Friday, December 25, 2020
मौत
Saturday, December 19, 2020
छुईमुई दिल
Monday, December 7, 2020
दिल नहीं करता
Wednesday, November 11, 2020
अजनबी
Saturday, October 31, 2020
फ़िक्र
कभी दूर हो कर भी साथ होते थे ,
हाथो में थामे हर पल हाथ होते थे ,
होती थी लम्बी लम्बी बाते ,
छोटे छोटे ख्वाब होते थे।
निगाहे तो मिलती थी नहीं ,
अलफ़ाज़ भी लिख कर जाते थे ,
लिखी दास्तने दिल की बातो को ,
अपने लबों से वो पढ़ पाते थे।
दौर बदला बदली मोहब्बत ,
साथ होना पास होना और बाबू सोना ,
वक़्त के साथ इश्क़ और उसकी वजह ,
दोनों बदल जाते है ,
इस झूठे सच को ,
छोड़ हमें सब मान जाते है।
बुनते नहीं कोई ख्वाब अब ,
और ना ही इश्क़ में फ़ना हो पाते है ,
सच्चा समझ आज के इश्क़ को ,
कुछ वक़्त के बाद खुद उसे झुट्लाते है।
फ़िक्र होती मुझे उस रांझे की ,
जिसकी हीर कही खो गई ,
बदलते दौर में बदली नहीं मोहब्बत ,
बस उसकी मोहब्बत किसी और की हो गई।
Saturday, October 10, 2020
इश्क़ तो है
माना की इश्क़ में मुश्किलें है बहुत ,
पर करना भी ज़रूरी है ,
ख़ातिर रखने को किसी का दिल ,
किसी का तोड़ना भी ज़रूरी है ।
है एतबार इश्क़ पर उसके इतना ,
हम सब लूटा बैठे है ,
तोड़ कर अपनी ही ख़्वाहिशों को ,
उसकी ख़ुशियों को ही ख़्वाहिश बना बैठे है ।
ना रास्तों का पता ,ना ही कोई ठिकाना ,
अजनबी से लोग और दिल अंजाना ,
फिर भी पैरों के निशा तलाश कर ,
ढूँढ रहा दिल कोई अपना दीवाना ।
ग़ौर से ग़ैर को देख कर भी ,
नज़रें अक्सर लड़ा लिया करते है ,
अजनबी है बहुत महफ़िल में ,
अक्सर दिल चुरा लिया करते है ।
इश्क़ में उलझ कर हर एक दिल ,
किसी रोज़ क़ुर्बान होता है ,
किसी से होती है बेपनाह मोहब्बत ,
तो कोई इश्क़ बेवफ़ा , बदनाम होता है ।
इश्क़ तो हर दिल को होता ,
कभी हँसता कभी रोता है ।।
Thursday, September 24, 2020
कब्र
जो ना मिली होती दो गज़ ज़मीन ,
और मिट्टी की चादर ,
कही होते पड़े लावारिस ,
लिये जिस्म पर ज़ख़्मों के सागर ।
ना आया था कोई पहले मिलने ,
मेरे मिट्टी के ऊपर वाले कब्र में ,
था पड़ा सुनसान वो भी ,
ज़िंदा लाश के मरने के सब्र में ।
थी जान बाक़ी कुछ ,
और उम्मीद तेरे लौट आने की ,
अनगिनत दिये अंजाने ज़ख़्मों पर ,
मरहम लगाने की ।
ख़ैर मौत से पहले कब्र पर ,
कौन ही है आता ,
ज़िंदा पड़े अनगिनत क़ब्रों में ,
लाशों से कौन ही दिल लगाता ।
आज वो बैठी है मेरे कब्र के पास ,
भीगी पलकें और थोड़ी उदास ,
फेर रही वो ऊँगलियाँ कब्र पर ,
और फ़ुल के मरहम लगा रही ।
उसके इस अंजाने अन्दाज़ से ,
मानो ज़िंदा होने का दिल करता है ,
क्यूँ अक्सर ज़िंदा रहने पर ,
इतना प्यार नहीं मिलता है ।
अब मेरी रूह भी तुझ जैसे ,
किसी और जिस्म की जान हो गई ,
मेरे इस जिस्म से ,
वो भी अनजान हो गई ।
मेरी कब्र पर लौट कर फिर आना कभी ,
सिर रख कर सो जाना कभी ,
होगा मालूम शोर धड़कनो का ,
गर उन्हें सुन पाना कभी ।।
Sunday, September 20, 2020
बेहतर
बेहतर ही होता जो ना आते तुम ,
मुस्कुरा कर दिल ना चुराते तुम ,
ना ही होती कोई उम्मीद ख़ुद से ,
ना ही उसे फिर से तोड़ पाते तुम ।
पहली ही मुलाक़ात आख़िरी क्यूँ ना हुई ,
क्यूँ वक़्त ने फिरसे था मिलाया ,
दूर था हो मीलों मुझसे अब तक ,
फिर था ज़िंदगी के क़रीब आया ।
ना ही आँखों से अब होती बातें ,
ना ही हम उन्हें अब पढ़ पाते ,
ना ही बेताबी है मोहब्बत में ,
ना ही शिद्दत से उन्हें वो निभाते ।
मिल कर भी मीलों दूर खड़े है ,
जान कर भी अजनबी बने है ,
बेहतर ही होता जो ना मिलते ,
शायद यूँ ना हम कहते ।
ख़ैर इस ज़िंदगी का क्या अब ,
पर अगली ज़िंदगी बेहतर बनायेंगे ,
होगा शायद बेहतर ,
इस दफ़ा जो तुझे भूल जायेंगे ।
Wednesday, September 2, 2020
हद
ये जो इश्क़ है ना तुमसे ,
हद में नहीं हो पाता ,
यूँ बैठी हो जाकर दूर कही ,
कोई पता भी नहीं बताता ।
तेरी हँसी की हो गूँज ,
या निगाहें क़ातिलाना ,
कमबख़्त इश्क़ क्यूँ है ,
किसी हद से अनजाना ।
माना की मिलना हुआ नहीं ,
मिल कर भी कई बार ,
हद में थे नहीं कभी तुम ,
कभी हमारा प्यार ।
धड़कन ने भी कहाँ दिल से ,
हद में धड़काया करो ,
बेवजह ही नहीं अक्सर,
साथ छोड़ जाया करो ।
कैसी है जीद तेरी ,
और कैसा मेरा पागलपन ,
हद में रह कर करो मोहब्बत ,
ए जानेमन ।।
Saturday, August 29, 2020
महसूस
आज के इस अकेलेपन में ,
जब रिश्ते टूट रहे ,
मिल रहे कुछ नये पराये ,
और कुछ अपने पुराने छूट रहे ।
हर बदलते शाम के साथ ,
चाँद भी कुछ अनजान है ,
कभी चमकते जुगनू ,
कभी तारों से रोशन होता आसमान है ।
रात हो अँधेरी, या ,
हो उजालों का पहेरा ,
एक ख़ूबसूरत ख़्वाब ,
होता एहसास और गहरा ।
जुगनु ,
मीलों दूर कहीं खो गये तुम ,
दिन के उजाले में सो गये तुम ।
बस इस उजाले और अँधेरे में ,
उलझे हुए लाखों जज़्बात है ,
महसूस होती मौजूदगी जिसकी ,
वो धरती और मैं आकाश हैं ।
Friday, August 14, 2020
क़रीब
मोहब्बत हो ग़ैर की तुम ,
तुम मेरी मोहब्बत हो ,
शाम हो अंधेरी सी तुम ,
मेरी जुगनुओं सी मोहब्बत हो ।
समझना नहीं आसान तुमको ,
तुमको समझाना है नामुमकिन ,
मोहब्बत की फ़रियाद लिये बैठी तुम ,
और गिनते हम हर गुज़रता दिन ।
कभी हम पास , कभी तुम दूर ,
कभी हो वजह , कभी नामंज़ूर ,
कभी वो लम्हे , कभी तेरी यादें ,
कभी तेरे वादे , कभी हम आधे ।
तेरी ख़ुशबू हो या तेरा एहसास ,
तेरी तिरछी निगाहे या बेहद पास ,
तेरा हँसना या हँसाना ,
मुश्किल है , पर , है तो निभाना ।
क़रीब तेरे जिस्म के नहीं ,
तेरी रूह के पास आना है ,
बेवजह ही सही ,
पर हर मर्ज़ की दवा बन जाना है ।
माना की मुश्किल होगी समझने में ,
पर समझ कर दिखाओ ,
क़रीब हो कर भी होते है दूर जो ,
हाले दिल कभी उनसे पुछ आओ ।
मोहब्बत है कोई और तुम्हारा ,
मोहब्बत हो मेरी तुम ,
हो कर भी एहसास क़रीब दिल के ,
धड़कने है गुमसुम ।।
Saturday, August 8, 2020
ख़फ़ा
तेरी हँसी मे बसी ख़ुशी ,
और आँखों में ग़म ,
मंज़र है बिछड़ने का आज ,
और वक़्त है काफ़ी कम ।
अनगिनत सवाल और चंद जवाब ,
अधूरे ख़्वाब और अल्फ़ाज़ ,
कैसा साज कैसा राज़ ,
चंद लम्हों का अधूरा साथ ।
इतने बरसात के बाद भी ,
क्यूँ इश्क़ में भीग नहीं पाये ,
मानो मिलने के लिये नहीं ,
बिछड़ने के लिये हर बार पास आयें ।
क्यूँकि अब तय है सफ़र ,
और मंज़िल भी बेहद पास है ,
दूर होते हम और हमारी यादें ,
शायद अंत का ये आग़ाज़ है ।
कभी हर लम्हे में थे हम ,
आज ख़्यालों में भी नहीं ,
कभी जवाब थे हम ,
अब सवालों में भी नहीं ।
कभी सुबह होती थी हमसे ,
और हमसे ही रात ,
ग़म की वजह भी हम ,
और ख़ुशियों की सौग़ात ।
आख़िरी दफ़ा टूट कर मुझसे ,
उनसे जुड़ने वो जा रहे है ,
हम हैं ख़फ़ा ज़िंदगी से ,
और वो मुस्कुरा रहे है ।
Saturday, July 25, 2020
ख़ुशनसीब
Tuesday, July 21, 2020
शोर
Monday, July 20, 2020
हिचकी
Wednesday, July 15, 2020
जंग
Tuesday, June 30, 2020
चमन की बहार
Monday, June 15, 2020
मेरे मौत की ख़बर
Wednesday, June 10, 2020
मैं दिल्ली हूं
कहीं लावारिस पड़ी हूं।
कहीं आख़िरी है साँस बची ,
कहीं मौत की गोद में पड़ी हूं।
मैं दिल्ली हूं।
मालिक मेरे छोड़ कर मुझे ,
मेरे अपने गिनाते है ,
क़ैद कर मेरे बच्चों को ,
मुझे ख़ूनी बताते है ,
मैं दिल्ली हूं।
मेरे घर में ना दरवाज़े ,
ना ही दिलों में थी कभी दूरियां
पहले जलाया जिस्म को मेरे ,
दंगो के आग से ,
आख़िर क्या थी मजबूरियाँ ।
मैं आज अपने-पराये के जंग में ,
आत्मीयता को ही खो रही हूं,
सो रहे मालिक मेरे बंद कमरे में ,
और मैं खुले आसमां में रो रही हूं ,
मैं दिल्ली हूं ।
ना कोई पूछ रहा हाल मेरा ,
ना कोई ज़िंदगी बचा रहा है ,
आख़िर क्यूँ है भूख इतनी ,
क्यों मेरा जिस्म नोच कर मालिक खा रहा है ,
मैं दिल्ली हूं।
मैं गर बच गई जीवित
लौट कर ज़रूर आऊँगी ,
बंद घरों में ज़िंदा लाश ,
दुनिया को दिखाऊँगी ।
कौन कहता दिलवाले रहते यहाँ ,
मौत के सौदागर बने बैठे मालिक जहाँ ,
वक़्त ज़रूर जवाब दे जायेगा ,
मेरे मिट जाने पर वो ,
किस पर हुकूमत चलायेगा ।
मैं दिल्ली हुँ ,
ज़िंदा लाश क़ब्र के पास ।।
Sunday, June 7, 2020
गुमसुम ज़िंदगी
दीया तो जलाना होगा ,
बुझ चुके उम्मीद के दीपक को ,
फिरसे जगमगाना होगा ।
साथ थे कल सब पराये ,
आज सब अपने साथ है ,
पर लगता नहीं कुछ अपना ,
उलझे सब जज़्बात है ।
होंठों पर ना अब आती हँसी ,
ना आँखें नम होने को आती है ,
मायूसी घेरे बैठे चारों ओर मेरे ,
मुझे ख़ामोश कर जाती है ।
मौलूम नहीं पता कब ,
कोई अपना मिलने को आयेगा ,
लावारिस हो चुकी ज़िंदगी को ,
क्या वो पहचान पायेगा ।
गुमसुम सी ज़िंदगी मेरी ,
शायद कुछ ऐसी ही हालत तेरी ,
पर कैसे तुझे हाले दिल सुनाये ,
कैसे तुझमें गुमसूदा हो जाये ।
Monday, June 1, 2020
ग़ज़ल
कैसा हाल हो चला है ,
एहसास जुड़े तुझसे ,
वो शब्दों में पिरो चुका है ।
स्याही तेरा एहसास ,
क़लम तेरे जज़्बात ,
आँखे तेरी वजह ,
और ये कायनात ।
तेरे ज़िक्र भर होने से ,
सब बदल सा जाता है ,
थमने को आ चुके दिल को,
फिर से वो धड़काता है ।
ना कभी हम होते साथ ,
ना कभी बहुत दूर ,
यक़ीनन है मजबूरियाँ बहुत ,
पर क्यूँ ? बताना ज़रूर ।
मेरे हर शब्द पर हक़ तेरा ,
दिल पर तेरा राज़ ,
सजाते जिन्हें लफ़्ज़ों में पिरो कर ,
हर दिन और रात ।
मुमकिन है की हम ना मिले कभी ,
फिर भी तुम्हें लिखता जाऊँगा ,
तुम बनोगी ग़ज़ल मेरी ,
स्याही और क़लम से ,
हर दफ़ा सजाऊँगा ।
गर ना मिले खत मेरा कभी ,
आख़िरी समझ लेना ,
क्यूँकि याद रहे धड़कनो के ,
आख़िरी शोर पर भी ,
हक़ सिर्फ़ तेरा ।
Friday, May 29, 2020
नींद
मेरी पहली मोहब्बत हो तुम ,
जो अक्सर दूसरी मोहब्बत के आते ही ,
कहीं खो जाती हो ।
अक्सर रातों को तुमसे लड़कर ,
कहीं तुम तक पहुँच पाते है ,
कभी आ जाती हो वक़्त पर ,
कभी हम बुलाते है ।
आज तो मानो रुठ कर बैठ गई हो ,
कुछ इस क़दर ,
बेख़बर है हम वजह से ,
और हो रही , हर कोशिश , बेअसर ।
ना दूसरी मोहब्बत ने आज दस्तक दी ,
ना ही दी किसी ने दग़ा ,
बेवजह क्यूँ ग़ायब हो आज ,
कोई तो बताये वजह ।
उड़ी उड़ी सी तुम कही ,
बतला दो अपना पता ,
कोई तो ले उड़ा है ,
मेरी पहली मोहब्बत बेवजह ।
अब और नहीं होता इंतज़ार ,
मिलने को तुझसे आँखें बेक़रार ,
दिल भी धड़कना छोड़ रहा है ,
ख़ामोशी की चादर वो ओढ़ रहा है ।
लौट आओ वक़्त से ,
कही देर ना हो जाये ,
पहली मोहब्बत अंजाने में ,
मौत ना बन जाये ।
आओ फिरसे तेरी दुनिया में ,
हम लौट जाते है ,
पहली मोहब्बत में डुब कर ,
ख़्वाबों से मिल आते है ।।
Monday, May 25, 2020
ग़ुरूर
तुझे उसमें खोने का सुरुर ,
मुझे तेरी यादों का सहारा ,
तुझे उसके लम्हों ने वारा ।
मैं उठ कर आज भी देखता तुझको ,
और तु भी उसे निहारती है ,
मैं ज़िंदा हु ख़ातिर तेरे ,
और तु उसपर जान वारती है ।
होती है बाँहों में अक्सर मेरे ,
बन कर तु एहसास ,
रहती है तु साथ उसके ,
हर दिन और रात ।
मेरे हर ज़िक्र में मौजूद तु ,
और तेरी ही बातें ,
चाँद से जा पुछ आ कभी ,
अभी कितनी और रातें ।
है ग़ुरूर जितना तुझमें ,
उसे पाने का ,
शायद उतना ही है मुझे ,
तुझमें खो जाने का ।
ग़ुरूर मिट भी जाये तो सही ,
मोहब्बत के रंग कैसे मिटाओगी ,
हर वो निशा जो मेरी मौजूदगी बताते है ,
कब तक उन्हें छिपाओगी ।
सूखे पत्ते
कुछ पत्ते सुख कर गिर पड़े थे ,
कुचलने को जिसे राहगिर दिल के ,
पग पग पर खड़े थे ।
मौसम के बदलने से ,
सूरज के ढलने से ,
शाम के आने से ,
चाँद के जाने से ।
अब तक संभालें बिखेर पत्तों को ,
ख़ामोशी से उन्ही के पास खड़ा था ,
राहगिर को रोकने की ख़ातिर ,
ख़ुद को ज़ख़्मों से भर चुका था ।
दिल में ज़ख़्मों से अब ,
घाव गहरे होने लगे ,
तेरा ज़ख़्म टूटने का क्या कम था ?,
एक और घाव हम सहने लगे ।
तूने माना नहीं हमें कभी अपना ,
और ग़ैर तुझे जलाने लगे ,
टूट कर मुझसे जिस पल ,
तुम दूर जाने लगे ।
कौन कहता है पत्तों के बग़ैर ,
पेड़ पनप पाता है ,
पत्तों से उसकी मोहब्बत ऐसी ,
वो छांव और सुकून छोड़ जाता है ।
हज़ारों है पेड़ मुझ जैसे ,
और लाखों पत्ते ,
टूट कर बिखर जाते बहुत ,
कुछ झूठे कुछ सच्चे ।।
Wednesday, May 13, 2020
मुआवज़ा
दाम लागते है मालिक ,
छुप छुप कर जीते आये की ,
खुल कर मौत दिखाते है मालिक ।
कभी ख़बरों को पढ़ने वाले को ,
ख़बर बनाते है मालिक ,
मुझ जैसे अनपढ़ के मरने पर ,
काग़ज़ लिखवाते है मालिक ।
हे मालिक , ख़ुशिया और ग़म ,
मालूम नहीं कौन रहता है साथ कम ,
फिर भी अनजान से रिश्ता आप बनाते है ,
बिन बुलाये मेहमान बन कर आ जाते है ।
मेरी सूरत जिससे मैं होता ख़ुद अनजान ,
पहचान लेते अक्सर वो शैतान ,
ख़ाक में मिला कर मुझे ,
दे देते मेरे मौत का मुझे ईनाम ।
मौत के इंतज़ार में बैठें रहते मालिक ,
गिद्ध बन नोचने को लाश ,
ले आते मेरा ही ख़ज़ाना लुट कर ,
मेरे मौत के बाद ।
क्यूँ नहीं कभी ज़िंदा को देते ज़िंदगी ,
या किसी उलझन में उसका साथ ,
हर बार सोच कर मसीहा ,
चुन लाते मालिक हम ,
बेचने ख़ुद की लाश ।
मालूम नहीं मालिक कभी ,
क्यूँ ख़ुद मुआवज़ा नहीं पाते ,
बन कर गिद्ध नोचने ,
मेरी ही लाश पर आते ।
ए मालिक ,
मुआवज़ा का दौर गर जाये थम ,
यक़ीनन मरेंगे कम ,
ज़िंदा रहेंगे हम , ज़िंदा रहेंगे हम ।।
Sunday, May 3, 2020
थप्पड़
अनगिनत दफ़ा रहे होंगे ,
छुपे जज़्बात दिल के अक्सर ,
इस अदायगी से वो बयां करते होंगे ।
सुबह के शोर से पहले की ख़ामोशी ,
या रात के सन्नाटे का शोर ,
बन बैठी है ये उँगलियाँ .. क़सूरवार ,
आज कल ना जाने क्यूँ हर ओर ।
आज भी छुआ था गालों को उसके ,
उँगलियों ने थोड़ी ज़ोर से,
थे निशाँ ज़ख़्म के इस दफ़ा ,
लिये ख़ामोशी चारों ओर थे ।
जो लगते थे गले अक्सर ,
इस अदायगी के बाद ,
जाने लगे ख़ामोशी से दूर ,
दफ़नायें टूटे दिल के साथ ।
ना माँगा कभी मोहब्बत से अधिक ,
ना कभी चाहा किसी और को ,
छोड़ आई आज गलियाँ वो ,
संग उसे , उसके हाल छोड़ कर ।
कई दफ़ा एक लम्हे में ,
सब बिखर जाता है ,
अंदाज़े मोहब्बत में “ज़ुल्म” ,
कहाँ जगह पाता है ।
हाँ अक्सर हम ख़ुद को समझाने में ,
अपना दुःख सुनाने में ,
उसकी बात सुनना भुल जाते है ,
अनगिनत दफ़ा ऐसा ज़ुल्म कर जाते है ।
बेशक थोड़ा ही शोर रहाँ हो ,
उँगलियों का गालों पर उस रोज़ ,
पर ज़ख़्म पुराना सा लगता है ,
ये “थप्पड़” बहाना सा लगता है ।
Wednesday, April 22, 2020
दो दिल
दिल हम लगा बैठे ,
था मालूम नहीं पता ,
फिर भी घर बसा बैठे ।
एक से लगते है हम ,
और एक सा धड़कता दिल भी ,
फिर भी मुश्किलें ना कम है ,
ज़माने को तो सिर्फ़ ,
मेरी ही मोहब्बत का ग़म है ।
क्यूँकि तुम अच्छी नहीं लगती ,
जैसे औरों को भा जाती हो ,
मालूम नहीं क्यू ,
धड़कता नहीं दिल वैसे ,
जैसे दिलों मे बस जाती हो ।
याद है आज भी मुझे ,
उसकी वो पहली मुस्कान ,
जिस पर हम सब लुटा बैठे ,
दिल से दिल लगा बैठे ।
ना बिखरी है ज़ुल्फ़ें उसकी ,
ना ही आँखो पर काजल ,
सजता है बिलकुल मुझ जैसे ,
कहती दुनिया जिसे पागल ।
फ़र्क़ पड़ता है क्या ,
अलग सा होना जिस्मों का ,
क्यूँकि इश्क़ को चाहिये ,
सिर्फ़ दो दिल , धड़कनों के साथ ।
बहुत हुई लैला और मजनूँ की जोड़ी ,
अब हम भी क़िस्से कहानियों में आयेंगे ,
सिर्फ़ एक होगी पहचान हमारी ,
“दो दिल” जिससे जाने जायेंगे ।
हाँ दो जिस्म एक से ,
मोहब्बत करते जायेंगे ,
होगी ख़ूबसूरत कहानी हमारी भी ,
दुनिया तक लेकर जिसे हम आयेंगे ।
हाँ दो जिस्म एक से ,
मोहब्बत करते जायेंगे ।।
Thursday, April 16, 2020
जुगनू
मालूम नहीं फिर ये रात ,
कब लौट कर आयेगी ,
जुगनू सी चमकती हँसी तेरी ,
होंठों पर फिर जगमगाने आयेगी ।
फिर भी तेरे संग बीते हर लम्हे को ,
ख़ूबसूरत हम बनायेंगे ,
अल्फ़ाज़ो से ही सही ,
तेरा श्रिंगार कर जायेंगे ।
होगी और भी ख़ामोशी शायद उस रोज़ ,
और आसमा भी ख़ामोश पड़ा होगा ,
देखने को तेरे चहरे पर हँसी ,
चाँद भी तरस रहा होगा ।
माना की है ना रिश्ता कोई ,
ना ही कोई जज़्बात है ,
फिर भी ना जाने हो कर भी दूर ,
लग रहा तु पास है ।
बीत गया वो वक़्त भी ,
और ढेरों एहसास ,
चंद ख़ुशियों के लम्हों की ,
देकर तुझको सौग़ात ।
हर शाम के ढलते रात की ओर ,
चमकता चाँद और तारे हर ओर ,
जुगनू सा मन बन जाता है ,
ढूँढने तुझे फिर निकल जाता है ।
Saturday, April 11, 2020
नाता
रुख़सत के ज़ख़्म भरने के साथ ,
कुछ तो अधूरा रह गया था ,
शायद दिल धड़कनो से छूटते वक़्त ,
कुछ कह गया था ।
जिन रास्तों पर नंगे पाओ ,
अक्सर हम चला करते थे ,
जिन रास्तों पर बिन मरहम ,
ज़ख़्म यू ही भरा करते थे ।
आज उसके ख़्याल से ही ,
ज़ख़्म उभर आते है ,
मरहम लगने पर ना जाने क्यूँ ,
और गहरे ज़ख़्म हो जाते है ।
सूरज से पहले तेरी रोशनी ,
अक्सर हमें जगाती थी ,
चाँद बन रात के अंधेरे में ,
ख़्वाबों को रौशन कर जाती थी ।
तेरे ज़ुल्फ़ों के छाओ में अक्सर ,
बैठा ख़ुद को पाता था ,
वजह नहीं होती थी जब कोई ख़ास ,
बेवजह तु वजह बन जाता था ।
बिछड़ कर तुझसे , तेरी यादों से ,
हर झूठे सच्चे वादों से ,
अब दूर जा चुका था ,
ख़ुद को ख़ुद में छुपा चुका था ।
आज ये कैसा ख़्वाब सा सच ,
मैं देख रहा ,
सूरज से पहले तेरी रोशनी ,
मुझे जगाने आई है ,
ख़त्म सी होती मालूम ,
लगती ये तन्हाई है ।
कुछ तो है नाता गहरा तेरा मेरा ,
वरना दफ़्न हुए मुर्दे को ,
कौन ज़िंदा कर पाता है ,
धड़कनो को छोड़ चुके दिल से ,
कौन धड़कनो को धड़काता है !
Wednesday, April 8, 2020
फुलझड़ी
जब चाँद बादलों में छिपने लगा ,
थमते शोर के साथ ,
मौसम भी सर्द पड़ने लगा ।
आग लगी कही दूर नज़र आई ,
रोशनी जिसकी जलती बुझती ,
आँखो से अंधेरे के छटने की ,
उम्मीद थी संग ले आई ।
कुछ जुगनुओं के चमकने से ,
जो अब तक रात सुनहरी लगती थी ,
ख़्वाबों में अक्सर आकर ,
हुस्ने मलिका हमसे मिला करती थी ।
इस जलते बुझते रोशनी के पीछे ,
कोई ख़ूबसूरत सी परी थी ,
हाथों मे लिये फुलझड़ी ,
वो मेरे सामने ख़ामोश खड़ी थी ।
चमकते सूरत ने उसके ,
जज़्बातों पर क़ब्ज़ा सा कर लिया ,
जलते बुझते फुलझड़ी ने उस अंधेरे में ,
रात को रोशनी से भर दिया ।
श्वेत चादर में लिपटी हो जो रोशनी के ,
होंठों पर लिए हल्की सी मुस्कान ,
आँखो में चमकता नूर हो जिसके ,
फुलझड़ी सी है वो दिल-ए- नादान ।
मानो ख़्वाब होने को था पुरा ,
रह ना जाये कोई एहसास अधूरा ,
ख़ातिर उसके हम एक और दफ़ा ,
हड़बड़ी कर बैठे थे ।
बुझ जाती है फुलझड़ी ,
कुछ देर चमकने के बाद ,
ना जाने कैसे हम ,
ये भुल बैठे थे ।
Monday, April 6, 2020
इंसानो का मोहल्ला
हाँ मौलाना आज़ाद , ज़ाकिर हुसैन , बहादुर शाह ज़फ़र और अश्फ़ाकउल्ला जैसो वीरों ने हमे आज़ादी दिलाई और हम उनसे नहीं डरे लेकिन जेहादीयो से डर लगता है ।
सब लोग डाक्टर , इंजीनीअर और काफ़ी कामयाब बन गये और कहते है वो अब्दुल कलाम जैसा सच्चा और अच्छा बनना चाहते है और देश के लिये और अच्छा करना चाहते है और कहते है हममें से किसी को ये क़बूलने मे डर नहीं लगता है लेकिन जिहादियों से डर लगता है ।
सब खेलने के भी शौक़ीन है और सैयद मोदी , अजरुद्दीन , आदिल खान और इरफ़ान पाठन के जैसा खेलते है और उनके नाम की जर्सी पहनते है लेकिन जिहादियों से डर लगता है ।
आज भी कला और फ़िल्म जगत में सलमान की फ़िल्म हो या ज़ाकिर हुसैन का शो हाउसफ़ुल ही रहता है और रहमान के गाने पे आज भी वो ख़ूब झूमते है और कहते है माँ तुझे सलाम लेकिन माँ के इन्हीं बच्चों को अपनी सलामती के ख़ातिर जेहादियों से डर लगता है ।
वो जब भी डरते है तो उन्हें मुम्बई ब्लास्ट , दंगे और 26/11 याद आता है यहाँ तक काबुल में भी अपनो को खोने का दर्द मिल जाता है फिर भी इंसानो को दिल से लगाते है लेकिन जेहादियों से डर लगता है ।
बिशमिल्ला खान की शहनाई बजती है हर जश्न में इन लोगों के यहाँ और मातम मे अक्सर होता है एक का हाथ , इसी लिये जेहादियों से डर लगता है ।
कईयो के ससुराल में मनाई जाती है ईद और घर पर मनाते होली , दिल खोल कर मिलते इंसानो से पर दिल तेज़ धड़कता है क्यूँकि जेहादियों से डर लगता है ।
हाँ रोये थे ये सब शहीद अब्दुल हामिद के शहादत पर , शहीद औरंगज़ेब पर भी आँसु बहाये थे ख़ून से लिखने जब किसी अपने का इतिहास अफ़ज़ल , बुरहान जैसे आये थे हाँ लगता है डर ऐसे जेहादियों से ।
जान कर हर इंसान को इंसान , वो करते है सबसे प्यार , ना कोई धर्म ना जाती कहते सबको यार , हाँ लगता है डर खोने का किसी अपने को , जेहादियों के ख़्वाब पुरे होने से ।
है बहुत मोहल्ले आज भी जहाँ जाने से वो डरते है कहते है रहते नहीं इंसान वहाँ , जेहादी जो ख़ुद को कहते है , इंसान और इंसानियत से मिलों दूर जो रहते है !
हाँ लगता है डर जेहादियों से इंसानो को !!
प्यार
एक ख़ाली पन्ना भी पड़ा है ,
है लिखना बाक़ी जिसेमें,
हुआ वो “इश्क़” मुझे इस दफ़ा है ।
मेरे गुज़रते वक़्त के साथ ,
तुम हरदम आस पास ही नज़र आते ,
पर सोचा नहीं था तुम ही हो मेरी मोहब्बत ,
वरना कब का ये दिल तुम्हें दे आते ।
मेरे दर्द मे रोते तुम ,
और ख़ुशियों मे मुस्कुराते ,
मेरी एक झलक पाने को तुम ,
दूर कही से आते ।
मेरे टूटे दिल को अब ,
धड़कने की इजाज़त ना थी ,
ख़्वाब बुरा सा मान कर ,
उसे भुल जाने की आफ़त भी थी ।
तुमने आकर मुझ अधूरे को ,
पुरा सा कर दिया ,
बेवजह उलझी सवालों में थी अक्सर ,
मौजूदगी ने तेरे जवाबों से भर दिया ।
क्यूँकि अब इस दिल को ,
हम तुझपर लुटा बैठे थे ,
भुल कर इस जहाँ को ,
तुझमें दुनिया बसा बैठे थे ।
अब ये प्यार ना कभी कम होगा ,
अधूरे पड़े पन्ने पर ,
ज़िक्र इसका हरदम होगा ,
होगा मेरे साथ बन कर ज़िंदगी मेरी ,
मेरी कहानी की शुरुआत और
मेरे प्यार पर ही जो ख़त्म होगा ।
Friday, March 27, 2020
फ़रेबी
जा एक रोज़ ,
फ़रेबी दिल से मिला था ,
हो रही फ़रमाइशों के बीच ,
वो मेरी पसंद बन चुका था ।
धड़कने को धड़कन ,
धड़क भी जाता ,
मेरा हो चुका दिल ,
मुझसे मिलने को भी आता ।
पर ये एहसास ख़्वाब ही रह गये ,
ना जाने क्यूँ वो हमसे दूर हो गये ,
ना फ़रेब था मेरी इरादो में ,
ना ही किये किन्हीं वादों मे ।
कुछ तो था दरमियाँ दिलों के ,
वक़्त जिसे थामे खड़ा था ,
लूटा चुका अपनी ज़िंदगी मुझपर जो ,
वो बेख़बर किसी और के ख़्यालों मे पड़ा था ।
सपना था जो टूट चुका ,
मेरा माही मुझसे रूठ चुका ,
दिल फिर लगाया होगा उनसे उसने ,
फ़रेब समझ छोड़ दिया होगा जिसने ।
ये जंग है दिल की ,
जिसमे हार कर भी जीत जाते है ,
जीत कर भी अक्सर ,
दिलवाले हार जाते है ।
ये फ़रेबी दिल ,
फिर निकल पड़ा है ,
लूटने को दिल धड़कनो से ,
तैयार पड़ा है ।
Saturday, March 14, 2020
ख़ुशबू
मोहब्बत दिल के धड़कनो से ,
होती है मालूम सिर्फ़ ,
ऐसा बिलकुल नहीं ,
ख़ुशबू तेरी , मेरी साँसो में ,
धड़कनो को धड़का रही ।
जो गुज़री तो क़रीब से मेरे ,
ना तेरा दीदार हुआ ,
ना ही नज़रें दो चार हो गई ,
फिर भी दिल तू धड़का गई ,
तेरी ख़ुशबू साँसो में बसने को आ गई ।
मोहब्बत देगी दस्तक फिरसे ,
कुछ इस अन्दाज़ में ,
मालूम नहीं था धड़केगा दिल ,
ख़ातिर , ख़ुशबू लपेटे लिबाज में ।
क्यूँकि अब इस झट पट वाली मोहब्बत को ,
कोई एक नाम चाहिये था ,
निगाहों में बसाने को तस्वीर उसकी ,
उसकी निगाहों से पैग़ाम चाहिये था ।
उस भीड़ में जितना वो ,
मुझसे दूर जा रही थी ,
ख़ुशबू उसकी मुझे ,
उतना ही क़रीब ला रही थी ।
आख़िर निगाहों ने कोशिश कर ,
दिल को और धड़का दिया ,
जब निगाहों ने उसकी निगाहों में ,
ख़ुद को उलझा दिया ।
उसकी ख़ुशबू और वो ख़ूबसूरत आँखें ,
हम अपना सब लूटा बैठे थे ,
एक दफ़ा फिर अजनबी से ,
दिल टूटने को लगा बैठे थे ।
ग़लतफ़हमी थी मेरी ,
की दिल इस बार भी टूट जायेगा ,
था नहीं मालूम ,
ख़ुशबू रूह में बस कर ,
ताउम्र वो मेरा हो जायेगा ।
तेरी ख़ुशबू से अब होती हर सुबह ,
और शाम है ,
फेरती उँगलियाँ तेरी सर पर मेरे ,
देती आराम है ।
तेरी ख़ुशबू .. !!
Sunday, March 1, 2020
बेक़रार
कुछ यादें छोड़ कर ,
चंद लम्हों की वो ,
मुलाक़ातें छोड़ कर ।
जुगनुओं की ख़ातिर ,
सूरज ढलने को खड़ा था ,
सर्द होती हवाओं ने ,
जब उसकी ज़ुल्फ़ों को छुआ था ।
हरकतों से अंजान इशारों के ,
मिलते बिछड़ते निगाहो के ,
अब कुछ बात होने ही लगी थी ,
पर क्या करते जब जाने की हड़बड़ी थी ।
घटते वक़्त के साथ ,
हम कुछ क़रीब आ रहे थे ,
अजनबी एहसास छिपा कर ,
कुछ बता रहे थे ।
कुछ तो था दरमियाँ हमारे ,
जीना था बस इन यादों के सहारे ,
बिछड़ने को अब हम तैयार थे ,
समझ बैठे थे .. वक़्त के इशारे को ..इजहार थे ।
ख़त्म हो गया था सिलसिला हमारा ,
पर था नहीं दिल को जो गवारा ,
कुछ तो बाक़ी रह गया था ,
शायद दिल, निगाहों से कुछ कह गया था ।
पलट कर बस आख़िरी बार ,
देखने को उसे जैसे ही हम मुड़े थे ,
मानो उनकी भी निगाहे मिलने को ,
बेक़रार पड़े थे ।
ख़त्म नहीं ये शुरुआत है ,
कुछ दरमियाँ दिलों के ख़ास है ,
दूर हो कर भी ,
जो मेरे पास है ।।
Sunday, February 2, 2020
कच्चे मकान
कच्चे मकान हुआ करते थे ,
उलझते थे इंसान ,
फिर भी साथ रहा करते थे ।
वक़्त था एक वो भी ,
जब घर में होते थे आँगन ,
खेला जहाँ सब करते थे ,
अक्सर लोग जहा लड़ते थे ।
ना कुछ तेरा , ना मेरा ,
सब सबका हुआ करता था ,
एक वृक्ष की छाओ में ,
पूरा घर रहा करता था ।
कपड़े बाँटे तब भी थे जाते ,
चाचा के कपड़े भैया ,
भैया के कपड़े हम ,
पहन बेहद ख़ुश हो जाते ।
नमक रोटी का स्वाद ,
और उस चूल्हे की ख़ुशबू ,
ना जाने कहाँ खो गई ,
वो बंद मकानों में ... शायद हो गई ।
ना थे दरवाज़े , ना थी दूरियाँ ,
सब था तेरा , सब था मेरा ,
पर वक़्त कैसे बदल गया ,
जबसे मकान तेरा और मेरा हो गया ।
चंद लोगों के साथ घर कैसे हम बनायेंगे ,
जाते वक़्त दुनिया से वो चार कंधे कैसे लायेंगे ,
क्यूँ नहीं तोड़कर मकान आओ घर बनाते है ,
ख़ातिर ख़ुशियों के अपनो के ,
लोगों से घर सजाते है !!
आओ तोड़ कर मकान ,
घर बनाते है ।
Thursday, January 23, 2020
सर्द सड़क
वादियों में दफ़्न ज़िंदा लाश ,
सर्द होती मेरी साँसे ,
और बचे चंद अल्फ़ाज़ ।
फिर वो सर्द वाली रात,
लौट कर आई है ,
मुझ जैसे लाखों का ,
हुजूम वो लाई है ।
फ़र्क़ बस इतना है ..!
सड़क पर आज बैठी हो तुम ,
उस रात मैं लेटी हुई थी ,
ढका है कम्बल में ख़ुद को तुमने ,
मैं फटे कपड़ों से जिस्म ढक रही थी ।
तुम लाई हो साथ बच्चों को ,
मैं पेट में लिए उसे मर रही थी ,
तुम आवाज़ कर रही बुलंद अपनी ,
मैं ख़ामोश पड़ रही थी ।
तुम लड़ रही हो घर के ख़ातिर ,
किसी ग़ैर का बचाने को ,
छिन लिया था किसी अपने ने ,
उस रात मेरे आशियाने को ।
तुम भी हो ज़िंदा ,
और तुम्हारे अपने भी ,
मर रहे थे हम सब ,
और हमारे सपने भी ।
नहीं था कोई सड़कों पर,
ख़ातिर हमारे आया ,
लाशों को समझ बेवा ,
नोच उन गिद्धों ने था खाया ।
बैठी हो तुम भी सड़क पर ,
रोक कर अपनो का रास्ता ,
थी पड़ी लाशें हमारी भी सड़कों पर ,
अपनो का था नहीं जिनसे वास्ता ।
मैं लौट कर जब भी आऊँगी ,
आशियाना फिर से सजाऊँगी ,
सड़कों को कर आज़ाद ,
सबको रास्ता दिखाऊँगी ।
मैं लौट कर आऊँगी ....!!
Saturday, January 18, 2020
मोमबत्ती
चहरे पर ख़ामोशी ,
हिम्मत से लड़ी थी “माँ” ,
हार जंग इंसाफ़ की आज घर लौटी ।
लाखों की भीड़ लिये ,
हम सड़कों पर आये थे ,
बलात्कारियों को फाँसी ,
कुछ ऐसे नारे लगाये थे ।
बदलते वक़्त के साथ ,
हम सब कुछ भूल गये ,
माँ को छोड़ अकेले ,
अपनी दुनिया में खो गये ।
मिला जो इंसाफ़ उस बेटी को ,
एक दरिंदा हुआ आज़ाद था ,
कुछ चंद पैसे और मशीन ,
लेकर “मालिक” से बना उस्ताद था ।
इंसाफ़ के इस लड़ाई मे ,
माँ उतरी है दलदल वाली खाई में ,
हर कोशिश में हार रही ,
फिर भी लड़ने को तैयार रही ।
आज जिनको सड़कों से ,
सत्ता मे लेकर आये थे ,
मालूम नहीं था चंद वोटों के लिये ,
वो इंसाफ़ रोकने आये थे ।
क्यूँकि “बेटी” हम सब की है ,
आओ उस माँ के पास जाते है ,
सड़कों पर क़ब्ज़े के इस दौर में ,
सत्ता की भूख मिटाते है ।
आओ सभी मिल कर फिर से,
सड़कों पर आते है ,
बुलंद कर आवाज़ अपनी ,
“मालिक” को जगाते है ।
माँ जिसको छोड़ दिया लाखों ने ,
आओ हम फिर उसका साथ निभाते है ,
बुझ गई मोमबत्तियों को छोड़ ,
उम्मीद और भरोसे का दिया जलाते है ।
आओ चलो सड़कों पर उतर कर ,
माँ का साथ निभाते है !!
Saturday, January 11, 2020
मालूम नहीं
कहाँ और कैसे ,
यक़ीन मानो .. मालूम नहीं ।
तेरी पहली मुलाक़ात ,
और उसमें हुई हर बात ,
और उस वक़्त के हालत ,
यक़ीन मानो .. मालूम नहीं ।
एक रोज़ फिर मिला था तुझसे ,
पर तुम वक़्त निकाल नहीं पाई ,
थी शायद कहीं जाने को आई ,
लेकिन कहाँ ?
यक़ीन मानो .. मालूम नहीं ।
कब चंद लम्हों की बातों को ,
रात छोटे लगने लगे ,
अजनबी से पहचाने लगने लगे ,
आख़िर क्यूँ ?
यक़ीन मानो ... मालूम नहीं ।
हर रात चाँद से पहले सोने वाला ,
तुम्हें बिना देखे अब सोता नहीं ,
पर ऐसा क्यू ??
यक़ीन मानो .. मालूम नहीं ।
जान कर भी जा रही जान ,
तेरी आँखों में डूब कर ,
तैरना मंज़ूर नहीं होता ,
क़सम से ?
यक़ीन मानो .. मालूम नहीं ।
ज़िंदगी भर ज़िंदगी के लिये ,
हम सब लूटा आये थे ,
ख़त्म उस सिलसिले को ,
आज ख़ुद कर आये थे ,
लेकिन क्यूँ ?
यक़ीन मानो .. मालूम नहीं ।।
शायद
दिल के लगने से ,
दिल के बिछड़ने तक ,
मुझसे मिलने और
उनसे जुलने तक ।
मेरी पहली मुलाक़ात ,
से आज फिर वो मिल रहे होंगे ,
मेरे जाने पर ,
मोम से जज़्बात पिघल रहे होंगे ।
होगा हाथ फिर थामा मेरा ,
बड़ी शिद्दत से आज उन्होंने ,
कसमें भी ख़ूब खा रहे होंगे ,
ख़्वाब फिर सज़ा रहे होंगे ।
ख़ुशबू से मेरे महक रहा होगा शमा ,
और अल्फ़ाज़ो से वो सज़ा रहे होंगे ,
पिघल कर बहने को आ रहे जज़्बात ,
आँखों में दिखा रहे होंगे ।
क्यूँकि जाना ज़रूरी है अब ,
वो रुकने को मिन्नते किये जा रहे होंगे ,
आख़िरी नो हो मुलाक़ात ये ,
फ़ैसला कुछ ऐसा सुना रहे होंगे ।
मैं तो आज भी हु वही वैसे खड़ी ,
बस वो कोई और मुझ सा ढूँढ लाये होंगे ,
भूल कर तस्वीर मेरी ,
पहली हो मोहब्बत मेरी .. पहेली बुझाये होंगे ।
शायद मुझसे मिलने भी पहली दफ़ा ,
किसी मैं को छोड़ आये होंगे ,
मेरे संग बीते हर लम्हे को ,
कही और जी कर आये होंगे ।
शायद .. आज फिर मुझसे मिलने ,
वो कहीं आये होंगे !!
Monday, January 6, 2020
वो आँखे
कुछ मुस्कुरा सी रही थी ,
जज़्बात छिपा सी रही थी ,
ख़्वाब सज़ा सी रही थी ,
तेरी आँखो में देखा था पहली दफ़ा आज .. शायद !!
यू तो देखते थे कई दफ़ा तुमको ,
तुम्हारे भेजे ख़त में ,
पर कभी ठीक से निहार नहीं पाये ,
शायद आँखो में तुझे उतार नहीं पाये ।
गुमनामी के रिश्तों में उलझें ,
हुए हमारे तार है ,
अजनबी आज भी हो तुम मेरे लिये ,
बातें यू हो जाती दो चार है ।
कभी देखा ना ग़ौर से इतना ,
या शायद कुछ नया सा एहसास है ,
तेरी आँखो में बसी उसकी मोहब्बत ,
या काजल का रंग कुछ ख़ास है ।
आँखो से बातें करने उसके ,
अब हम नहीं जाते ,
दिल में बसी तस्वीर उसकी ,
देखते ही अजनबी बन रुक जाते ।
देखा था ग़ौर से तेरी आँखो में आज ...
शायद ,
ख़ूबसूरत है वो तेरी मोहब्बत सी !!!