखूंगा ,
तेरे लौट आने तक ,
दुनिया से छिपा कर रखूंगा ।

रहेगा इंतजार अब मुझे ,
तेरे लौट आने का ,
बेवजह ही किसी गैर को ,
मेरा अपना बताने का ।

वक्त ने आज मेरे हिस्से ,
कुछ वक्त दिया तो हैं ,
तेरी गैर मौजूदगी में भी ,
किसी ने तेरा जिक्र किया तो है ।

जिक्र मैंने भी किया है किसी का ,
पर वो जिक्र आज तेरा नहीं है ,
किस्से कहानियों में हैं जरूर वो ,
पर तुझ जैसे वो मेरा नहीं है ।

सवाल फिर तेरे जहन में आज ,
अनगिनत आ रहे होंगे ,
आखिर तुम्हें छोड़ कर हम भला ,
किसकी कहानियां सुना रहे होंगे ।

रहेगा इंतजार तेरे सवालों का ,
जो इस बार हम दोनों को उलझाएंगे ,
शायद बढ़ती दूरियां और मजबूरियां ,
दर्मियाँ हम दोनों के मिट जाएंगे ।।

तेरी बिंदी

तुम ख़्वाब में आई जब मेरे ,
माथे पर तुम्हारे बिंदी सजी थी ,
मेरे ख्वाइश को तुम ख़्वाब में ही सही ,
पूरा कर रही थी ।

तौफा मिला मुझे वक्त का तुम्हारे ,
पर बदले में मैं क्या दे गया ,
अपने दिल में छिपे कुछ राज़ ,
अनजाने में तुमसे कह गया ।

तुम सुकून हो मेरा या फिर ,
मेरा नींद उड़ाने आई हो ,
क्यों लगा कर माथे पर बिंदी ,
होठों पर मुस्कान लाई हो ।

हर सवाल का जवाब सच रहा ,
पर सवाल क्यों मुझे अधूरे लगे ,
तेरी मेरी बातों से तो हम दोनों ही ,
कुछ हद तक पूरे लगे ।

तुमको याद हर किस्सा है मेरा ,
और मुझसे जुड़ी हर बात ,
कह दे कोई ये ख़्वाब नहीं ,
सच में थी तुम मेरे साथ ।

हां ख़्वाब में ही सही ,
पर अपनी इस बदले श्रृंगार से ,
अब तुम और उलझाने लगी हो ,
जबसे माथे पर बिंदी लगाने लगी हो ।

ख़्वाब जब टूटेगा ये ,
जिंदगी मुझसे रूठ जाएगी ,
मालूम नहीं फिर लगा कर बिंदी ,
तुम मेरे ख़्वाब में कब आओगी ।।

तेरा जाना

आकर जो गई तुम मुझसे ,
लगा जैसे कोई खुबसरत लम्हा खो गया ,
मिलते ही जो एक पल में ,
अगले ही पल गुम हो गया ।

तेरे सुकून की तलाश में ,
वक्त उलझने भी बढ़ाता है ,
हर दफा जब वक्त देकर ,
तेरा वक्त बट जाता है ।

मेरी जिस खता से आज तुम ,
मुझसे खफा हो गई हो ,
कुछ हद तक लगा जैसे ,
मुझसे जुदा हो रही हो ।

ना लफ्ज़ सज रहे मेरे ,
ना तुम्हारा दीदार हो रहा ,
इंतजार का हर एक पल ,
मुझपर ही सवाल उठा रहा ।

तुमसे माफ़ी मांगना मेरा ,
आज काफ़ी नहीं होगा ,
मायूस दिल की खामोशी में ,
मेरा कोई साथी नहीं होगा ।

हर जुल्म हर सजा दे दो मुझे ,
मैं सबके लिए तैयार हूं ,
बस लौटा दो अपनी मुस्कुराहट मुझे ,
मैं जिसके लिए बेकरार हूं ।।

Friday, November 5, 2021

तेरा सवाल

ये सवाल पूछ कर तुमने ,
मेरे सच को झुठला दिया ,
तुम पर सजे शब्दों को ,
तुमने किसी और का बता दिया ।

माना की श्रृंगार में बिंदी ,
तुम माथे पर लगाती नहीं ,
खुद को आईने में भी ,
बिंदी से सजाती नहीं ।

हां ख्वाइश भर होने से ,
वो पूरा नहीं हुआ करता ,
जब तक ख्वाइश करने वाला ,
दिल में नहीं रहा करता ।

तुम्हारे झुमके तुम्हारी जुल्फ ,
और होठों की मुस्कान ,
काफी हैं तुम्हें सजाने के लिए ,
मेरे हिस्से की ख्वाइश मिटाने के लिए ।

देखे बगैर लिखा मेरा ख्याल ,
मेरी दिले ख्वाइश थी ,
देखने के बाद लिखा शब्द ,
लम्हों की फरमाइश थी ।

आप से तुम का सफ़र ,
बड़े शिद्दत से आया था ,
आज फिर एक सवाल ने ,
मुझे तुम से आप बनाया था ।

माना की है दायरा तुम्हारा ,
और तुम्हारी अपनी ही उलझन ,
पर पढ़ तो लेती वो किताब भी ,
लिखा था जिसमे मेरा मन ।

कहना तो बहुत कुछ है मुझे ,
तेरा पता मिल जाने पर ,
था नहीं मालूम पूछोगी सवाल ,
जवाब आ जाने पर ।।

भाभी


आईं बन कर लक्ष्मी घर की ,
हम सबकी प्रेरणा बन गईं ,
अंधकार से भरे आँगन को ,
देखो रौशन कर गईं ।

मकान को घर बना कर ,
सबके भीतर का भेद मिटाया ,
सबसे उसका दुःख दर्द बाँटकर ,
साहस देकर फ़र्ज़ निभाया ।

ठोकर लगे रास्तों में कितने ,
रिश्ते भी अक्सर उलझ गए ,
पर ना हिली नज़र मंजिल से ,
उलटे पुल्टे पर सुलझ गए ।

हिम्मत ना हारीं हार ना मानी,
पग पग पर साहस वो देतीं हैं ,
अपनो की खुशियों का ही शृगार,
सदा वरण वो करती हैं ।

आज वक्त उन्हें सब लौटा रहा ,
हर त्याग परिश्रम का फल बता रहा ,
उनके हिस्से की सारी खुशियां ,
उनके झोली में ला रहा ।

आसान नहीं था सफर जिंदगी का ,
लड़ कर उसे आसान बनाया हैं ,
हर उलझन को जिसने ,
खुद ही सुलझाया है ।

फटकार भी जिनकी हर वक्त सदा ,
प्यार दुलार सी लगती है ,
कड़वी कड़वी पर सख़्त बात भी ,
माँ के प्यार सी लगती है ।

हर माँ के लिए छवि हैं आप ,
और हर पत्नी के लिए विश्वास ,
करुणा और प्रेम से पूर्ण ,
हमारी ताउम्र रहेंगी आखिरी आस ।।

उलझन

तुम और तुम्हारी नज़रंदाजी ,
आज भी मुझे उलझाते हैं ,
जब कभी मेरे पते पर ,
तेरा कोई तौफा लेकर आते हैं ।

तंग मैंने तुमको किया कहां ,
वो तो बेवजह एक शरारत हैं ,
पहले रोज़ से आज तक ,
तुम्हारे लहज़े की नजाकत है ।

हर रोज़ मिलना और बिछड़ना ,
तुम्हें क्या खूब भाता हैं ,
आने से पहले ही जो अक्सर ,
जाने का वक्त बताता हैं ।

दिल का हाल भला तुम्हारे ,
तुमसे बेहतर कौन ही जानता होगा ,
हर किसी के दिल में ,
जो अपनी तस्वीर मानता होगा ।

सबसे अलग सबसे खुबसूरत ,
तुमसा ही एक गहना हैं ,
आज तक जिसे कभी तुमने ,
अपने माथे पर नहीं पहना हैं ।
 
भला अपने सुकून को तंग कर के ,
मुझ जैसे कौन चैन से सोया होगा ,
ना जाने कितनी दफा किसी सन्नाटे में ,
मेरे आसुओं ने तकिया भिगोया होगा ।
 
इंतजार में तुम्हारे और कितना ,
खुद को ऐसे उलझाऊंगा ,
एक रोज़ तो तुम्हारा भी ,
वो "कल" सामने ले आऊंगा ।।

तेरा झुमका

बदला कुछ भी नहीं ,
आज भी तेरे श्रृंगार में ,
तरस रही मेरी निगाहें ,
आज भी तेरे दीदार में ।

फर्क बस इस दफा ,
लिबास में नजर आया ,
रंग काला हाथों पर ,
जिस्म श्वेत से ढका पाया ।

झुमके तो आज भी ,
हुबहू पहले से लग रहे थे ,
शायद इस दफा मुझे छोड़ ,
किसी और से कुछ कह रहे थे ।

हम तो आज भी उन झुमकों से ,
दिल लगाए बैठे हैं ,
उन झुमकों सा खुबसूरत ,
उसे भी मान बैठे हैं ।

बताओ ना और क्या छिपा हैं ,
जो तुम्हारी खूबसूरती बताता हैं ,
रंग श्वेत हो या हो काला ,
सब तुम पर खिल जाता है ।

आज फिर जब देखा तुम्हें ,
बस तुम्हारे झुमके नज़र आए ,
इस दफा थे वो मिलने ,
थोड़ी फुर्सत से आए ।

पता नहीं और कितने ,
तुम्हारे झुमकों पर मरते होंगे ,
हम जैसे शायद वो भी ,
इन झुमको से इश्क़ करते होंगे ।

अच्छा सुनो .. 

खूबसूरत तुम भला कितनी भी हो ,
झुमके की खूबसूरती से हार जाओगी ,
देखना कभी अपनी तस्वीर मेरे निगाहों में ,
बस झुमके ही देख पाओगी ।।

तेरा पता

अपना पता बताने के लिए ,
दुनिया को मेरा पता बता रही थी ,
उस रोज़ जब दुनिया को ,
अपने तौफे के किस्से सुना रही थी ।

पता करू मैं किसका पता ,
पता नहीं किसको क्या क्या पता ,
ये कैसा पता मुझे उलझा रहा है ,
दिल मेरा तेरे पते पर आ रहा है।

उफ्फ .. इसका पता मुझे भी ,
तुम्हारे दिल से पता चला है ,
लेकिन मेरे दिल का पता ,
अब तक तुम्हें कहां पता है ।

तुम्हारा वो पता जिसका पता ,
सिर्फ मुझको पता है ,
कल खामोश क्यों था मैं ,
ये सिर्फ़ हम दोनों को पता है ।

जिस पते पर हो तुम अभी ,
उस पते का पता मुझे पता है ,
पर क्या उस पते पर ,
मेरा कोई तौफा पड़ा है ।

गर नहीं तो ढूंढ लेना उस पते को ,
जो की तुम्हें पता है ,
मेरा पता भी शायद ,
वही पता है ।

वो शहर कौन सा है ,
जिस शहर से तेरा पता जुड़ा है ,
रास्ता जिस शहर का ,
तेरे पते से जाकर मुड़ा है ।

पता नहीं और कौन सा पता ,
दिल को पता लगना बाकी हैं ,
क्या पता दोनों का पता ,
एक हैं .. गर दिल राज़ी है ।।

Thursday, November 4, 2021

इज़हार सा इनकार

हर हां में उसने जब मुझे ,
अपनी पहली ना से मिलवाया ,
लगा जैसे मेरा कोई ख़्वाब ,
सच होने को है आया ।

उसकी मौजूदगी मेरी जिंदगी में ,
अब कुछ हद तक बढ़ने लगी हैं ,
मुझ जैसे शरारत वो भी ,
अब मुझसे करने लगी हैं ।

उससे जुड़े मेरे अल्फाज़ ,
हर किसी को अपने से लगते हैं ,
पर ना जाने क्यों मेरा हर सच ,
उसे किसी झूठे सपने से लगते हैं ।

वो मेरा कल का हिस्सा नहीं ,
पर कल का हर जवाब होगी ,
पते का चलने पर पता ,
जब हमारी पहली मुलकात होगी ।

हर गुज़ारिश को नामंजूर करके ,
देखो वो क्या जाता रही हैं ,
पास तो थी नहीं कभी मेरे ,
पर अब मुझसे दूर जा रही है ।

उस जैसा सुकून जिंदगी में ,
जिंदगी से अब तक क्यों दूर हैं ,
उसके इज़हार से इनकार में भी ,
छिपा किसी इश्क़ का फितूर है ।।

Tuesday, November 2, 2021

एक सफ़र

मिला था मैं किसी ऐसे सच से ,
जिसको सब झूठ पता था ,
सच मेरे हिस्से का जो  ,
अब तक दुनिया से छिपा था ।

बेहद उलझन के बाद ,
कुछ शोर मुझ तक आया था ,
खामोशी को छोड़ कर अपने ,
वो पहली दफा कुछ कहने आया था ।

रात के सन्नाटे और मेरा सच ,
अब वो दोनों जान रही थी ,
बड़ी उलझन भरी निगाहों से ,
खुद को आईने में देख रही थी ।

मेरे हर शब्द में कुछ सच ,
और कुछ छिपे एहसास थे ,
पहली दफा दूर होकर भी ,
लग रहे जो मेरे पास थे ।

मुझको रोका नहीं उसने ,
पर मैं खुद रुक गया ,
कहते कहते सच अपना ,
एक झूठ कह गया ।

खूबसूरत लम्हों की सौगात ,
जो खामोश रह कर दे आई ,
अपनी मौजदगी से उन लम्हों को ,
तुम खुशियों से भर आई ।

हो गया सफ़र शुरू हमारा ,
जो अब तक ना हो सका था ,
मेरे आप से तुम के उलझन में ,
जो आज तक रुका था ।।

तेरा तौफा

तौफा मिला मुझे आज ,
जब उसने आने में वक्त लगाया ,
देने को तैयार खड़ा था पता मैं ,
पर वो पूछने कहां आया ।

लगा जैसे पहली बार ,
कोई बिना मांगे कुछ देने वाला है ,
था नहीं मालूम मुझे ,
वक्त नहीं था ऐसा कुछ कहने वाला है ।

पल भर की ख़्वाब वाली खुशी ,
कैसे ताउम्र का गम बन जाती हैं ,
इंतजार में जिंदगी किसी तौफे के ,
बिना मिले ही कट जाती है ।

अब मुश्किल और उलझन से ,
गुजरते तो अरसा हो चला हैं ,
शुक्र है वक्त का मेरे ,
जो अब आगे बड़ चला है ।

कोई कहता हमें तौफा नहीं ,
आप कोई सज़ा सुनाई ,
कौन बताए उनको ,
की एक दफा सज कर तो आइए ।

आप के गुनेहगार भला ,
क्या ही तौफा ले पायेंगे ,
हमेशा की तरह आप के हिस्से ,
वो चंद अल्फाज़ छोड़ जायेंगे ।

देखते हैं ख़त्म करके

देखते हैं ख़त्म करके ,
तुमसे जुड़ी बातें ,
वो चंद मुलाकाते ,
चांद और तारों के संग ,
कटने वाली वो रातें ।

देखते हैं ख़त्म करके ,
तुमसे जुड़े जज़्बात ,
बदलते हमारे हालत ,
और अधूरे किस्सों की ,
एक खूबसूरत सौगात ।

देखते हैं ख़त्म करके ,
तुमसे जुड़े अल्फाज़ ,
जो खूब बखूद बन जाते हैं ,
हर दफा जब भी ,
तुझे खुद से जुड़ा पाते हैं ।

देखते हैं ख़त्म करके ,
तुमसे जुड़ा सवाल ,
जो आज भी मुझे उलझाता हैं ,
हर दफा खामोश लब पर शोर ,
और धड़कने बढ़ाता है ।

देखते हैं ख़त्म करके ,
तुमसे जुड़ा हर जिक्र ,
जो तस्वीर मेरे आंखों में सजाता है ,
हर किसी चेहरे में मुझे ,
बस तेरा ही चेहरा नजर आता है ।

देखते हैं ख़त्म करके ,
तुमसे जुड़ी जिंदगी ,
जो अब तक हमें जिंदा रखे थी ,
तुम्हारे खिलखिहट को आज तक ,
ताउम्र का सच मान बैठी थी ।

देखते हैं ख़त्म करके ,
तुमसे जुड़ी अनगिनत कहानियां ,
जो हम दुनिया को सुनाते थे ,
हर दफा घर छोड़ कर जब ,
तुम किसी और घर चले जाते थे ।

चलो अब सब कुछ ,
ख़त्म करके देखते हैं ।।

Sunday, October 31, 2021

इश्क़ का रंग

इश्क़ का रंग भला ,
आखिर क्या होता होगा ,
किसी का इश्क़ सफेद ,
किसी का लाल होता होगा ।

रंग में किसी का इश्क़ ,
रंगीन भी होता होगा ,
कोई फीका पड़ने पर ,
नया रंग सजोता होगा ।

इश्क़ में बेरंग भला ,
कहां रंग का मतलब समझ पायेगा ,
मायूस हो चुके दिल को ,
कैसे रंगो से भर जायेगा ।

कोई किसी के दाग को ,
रंग समझ.. इश्क़ निभा रहा होगा ,
कोई उसी दाग वाले रंग को ,
दुनिया से छिपा रहा होगा ।

मेरे जिंदगी में इश्क़ बन कर ,
रंग भरने जबसे तुम आई हो ,
रंगो के इस इश्क़ में ,
अपने रंग में रंग लाई हो ।

देखो मेरे इश्क़ का रंग ,
आज से हरा हो गया ,
जिस पल तेरी निगाहों सा ,
तू भी मेरा हो गया ।।

इस पल का सच

तुम मुझे मेरे उस ख़्वाब सी ,
अब लगने लगी हो,
सच बन कर मेरी जिंदगी ,
खुशियों से भरने लगी हो ।

आज हर पल हर लम्हा,
जिसे मैं इस पल जी रहा हूं ,
होकर बस तुम्हारा ,
तुझमें ही खो रहा हूं ।

पहाड़ों का सुकून कहूं तुम्हें ,
या सर्द हवा की छूअन ,
देखो जिक्र आने भर से तुम्हारे ,
खिल उठता है मेरा मन ।

मैं इश्क़ के जिस सफरनामे से ,
इस वक्त गुजर रहा हू ,
तुम्हारी मौजूदगी को मोहब्बत ,
शायद समझने की भूल कर रहा हूं ।

आज कल मोहब्बत की बातें ,
तुम भी क्या खूब करने लगी हो ,
अपनी बेरंग तस्वीरों में ,
मोहब्बत के रंग भरने लगी हो ।

मैं तुमसा बनू या ना बनू ,
पर तुम मुझ जैसा बनने लगी हो ,
ख़्वाब को सच मान कर ,
मुझसे मोहब्बत करने लगी हो ।।

ख़्वाहिश

इश्क़ छोड़ कर जिसको ,
आज तक सब मिला हैं ,
देखो ना आज भी वो ,
किस तन्हाई से गुजर रहा हैं ।

हर शख्स में वो जिस शख्स को ,
अक्सर ढूंढती हैं ,
हर दफा किसी और शख्स से ,
जा कर जुड़ती है ।

मुकमल इश्क़ की कहानियां ,
दुनिया उसे खूब सुनाती है ,
पर वो खुद कहां ,
कभी इश्क़ को मुकम्मल पाती है ।

उलझन में उलझ कर ,
सवालों के पोटली भूल जाती हैं ,
हर दफा जब मिलने उससे ,
आख़िरी दफा समझ कर जाती है ।

मुस्कुराहट पर मरने वाले बहुत हैं ,
पर जीने वाला अब तक कहां मिला हैं ,
आज भी है जिंदगी में संग कोई ,
पर साथ निभाने वाला कहां है ।

उसकी खामोशी को पड़ कर ,
लब पर अल्फाज़ बिखर जाते हैं ,
न जाने बिन कुछ कहे अक्सर ,
लोग ऐसे ही जिंदगी से चले जाते हैं ।

गर सच नहीं तो ख़्वाब में सही ,
वो साथ किसी का चाहती हैं ,
हर दफा सच की ख्वाइश में ,
अपना ही ख़्वाब तोड़ आती है ।।

Friday, October 29, 2021

मैं बेहतर बनूंगा

मैं बेहतर बनूंगा ,
तुम्हारे उस गुजरे कल से ,
बीते हर उलझन वाले पल से ,
और गुजरती हर हलचल से ।

मैं बेहतर बनूंगा ,
तुमसे इश्क़ निभाने में ,
हल पल साथ आने में ,
हर लम्हें को सजाने में ।

मैं बेहतर बनूंगा ,
तुमको ऐसे ही उलझाने में ,
ऐसे ही कसम खिलाने में ,
जिंदगी भर साथ निभाने में ।

मैं बेहतर बनूंगा ,
तुम्हें तुमसे मिलवाने में ,
अपनी मोहबब्त जताने में ,
तुम्हारी पहचान बताने में ।

मैं बेहतर बनूंगा ,
गले का मंगलसूत्र बन कर ,
मांग का सिंदूर बन कर ,
जिंदगी भर जिस्म में रूह बन कर ।

मैं बेहतर बनूंगा इस दफा ,
सिर्फ तुमसे वफ़ा निभाने को ,
जिंदगी के हर पल को ,
खुशियों से भर जाने को ।

मैं बेहतर बनूंगा ,
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए ... समझी ।।

Thursday, October 28, 2021

सच कहूं तो

सच कहूं तो तुमसे ,
अभी कुछ कहा ही कहां है ,
पहली दफा लिखा हर शब्द ,
अभी तुमने जिया ही कहां है ।
 
सच कहूं तो तुमसे ,
कुछ भी तो नहीं छिपा हैं ,
पहली नजर का पहला असर ,
अब तक मुझ पर हो रहा हैं ।

सच कहूं तो तुमसे ,
अभी और भी बहुत कुछ कहना हैं ,
तेरे खिलखिलाहट का इंतजार ,
ना जाने कब तक करते रहना है ।

सच कहूं तो तुमसे ,
तुम्हारा जिक्र दिल को होने लगा है ,
पर दिल का क्या पता ,
शायद वो किसी और में खोने लगा है ।

सच कहूं तो तुमसे ,
हां सच में खुमारी चढ़ने लगी हैं ,
पास तो तुम आई नहीं कभी ,
पर अब दूरी बढ़ने लगी हैं ।

सच कहूं तो तुमसे ,
उलझन अब मेरी बढ़ने लगी है ,
तुम्हें उलझाने की कोशिश में ,
मेरी जिंदगी उलझने लगी है ।

सच कहूं तो .... आगे ,
कुछ कहने को बचा ही कहां हैं ,
शोर के इंतजार में बैठा मुसाफ़िर ,
अब खामोश होने लगा है ।।

Wednesday, October 27, 2021

महफिल की उलझन

और भी हैं महफिल में ,
जिसने दिल लगाते है हम ,
पर सच कहें तो सिर्फ आपको ,
दिल में बसाते हैं हम ।

सुनते हैं सबको और पढ़ते भी हैं ,
अल्फाज़ उनके पकड़ते भी हैं ,
पर आप पर निगाहें थम जाती हैं ,
हर दफा जब कुछ नया सजाती हैं ।

कभी बात में शोर करते लब ,
तो कभी खामोशी की मुस्कुराहट ,
कभी मेरे हिस्से के चंद अल्फाज ,
तो कभी उसकी अनदेखी शरारत ।

वो किसको जिक्र में लाकर ,
ऐसे तस्वीर बनाती हो ,
मानों मुर्दा पड़े किसी शरीर में ,
जान भर जाती हो ।

जीते हैं सिर्फ आप की कहानी में ,
मरने का हमें कोई शौक नहीं ,
अल्फाज़ बने गर तो बना लेना , 
उनको सजाने पर कोई रोक नहीं ।

रही बात महफ़िल से ,
अक्सर तुम्हारे जाने की ,
अधूरे सवालों की पोटली ,
यूंही छोड़ जाने की ।

तो भला तुमसे बेहतर कौन ,
इसका जवाब देगा ,
अगली तस्वीर में जो अपने ,
सारे जुल्मों के हिसाब लेगा ।।

Monday, October 25, 2021

फरेब इश्क़

और भी बचे हैं किस्से ,
जो मेरी जिंदगी में आयेंगे ,
तेरे आने से पहले हम ,
और भी सताए जाएंगे ।

इश्क़ का वादा कर के ,
दिल किसी और का कर के ,
सपने कुछ संग सजाएंगे ,
तोड़ कर वक्त के साथ चले जायेंगे ।

तुम्हारी तलाश में और कितना ,
हमें खुद को तलाशना हैं,
जिंदगी की चाहत में ,
खुद को कितना और बाटना है ।

तुम मेरा वो आखिरी इश्क़ बन कर ,
कब मुझसे इश्क़ निभाओगी ,
मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र ,
मेरे नाम का पहन कर आओगी ।

देखो हर गुजरते रात से ,
एक किस्सा जुड़ रहा हैं ,
छोड़ कर बीच रास्ते मुझे ,
वो अपने किसी के संग मुड़ रहा हैं ।

देकर वास्ता किसी दर्द का ,
दिल किसी और से लगा रहा ,
पास मेरे रहना का वादा कर के ,
किसी और के पास वो जा रहा ।

शिद्दत से मोहब्बत ,
हम तुमसे भी ऐसे ही निभायेंगे ,
इश्क़ का वादा ही नहीं ,
पूरी जिंदगी साथ रह कर दिखाएंगे ।

बस तुम आना जब कभी ,
आखिरी इश्क़ बन कर आना ,
जिंदगी के हर मर्ज की मेरे ,
दवा बन जाना ।।

Sunday, October 24, 2021

तौफा

तौफा क्या खूब दिया उसने आज ,
जब वो मेंहदी वाले हाथ लेकर आई ,
मोहब्बत के बारिश की उम्मीद में बैठी ,
आंसुओ की बारिश से भीग आई ।

सुबह का पहला ख्याल गर वो ,
तो लब पर उसका जिक्र क्यों नहीं आया ,
लगी थी मेंहदी जिसके नाम की ,
वो क्यों नहीं था कुछ कह पाया ।

बहुत से अरमां और ख्वाइश लेकर ,
पिघलते बर्फ़ में मेंहदी लगवा रही थी ,
इश्क़ के एक नए सफ़र में चलने को ,
अपने कदम वो बढ़ा रही थी ।

लगा जैसे कोई सवाल मन में उसके ,
बहुत जोर से आकर टकराया ,
जब मेंहदी लगी थी जिसके नाम से ,
वो खामोश लबों से मिलने आया ।

उसके हिस्से बस खुशियां ही तो ,
वो आज तक लेकर आई थी ,
ना जाने कौन से गुनाह की सजा ,
अपने हिस्से कर आई थी ।

इश्क़ में वो कितना बदनसीब होगा ,
जो उसके इश्क़ से अब तक दूर होगा ,
आज मजबूर वो है मोहब्बत में बेशक ,
देखना कल तू भी जरूर होगा ।।

खिलखिलाहट

सुन कर तुम को ,
अक्सर शाम होती थी ,
दिन में जिस सुकून की ,
हमें हर रोज़ दरकार होती थी ।

तुम वो सुकून बन कर ,
कितनों के हिस्से में आ रही हो ,
मुस्कराहट दे रही सबको अपनी ,
खिलखिलाहट सिर्फ मुझे दिए जा रही हो ।

वो पल कितना खूबसूरत होता होगा ,
जब तुम्हारा जिक्र भी उसे आता होगा ,
तुम्हारी खिलखिलाहट से ,
वो भी औरों की तरह मुस्कुराता होगा ।

मेरे हिस्से ना किया कोई मलाल नहीं ,
और तुमसे अब कोई सवाल नहीं ,
पर जवाब भी तुम्हें नहीं बताऊंगा ,
जब कभी पूछने तुमसे तुम्हारा हाल आऊंगा ।

ना रुक रहे अल्फाज़ खुद से ,
ना मैं उन्हें अब कभी सजा रहा ,
सुन कर तुम्हें और तुम्हारी कहानियां ,
खुद बखुद वो बनता जा रहा ।

तुम सच हो या कोई ख़्वाब हो ,
या मेरा वो छिपा कोई राज़ हो ,
हो कर भी सामने सबके तुम ,
ना जाने क्यों नही मेरे पास हो ।।

फीका इश्क़

इश्क़ में बर्बाद बहुत होते हैं ,
पर आबाद भी तो होते होंगे ,
मुझ जैसे चंद खुशनसीब और ,
तुझ जैसे बदनसीब भी तो होते होंगे ।

होते होंगे इश्क़ की नैया पार लगाने वाले ,
कुछ होते होंगे नाव डुबाने वाले ,
कोई पहली दफा दिल लगाता होगा ,
कोई एक और दफा तोड़ जाता होगा ।

जाता होगा जाने वाले छोड़ कर ,
बेवजह ही रिश्ता तोड़ कर ,
दिल वो भी किसी से लगाने को ,
जो ना मिला तुझसे वो पाने को ।

पाने को नहीं खोने को मिले थे ,
हर सुख चैन जो तुझे दे चुके थे ,
लगा जैसे जन्नत मिल गई हो ,
जो अब जहन्नुम बन रही हो ।

बन रही हैं कहानियां हर रोज़ ,
हर झूठ को छिपाने के लिए ,
हो कर इश्क़ में किसी और के ,
किसी और का बताने के लिए। 

बताने के लिए बचा ही क्या है ,
और छिपाना अब क्या बाकी है ,
मोहब्बत निभाना आसान नहीं होता ,
जब तक मिल ना जाए सच्चा साथी है ।

तेरी मेंहदी

उसके हाथों पर मेहंदी नहीं ,
हमारे इश्क़ की तस्वीर सजी हैं ,
बिछड़ने के बाद आज फिरसे ,
वो अपने महबूब से मिली है ।

कुछ खता हमसे हुई थी ,
और कुछ जुल्म वो भी कर गई ,
बिना जाने किसी सच को ,
एक पल में जब अलविदा कह गई ।

खत्म लगा जैसे मेरी जिंदगी से ,
सब एक पल में हो गया ,
जब मेरे लौटने पर इश्क़ में ,
वो दिल से निकल गया ।

लगा धड़कन मेरी अब ,
मेरा साथ छोड़ने को बेताब हैं ,
इश्क़ में मुझासा वो भी ,
उसकी मौजूदगी का मोहताज़ है ।

सजी है आज फिर वो ,
अपने हाथों पर इश्क़ रचा कर ,
अपने महबूब की तस्वीर ,
दुनिया से छिपा कर ।

रंग कितना गाढ़ा चढ़ेगा ,
या वो कुछ फीका पड़ेगा ,
ये तो आने वाला वक्त बतायेगा ,
मोहब्बत में जब वो खिलने को आयेगा ।

Friday, October 22, 2021

तेरी उलझन

हां इश्क़ सा अब कुछ ,
मुझे होने लगा है ,
पहले से भी ज़ादे ,
दिल मेरा तुझमें खोने लगा है ।

चंद रात से शुरू सफ़र ,
अब दिन के उजाले में ,
अपनी मौजदगी दिखाने लगा है ,
दिल से गुजर कर वो जाने लगा है ।

तुम्हारी खिलखिलाहट में नहीं ,
ना तुम्हारी मुस्कान में ,
छिपी हैं सारी कहानियां तुम्हारे ,
आंखो और उंगलियों के निशान में । 

लबों से दिल तक उतर कर ,
अल्फाज़ बन पन्नों पर सज कर ,
और कितने किस्से बनाओगी ,
कब सवालों की पोटली लाओगी ।

उस रात के इंतजार में ,
हर रात लंबी लगने लगी हैं ,
तु जबसे ख्वाब में मुझसे ,
चुपके चुपके मिलने लगी है ।

देखना चुरा ना ले जाए कोई ,
महफ़िल में आकर गैर ,
उलझना है मुझे इस उलझन में ,
किसी और से उलझे बगैर ।

Wednesday, October 20, 2021

एक झूठ

एक वक्त था जब मेरे लिखे ,
हर खत को वो पूरा पढ़ती थी ,
बिन कहे भी हर बात को ,
वो खूब समझती थी ।

हमने की कोशिश पूरी ,
शिद्दत से जिसे निभाने को ,
लम्हा लम्हा जोड़ कर ,
यादों का कारवां बनाने को । 

कुछ चांद तारों के बात ने हमको ,
कुछ ऐसे उलझाया था ,
खोने की कगार पर दिल ,
खुद ही मेरा चला आया था ।

लगने लगा हर सच जैसे ,
कोई झूठा सा ख़्वाब हो ,
मिल कर जो बिछड़ गया ,
वो कोई नायाब हो ।

वक्त बदला और सब बदला ,
बदल गया उसका मिजाज़ ,
और देखे कितने बदलेगा  ,
कल से वो आज ।

Tuesday, October 19, 2021

संगम

जिस सादगी से तुम ,
मुझसे इस कदर गुजर कर ,
इस महफ़िल से जा रही हो ,
ना जाने कितने दिलों को जला रही हो ।

कितना सुकून है साथ तुम्हारे ,
जैसे बैठा हु किसी शांत नदी किनारे ,
सब कुछ कितना निर्मल हैं ,
खूबसूरत जिसका हर एक पल है ।

शीतल सा ये संगम हमारा ,
रात में चांद की रौशनी का सहारा ,
दृढ़ निश्चय और विश्वास हैं ,
किसी खूबसूरत रिश्ते का आगाज़ है ।

एक रोज़ या हर रोज़ होंगी बातें,
ये तो आने वाला वक्त बताएगा ,
कौन कितनी शिद्दत से ,
अपने सुकून में उलझाएगा ।

कुछ पल और जुड़ गए हिस्से हमारे ,
जिसमें कुछ लम्हों की सौगात हैं ,
कुछ है खामोशी से बोले शब्द तुम्हारे ,
और चंद मेरे भी अल्फाज़ हैं ।

रात कभी वो आयेगी जब ,
कितने सवालों के हम पर वार होंगे ,
उलझने वाले उस रोज़ ,
हमें उलझाने को बेकरार होंगे ।।

Sunday, October 17, 2021

कबूलमनामा

तुमको सच मान लूं अगर ,
ख़्वाब बुरा मान जायेंगे ,
मालूम नहीं अगली दफा ,
फिर कभी वो लौट कर भी आयेंगे ।

ना मांगा हाथ मैंने तुमसे ,
ना ही कोई फरियाद लगाई ,
इस दफा कुछ जल्दी में थी तुम ,
सीधे बाहों में भर आई ।

तुम्हारी आंखो से आंसू फिरसे ,
बारिश बन कर मुझे भीगाने लगें ,
कुछ अलग ही अंदाज में तुम ,
मुझमें जब सिमट जाने लगें ।

किसी बात से तुम मुझसे ,
अपनी नज़रे चुरा रही थी ,
अनजाने में हुई खाता ,
जिसको तुम छिपा रही थी ।

तुम बोली ..

जान कर वो सच मेरा ,
मुझसे दूर तो नहीं तुम जाओगे ,
बड़ी मुश्किल से संभली हूं मैं ,
मुझे छोड़ तो नहीं आओगे ।

सब सच कहा हैं मैंने तुमसे ,
बस कुछ बताना रह गया हैं ,
कोई और भी है दिल में मेरे ,
मेरे अतीत से जो रह गया है ।

कुछ बातें कुछ मुलाकातें संग उसके ,
कुछ हद से बेहद मैं गुजर रही हु ,
तुमसे मिलते मिलते मैं उससे भी ,
कई दफा मिल रहीं हूं ।

मैं मुस्कुरा कर तुम्हें देखता रहा ,
की तभी ख़्वाब टूट गया ,
मालूम नहीं मैं रहा संग तुम्हारे ,
या फिर ये रिश्ता छूट गया ।

ख़ैर 

होंगे बहुत तुम्हारे हुस्न के दीवाने ,
हमें तुम्हारी सीरत पर मरना हैं ,
जिस्म की चाहत नहीं लिए बैठे ,
हमें तो बस रूह में रहना हैं ।।

सफ़र

अब जो थोड़ी थोड़ी बातें ,
हम दोनों करने लगे हैं ,
अपनी ही बनाए उलझन में ,
खुद ही फसने लगें हैं ।

रास्ता मेरे हर उलझन का ,
तुम कैसे निकाल पाओगी ,
गर गुजरते वक्त के साथ ,
खुद ही उलझना चाहोगी ।

एक सवाल और भी करना मुझसे ,
जब कभी अगली बार टकराना ,
रह गया बहुत कुछ अधूरा ,
तुमको जो है बताना ।

हो अगर तुम मेरे जिक्र में ,
कोई और जहन में कैसे आएगा ,
तस्वीर तुम्हारी आंखो में बसी ,
आईना कैसे किसी और को दिखाएगा ।

मिटा भी दोगी गर लिखा मेरा ,
या अपना कुछ कह कर हटाओगी ,
दिल में बसने लगे एहसासों से ,
कब तक तुम भाग पाओगी ।

चंद कदम के चाल से शुरू ,
सफ़र अब कुछ लंबा हो चला है ,
मेरे हर जज़्बात जबसे तुमने ,
अपनी लबों से पढ़ा है ।।

तुम

तुम महज़ कोई ख़्वाब हो ,
या मेरा सच बन कर आई हो ,
खुशियों के अनगिनत सौगात ,
जो संग लेकर आई हो ।

कुछ पल में ही कैसे भला ,
कोई जिंदगी बन जाता हैं ,
इश्क गर होना होता है ,
पल भर में हो जाता है ।

कुछ उखड़ी उखड़ी सी मुझसे ,
तुम आज क्यों लग रही हो ,
छोड़ने का इरादा है क्या मुझको ,
जो दूर चल रही हो ।

हाथ ना थामने का मुझे ,
कोई भी मलाल नहीं ,
रूठ जाऊ मैं इन बातों से ,
इतना भी खुदगर्ज .. बेहाल नहीं ।

एक जुल्म तुमने कल ,
अंजाने में कर दिया था ,
आंखो को अपने आंसुओ से ,
जब तुमने भर दिया था ।

खूबसूरत और भी मुस्कान ,
अब तुम्हारी लगने लगी हैं ,
जबसे आंखो के साथ ,
होठों पर बसने लगी है ।।

कसूर

कुछ पल के लिए मैं ,
अपने मंजिल से भटकने लगा था ,
छोड़ कर साथ तेरा ,
किसी और का होने लगा था ।

थामने को हाथ उसका ,
जब मैंने हाथ आगे बढ़ाया ,
बेहद ही सादगी से उसने ,
मुझे ना से मिलवाया ।

लगा तुम्हारी कोई दुआ ,
जैसे कबूल हो गई हो ,
मेरे दूर जाने की कोशिश,
फिरसे बेफिजूल रह गई हो ।

तुमसे कैसी ये दिल लगी हैं ,
जो दिल मेरा किसी और को ,
चुराने नहीं देती है ,
खींच कर अपनी ओर कर लेती है ।

खुली आंखे तो ख्याल ,
बस तुम्हारा ही मुझे आया ,
थामा कर हाथ क्यों नहीं तुमने ,
था मुझे पास बुलाया ।।

कुछ पल के लिए भी दूर जाना ,
अब तुमसे मंजूर नहीं  ,
दे देना हर सजा जुल्म की मेरे ,
गर लगे मेरा कसूर कभी ।।

Saturday, October 16, 2021

किस्सा

एक नन्ही सी गुड़िया ,
अब बड़ी हो चली थी ,
पालने से उठ कर ,
अब खड़ी हो चली थी ।

खूबसूरत बचपन और उसकी यादें ,
आज भी जिनसे वो मुस्कुराती है ,
जब कभी अपने आज को देख ,
अक्सर मायूस हो जाती है ।

सफ़र जिंदगी का आसन नहीं ,
मुश्किलों से भरा है ,
मंज़िल की तरफ रास्ता ,
अनगिनत काटों से भरा है। 

मांग में सिंदूर सजने पर ,
सबके हिस्से खुशियां आती है ,
उस जैसे चंद बदनसीब के हिस्से ,
सिर्फ जिल्लत और दर्द लाती हैं ।

हमसफ़र मान कर जिसका ,
उसने हाथ थामा था ,
एक वक्त के बाद उसने भी ,
कहां मुझे अपना माना था ।

इश्क़ की तलाश में उसका दिल ,
कई दफा अजनबियों से लगा ,
पर कहां कोई भी अजनबी ,
उसकी रूह में बस सका ।

उसके हिस्से की खुशियां देने ,
किसी रोज़ कोई शहजादा आएगा ,
अधूरी रह गई हर ख्वाइश जिसकी ,
सब पूरी कर जायेगा ।।

रौशनी

ख़ुद उलझ कर जिंदगी में ,
दूसरो के मसले सुलझाती है ,
गम से भरी जिंदगी के साथ भी ,
मुस्कुराना सिखाती है ।

सपने देखे उसने कई हज़ार ,
टूटे जाते हैं जो बार बार ,
फिर भी नए ख़्वाब सजाती है ,
हार कर भी जीत जाती है ।

अपनी मंज़िल अपनी दुनिया ,
अपना ही घर बनाती है ,
फर्ज मां बाप बच्चे सबका ,
खुद ही निभाती है ।

मुश्किल लगे सफ़र में ,
हमसफर कभी नहीं भाया ,
रह गई अपनो के पास ,
बन कर उनकी छाया ।

सवाल अनगिनत और चंद जवाब ,
अक्सर खामोशी से उससे मिलते हैं ,
चुपके चुपके आकार कर दिल में ,
पलकों से जो गिरते हैं ।

बदलते वक्त और तजुर्बे से ,
अब वो और सुलझने लगी है ,
बन कर अंधेरे में दीपक ,
औरों की जिंदगी रौशनी से भरने लगी है ।।

अजनबी जिंदगी

आज सुबह मैं मिला तुमसे ,
एक अजनबी बन कर ,
शाम को थी तुम साथ मेरे ,
मेरी जिंदगी बन कर ।

पता ही नहीं वक्त गुजरा कैसे ,
और हम दोनों भी थम गए ,
मंजिल का पता नहीं ,
बस हम राही बन गए ।

रात कटने से भी ना कटे ,
और दिन के आने का इंतजार ,
क्या खूबसूरत लग रहा ,
जब हो रहा दिल बेकरार ।

तेरी कही हर बात मुझसे ,
जुड़ी हर याद जिससे ,
सब कुछ हुबहू मेरे जहन में जिंदा है,
दिल का तो भरोसा नहीं ,
वो तो एक परिंदा है ।

फूल की वो कली हो तुम ,
जो अब खिलने को आ रही है ,
फिज़ा में घुल कर खुशबू जिसकी ,
मेरी जिंदगी को महका रही है ।

पल भर की खुशी कहूं तुम्हें ,
या जिंदगी भर की याद ,
गुजर कर भी जिंदा है मुझमें ,
हमारी वो खूबसूरत रात ।।

आंखो की भाषा

तेरी आंखों में देखने की इजाज़त नहीं ,
फिर भी देखने का जुल्म कर बैठा हु ,
जब से तेरे बिंदी को अपना  ,
इकलौता दिल दिए बैठा हु ।

नज़र तेरे बिंदी से जब गुजरी ,
निगाहों पे आकर थम गई ,
मानों खुबसूरती कायनात की ,
तेरे चेहरे पर ही आकर बस गई ।

तेरे खुले जुल्फ अब मुझे ,
बहुत उलझाने लगे हैं ,
बिखर कर जबसे तेरे ,
चेहरे को छिपाने लगे हैं ।

देख कर भी निगाहों को तुझे ,
अब चैन क्यों नहीं आ रहा ,
दूर जाने की कोशिश में मैं,
तेरे पास क्यों आ रहा ।

लबों पर ये कैसी खामोशी लिए ,
आज तुम ऐसे बैठी हो ,
मेरे कहानी का एक अहम हिस्सा ,
कुछ पल में ही बन बैठी हो ।

होंगे बहुत तुम्हारे हुस्न के दीवाने ,
हमें तुम्हारी सीरत पर मरना है ,
जिस्म की चाहत नहीं लिए बैठे ,
हमें तो बस रूह में रहना है ।।

Friday, October 15, 2021

खामोशी से ना

मेरे आते ही जब तुम ,
कहीं चले गए ,
बड़ी खामोशी से हमें ,
ना कह गए ।

वक्त का सितम मुझ पर ,
क्या खूब वक्त ढा रहा है ,
घर आते ही उसके मेरे  ,
वो चला जा रहा है ।

चलो अब कभी उसके घर ,
ऐसे हम नही जाएंगे ,
सुकून की तलाश में ,
घर अपना ही बनाएंगे ।

आना तुम कभी घर मेरे ,
अपनी ही तस्वीर पाओगे ,
वजह मेरे मुस्कराने की ,
अपनी आखों से देख पाओगे ।

माना की मजबूर हो तुम ,
शायद इस लिए दूर हो तुम ,
बिना कुछ वक्त दिए भी ,
मुझे मंजूर हो तुम ।

भला कैसे तुम ,
मुझे ऐसे छोड़ कर जाते हो , 
सुकून की तलाश में मुझे ,
अनचाही सी खामोशी दे जाते हो ।।

इश्क़ की वजह

इश्क़ में हो तुम किसी के ,
या किसी रिश्ते में बंधी हो ,
दिल में है भी कोई जगह ,
या पहले ही भर चुकी हो ।

पूछा नहीं कभी तुमसे ,
ना तुमने कभी मुझे बताया ,
हां तुम्हारे एक सवाल से ,
दिल थोड़ा था घबराया ।

ख्वाबों को छोड़ कर आज कल ,
तुम सब जगह आने लगी हो ,
नींद चुरा कर रातों की जबसे ,
तुम मेरी जाने लगी हो ।

तुम से कही हर बार चुपके से ,
दुनिया जान चुकी है ,
तुम्हें छोड़ कर सारी दुनिया ,
जिसे सच मान चुकी है ।

जान कर हाल-ए-दिल अगर ,
तुमसे इश्क़ हो तो भला ,
वो इश्क़ ही क्या होगा ,
फैसला जिसका तुम्हारा इश्क़ करेगा ।

मैंने दिल को रोका नहीं कभी ,
ना दिल को तेरे हां का इंतजार ,
इश्क़ गर एकतरफा भी हो ,
कहते तो उसे भी प्यार हैं ।।

Thursday, October 14, 2021

आप से तुम

आप से तुम ,
तुम से अब मेरी हो गई ,
एक पल में हुई मोहब्बत ,
मेरी जिंदगी बन गई ।

तुम्हारी मुस्कुराहट से शुरू ,
इश्क़ की कहानी हुई ,
आंखो में बसी तस्वीर तुम्हारी ,
दुनिया जिसकी दीवानी हुई ।

मैं चलने लगा सफ़र में ,
तेरे एक सवाल के बाद ,
कह दिया तू ही है जवाब ,
हर कलाम के साथ ।

तेरे आंखो की शरारत ,
तुझे और खूबसूरत बना रहीं थी ,
नज़रे बड़ी फुरसत से ,
हमसे आज तुम मिला रहीं थी ।

मैं निहार रहा तुझे अब भी ,
कोई ख़्वाब समझ कर ,
लौटा दो मेरा सच मुझे ,
अपना आफ़ताब समझ कर ।

और भी है सर्द गलियां ,
जिससे मुझे गुजर कर जाना है ,
रोक लो थाम कर हाथ मेरा ,
गर आखिरी यही ठिकाना है ।

कुछ नई सी शुरुआत ,
अब सफ़र का हिस्सा बन गई ,
एक पल में हो कर दूर वो ,
कोई किस्सा बन गई ।।

तेरी मुस्कान

तेरी हर अदा में ये ,
कुछ अलग सा जादू है ,
जितनी दफ़ा देखू तुम्हें ,
हो रहा दिल मेरा बेकाबू है ।

जु़ल्फ़ को चहरे से झटकना ,
नैनों का बेसुध हो कर मटकना ,
ख्याल कुछ खूबसूरत बुन रही थी ,
जब दुनिया तुम्हें सुन रही थी । 

तुम अपनी और भी अदाओं से ,
हमें घायल करती हो ,
हर दफ़ा शुक्रिया कहने का ,
जब जुल्म़ करती हो ।

इश्क़ भी तुम खुद से ,
क्या खूब करती हो ,
हर दफा जब आईने में ,
अपने महबूब से मिलती हो ।

क्या हर दफा़ तुम ऐसे ही ,
मुझे शिद्दत से मिलोगी ,
या फिर किसी हड़बड़ी में ,
मुझे नज़रअंदाज़ करोगी ।

कहा है क्या कभी किसी ने तुमसे ,
तुम्हारी मुस्कुराहाट कातिलाना है ,
जिंदगी की चाहत में हमारा भी ,
एक रोज़ कत्ल हो जाना है ।
 
समय ने ये क्या कर दिया  ,
एक पल में काया बदल दिया ,
मायूस हो चले इस जीवन को,
तुमने अपनी मुस्कुराहट से भर दिया ।।

एक पल

एक पल में ही तो ,
इश्क़ होता है ,
एक पल में ही तो ,
इश्क़ खोता है ।

एक पल में ही तो ,
जज़्बात निखर आते है ,
एक पल में ही तो ,
ख़्वाब बिखर जाते है ।

एक पल में ही तो ,
वो मेरी हो जाती है ,
एक पल में ही तो ,
दूरी बढ़ जाती है ।

एक पल में ही तो ,
जिंदगी स्वर्ग बन जाती है ,
एक पल में ही तो ,
नर्क से भी बत्तर हो जाती है ।

एक पल में ही तो ,
गैर भी अपने हो जाते हैं ,
एक पल में ही तो ,
अपने भी पराए कर जाते है ।

एक पल में ही तो ,
नज़रिया मिल जाता हैं ,
एक पल में ही तो ,
अपना अजनबी कहलाता हैं ।

एक पल में ही तो ,
उसका दाम होता है ,
एक पल में ही तो ,
वो नीलाम होता है ।

एक पल में ही तो ,
किसी की कोख में आता है ,
एक पल में ही तो ,
छोड़ कर जिस्म रूह बन जाता है ।

एक पल में ही तो ,
कुछ शुक्रिया कहते हैं ,
एक पल में ही तो ,
खुदगर्ज भी आप से गुजरते हैं ।

एक पल में ही तो ,
कुछ कहना होता है ,
एक पल में ही तो ,
बस सुनते रहना होता है ।

एक पल में ही तो ,
साथ उसका भाता है ,
एक पल में ही तो ,
छोड़ कर वो चला जाता है ।।

शुक्रिया मत कहना

चुपके चुपके आज कल ,
मैं तुझे निहारने लगा हू ,
बिना इजाज़त के भी ,
तेरा नाम पुकारने लगा हू ।

तुझसे दिल लगी अजब सी ,
और ये कैसी बेकरारी है ,
मुकमल इश्क़ मेरे हिस्से में ,
फिर भी क्यों चढ़ी तेरी खुमारी है ।

चांद की रौशनी बन कर ,
जगमगाने तू आई है ,
मेरे रात के अंधेरे को ,
रौशनी से भर आई है ।

कुछ तो बहुत अलग बात है ,
जो दिल मेरा इतना बेताब है ,
वरना गुजरते है बहुत महफिल से ,
जुड़ते क्यों नहीं मेरे सबसे जजाब्त हैं ।

मौजूदगी ऐसे ही महफ़िल में ,
तेरी बस बनी रहे हर रोज़ ,
मिल जाए शायद मेरी खुशी ,
मुझे भी किसी रोज़ ।

तुझसे कोई और फरियाद ,
अब मैं नहीं करूंगा ,
खामोश रहना मंजूर मुझे ,
बस शुक्रिया नहीं सुनूंगा ।।

लाज़मी

तुम्हारे लबों पर हंसी ,
और दिल में सवाल लाज़मी हैं ,
भला कैसे जान गए हम वो सब ,
जो छिपा अजनबियों से आज भी है ।

मानता हु मेरे गुस्ताखी की ,
कोई माफी नहीं होगी ,
लिखी हुई मेरी बात ,
अब काफी नहीं होगी ।

चलो एक फरमाइश तुमसे ,
मैं कर के ही जाता हू ,
ख्वाइशों की पोटली से ,
एक ख्वाइश ले आता हू ।

मुस्कुराहट जरा इस दफा ,
होठों पर दिल से लाना ,
हो सके तो लम्हों में ही सही ,
खुल के मुस्कुराना ।

किसी और गहने से पहले ,
मुस्कुराहट का श्रृंगार ,
उस पर क्या खुब जचेगा ,
गर वो कभी मुस्कुराहट से सजेगा ।।

Wednesday, October 13, 2021

गुस्ताखी

तेरे मुस्कराते चेहरे के पीछे ,
एक मायूस दिल बैठा है ,
धड़कता था जो जोर जोर से ,
आज कल खामोश बैठा है ।

तेरे झुमके , तेरा काजल ,
और बिखरी जुल्फें तेरी ,
सब कुछ बता रहे हैं ,
तेरा हाल-ए-दिल सुना रहे हैं ।

दिल लगाती जितनी शिद्दत से तुम ,
तोड़ता उसे वो उतनी जोर से ,
तू करती मोहब्बत उससे ,
वो करता किसी और से ।

तुम तलाश में जिंदगी के ,
दिल अक्सर लगाती हो ,
खुद के जख्मों पर मरहम की आस में ,
उन्हें और घायल कर जाती हो ।

वैसे भी दिल तेरा कहां कोई ,
ऐसे ही चुरा पाता है ,
जब तक पूरी तरह तेरे दिल में  ,
वो उतर नहीं जाता है ।

मुस्कुराते तस्वीर को तेरे ,
सब सच मान बैठे हैं ,
इस महफिल में इकलौते हम ,
जिसे झूठ मान बैठे हैं ।

है और भी गुस्ताखी मेरे हिस्से ,
करते जिसे हम जाएंगे ,
अगली दफा जब कोई और झूठी ,
तस्वीर वो लगाएंगे ।।

लौटी थी जिंदगी

तुम मिली मुझसे जब अरसे बाद ,
कुछ भी तो नहीं बदला था ,
सिवाए निगाहें और नज़रिए के ,
सब कुछ तो पहले जैसा था ।

मैंने सोचा नहीं था कभी ,
की हम ऐसे भी मिलेंगे ,
बर्बाद कर के एक दूसरे को ,
जिंदा रह सकेंगे ।

बिखरी जुल्फ आज भी  ,
आंखो को तुम्हारे छिपा रही  ,
अपनी उन नाजुक उंगलियों से ,
क्यों नहीं जिन्हें तुम हटा रही ।

मेरे रकीब के दिए ज़ख़्म ,
क्यों तुम छिपा रही हो ,
इश्क़ में आज भी हो मेरे ,
फिर क्यों नज़रे चुरा रही हो । 

थामने को हाथ तुम्हारा ,
मेरे हाथ आगे क्यों नहीं बढ़ रहे ,
देख कर आंखो मे लाचारी ,
हम बाहों में तुम्हें क्यों नहीं भर रहे ।

लौट कर आई है जिंदगी मेरी ,
फिर भी मौत मुझे मंजूर है ,
बार बार मेरे हिस्से ही क्यों सजा ,
आखिर मेरा क्या कसूर है ।

दफ्न कब्र में लाश मेरी ,
भला कौन ही दिल लगाएगा ,
लौट कर आया महबूब मेरा ,
फिर लौट जाएगा ।

हार गया मैं हर बाजी इश्क़ की ,
अब जीतना रास नहीं आता ,
लौट कर आने वाला  ,
आखिर दूर ही क्यों जाता ।।

Tuesday, October 12, 2021

ये भी जरूरी था

जरूरी था मेरे खत का खोना ,
तेरा किसी और का होना ,
हर रात इस मलाल से ,
अपनी पलकों को भिगोना ।

तेरे आने से जाने तक ,
हर बात मुझे याद हैं ,
तेरा जिक्र तेरे निशान ,
आज भी उतने ही साफ हैं ।

ना मैंने कभी इजहार किया ,
ना तूने कभी इनकार किया ,
जिस पल मैंने तुझसे लगाया दिल ,
तुने उस पल किसी और से प्यार किया ।

वक्त के साथ बदल गया सब ,
बस मेरा इश्क़ नहीं बदला ,
दिल का हुआ हाल कुछ ऐसा ,
सर्द मौसम में था जो पिघला ।

आज भी तेरी याद में ,
हम किस्से दुनिया को सुनाते है ,
दस्ता-ए-इश्क़ में तुझे हीरो ,
खुद को विलन बताते हैं ।

मेरी आखिरी तुझसे ,
बस इतनी सी फरियाद है ,
मत बाटना मेरी मोहब्बत ,
रह गई जो तेरे पास है ।।

Sunday, October 10, 2021

दगेबाज

दिल में कुछ हलचल तो है मेरे ,
पर ये मलाल कैसा हैं ,
इश्क़ गर जवाब है सबका ,
तो ये सवाल कैसा है ।

मेरे मर्ज की दवा ना सही ,
ज़ख्म भी तो मत बढ़ाओ ,
दुआ ना करो मेरे लिए ठीक  ,
बद्दुआ तो मत दे जाओ ।

तुमसे मिला था जिस हाल में मैं ,
वो हाल अब मेरा हो चला हैं ,
कत्ल तेरी मोहब्बत का हुआ था तब ,
अब तू मेरी मोहब्बत का कर चला है ।

तेरी आंखों में सिवाए आंसू के ,
कुछ भी तो नहीं बचा था ,
महबूब छोड़ कर जबसे तेरा ,
तुझसे दूर हो चला था ।

कह कर माथे पर सजाने को बिंदी ,
बस इकलौता जुल्म मैंने किया था ,
उस रोज़ तूने मेरा ये हक भी ,
मुझसे छीन लिया था ।

गम मुझे तेरे जाने का नहीं ,
मेरे रहने का मुझे सताता है ,
बेवक्त अक्सर बीच रास्तों में ,
छोड़ कर तू यूहीं चला जाता है ।

दगेबाज .. मोहब्बत में तुम ,
कब तक ऐसे ही सताओगे ,
मरहम देने वाले के हिस्से में ,
ज़ख्म छोड़ कर जाओगे ।।

Saturday, October 9, 2021

सिगरेट सा इश्क़


तू इश्क़ मुझसे गर कर ,
अपनी सिगरेट सा करना ,
जला कर मुझे राख ,
खुद को ख़त्म करना ।

हर कश में लगेगी जन्नत आत्मा,
जहनूम जिस्म बन रहा होगा ,
लबों पर रख कर मुझे तू ,
जब सुकून से पी रहा होगा ।

तलब मेरी कुछ इस कदर ,
तुझे बर्बाद करती जायेगी ,
मोहबब्त इतनी गहरी होने लगेगी ,
छोड़ नहीं तू जिसे पायेगी ।

मंजर तो और भी देखेगी ,
मुझसे इश्क़ निभाने जब आयेगी ,
लबों पर बसने गैरों के ,
जब खुद मुझे छोड़ कर आयेगी ।

बन कर जहर मैं इश्क़ का ,
फिर उनको भी सताऊंगा ,
लबों से उतर कर ,
दिल में बस जाऊंगा ।

बस शिकायत इतनी सी ,
मैं आज दुनिया से करता हू ,
भला मैं टूटने पर ही सबके ,
अक्सर क्यों लबों पे जलता हू ।

आसान नहीं होगा इश्क़ मुझसे ,
गर कभी इरादा बन जाए ,
ना करू मैं इश्क़ किसी से ,
गर उसका महबूब मिल जाए ।।

Friday, October 8, 2021

मधुरिमा

मधुरिमा की ये खूबसूरत सौगात ,
आज हम सब को खुशनसीब,
देखो बना रही है ,
दिल से गा कर जब दिल चुरा रही है ।

सुर में संगम है जिसके ,
साज भी मस्त मलंग है ,
हया के चादर ओढ़े ,
ये कौन खूबसूरत नज़्म है ।

अल्फाज़ बस बन कर तस्वीर ,
खुद पन्नों पर उतर आए ,
जिन लम्हों को तुमने ,
अपने संगीत से सजाए । 

दिल के बिखरे टुकड़े तुम्हारे ,
क्या खूब तुम जिन्हें छिपाती है ,
बेहद ही सादगी से अक्सर ,
धुन नया जिन्हें दे जाती हो ।

इश्क़ को मुकम्मल नहीं ,
तुन्हें उसे मुमकिन बनाना है ,
दर्द में कैसे मुस्कुराते हैं अक्सर ,
तुम्हें दुनिया को सीखना है ।

अब तक टुकड़ों में मिली खुशियां ,
और बिखरे तुम्हारे जज़्बात हैं ,
बस रखना भरोसा वक्त पर अपने ,
वो आज भी तुम्हारे साथ है ।।

सफेद लिबास

सफेद रंग से इश्क भी ,
बेहद कमाल होता होगा ,
भूरी आखों वाली उस लड़की को ,
आइना जब सफेद लिबास में देखता होगा ।

वो खुद को सजाती नहीं होगी ,
माथे पर बिंदी लगाती नही होगी ,
ना कभी होठों पर रंग चढ़ता होगा ,
ना ही कोई और रंग जचता होगा ।

बस सफेद सा इश्क़ उसका ,
सफेद लिबास में निखर कर आता होगा ,
एक पल में जाने वाला मुसाफ़िर ,
ताउम्र उसे देखने वही रुक जाता होगा ।

स्वेत मन सा स्वेत सीरत जिसका ,
कितने दिलों को जलाती होगी ,
आईने की तस्वीर को जब ,
दुनिया से छिपाती होगी ।

आइना जब किसी की खूबसूरती से ,
खुद ही संवरता होगा ,
सफेद लिबास में वो शख्स ,
कितना खूबसूरत लगता होगा ।

ख्वाबों में बन कर परी नहीं ,
मेरे आखों की तस्वीर बन कर दिखाना ,
हो सके तो अलगी दफा ,
सफेद लिबास में ही मिलने आना ।।

Thursday, October 7, 2021

लिबास

देखा तुझे जो अरसे बाद ,
तेरे ज़ख्म नजर आए ,
मोहब्बत में था कंकाल छिपा ,
और क्या ही वो हाल-ए-दिल बताएं ।

ना अब तेरी मेरी वो बातें है ,
ना ही रातों से जुड़ी यादें है ,
बचा सिर्फ तेरा एहसास है ,
दूर हो कर भी जो मेरे पास है ।

इश्क़ का लिबास ओढ़ कर ,
ज़ख्म भला कैसे तुम छिपाती हो ,
तोड़ कर दिल अपना टुकड़ों में ,
मामूली से ज़ख्म जिन्हें बताती हो ।

चांद आज भी आसमान में ,
पलके बिछाए बैठा होगा ,
अपने उस एक तारे को ,
आकाश गंगा में ढूंढ रहा होगा ।

लौट कर आने को अब कहूंगा नहीं ,
क्योंकि तुमको मैं खो चुका हु ,
ना चाह कर भी दिल ,
किसी और को तुझ जैसे दे चुका हु ।

लिबास इश्क़ का हो मेरे ,
या हो तेरे टूटे दिल का , 
जब भी उतरने को आता है ,
ज़ख्म भला कहां छिप पाता है ।।

महबूब के सनम

कभी छोड़ा क्या इश्क़ में तुमने किसी को , 
किसी और से दिल लगाने के लिए ,
कहा है क्या छोड़ कर तुम्हें ,
उसका हो जाने के लिए ।

बड़ा ही दर्द भरा ये ज़ख्म होता है ,
जब मोहब्बत होकर भी ,
कोई आशिक़ अपनी मोहब्बत को ,
किसी और का होने को कह देता है ।

ना दिन के उजालों में रौशनी ,
ना रात के अंधेरे में जुगनू ,
ना ही धड़कनों का कहीं ,
शोर कोई सुनाई देता है ।

इश्क़ में बिखरने की दास्तां ,
और बिखरते रिश्तों के निशान ,
आज भी बहुत सताते हैं ,
इश्क़ में मीत से जब दूर हो जाते हैं ।

हर पल हर कदम पर ,
उसकी बात निकल ही आती है ,
इश्क़ के कहानियों की ,
बात जब भी शुरू हो जाती है ।

मेरे नींद से जुड़े जिसके ख़्वाब थे ,
मेरी खुशियों की सौगात जिसके पास थे ,
सब कुछ एक पल में देखो बिखर गया ,
इश्क़ जब उसे भी किसी और से हो गया ।

महफूज़ रहो तुम बाहों में उसके ,
जन्नत उसकी दुनिया बनाओ ,
इश्क़ में कुर्बानी मेरे हिस्से ,
तुम बस शिद्दत से इश्क़ निभाओ ।

मोहबब्त में कुर्बानी की ,
तुमने ये कैसी सजा दे डाली है ,
बना दी जिंदगी मेरी ,
लावारिस और बेचारी है ।।

Tuesday, October 5, 2021

तौबा

डर लगता है मुझको वादों से ,
क्या सच में जिन्हें निभा पाऊंगा ,
या चंद लम्हों की ख्वाइश लिए ,
तोड़ जिन्हें कही और उड़ जाऊंगा ।

पल भर की होगी खुशी ,
या गम की दास्तां मैं सुनाऊंगा ,
जब करने मोहब्बत का वादा ,
कभी तेरे पास आऊंगा । 

मुझे भरने हैं घाव अपने ,
तेरे जख्म की परवाह नहीं ,
इश्क़ में मुझ जैसा मामूली है ,
तू कोई खुदा नहीं ।

जब तक हासिल होता नहीं,
तुझे पाने की मन्नते मांगता हू ,
मिल जाती है जैसे ही मोहब्बत तेरी ,
गैर से दिल लगाता हू ।

इश्क़ में भूखा और प्यासा ,
सिर्फ आशिक ही नहीं सोता ,
कई दफा दगेबाज़ी मिलने का बाद ,
हाल महबूब का भी यही होता ।

बस ऐसे ही कुछ ख्याल ,
मेरा दिल तोड़ जाते हैं ,
हर दफा जब इश्क़ में ,
वादा करने का मन बनाते हैं ।।

तुम और सुकून

पहाड़ की ऊंचाइयों पर ,
जब तुम आकर मेरे गले लगे थे ,
सर्द पड़े उस मौसम में भी ,
बर्फ पहाड़ों से पिघल रहे थे ।

तुम्हारी आंखों में थी जन्नत ,
और कई खूबसूरत ख़्वाब ,
जीने लगे थे जो इस पल में ,
तुम उठा कर नकाब ।

तुम्हारे होठों पे मुस्कुरहाट ,
और पलकों की शरारत ,
जुल्फ भी तुम बिखेर रहे थे ,
जब मेरा होने को पास आ रहे थे ।

थाम कर हाथ मेरा जब ,
तुमने चलना शुरू किया ,
रोक कर कही बीच रास्ते ,
मेरे लबों को छू लिया  ।

खुले आसमां में ख्वाइश ,
जब अपनी वो पूरी कर रहे थे ,
अमावस की रात में भी ,
चांद को चमकता देख रहे थे ।

बढ़ते कदम घर की ओर ,
धड़कनों को बढ़ाने लगे था ,
अरसे बाद फिर इस दिल में ,
वो घर बसाने लगे थे ।

पहाड़ों पर बर्फ की चादर ,
अब पिघलने लगी है ,
सूरज की किरणों से ,
जबसे वो मिलने लगी है ।

तेरे साथ सा खूबसूरत ,
कोई और लम्हा क्या होगा ,
तेरी बाहों में सुकून ,
जिसमें पूरा जहां होगा ।

मिल गई खुशियां मुझे ,
और इश्क़ की सौगात ,
था मेरे हिस्से जो छूट गया ,
वो एक खूबसूरत रात ।।

Wednesday, September 29, 2021

रकीब की बिंदी

माथे से उसने बिंदी नहीं ,
मेरे इश्क़ को हटाया था ,
मिलने जब उससे उसका ,
कोई मीत आया था ।

रूठने पर मनाने का सिलसिला ,
आज मैंने फिर शुरू किया था ,
मान कर जेहनसीब जिसे ,
उसके हिस्से अपना वक्त किया था ।

दिल जो पहले जिससे लगा था ,
वो आज अजनबी सा लग रहा था ,
मेरे इज़हार करने पर पहली दफा ,
वो अपनी नज़रे फेर रहा था ।

मुकम्मल हो इश्क़ उसका ,
लिखा जो हो उसके नसीब में ,
रकीब नहीं बनना मुझे  ,
किसी दिलजले के इश्क़ में ।

हारना लाज़मी होता है इश्क़ में ,
किसी को जिताने के लिए ,
एक तरफा मोहब्बत को ,
इस कदर निभाने के लिए ।

मिलेगा कोई एक रोज़ मुझे ,
जो मुझसे भी इश्क़ निभायेगा ,
मेरे नाम की बिंदी से ,
खुद को सजाएगा ।।

दिल मेरा

दिल को मेरे क्या हुआ है ,
ये अब क्यों उलझ रहा है ,
दूर तो कल भी थी वो मुझसे ,
पर अब क्यों दूर लग रहा है ।

खामोशी उसकी शोर कर रही ,
गैर मौजूदगी कमजोर कर रही ,
फासलों को मिटाने पर मुझे ,
देखो अब मजबूर कर रही ।

होठों पर लबों की बात लाकर ,
मुझसे ये कैसा करार कर रही है ,
बेकरारी को बढ़ा कर मेरे ,
मुझे मुझमें उलझा रही है ।

सब कुछ खूबसूरत लगने लगा है ,
जबसे अपने निगाहों से दिखा रही है ,
दीवानगी की हद से बेहद होने को ,
सरेआम झुठला रही है ।

फितूर मेरा उतरा नहीं कभी ,
बस उसका फितूर अब चढ़ने लगा हैं ,
देखो ना इश्क़ का ज़हर ,
अब जहन में घुलने लगा है ।

परवान चढ़ने लगा है इश्क़ जो ,
अब तो उसे निभाना है ,
चंद लम्हों की हो खुशी या जिंदगी भर की ,
उसके हिस्से जिसे कर जाना है ।।

बदनाम

दिल में बसा है कोई और ,
तस्वीर किसी और की दिखा रही ,
नाम किसी और का लेकर ,
पता किसी और का बता रही ।

रास्ते बदल रही हर मोड़ पर ,
नक्शे को भी छिपा रही ,
कभी मिल रही किसी अपने से ,
कभी अजनबी को अपना बता रही ।

भूल कर कल को ,
कल अपना बना रही है ,
आज का मालूम नहीं ,
वादा कल का किए जा रही है ।

इश्क़ में बदनाम हो कर भी ,
दिल खुलेआम लगा रही है ,
गुमनाम शहर के किसी कोने में ,
अपना आशियाना सजा रही है ।

मिल रहे हर ज़ख़्म को ,
घाव खुद बना रही है ,
मरहम लगाने वाले हाथों को ,
जख्मों से भरे जा रही है ।

खैर,

इश्क़ में भला ऐसा कभी ,
कहीं होता है क्या ,
बर्बाद करने वाला भी ,
कभी रोता है क्या ?


बदनसीब मां

जिस रोज़ मुझे घसीट कर ,
दहलीज तक वो लाय थे ,
छीन कर मेरे लाल को ,
मुझे चौखट पर छोड़ आए थे ।

मैं तड़प रही थी उसके आस में ,
था नहीं कोई भी खड़ा मेरे पास में ,
जुल्म मेरा बस मेरी एक "ना" थी ,
किसी के हरकतों से मैं खफा थी ।

जब निकली उस चौखट से ,
आजाद हो कर भी कैद हो गई ,
अपने जिगर के टुकड़े के बगैर ,
मैं इस जहां में अनाथ हो गई ।

हर सुबह पहला ख्याल भी उसका ,
हर रात भी वही आखिरी होता है ,
आज भी लगती चोट गर कभी ,
मेरा ही नाम लेकर रोता है ।

मेरी आंखो में हर वक्त नमी ,
उसकी कमी को बताता हैं ,
बगैर बच्चे के किस मां को ,
भला सुकून मिल पाता है । 

मेरे हिस्से के गम को ,
बस वही कम कर पायेगा ,
लौट कर मेरा लाल ,
जब मुझे गले लगाएगा । 

वो मां कितनी बदनसीब होती होगी ,
कोख में पलने वाले से ,
जब कभी किसी गैर के खातिर ,
मुझ जैसे दूर होती होगी ।।

आसमानी परिंदा

आज भी शाम को ,
वो छत पर आती होगी ,
किसी परिंदे को कैद करने ,
निगाहों का पिंजड़ा लाती होगी ।

बहुत परिंदे उड़कर ,
उसके छत पर आते होंगे ,
समझ कर आसमां उसे ,
पिंचड़े में फंस जाते होंगे ।

इश्क़ उनसे भी मुझसा ,
वो निभाती होगी ,
उंगलियों से आज भी ,
बिखरे जुल्फ सुलझाती होगी ।

कहानियों में उसके दर्द ,
और जिल्लत का जिक्र होगा ,
कर रहा कोई नया परिंदा ,
उसकी फिक्र होगा ।

आज भी किसी कैद परिंदे को ,
आजादी का पाठ पढ़ा रही होगी ,
कैद में रख कर जिसे ,
आजाद बता रही होगी ।।

कुछ नहीं बचा

ना किसी की मौजूदगी ,
ना ही किसी का आना ,
ना कोई खुशी की वजह ,
ना ही किसी से दिल लगाना ।

ना मुझे सुकून आता है ,
ना बेकरारी जाती है ,
ना उतरती खुमारी ,
ना ही वो मेरे पास आती है ।

ना दिल पूछता कोई सवाल ,
ना कोई जवाब होता है ,
ना कोई हाले दिल जानता ,
ना किसी को याद होता है ।

ना मिलता किसी से दिल ,
ना कोई दिल लगाता है ,
ना किसी से उलझता ,
ना किसी को सताता है ।

ना अब धड़कन का शोर हैं ,
ना ही दिल पर किसी का जोर है ,
ना कोई दिलबर है दिल लगाने को ,
ना ही दिल बचा है किसी का हो जाने को ।

ना जिस्म में अब जान बची है ,
ना ही वो पास खड़ी है ,
ना ही इश्क़ कोई अधुरा है ,
ना ही करना जिसे पूरा है ।

अब कुछ भी बचा नहीं ,
इस ना को हां बनाने में ,
बेहतर होगा जिंदा लाश को ,
किसी कब्र में दफनाने में ।।

Tuesday, September 28, 2021

तेरे जाने पर

तुम जाते जाते ,
क्या कुछ छोड़ कर ,
मेरे पास जाओगी ,
जब कभी आखिरी दफा,
अलविदा कहने आओगी ।

क्यों वो तुम्हारी ,
प्यारी सी मुस्कुराहट होगी ,
या होगी तुम्हारी खुमारी ,
या फिर इश्क़ में पड़ने वाली ,
लौट आयेगी मेरी बीमारी ।

या फिर होगा जिक्र तुम्हारा ,
तुम्हारी अनगिनत बातें होंगी ,
होगा पिटारा लम्हों का ,
कहानियां जिनमें तुम,
अक्सर छिपाती होगी ।

या फिर होगा वो मौसम ,
और बारिश की बूंदे ,
या फिर भीगा मन होगा ,
कल्पना से भी खूबसूरत ,
बीता हर एक पल होगा ।

या फिर होगा ,
अल्फाज़ का बिखरा रूप  ,
पहेली सा स्वरूप ,
और तेरी मेरी कहानियां ,
दीवारों पर टंगी तेरी निशानियां ।

या फिर होगी वो रात ,
जो बेताब होगी ,
अधूरी जिसकी हर बात होगी ,
खामोशी में शोर की ,
तुम्हारी वो आखिरी सौगात होगी ।।

Monday, September 27, 2021

मेरी जान

चलो आज से तुमको ,
हम जान कहते हैं ।

इश्क़ में अब नहीं तुम्हें ,
अंजान कहते हैं ,
चलो आज से तुमको ,
हम जान कहते हैं ।

पहली दफा सी मोहब्बत ,
हर रोज़ करते हैं ,
चलो आज से तुमको ,
हम जान कहते हैं ।

खुद की जान तुम पर ,
हम कुर्बान करते हैं ,
चलो आज से तुमको ,
हम जान कहते हैं ।

दिल की हर धड़कन को ,
सिर्फ तुम्हारे नाम करते हैं ,
चलो आज से तुमको ,
हम जान कहते हैं ।

हर गुजरते लम्हें को ,
तुम्हारा पैगाम कहते हैं ,
चलो आज से तुमको ,
हम जान कहते हैं ।

जिंदगी का हर पल ,
जिसके हिस्से नीलाम करते हैं ,
चलो आज से तुमको ,
हम जान कहते हैं ।

इश्क़ का तुमसे ऐलान ,
सरेआम करते हैं ,
चलो ना आज से तुमको ,
मेरी जान , हम जान ,
तुमको हम सिर्फ जान ,
अपनी जान कहते है ।।