Thursday, January 27, 2022

इश्क़ का दौर

जिस तरह मायूस दिल ,
खामोशी से सब कह रहा था ,
पहली दफा सी मोहब्बत से ,
आज फिर ये दिल गुजर रहा था ।

दर्द लेकर किसी गैर का ,
किसी अपने को सता रहा था ,
वफा के बदले मैं उससे ,
बेवफाई किए जा रहा था ।

खुशियों का वादा कर के ,
हर रोज़ उसे रुलाता हूं ,
पागल हूं शायद मैं ,
जो प्यार नहीं समझ पाता हूं ।

दर्द भरे जीवन में उसके ,
मरहम बन कर आया था ,
पर कहां उसके जख्मों को ,
मेरा इश्क भर पाया था ।

ख़्वाब सजा कर वो मेरे ,
दुनिया जिसे बताती हैं ,
हर रोज़ किसी किस्से से ,
खुद को उलझाती हैं ।

ना मैं रुका ना वो रुकी ,
फिर भी रुकने का डर सताता हैं ,
क्या सच में हर किसी का इश्क़ ,
इतना ही उलझाता हैं ।

मुश्किल है डगर जरूर ,
पर मुमकिन उसे बनाना हैं ,
हर देखते ख़्वाब को ,
सच कर जाना हैं ।

हैं उलझने तो क्या हुआ ,
इश्क़ तुमसे ही निभाएंगे ,
पहली नहीं तो क्या हुआ ,
आखिरी मोहब्बत जिसे बनाएंगे ।।

Wednesday, January 26, 2022

सफ़र


आज सुबह के सवेरे से ,
रात के गुजरे अंधेरे से ,
सब बदलने वाला था ,
देश की खातिर मैं जंग लड़ने वाला था ।

आज जब पहली बार ,
घर की चौखट से ,
मां की रक्षा के लिए कदम बढ़ाए थे ,
जज्बातों में उलझकर थोड़ा लड़खड़ाए थे ।

मां जो अपनी आखों के ,
आंसू छिपा रही थी ,
पापा की फेरती निगाहें ,
हाले दिल सुना रहीं थी ।

डर सा लग रहा था ,
उनको छोड़ जाने पर ,
क्या होगा इनका ,
मेरे नहीं लौट कर आने पर ।

और भी थे अनगिनत सवाल ,
जो मेरे जहन में आ रहे थे ,
हौसला और मुस्कुराहट से ,
जिनको हम छिपा रहे थे ।

जब मां ने चूमा माथा मेरा ,
मानो स्वर्ग में जा चुका था ,
मौजूद हर शख्स वहा ,
मेरे लंबे उम्र की दुआ कर रहा था ।

पता नहीं फिर इन रास्तों पर ,
कभी लौट कर आऊंगा क्या ,
मां के गोद में फिर कभी ,
सिर रख सो पाऊंगा क्या ?

याद तुम भी आओगी मुझे ,
और तुम्हारी वो बाते ,
चुपके चुपके मिलने वाली ,
वो खूबसूरत रातें ।

अरे पगली ,
तेरा जिक्र इस लिए नहीं किया ,
तू मेरी बहन नहीं ,
तू मेरी जान है ,
कहती है ना ,
हम दोनों दो जींद एक जान है ।

चल पड़ा मैं अनंत सफर में ,
देश का हो जाने के लिए ,
मां के मिट्टी का ,
कर्ज चुकाने के लिए ।।

हमसफ़र

ख़बर जब मेरे मौत की ,
आज मेरे शहर में आयेगी ,
जब लिपट कर मेरे लाश से ,
उनपर वो अपने अश्रु बहाएगी ।

हां छोड़ जा रहा तुमको मैं ,
तुम्हारे इस हाल में ,
जिंदगी के अनगिनत ,
उलझे जंजाल में ।

पर है भरोसा तुम पर  ,
तुम इस दौर से भी निकल जाओगी ,
मुझ जैसे तुम भी ,
देश की खातिर रक्त बहाओगी ।

बहुत हुआ अश्रु का बहना ,
अब और इसे मत बहाना ,
शान से लेकर तिरंगा ,
तुम उसे फहराना ।

जो लगे डर कभी ,
मेरा एहसास तुम्हारे साथ होगा ,
वो बर्दी मात्र नहीं है मेरी ,
मेरी रूह का उसमें एहसास होगा ।

है मुश्किल ये जानता हूं मैं ,
खुद को गुनेहगार मानता हु मै ,
छोड़ गया इस हाल में मैं तुम्हें ,
इसका कसूरवार खुद को मानता हूं मैं ।

था मेरे हिस्से में बस ,
इतना ही तुम्हे दे पाने को ,
देश के खातिर रक्त बहाने ,
और तुझसे मोहब्बत निभाने को ।

मैं चला अब अपने सफर पर ,
तुम भी अब खड़ी हो जाओ ,
ठीक मुझ जैसे ,
तुम भी देश के लिए रक्त बहावो ।

मांग में सिंदूर नहीं अब तुम्हारे ,
मैं जिसे मिटा बैठा हु ,
देश के लिए जिंदा रहे रूह मेरी ,
इस लिए तुम्हारे रूह में आ बैठा हूं ।

मैं रहूंगा जिंदा तब तक ,
जब तक तुम्हारी जिंदगी है ,
यही तो ख़ूबसूरत हमारी ,
ताउम्र की बंदगी है ।

उठ खड़े हो साथी ,
अभी तुमको लड़ना बाकी है ,
मिटा दो आंखो से अश्रु ,
कुछ रक्त बहना बाकी है ।।

खत

आज मेरे नाम ,
एक ख़त आया था ,
जिसमें तेरा कोई ,
पैगाम आया था  ।

हां बीत गए कुछ महीने ,
या शायद पूरा एक साल ,
भूल गया बताना ,
तुमको अपना हाल ।

हर रोज सुबह उठता हु जब ,
तेरी याद बहुत सताती है ,
चुपके चुपके आंखो की ,
नमी में तू छिप जाती है ।

हर रात सोने से पहले ,
तेरा ख्याल मुझे सताता है ,
बाहों में आ जाओ तुम ,
सोच कर ये दिल सो जाता है ।

कभी खाली पेट जो सोता मैं ,
तुम आकर ख्वाबों में , 
भर पेट मुझे खिलाती हो ,
हर दफा जब भेजे खत में ,
इज़हारे मोहब्बत कर जाती हो ।

हां लगता है दर खोने का तुमको ,
फिर भी नहीं घबराता हु ,
तेरे खत के इंतजार में ,
और जीता चला जाता हूं ।

हर दफा जब पढ़ता उसको ,
आखिरी मान लेता हु ,
मालूम नहीं कल सुबह ,
मेरे हिस्से में है भी की नहीं ,
हर शाम तुझे जी लेता हूं ।

तेरा खत फिर मिला मुझे ,
रक्त से जो भरा हुआ था ,
अल्फाज़ नहीं बस उसमें ,
तेरी तस्वीर से वो खत सजा हुआ था ।

देख कर तेरे खत को ,
एक बूंद तेरे गाल पर ,
मेरी आंखों से जा गिरी ,
बस इतनी सी थी खत में ,
कहानी तेरी मेरी ।।

Friday, January 21, 2022

बर्बाद इश्क़

इश्क़ में तो हूं मैं कई रोज़ से ,
पर कई रोज़ से इश्क़ कहां है ,
दिल धड़कता तो बेशक है मेरा ,
पर दिल की धड़कन कहां है ।

एक ही दिल को कई दिलों से ,
उसके एक सा लगाने पर ,
मैं रोज़ मनाता जिसको ,
हर दफा रूठ जाने पर ।

कितना मज़ा मुझे सताने में ,
ए जिंदगी तुझे आ रहा हैं ,
इश्क़ मेरा जब छोड़ कर ,
किसी और की बाहों में जा रहा है ।

मुक्कमल मेरी हर ख्वाइश हो रही ,
इश्क़ में बर्बाद होने की ,
हर दफा उसके हर झूठ के बाद ,
खुद को आंसुओ से भिगोने की ।

दर्द मैंने भी कम दिया क्या इश्क़ में ,
जो वक्त सब दोहरा रहा हैं ,
कह कर मोहब्बत मुझसे सच्ची ,
किसी और को महबूब वो बता रहा है ।

इश्क़ ना हो तो बेहतर है ,
इश्क़ में बर्बाद होने से ,
किसी गैर को अपना कह कर ,
उसकी बाहों में सोने से ।

इश्क़ तेरा ये रंग भी ,
आज मैंने देख लिया ,
अंजाने में ही सही ,
"सुनो जान" मैंने सब देख लिया ।।

झलक

आज लगा जैसे कोई ,
मेरी दुआ कबूल हो गई ,
या फिर अंजाने में उससे ,
ये अधूरी भूल हो गई ।

देख लिया उस शख्स को ,
जिसकी निगाहें ही देख पाते थे ,
मालूम नहीं रूह पढ़ने वालों से ,
वो चेहरा क्यों छिपाते थे ।

कितना सुकून और सादगी आंखो में ,
चेहरे पर क्या खूब नूर था ,
यकीनन वो किसी खुशनसीब का ,
मानो शायद कोहिनूर था ।

थम गई आंखे मेरी ,
और बस उसे निहारने लगा ,
चंद पल में खो ना दू दीदार ,
आंखो से दिल में तस्वीर उतारने लगा ।

अधूरे इश्क़ सा अधूरा दीदार भी ,
क्या खूब हमें सिखाता हैं ,
हर रोज़ उसके पूरी झलक के इंतजार में ,
अधूरी तस्वीर को ही वो पूरा बताता हैं ।

गर कभी निगाहों ने उसे पूरा देखा लिया ,
तो दिल को कैसे मैं मनाऊंगा ,
गालों पर डिंपल और तिल से ,
कैसे अपनी नज़रे हटाऊंगा ।

खैर दीदार तेरा अधूरा ही ,
अब मुझे बेहतर लगने लगा है ,
जबसे धड़कनों का शोर ,
तेरे अधूरे दीदार से बढ़ने लगा है ।।

Wednesday, January 19, 2022

बाली

देख कर निगाहों में उसके ,
बस हम देखते रह जाते हैं ,
भला क्या ही देखे और ,
जब झुमको पे रुक जाते हैं ।

यकीनन बाली भी झुमके सी ,
उन्हें खूबसूरत बना रही होगी ,
सज कर कानों पे जो ,
अनगिनत दिलों को जला रही होगी ।

शांत , शालीन और सुंदर ,
श्रृंगार में और भला क्या होता हैं ,
बिना किसी हलचल के भी ,
जिसकी मौजूदगी से शोर होता है ।

बाली की खामोशी ,
क्या खूब शोर मचाती हैं ,
बिना हवा के झोंको के भी ,
दिल में बस जाती हैं ।

बस चुकी दिल में तस्वीर जिसकी ,
भला कैसे उसकी खूबसूरती नकारू ,
कोहिनूर कहूं उसे मैं ,
या फिर चांद कह कर पुकारू ।

हम भला इतने खुशनसीब कहां ,
जो वो कभी हमसे भी गुजर कर जायेंगे ,
कुछ पल आईने में निहारने के बाद ,
हमारी निगाहों के सामने ठहर जायेंगे ।।

आखिरी टुकड़ा

तेरे जाने के बाद मुझे ,
तेरा एक जुठा तौफा मिला है ,
वो आखिरी टुकड़ा पड़ा हैं पास मेरे ,
जो तूने मेरे नाम करा है ।

लबों पर बसा कर इसको ,
दिल में उतार ले जाऊ ,
या समझ कर जुठा किसी गैर का ,
कूड़े में फेक आऊं ।

बड़े ही कश्मकश से गुजर रहा ,
आज मेरा ये दिल हैं ,
क्या सच में ये टुकड़ा ही ,
इस रिश्ते की आखिरी मंजिल है ।

मैं फेक इसको भला ,
क्यों किसी गैर को होठों से लगाने दू ,
जुठा भला उसका कैसे ,
किसी और को अब मैं खाने दूं। 

अमृत सा लगने वाला हर जुठा ,
आज जहर सा क्यों लग रहा हैं ,
मेरे हिस्से का जुठा ,
अब किसी और के ,
होठों से क्यों गुजर रहा है ।

छोड़ कर तूने मुझे ,
एक पल में लावारिश बना दिया ,
खा कर तेरा आखिरी टुकड़ा ,
मैंने खुद को मिटा दिया ।

क्या सच में आखिरी निशानी ,
आपको इतना सताती हैं ,
जिंदगी सी लगने वाली मोहब्बत ,
मौत बन जाती है ।

आखिरी टुकड़ा तेरा आज भी ,
थोड़ा छूटा पड़ा हैं ,
तेरे मरने के इंतजार में ,
वो जुठा पड़ा हैं ।

गर थी मोहबब्त मुझसे थोड़ी ,
तो आखिरी टुकड़े को होठों से लगा जाना ,
अमृत से बन चुके जहर को ,
तुम भी चख आना ।

जिंदगी का तो पता नहीं ,
पर मैं मिलने जरूर आऊंगी ,
आखिरी टुकड़े का वास्ता ,
मौत के बाद ही सही ,
बस तेरी हो जाऊंगी ।।

आखिरी कोशिश

तेरे जाने के बाद से ,
सब कुछ मैं भूलने लगी हूं ,
बीता हुआ कल मान कर तुझे ,
आज में जीने लगी हूं ।

हर याद जुड़ी जो तूझसे ,
अब धुंधली होने लगी हैं ,
चल होने को हैं सवेरा ,
जिंदगी मुझसे कहने लगी है ।

एक टुकड़ा तेरे हिस्से का ,
आज भी मैंने बचा कर रखा है ,
आखिर टुकड़ा मान कर जिसे ,
दुनिया से छिपा रखा है ।

ना हुई ख्वाइश मेरी पूरी ,
ना रहें हम ताउम्र साथ में ,
सब कुछ तो खो दिया मैंने ,
तुझे पाने के फ़िराक में ।

मेरे हर अंत की शुरुआत तुमसे ,
तो भला ये किसी और के हिस्से ,
कैसे कभी जा पायेगा ,
लौटने पर तेरे आने पर ,
बस तेरे ही हिस्से आयेगा ।

मेरे लिए ये आखिरी टुकड़ा नहीं ,
मेरी आखिरी कोशिश होगी ,
मुक्कमल ना हो सकी ख्वाइश ,
शायद इस आखिरी टुकड़े से पूरी होगी ।।

Saturday, January 15, 2022

गैर

मैंने बदल कर नज़रिया इश्क़ का ,
अपने इश्क़ को बदनाम किया हैं ,
तोड़ कर दिल जबसे किसी अपने का ,
किसी गैर के नाम किया है ।

ना पता मेरे मंजिल का मुझे ,
ना ठहरने का कोई ठिकाना हैं ,
मालूम नहीं क्यों छोड़ आए वो गलियां ,
जिनमें गुजरा एक जमाना है ।

सब कुछ तो ठीक था कल तक ,
आज ना जाने कैसे सब बर्बाद हो गया ,
सारे वादे कसमें तोड़ कर ,
चंद लम्हों में उससे मैं आज़ाद हो गया ।

जिंदगी सी लगने वाली मोहबब्त ,
मौत से बत्तर अब क्यों लग रही हैं ,
खामोश तो पहले से थे हम दोनों ,
फिर इतना शोर जिंदगी क्यों कर रही है ।

मैं तड़प रहा हर दिन हर रात ,
वो दिन आखिर आया ही क्यों था ,
पहली और आखिरी दफा मैंने ,
बेवजह उसे इतना सताया क्यों था ।

क्या सच में इश्क़ मुकम्मल नहीं होता ,
सच्चा इश्क़ निभाने पर ,
छोड़ कर चले जाते हैं अपने ,
किसी गैर के आ जाने पर ।

खैर ,

इश्क़ में हर रोज़ निकलते हैं ,
कई मुसाफ़िर किसी की तलाश में ,
कुछ हो जाते दफ्न कब्र में ,
कुछ रह जाते जिंदा किसी लाश में ।।

Sunday, January 9, 2022

इश्क़ का दरिया

इश्क़ में डूब कर हमने ,
बहुत मोहब्बत कर ली है ,
अब तैर कर इस समंदर में ,
इसके दरिया पे जाना है ।

बहुत सहा है इस दिल ने ,
कई बार खुद को मनाया हैं ,
सीख कर तैरना जिसने खुद से ,
खुद को डूबने से बचाया हैं। 

लहरों के ज़ख्म आज भी ,
दिल का दर्द बढ़ाते हैं ,
दरिया के आने के इंतजार में ,
फिर डूबने लग जाते हैं ।

इश्क़ के इस समंदर में ,
दरिया महज एक ख्वाब हैं ,
शायद दिल को ही नहीं मंजूरी ,
ख़त्म हो ये सिलसिला आज है ।

और भी बहुत से सीप ,
अब भी मोतियां बचाए बैठे हैं ,
चीर कर सीना जिनका ,
जिनसे हम मोतिया चुराते रहते हैं ।

डूब लो समंदर में थोड़ा और ,
क्योंकि तैरना तो आता हैं ,
क्या करे इस कमबख्त दिल का ,
हर रोज़ जिसे कोई नया भा जाता है ।

क्या इश्क़ नहीं

ऐसा नहीं की इश्क़ नहीं मुझे तुमसे ,
पर अब इश्क़ करना ही नहीं हैं ,
एक और दफा तड़प तड़प कर ,
मुझे जिंदा रहते मरना ही नहीं है ।

आज तक इस दिल ने ,
बस ठोकर ही तो खाया है ,
बहुत जुल्म और जिल्लत सह कर ,
ये दिल संभल पाया है ।

इश्क़ के सौदागर कई गुजरे ,
तुमसे दिल लगाने से पहले ,
झूठा और फरेब इश्क़ ,
तुम्हारे जताने से पहले ।

मैं बिखर कर टुकड़ों में ,
जज़्बात दुनिया से छिपाता हूं ,
तेरे दिए हर दाग को ,
हर रोज़ मिटाता हूं ।

पर आंखे मेरी बड़ी जालिम हैं ,
वो कुछ छिपा नहीं पातीं ,
देख कर हर खूबसूरत इश्क़ को ,
बस बहने लग जाती ।

लगता है डर उसे ,
फिर से टूट जाने का ,
इश्क़ में सब लूटा कर ,
लावारिश हो जाने का ।

अब और नहीं इश्क़ करना ,
किसी गैर को अपना कहना ,
वक्त मेरे ज़ख्म भर जाएगा ,
जिस रोज़ मुझ जैसा कोई ,
मेरी जिंदगी में इश्क़ बन कर आयेगा ।।

Friday, January 7, 2022

गैर इश्क़

मैंने इश्क़ में हर हद को ,
सिर्फ़ तेरे लिए पार किया ,
तूने क्यों नहीं मुझसे ,
मुझ जैसा प्यार किया ।

मैं तेरे हर इनकार को ,
इज़हार मान लेती थी ,
तेरी हर जुल्म को ,
मरहम का नाम देती थी ।

ना चढ़ा था मुझे किसी का,
आज तक फितूर हैं ,
बस मेरे हिस्से तेरी खुमारी ,
बस इतना ही मेरा कसूर है ।

फिर भी तुझको ही ,
मैंने अपना संसार माना था ,
पर तेरे दिल ने हमेशा मुझे ,
कोई गैर जाना था ।

गैर इश्क़ में तूने कर के ,
मुझे इश्क़ करना सीखा दिया ,
बड़े ही नाज़ुक से दिल को ,
तूने पत्थर का बना दिया ।

बर्बाद नहीं इश्क़ में कोई ,
सब आबाद होने आते हैं ,
कुछ अपनों से इश्क़ निभाते ,
कुछ गैर के हो जाते हैं ।।

Tuesday, January 4, 2022

तुम एक ख़्वाब

जिंदगी से मांग मांग कर भीख ,
अब मैं थकने लगा हूं ,
किसी अपने की तलाश में ,
किसी गैर को "तुम" कहने लगा हूं ।

तुम हो कहां भला ,
क्यों इतना वक्त लगा रही हो ,
खूबसूरत सजाए सपनो को ,
क्यों किसी और के हिस्से करा रही हो ।

हर गम और हर खुशी ,
का तुम मेरे आधार बनो ,
आ जाओ बस अब जिंदगी में ,
और मेरा आखिरी इजहार बनो ।

मुश्किल बहुत हैं सफर मेरा ,
डगर भी डगमगाया हैं ,
बहुत ने छोड़ा साथ मेरा ,
पर वो तो मेरा साया हैं ।

मेरे हर ख़्वाब को जो ,
सच में बदल कर दिखायेगा ,
मुझसे भी बेहतर इश्क़ ,
जो मुझसे निभायेगा ।

एक ना एक रोज़ तो ,
अपने श्रृंगार में वो भी ,
माथे पर बिंदी सजाएगी ,
मांग में मेरे नाम का सिंदूर लगाएगी ।

बस अब इंतजार मेरा ,
मानो बस ख़त्म होने को है ,
एक और रात के ख़्वाब में ,
जो अब खोने को है ।

तुम हो जहा भी ,
बस लौट कर अब आ जाओ ,
ख़त्म करो सिलसिला ख़्वाब का ,
और मेरा सच बन जाओ ।।