Wednesday, April 22, 2020

दो दिल

धड़कन के धड़कने से ,
दिल हम लगा बैठे ,
था मालूम नहीं पता ,
फिर भी घर बसा बैठे ।

एक से लगते है हम ,
और एक सा धड़कता दिल भी ,
फिर भी मुश्किलें ना कम है ,
ज़माने को तो सिर्फ़ ,
मेरी ही मोहब्बत का ग़म है ।

क्यूँकि तुम अच्छी नहीं लगती ,
जैसे औरों को भा जाती हो ,
मालूम नहीं क्यू ,
धड़कता नहीं दिल वैसे ,
जैसे दिलों मे बस जाती हो ।

याद है आज भी मुझे ,
उसकी वो पहली मुस्कान ,
जिस पर हम सब लुटा बैठे ,
दिल से दिल लगा बैठे ।

ना बिखरी है ज़ुल्फ़ें उसकी ,
ना ही आँखो पर काजल ,
सजता है बिलकुल मुझ जैसे ,
कहती दुनिया जिसे पागल ।

फ़र्क़ पड़ता है क्या ,
अलग सा होना जिस्मों का ,
क्यूँकि इश्क़ को चाहिये ,
सिर्फ़ दो दिल , धड़कनों के साथ ।

बहुत हुई लैला और मजनूँ की जोड़ी ,
अब हम भी क़िस्से कहानियों में आयेंगे ,
सिर्फ़ एक होगी पहचान हमारी ,
 “दो दिल” जिससे जाने जायेंगे ।

हाँ दो जिस्म एक से ,
मोहब्बत करते जायेंगे ,
होगी ख़ूबसूरत कहानी हमारी भी ,
दुनिया तक लेकर जिसे हम आयेंगे ।

हाँ दो जिस्म एक से ,
मोहब्बत करते जायेंगे ।। 

Thursday, April 16, 2020

जुगनू


मालूम नहीं फिर ये रात ,
कब लौट कर आयेगी ,
जुगनू सी चमकती हँसी तेरी ,
होंठों पर फिर जगमगाने आयेगी ।

फिर भी तेरे संग बीते हर लम्हे को ,
ख़ूबसूरत हम बनायेंगे ,
अल्फ़ाज़ो से ही सही ,
तेरा श्रिंगार कर जायेंगे ।

होगी और भी ख़ामोशी शायद उस रोज़ ,
और आसमा भी ख़ामोश पड़ा होगा ,
देखने को तेरे चहरे पर हँसी ,
चाँद भी तरस रहा होगा ।

माना की है ना रिश्ता कोई ,
ना ही कोई जज़्बात है ,
फिर भी ना जाने हो कर भी दूर ,
लग रहा तु पास है ।

बीत गया वो वक़्त भी ,
और ढेरों एहसास ,
चंद ख़ुशियों के लम्हों की ,
देकर तुझको सौग़ात ।

हर शाम के ढलते रात की ओर ,
चमकता चाँद और तारे हर ओर ,
जुगनू सा मन बन जाता है ,
ढूँढने तुझे फिर निकल जाता है ।

Saturday, April 11, 2020

नाता

मोहब्बत की मइयत से निकलने के बाद ,
रुख़सत के ज़ख़्म भरने के साथ ,
कुछ तो अधूरा रह गया था ,
शायद दिल धड़कनो से छूटते वक़्त ,
कुछ कह गया था ।

जिन रास्तों पर नंगे पाओ ,
अक्सर हम चला करते थे ,
जिन रास्तों पर बिन मरहम ,
ज़ख़्म यू ही भरा करते थे ।

आज उसके ख़्याल से ही ,
ज़ख़्म उभर आते है ,
मरहम लगने पर ना जाने क्यूँ ,
और गहरे ज़ख़्म हो जाते है ।

सूरज से पहले तेरी रोशनी ,
अक्सर हमें जगाती थी ,
चाँद बन रात के अंधेरे में ,
ख़्वाबों को रौशन कर जाती थी ।

तेरे ज़ुल्फ़ों के छाओ में अक्सर ,
बैठा ख़ुद को पाता था ,
वजह नहीं होती थी जब कोई ख़ास ,
बेवजह तु वजह बन जाता था ।

बिछड़ कर तुझसे , तेरी यादों से ,
हर झूठे सच्चे वादों से ,
अब दूर जा चुका था ,
ख़ुद को ख़ुद में छुपा चुका था ।

आज ये कैसा ख़्वाब सा सच ,
मैं देख रहा ,
सूरज से पहले तेरी रोशनी ,
मुझे जगाने आई है ,
ख़त्म सी होती मालूम ,
लगती ये तन्हाई है ।

कुछ तो है नाता गहरा तेरा मेरा ,
वरना दफ़्न हुए मुर्दे को ,
कौन ज़िंदा कर पाता है ,
धड़कनो को छोड़ चुके दिल से ,
कौन धड़कनो को धड़काता है !

Wednesday, April 8, 2020

फुलझड़ी

रात के अंधेरे मे ,
जब चाँद बादलों में छिपने लगा ,
थमते शोर के साथ ,
मौसम भी सर्द पड़ने लगा ।

आग लगी कही दूर नज़र आई ,
रोशनी जिसकी जलती बुझती ,
आँखो से अंधेरे के छटने की ,
उम्मीद थी संग ले आई  ।

कुछ जुगनुओं के चमकने से ,
जो अब तक रात सुनहरी लगती थी ,
ख़्वाबों में अक्सर आकर ,
हुस्ने मलिका हमसे मिला करती थी ।

इस जलते बुझते रोशनी के पीछे ,
कोई ख़ूबसूरत सी परी थी ,
हाथों मे लिये फुलझड़ी ,
वो मेरे सामने ख़ामोश खड़ी थी ।

चमकते सूरत ने उसके ,
जज़्बातों पर क़ब्ज़ा सा कर लिया ,
जलते बुझते फुलझड़ी ने उस अंधेरे में ,
रात को रोशनी से भर दिया ।

श्वेत चादर में लिपटी हो जो रोशनी के ,
होंठों पर लिए हल्की सी मुस्कान ,
आँखो में चमकता नूर हो जिसके ,
फुलझड़ी सी है वो दिल-ए- नादान ।

मानो ख़्वाब होने को था पुरा ,
रह ना जाये कोई एहसास अधूरा ,
ख़ातिर उसके हम एक और दफ़ा ,
हड़बड़ी कर बैठे थे ।

बुझ जाती है फुलझड़ी ,
कुछ देर चमकने के बाद ,
ना जाने कैसे हम ,
ये भुल बैठे थे ।

Monday, April 6, 2020

इंसानो का मोहल्ला

मेरे बहुत से दोस्त कहते है की क़ौमी एकता नहीं कट्टर एकता की बाते सच्ची लगती है , कभी शाहीन बाग़ , बाटला हाउस , कैराना या कश्मीर जैसे जगहो पर गये हो कभी जा कर देखो डर लगता है , और यक़ीनन अब जेहादियों से डर लगता है ।

हाँ मौलाना आज़ाद , ज़ाकिर हुसैन , बहादुर शाह ज़फ़र और अश्फ़ाकउल्ला जैसो वीरों ने हमे आज़ादी दिलाई और हम उनसे नहीं डरे लेकिन जेहादीयो से डर लगता है ।

सब लोग डाक्टर , इंजीनीअर और काफ़ी कामयाब बन गये और कहते है वो अब्दुल कलाम जैसा सच्चा और अच्छा बनना चाहते है और देश के लिये और अच्छा करना चाहते है और कहते है हममें से किसी को ये क़बूलने मे डर नहीं लगता है लेकिन जिहादियों से डर लगता है ।

सब खेलने के भी शौक़ीन है और सैयद मोदी , अजरुद्दीन , आदिल खान और इरफ़ान पाठन के जैसा खेलते है और उनके नाम की जर्सी पहनते है लेकिन जिहादियों से डर लगता है ।

आज भी कला और फ़िल्म जगत में सलमान की फ़िल्म हो या ज़ाकिर हुसैन का शो हाउसफ़ुल ही रहता है और रहमान के गाने पे आज भी वो ख़ूब झूमते है और कहते है माँ तुझे सलाम लेकिन माँ के इन्हीं बच्चों को अपनी सलामती के ख़ातिर जेहादियों से डर लगता है ।

वो जब भी डरते है तो उन्हें मुम्बई ब्लास्ट , दंगे और 26/11 याद आता है यहाँ तक काबुल में भी अपनो को खोने का दर्द मिल जाता है फिर भी इंसानो को दिल से लगाते है लेकिन जेहादियों से डर लगता है ।

बिशमिल्ला खान की शहनाई बजती है हर जश्न में इन लोगों के यहाँ और मातम मे अक्सर होता है एक का हाथ , इसी लिये जेहादियों से डर लगता है ।

कईयो के ससुराल में मनाई जाती है ईद और घर पर मनाते होली , दिल खोल कर मिलते इंसानो से पर दिल तेज़ धड़कता है क्यूँकि जेहादियों से डर लगता है ।

हाँ रोये थे ये सब शहीद अब्दुल हामिद के शहादत पर , शहीद औरंगज़ेब पर भी आँसु बहाये थे ख़ून से लिखने जब किसी अपने का इतिहास अफ़ज़ल , बुरहान जैसे आये थे हाँ लगता है डर ऐसे जेहादियों से ।

जान कर हर इंसान को इंसान , वो करते है सबसे प्यार , ना कोई धर्म ना जाती कहते सबको यार , हाँ लगता है डर खोने का किसी अपने को , जेहादियों के ख़्वाब पुरे होने से ।

है बहुत मोहल्ले आज भी जहाँ जाने से वो डरते है कहते है रहते नहीं इंसान वहाँ , जेहादी जो ख़ुद को कहते है , इंसान और इंसानियत से मिलों दूर जो रहते है !

हाँ लगता है डर जेहादियों से इंसानो को !!

प्यार

मेरी कहानी के हज़ार पन्नो मे ,
एक ख़ाली पन्ना भी पड़ा है ,
है लिखना बाक़ी जिसेमें,
हुआ वो “इश्क़” मुझे इस दफ़ा है ।

मेरे गुज़रते वक़्त के साथ ,
तुम हरदम आस पास ही नज़र आते ,
पर सोचा नहीं था तुम ही हो मेरी मोहब्बत ,
वरना कब का ये दिल तुम्हें दे आते ।

मेरे दर्द मे रोते तुम ,
और ख़ुशियों मे मुस्कुराते ,
मेरी एक झलक पाने को तुम ,
दूर कही से आते ।

मेरे टूटे दिल को अब ,
धड़कने की इजाज़त ना थी ,
ख़्वाब बुरा सा मान कर ,
उसे भुल जाने की आफ़त भी थी ।

तुमने आकर मुझ अधूरे को ,
पुरा सा कर दिया ,
बेवजह उलझी सवालों में थी अक्सर ,
मौजूदगी ने तेरे जवाबों से भर दिया ।

क्यूँकि अब इस दिल को ,
हम तुझपर लुटा बैठे थे ,
भुल कर इस जहाँ को ,
तुझमें दुनिया बसा बैठे थे ।

अब ये प्यार ना कभी कम होगा ,
अधूरे पड़े पन्ने पर ,
ज़िक्र इसका हरदम होगा ,
होगा मेरे साथ बन कर ज़िंदगी मेरी ,
मेरी कहानी की शुरुआत और
मेरे प्यार पर ही जो ख़त्म होगा ।