Sunday, December 29, 2019

ग़ायब

ना जाने क्यूँ ग़ायब है ख़ुशियाँ ,
ना जाने क्यूँ तेरा इंतज़ार है ,
ना जाने क्यूँ उलझी हु तुझमें ,
ना जाने ये कैसा प्यार है ।

हर सुबह खुलते ही आँखे ,
देखने को जिसे ख़्वाब संजोये थी ,
टूट गये अरमा उस पल ही ,
सामने जब ख़ामोशी मेरे खड़ी थी ।

दिन जो कट जाते थे जल्दी ,
और रात ख़्वाब बन उड़ जाता था ,
हर पल उसकी मौजूदगी से ,
ख़ुशनुमा हर लम्हा हो जाता था ।

तेरी ग़ैर मौजूदगी अब सताती है ,
ख़ुशियाँ बेवजह अधूरी रह जाती है ,
हाले दिल मैं किसे अपना सुनाऊँ ,
दिल में तेरे तस्वीर को कैसे छिपाऊँ ।


उलझी हु माँझे सी बन कर तुझमें ,
बन पतंग मुझे उड़ा ले जा ,
मेरी ख़ुशियाँ मुझे लौटा कर ,
ग़लतियों की सज़ा दे जा ।

ग़ायब हो तुम ,
ग़ायब तुम्हारा एहसास है ,
फिर भी तेरे लौट आने का ,
ज़िंदा मुझमे आस है ।

ग़ायब हो तुम ,
ग़ायब तुम्हारा एहसास है !!

Thursday, December 26, 2019

बात उस रात की ..!!

उस रात अंधेरे मंज़र में ,
आसमा भी मायूस पड़ा था ,
ना थी रोशनी चाँद की ,
ना ही तारों का जमावड़ा ।

सुनसान से पड़े जज़्बात ,
उलझते मेरे अल्फ़ाज़ ,
तभी ख़्याल तेरा आया ,
था साथ जो हज़ारों सवाल लाया ।

भूल कर अपनी वो मोहब्बत ,
जिसे आख़िरी मान बैठे थे ,
तुझसे मिलने की हड़बड़ी में ,
ख़ुद से अनजान हो रहे थे ।

निकल कर अपने पते से ,
कुछ दूर ही चला था ,
मानो तुझसे जा ,
मैं उस पल ही मिला था ।

यू तो छाया घनघोर अंधेरा ,
पत्तों ने डालियों से मानो था मुँह फेरा ,
हवायें भी भूल गयीं हो रास्ता ,
या शायद रखना नहीं चाहता था कोई ,
उस मोहब्बत की तरह .. मुझसे वास्ता ।

बस अब टूट कर बिखरने ही वाला था ,
ना जाने कहाँ से तुम आ गई ,
तन्हाई से भी हो सकती है मोहब्बत ,
ये बात तब जा कर समझ आ गई ।

था नहीं मालूम ,
ये रात फिर लौट कर आयेगी ,
तन्हाई को समेटे ख़ुद में ,
मुझसे मोहब्बत कर जायेगी ..
ये रात फिर लौट कर आयेगी ॥

Sunday, December 22, 2019

मैं इज़हार करता हु .. वतन से प्यार करता हु !!

तुम गोलियों से मार रहे ,
धमाके लगा जश्ने बाज़ार रहे ,
हर तरफ़ मातम का मंज़र है ,
शोर कहाँ हो रह कम है ।

कहीं ख़ामोशी को कमज़ोरी समझ ,
तुम चिल्ला रहे ,
कहीं ग़ैरों की ख़ातिर ,
अपनो का ख़ून बहा रहे ।

मातम पर देखा है मुस्कुराते तुमको ,
बेवजह दे वास्ता “किसी” का ,
मासूमों का ख़ून बहाते हो ,
मजहबी करवाई उसे बतलाते हो ।

मंज़ूर नहीं सरकार अगर तो ,
वोट के वक़्त कहाँ छिप जाते हो ,
देते हो दुहाई संविधान की ,
जब भी उलझ जाते हो ।

जन के गड़ना से भी दिक्कत ,
जन गण से घबराते हो ,
देश के गीत को ,
जब मज़हबी रंग दे जाते हो ।

चंद घंटो की करवाई कह कर ,
सच तुम संसद का झुठलाते हो ,
गवाह रहाँ हैं मुल्क ये ,
जब मिटाने इस संसद को आते हो ।

क्यू दिक्कत नहीं होती सबको ,
आप चिल्लाते है ,
देश से आगे अक्सर ,
मजहब को रखते देखे जाते हो ।

कलाम को भगवान मान ये देश पूजता है ,
औरंगज़ेब की क़ुर्बानी सोच मन कुचेटता है ,
सहमत का क़र्ज़दार है ,
क्यूँ हो नहीं सकता तू भी इतना वफ़ादार है ।

देश सबका है ,
एक दफ़ा मज़हबी चादर उठा के देखो ,
एक दफ़ा इसे अपना बना के देखो ,
एक दफ़ा सिने से लगा के देखो ।

सुनने को ये मुल्क हम सबसे ,
बेताब है ... चलिये
मैं इज़हार करता हु .. वतन से प्यार करता हु !! ...

.... और आप !!

स्त्री

सेम डिग्री सेम पोज़िशन ,
डिस्क्रिमिनेशन का “अजेंडा” वाला फ़ेज़ है ,
कह देते आकर दो चार लाइन ,
बेवजह हो रहे वो चेप है ।

शादी बच्चे कर लूँगी मैं ,
किसकी क्या एज है ,
मालूम है मुझे सब ,
आज़ाद हु नहीं कोई “केज” है ।

मेरी मौजूदगी मौलूम ना हो ,
ऐसा मुमकिन कहाँ हो पाता है ,
कभी माँ , कभी बेटी , कभी बहू ,
वो कई रूप में मुझे देख पाता है ।

उसकी फ़िक्र जब भी अपनो को सताती है ,
बन जवाब सवालों का वो हँसाती है ,
मेरे अकेले होने पर भी सब साथ होते है ,
मेरी नींद से ही वो सोते है ।

मेरी पहचान दुनिया ख़ूब जानती है ,
सवालों का जवाब मुझे मानती है ,
हैं अपने इतने मेरे ,
दुनिया को क्या दिखाना ,
सिंगल हु या कमिटेड ,
जान कर क्या करेगा ज़माना ।

छू ले मुझे कोई ग़लती से ,
ये ग़लतियाँ नहीं होती ,
बेवजह ही उलझ कर जज़्बातों में ,
ग़ैरों को अपना नहीं लेती ।

पढ़ लिख कर आज़ाद बनी हु ,
भरोसा अपनो का लिये खड़ी हु ,
शादी से भागूँगी नहीं ,
प्यार के इस बंधन में बँधने को ,
तैयार खड़ी हु ।

जो भी हो डिग्री मेरी ,
हर ज़िम्मेदारी निभाऊँगी ,
कम्पैरिजन कर के अपना अपनो से ,
रिश्ते नहीं उलझाऊँगी ।

वो मिल कर आये किसी से ,
या मैं किसी से मिलने जाऊँ ,
फ़र्क़ नहीं पड़ता है ,
एक दूसरे को समझ कर ही ,
परिवार चलता है ।

मेरे कपड़ों की शिकायत होती नहीं ,
ना ही कोई नज़रें मेरे जिस्म पर घुमाता है ,
बेवजह उलझती नहीं मैं किसी से ,
ना एडवाईज़री कोई मुझ तक लाता है ।

मेरे घर से होगी शुरुआत ,
सिखेगा बच्चा मेरा ,
वो घूर कर निगाहे नहीं घुमायेगा ,
सम्मान से नज़रें मिलायेगा ।

आओ बन कर आदर्श घरों का ,
परिवार अपना बचाते हैं ,
देवी मानते अपनो को ,
दिल से अपनाते है ।

आओ “स्त्री” का फ़र्ज़ निभाते हैं ,
आओ ये दुनिया बचाते हैं ,
ग़ैरों को अपना बनाते है ,
आओ कुछ नया कर जाते है ।

मैं बेटी बन पापा की ताक़त हो जाती हु  ,
पत्नी बन पति की ख़ुशियाँ हो जाती हु ,
बहू बन घर सजाती हु ,
माँ बन सबकी इज़्ज़त करने की ,
परवरिश दे जाती हु ।

और हाँ रही बात ,
मेरे आज़ाद होने की ,
मैंने चुना वो जहाँ है ,
क़ैद होती नहीं बेटियाँ वहाँ है ।।

Saturday, December 14, 2019

ख़ैर

क्यूँकि मोहब्बत होना ज़रूरी है ,
टूटते दिल की मजबूरी है ,
नहीं तो पत्थरों से चिंगारी जलती है ,
लगती नहीं आग सूरत बदलती है ।

फ़ासले जो फ़ैसलों से बढ़ने लगे थे ,
जान कर भी वो अजनबी कहने लगे थे ,
मान कर सच उनके जज़्बात को ,
मोहब्बत से हम रूठने लगे थे ।

सिलसिला शुरू हुआ था जो कल ,
कल क्यूँ थमने को आया था ,
आज़ाद आवारा दिल मेरा ,
पिंजड़े में क़ैद हो आया था ।

ख़ैर हर दफ़ा जीत ले दिल कोई ,
ये ज़रूरी नहीं ,
लुटेरे बहुत है इस जहाँ में ,
कोई किसी से कम नहीं ।

क्यूँ तेरी मौजूदगी अब रुलाती है ,
ख़ामोशी में भी वो चिल्लाती है ,
ना रहना तेरा बेहतर होगा ,
इस एहसास से दिल बेख़बर होगा ।

क्यूँकि ख़ैर नहीं ...ख़ैर क्या कर पायेंगे ,
उलझ कर जज़्बातों के खेल में ,
कभी राजा , कभी वज़ीर ,
तो कभी सिपाही बन जायेंगे ।।