Wednesday, September 29, 2021

रकीब की बिंदी

माथे से उसने बिंदी नहीं ,
मेरे इश्क़ को हटाया था ,
मिलने जब उससे उसका ,
कोई मीत आया था ।

रूठने पर मनाने का सिलसिला ,
आज मैंने फिर शुरू किया था ,
मान कर जेहनसीब जिसे ,
उसके हिस्से अपना वक्त किया था ।

दिल जो पहले जिससे लगा था ,
वो आज अजनबी सा लग रहा था ,
मेरे इज़हार करने पर पहली दफा ,
वो अपनी नज़रे फेर रहा था ।

मुकम्मल हो इश्क़ उसका ,
लिखा जो हो उसके नसीब में ,
रकीब नहीं बनना मुझे  ,
किसी दिलजले के इश्क़ में ।

हारना लाज़मी होता है इश्क़ में ,
किसी को जिताने के लिए ,
एक तरफा मोहब्बत को ,
इस कदर निभाने के लिए ।

मिलेगा कोई एक रोज़ मुझे ,
जो मुझसे भी इश्क़ निभायेगा ,
मेरे नाम की बिंदी से ,
खुद को सजाएगा ।।

दिल मेरा

दिल को मेरे क्या हुआ है ,
ये अब क्यों उलझ रहा है ,
दूर तो कल भी थी वो मुझसे ,
पर अब क्यों दूर लग रहा है ।

खामोशी उसकी शोर कर रही ,
गैर मौजूदगी कमजोर कर रही ,
फासलों को मिटाने पर मुझे ,
देखो अब मजबूर कर रही ।

होठों पर लबों की बात लाकर ,
मुझसे ये कैसा करार कर रही है ,
बेकरारी को बढ़ा कर मेरे ,
मुझे मुझमें उलझा रही है ।

सब कुछ खूबसूरत लगने लगा है ,
जबसे अपने निगाहों से दिखा रही है ,
दीवानगी की हद से बेहद होने को ,
सरेआम झुठला रही है ।

फितूर मेरा उतरा नहीं कभी ,
बस उसका फितूर अब चढ़ने लगा हैं ,
देखो ना इश्क़ का ज़हर ,
अब जहन में घुलने लगा है ।

परवान चढ़ने लगा है इश्क़ जो ,
अब तो उसे निभाना है ,
चंद लम्हों की हो खुशी या जिंदगी भर की ,
उसके हिस्से जिसे कर जाना है ।।

बदनाम

दिल में बसा है कोई और ,
तस्वीर किसी और की दिखा रही ,
नाम किसी और का लेकर ,
पता किसी और का बता रही ।

रास्ते बदल रही हर मोड़ पर ,
नक्शे को भी छिपा रही ,
कभी मिल रही किसी अपने से ,
कभी अजनबी को अपना बता रही ।

भूल कर कल को ,
कल अपना बना रही है ,
आज का मालूम नहीं ,
वादा कल का किए जा रही है ।

इश्क़ में बदनाम हो कर भी ,
दिल खुलेआम लगा रही है ,
गुमनाम शहर के किसी कोने में ,
अपना आशियाना सजा रही है ।

मिल रहे हर ज़ख़्म को ,
घाव खुद बना रही है ,
मरहम लगाने वाले हाथों को ,
जख्मों से भरे जा रही है ।

खैर,

इश्क़ में भला ऐसा कभी ,
कहीं होता है क्या ,
बर्बाद करने वाला भी ,
कभी रोता है क्या ?


बदनसीब मां

जिस रोज़ मुझे घसीट कर ,
दहलीज तक वो लाय थे ,
छीन कर मेरे लाल को ,
मुझे चौखट पर छोड़ आए थे ।

मैं तड़प रही थी उसके आस में ,
था नहीं कोई भी खड़ा मेरे पास में ,
जुल्म मेरा बस मेरी एक "ना" थी ,
किसी के हरकतों से मैं खफा थी ।

जब निकली उस चौखट से ,
आजाद हो कर भी कैद हो गई ,
अपने जिगर के टुकड़े के बगैर ,
मैं इस जहां में अनाथ हो गई ।

हर सुबह पहला ख्याल भी उसका ,
हर रात भी वही आखिरी होता है ,
आज भी लगती चोट गर कभी ,
मेरा ही नाम लेकर रोता है ।

मेरी आंखो में हर वक्त नमी ,
उसकी कमी को बताता हैं ,
बगैर बच्चे के किस मां को ,
भला सुकून मिल पाता है । 

मेरे हिस्से के गम को ,
बस वही कम कर पायेगा ,
लौट कर मेरा लाल ,
जब मुझे गले लगाएगा । 

वो मां कितनी बदनसीब होती होगी ,
कोख में पलने वाले से ,
जब कभी किसी गैर के खातिर ,
मुझ जैसे दूर होती होगी ।।

आसमानी परिंदा

आज भी शाम को ,
वो छत पर आती होगी ,
किसी परिंदे को कैद करने ,
निगाहों का पिंजड़ा लाती होगी ।

बहुत परिंदे उड़कर ,
उसके छत पर आते होंगे ,
समझ कर आसमां उसे ,
पिंचड़े में फंस जाते होंगे ।

इश्क़ उनसे भी मुझसा ,
वो निभाती होगी ,
उंगलियों से आज भी ,
बिखरे जुल्फ सुलझाती होगी ।

कहानियों में उसके दर्द ,
और जिल्लत का जिक्र होगा ,
कर रहा कोई नया परिंदा ,
उसकी फिक्र होगा ।

आज भी किसी कैद परिंदे को ,
आजादी का पाठ पढ़ा रही होगी ,
कैद में रख कर जिसे ,
आजाद बता रही होगी ।।

कुछ नहीं बचा

ना किसी की मौजूदगी ,
ना ही किसी का आना ,
ना कोई खुशी की वजह ,
ना ही किसी से दिल लगाना ।

ना मुझे सुकून आता है ,
ना बेकरारी जाती है ,
ना उतरती खुमारी ,
ना ही वो मेरे पास आती है ।

ना दिल पूछता कोई सवाल ,
ना कोई जवाब होता है ,
ना कोई हाले दिल जानता ,
ना किसी को याद होता है ।

ना मिलता किसी से दिल ,
ना कोई दिल लगाता है ,
ना किसी से उलझता ,
ना किसी को सताता है ।

ना अब धड़कन का शोर हैं ,
ना ही दिल पर किसी का जोर है ,
ना कोई दिलबर है दिल लगाने को ,
ना ही दिल बचा है किसी का हो जाने को ।

ना जिस्म में अब जान बची है ,
ना ही वो पास खड़ी है ,
ना ही इश्क़ कोई अधुरा है ,
ना ही करना जिसे पूरा है ।

अब कुछ भी बचा नहीं ,
इस ना को हां बनाने में ,
बेहतर होगा जिंदा लाश को ,
किसी कब्र में दफनाने में ।।

Tuesday, September 28, 2021

तेरे जाने पर

तुम जाते जाते ,
क्या कुछ छोड़ कर ,
मेरे पास जाओगी ,
जब कभी आखिरी दफा,
अलविदा कहने आओगी ।

क्यों वो तुम्हारी ,
प्यारी सी मुस्कुराहट होगी ,
या होगी तुम्हारी खुमारी ,
या फिर इश्क़ में पड़ने वाली ,
लौट आयेगी मेरी बीमारी ।

या फिर होगा जिक्र तुम्हारा ,
तुम्हारी अनगिनत बातें होंगी ,
होगा पिटारा लम्हों का ,
कहानियां जिनमें तुम,
अक्सर छिपाती होगी ।

या फिर होगा वो मौसम ,
और बारिश की बूंदे ,
या फिर भीगा मन होगा ,
कल्पना से भी खूबसूरत ,
बीता हर एक पल होगा ।

या फिर होगा ,
अल्फाज़ का बिखरा रूप  ,
पहेली सा स्वरूप ,
और तेरी मेरी कहानियां ,
दीवारों पर टंगी तेरी निशानियां ।

या फिर होगी वो रात ,
जो बेताब होगी ,
अधूरी जिसकी हर बात होगी ,
खामोशी में शोर की ,
तुम्हारी वो आखिरी सौगात होगी ।।

Monday, September 27, 2021

मेरी जान

चलो आज से तुमको ,
हम जान कहते हैं ।

इश्क़ में अब नहीं तुम्हें ,
अंजान कहते हैं ,
चलो आज से तुमको ,
हम जान कहते हैं ।

पहली दफा सी मोहब्बत ,
हर रोज़ करते हैं ,
चलो आज से तुमको ,
हम जान कहते हैं ।

खुद की जान तुम पर ,
हम कुर्बान करते हैं ,
चलो आज से तुमको ,
हम जान कहते हैं ।

दिल की हर धड़कन को ,
सिर्फ तुम्हारे नाम करते हैं ,
चलो आज से तुमको ,
हम जान कहते हैं ।

हर गुजरते लम्हें को ,
तुम्हारा पैगाम कहते हैं ,
चलो आज से तुमको ,
हम जान कहते हैं ।

जिंदगी का हर पल ,
जिसके हिस्से नीलाम करते हैं ,
चलो आज से तुमको ,
हम जान कहते हैं ।

इश्क़ का तुमसे ऐलान ,
सरेआम करते हैं ,
चलो ना आज से तुमको ,
मेरी जान , हम जान ,
तुमको हम सिर्फ जान ,
अपनी जान कहते है ।।

फ़रियाद

फ़रियाद की है आज मैंने ,
खुदा से पहली दफा ,
बादलों से कह दो ,
थोड़ा बरस दे जरा ।

पहले भी आती थी बरसात ,
पहली दफा उसे वो बुला रहा है ,
बन कर बारिश भिगोने का ,
मन वो भी बना रहा है ।

दूरियां आज दरमियां हमारे ,
क्यों मीलों सी लग रही , 
उतर रही खुमारी तेरी और 
मेरी खुमारी अब चढ़ रही ।

सब कुछ पूरा हो कर भी ,
आज अधूरा लग रहा हैं ,
फरियाद खुदा से वो ,
तेरे बरसने की कर रहा है ।

रात के अंधेरे के किस्से नहीं ,
दिन के उजाले सी बन कर आना ,
भूल कर सब अंधेरों को ,
बस रौशनी से भर जाना । 

ये कैसा सा खुमार मुझपर अब ,
तेरा चढ़ने लगा है ,
हर एक पल खामोशी से जो ,
बेकरार करने लगा है ।

चंद फासले अब मिटने को हैं ,
या बिलकुल अब मिट चुके हैं ,
अल्फाज़ की पहेली अब ,
हम दोनों ही अब बन चुके हैं ।।

Sunday, September 26, 2021

इश्क़ का व्यापार

इश्क़ के कारोबारी को ,
उसका नफा नुकसान भाता है ,
जिस्म से मतलब नहीं ,
उसे तो रूह में बसना आता है ।

लोग सूरत देख कर ,
सीरत को खूबसूरत बताते हैं ,
इश्क़ के व्यापारी ,
सूरत देख ही कहां पाते है ।

शोर हो या हो कोई सन्नाटा ,
उन्हें हर शख्स भा जाता हैं ,
इश्क़ अधूरा गर जिंदगी में ,
किसी रोज़ किसी के रह जाता है ।

खुशियां देने का दाम ,
उनको भी मिलता है ,
कोई देता बेहद मोहब्बत ,
तो कोई बेवफा निकलता हैं ।

हर दफा टूट कर इश्क़ करना ,
आसन नहीं होता ,
नफा नुकसान से जिसके ,
व्यापारी कभी अंजान नहीं होता ।

हर इश्क़ में पड़ने वाले का ,
ये इकलौता कारोबार नहीं होता ,
कुछ होते है सिर्फ़ सौदागर ,
जिनका इश्क़ व्यापार नहीं होता ।।

हर सुबह इश्क़

ये जो रोज रोज ,
तुम जो इश्क़ बदलते हो ,
हर सुबह पड़ कर जिसमें ,
शाम को बिछड़ते हो ।

क्या दिल नहीं टिकता कहीं ,
या इश्क़ का तुम समंदर हो ,
डुबकियां लगाने की ख्वाइश में ,
किसी के मौत का मंजर हो ।

तुम हो भला कौन ,
पल भर में जो दिल लगाता हैं ,
चुरा कर मोतियां सिप से ,
इश्क़ की तलाश में निकल जाता है ।

दिल लगाना होता है आसान ,
इश्क़ निभाना उतना ही मुश्किल ,
सिर्फ जिस्म की ख्वाइश में ,
कहां पड़ता है कोई दिल ।

जिस्म नहीं रूह से ,
हमेशा उनके वो जुड़ता है ,
पल भर में जीवन भर की खुशियां ,
झोली में जिनके भरता है ।

सौदा इश्क़ का हो या शब्दों का ,
सौदागर वो कहलाएगा ,
पल भर की खुशियां हो या गम ,
उनके हिस्से कुछ जरूर छोड़ जाएगा ।

वो पूछती है आज भी उससे ,
तुम करते हो ऐसा क्यों भला ,
इश्क़ में तुमसा कोई इश्क़ करने वाला ,
आज तक तुन्हें क्यों नहीं मिला ।।

Friday, September 24, 2021

अंजान लड़की

देखो कितना वो मुस्कुराती है ,
हर दर्द चुपके से छिपाती है ,
कभी बिंदी कभी झुमके से ,
खुद को सजाती है ।

है मुश्किल रास्ते जिसके ,
आसान जिन्हें दुनिया को बताती है ,
जंग जिंदगी का अक्सर ,
खुद से लड़ते चली जाती है ।

इश्क़ मुकम्मल होता नहीं ,
फिर भी शिद्दत से निभाती है,
अक्सर तोड़ कर दिल अपना ,
इश्क़ में पड़ जाती है ।

ना मंजिल का पता ,
ना ठिकानों का कोई बसेरा है ,
अधूरे इश्क़ और कहानियां ने ,
बस उसे घेरा है ।

देखो मेरी निगाहों से खुद को ,
तुम्हारे आईने सी तस्वीर नजर आएगी ,
झूठी मुस्कान और अधूरी खुशियों ,
की दास्तां चीख चीख जो सुनाएगी ।

एक दफा इश्क़ को खुद से ,
शिद्दत से निभा के देखना ,
सब कुछ बदल जायेगा ,
तुमसा मोहब्बत वो भी करने लग जायेगा ।।

मैं और तुम

अधूरे ख़्वाब को जिकर ,
जब सुबह मैं उठा था ,
हर बार की तरह हारने पर ,
तू मेरे सामने खड़ा था ।

एक पल में सब ,
देखो कैसे बदल जाता है ,
जिस पल भी तू मेरे ,
सामने आ जाता है ।

तेरी मुस्कुराहट मुझे इश्क़ ,
तेरी आंखे दुनिया दिखाती हैं ,
तेरे दुपट्टे में राहत के पल ,
मेरा सुकून मुझे लौटाती हैं ।

तेरी फेरती उंगलियां का जादू ,
हर दफा तुझे जादूगर बनाती हैं ,
टूट जाने पर भी नम आंखों से ,
तू अक्सर मुस्कुराती है ।

इतनी मोहब्बत भला कैसे ,
तू मुझसे कर पाती है,
लाख जुल्मों सितम के बाद भी ,
मोहबब्त निभाती है ।

मैं और तुम ,
एक दूजे के लिए काफी हैं ,
बंध चुके रिश्ते में ,
ताउम्र के साथी है ।।

कल रात

तुम इसे आखिरी दफा ,
अब मान लेना ,
मेरी कोई आखिरी ख्वाइश ,
जिसे जान लेना ।

मांगा था पहली दफा ,
तुम्हारे वक्त का हिस्सा ,
करना था मुझे पूरा ,
अधुरा जो रह गया किस्सा ।

ये रात लगी लंबी मुझे ,
इस दफा तेरे इंतजार में ,
हर रात से अलग थी ये रात ,
जो कट रही थी तेरे प्यार में ।

ख्वाबों में तेरा जिक्र ,
पूरी रात मुझे आता रहा ,
पहली दफा तेरा इश्क़ मुझे ,
इस कदर सताता रहा ।

नींद सी मोहब्बत अब मैं ,
तुमसे करने लगा था ,
फुर्सत मिलते ही जिंदगी से ,
तुझमें खोने लगा था ।

पहेली से आज़ाद नहीं ,
मुझे इसमें कैद होना था ,
अल्फाज़ बन कर उसका ,
इन लम्हों को जीना था ।

पल कभी अब ये लौट कर ,
गुजरे वक्त सा आयेगा नहीं ,
तुझसे मांगू वक्त कभी और ,
अब ये हो पायेगा नहीं ।।

Thursday, September 23, 2021

चूड़ियों की खनक

खनक रही थी ,
चमक भी रही थीं ,
हाथों में जब अपने वो ,
चूड़ियां पहन रही थी ।

श्रृंगार था पूरा ,
पर सौन्दर्य था अधूरा ,
था नहीं पहना उसने ,
जब तक हाथों में चूड़ा ।

हर कदम और हर खनक ,
झुकी पलके और अनगिनत ख़्वाब ,
जीने को हो रहा था जिसे ,
अब मन उसका बेताब ।

दिल को दिल से लगाना ,
किसी गैर को अपना बनाना ,
चूड़ियों की खनक समझाना ,
और बस इश्क़ में पड़ जाना । 

चूड़ियों से भला बेहतर ये ,
कौन ही निभा पाता होगा ,
इश्क़ की मौजूदगी जिंदगी भर ,
खनक से अपने जो बताता होगा ।

क्या खूब रंगीन मौसम ,
देखो हर तरफ होने लगा हैं ,
तेरे चूड़ियों के रंग से ,
जो खुद को रंगने लगा है ।

चूड़ियां श्रृंगार का हिस्सा नहीं ,
जिंदगी का किस्सा बताती हैं ,
ना हो गर मौजूद हाथों में ,
सन्नाटे में शोर मचाती हैं ।।

चाय और तुम

गर है मोहब्बत तो कह दो ,
उलझाओ मत कहीं ,
वक्त ना निकल जाए ,
और तुम रह जाओ यहीं ।

चाय के प्याली की गर्माहट ,
कहीं ठंडी ना हो जाए ,
ताज़गी खत्म चाय की ,
कहीं जल्दी ना हो जाए ।

सफ़र में हमसफ़र बनने की ,
ख्वाइश हर कोई जताता है ,
पर इश्क़ में पड़ने के बाद ,
अक्सर वो बेखबर हो जाता है ।

ना रहता याद इश्क उसे ,
ना ही वादे वो निभाता है ,
चाय से चायपत्ती की तरह ,
अक्सर फेक दिया जाता है ।

पर दिल का मारा ,
भला और कैसे जिंदा रहेगा ,
रंग इश्क़ का जो ,
उस चाय की तरह चढ़ेगा ।

इश्क़ में फिर पड़ने लगा है ,
जबसे वो लबों से गुजरने लगी है ,
चाय सी कड़क मोहब्बत ,
अब वो भी करने लगी है ।।

Wednesday, September 22, 2021

चूड़ियां

तुम सज धज कर उस रोज़ ,
खुशियों का हिस्सा बनी थी ,
हाथों में तुम्हारे चूड़ियां भी ,
क्या खूब जच रही थीं ।

आंखो से पढ़े तो कुछ ,
होठों से कुछ और ,
बड़ी मुश्किल से था गुजरा ,
जिंदगी का वो दौर ।

तेरे श्रृंगार में था सब सजा ,
बस तेरे रूह को छोड़ कर ,
चूड़ियों की खनखनाहट खो गई ,
जब गया वो मुंह मोड़ कर ।

तुमसे मिला चंद रोज़ बाद ,
जब ये हादसा हो चला था ,
ख़्वाब को सच मान कर ,
तुझसे इश्क़ कर रहा था ।

निगाहों से शरारत कर के ,
एक और जुल्म तुम करा रही थी ,
चूड़ियों की खनखनहाट से ,
हाले दिल बता रही थी ।

हाथों में चूड़ियां तुमने ,
फिरसे जो सजाई थी ,
बेहद सादगी से मेरे हिस्से की ,
मोहब्बत मुझे लौटाई थी ।

खनकने लगी चूड़ियां ,
फिरसे तुम्हारे हाथ में ,
मिलने लगी खुशियां मुझे ,
इश्क़ के सौगात में ।।

पराया तौफ़ा

हर तरफ जश्न और खुशियों में ,
किसी एक की ख्वाइश थी ,
बहुत दूर जिसे जिंदगी मेरी ,
अब मुझसे कर आई थी ।

चंद लम्हों और लफ्जों से ,
उसका जादू मुझपर ,
कुछ इस कदर चढ़ा था ,
उसकी राह मैं अब तक देख रहा था ।

हर रात हर दिन ,
बस उससे ही होता था ,
मेरे गम , मेरी खुशियों की वजह ,
बस वही होता था ।

उससे रिश्ता शायद एक तरफा था ,
या मैंने हक से नहीं निभाया ,
देखो ना वक्त से पहले ही ,
बेवक्त बेवजह वो मुझे छोड़ आया ।

मिले थे हम पहली दफा ,
उसके घर खुशियां आने पर ,
लगा था मिलेगी वो भी मुझे ,
आज का दिन आ जाने पर । 

चांद बन कर आज भी ,
उसका इंतजार अक्सर करता हु ,
आता नहीं बस अब उसके करीब ,
उसे खोने से डरता हु ।

शब्दों का सौदागर बनाकर ,
सौदा जिंदगी का हो रहा है ,
चांद के सबसे करीब तारा ,
अब आकाश गंगा में खो रहा है ।।

Saturday, September 18, 2021

दुप्पटा सा इश्क़

उस रोज़ जब तूने दुप्पटा ,
हवा में लहराया था ,
तेरे वजूद का एक हिस्सा ,
मुझसे पहली दफा टकराया था ।

मैं पल भर के लिए थम गया ,
या तूने किया मुझपर कोई जादू था ,
पहली दफा पहली नजर में ,
हुआ मेरा दिल बेकाबू था ।

तस्वीर से भी खूबसूरत ,
उसका दीदार था ,
पहली नजर वाला ,
मेरा वो पहला प्यार था ।

झुकी नज़रे और पलकों की शरारत ,
क्या खूब कहानियां बना रहे थे ,
हम उनसे लगा रहे थे दिल ,
और वो इस सच को झुठला रहे थे ।

दुप्पटा सरका सर से उनके ,
कांधे पर आकर रुक गया ,
मानो इजाज़त दी हो निहारने की ,
दुप्पटे से था जो छिप गया ।

वो खूबसूरत चेहरा और झुमके ,
बिंदी भी क्या खूब जच रही थी ,
पहली दफा पहली सी मोहबब्त ,
अब वो मुहसे भी कर रही थी ।

दुप्पटा सिर्फ श्रृंगार ही नहीं ,
मोहब्बत को भी सजाता है ,
इश्क़ निभाने जब कोई ,
दुप्पटा ओढ़ कर आता है ।

तुम मेरे ख्वाबों का वो सच हो ,
जिसका हर जिक्र अब अंजना नहीं ,
दिल में हो सबसे करीब मेरे ,
इस घर की तुम अब मेहमान नहीं ।

ओढ़ कर आना दुप्पटा ,
फिरसे इश्क़ निभाने को ,
पहली दफा सी मोहब्बत ,
हर दफा कर जाने को ।।

दुपट्टा

कोई एक रंग मालूम नहीं ,
हर रंग में कहर ढाती हो ,
कभी सर तो कभी कांधे पर ,
जब भी इसे सजाती हो ।

किसी और श्रृंगार से ,
ये कुछ इस कदर अलग है ,
और तो श्रृंगार का हिस्सा हैं ,
ये जिंदगी का सबब है ।

गर नहीं होता मौजूद कभी ,
मायने इसके बदल जाते हैं ,
अपनी मर्जी से ना ओढ़ो तो ठीक ,
वरना लाज से ये जुड़ जाते है ।

तुम पर जचता हर श्रृंगार ,
जब भी खुद को सजाती हो ,
चांद से खूबसूरत चेहरे पर ,
दुपट्टा लगाती हो । 

आज भी जब कभी जिक्र ,
कहीं दुपट्टे का आता हैं ,
तेरा ही ख़्याल सबसे पहले ,
मेरे दिल को आता है ।

इश्क़ करने वाले होंगे बहुत ,
पर हमसा कहां कोई कर पायेगा ,
झुमके , बिंदी और काजल वाला ,
दुपट्टे की मोहब्बत कहां समझ पाएगा ।।

पल भर में इश्क़

बड़ी मुश्किलों से गुजर ,
रहा था दिल मेरा ,
मिल ही गई मंजिल मुझे ,
आखिर किसी तरह ।

वो सामने मेरे खड़ी थी ,
निगाहों को थोड़ी हड़बड़ी थी ,
एक पल में वो कही खो गई ,
लगा मेरी कहानी अधूरी हो गई ।

शाम के रात हो जाने के ,
इंतजार में हम वही खड़े थे ,
जहां एक पल में बेकरार ,
अगले ही पल बेखबर हुए थे ।

चांद से आने से पहले ,
एक चांद का टुकड़ा ,
धरती पर आ गिरा था ,
एक और दफा जो ,
मेरे सामने खड़ा था ।

इस दफा नज़रे मिली हमारी ,
और वो भी थम सी गई थी ,
मानो लौट आने का इंतजार ,
वो मुझसे भी ज्यादा कर रही थी । 

बस निगाहों से कह दी ,
हमनें दिल की हर बात ,
मिलने लगे हैं हम दोनों ,
अब हर दिन और रात ।

आप सा इश्क़ करने वाला ,
कहां आप को मिल पाता है ,
खुशनसीब कम होते हैं मुझ जैसे ,
जिन्हें ये इश्क़ नसीब हो पाता है ।।

नादान मौत

बड़ी उलझनों से गुजर रहा ,
मैं और मेरा दिल था ,
थी मुश्किल भी बहुत ,
और दूर बहुत मंजिल था ।

फैसले और फासलों में ,
कुछ भी नहीं था मालूम ,
चल पड़ा था पहले ही ,
ख्वाबों का हुजूम ।

मैं डर रहा था डगर से ,
और वक्त भी कम बचा था ,
अपने ही लिखे आखिरी अल्फाज़ ,
मैं अब पढ़ रहा था ।

हुई मायूसी और थोड़ी उदासी ,
अपना हाले दिल जान कर ,
बड़ी मुश्किल से संभाला था ,
किसी गैर को अपना मान कर ।

अब तो बस ख़त्म होने को ,
मेरे जिंदगी का अध्याय था ,
बड़ी दूर तक जिसे मैं ,
बेवजह खींच लाया था ।

मेरी मोहब्बत की ये ,
आखिरी तुमको सौगात है ,
जिंदगी थी बस तुमसे ही ,
तुम्हारे बाद बस मौत का साथ है ।

हार कर भी जीत जाता मैं ,
बस अगर तुम साथ होते ,
मौत होती मुझसे बेहद दूर ,
गर तुम पास होते ।।

Friday, September 17, 2021

मस्कली

हिस्से जिसके बस बटना आया है ,
हो कर भी सच्चा दिल से ,
अनगिनत ठोकर जिसने खाया है ,
तुझ जैसा हर शख्स कहां हो पाया है ।

तेरी ख्वाइश भी अधूरी है ,
मन्नत भी नहीं हुई कोई पूरी है ,
दिल तो हर किसी को दे आती है ,
बदले में बस ठोकर पाती है ।

मुश्किल बहुत सी गुजर गई ,
और गुजरना कुछ का बाकी है ,
रखना भरोसा खुद पर ,
वही तेरा असली साथी है ।

बस कोशिश ऐसे ही ,
तुम करते जाना ,
होगा आगे का सफर ,
खूबसूरत और सुहाना ।

मुस्कुराहट चेहरे से कभी ,
अपने हटाना नहीं ,
सीरत पे दाग किसी का ,
खुद से लगाना नहीं ।

जीत तेरी पक्की है ,
तेरे इरादों सी ,
मिलेगी खुशियों की पोटली ,
खुद से किए वादों की ।

वक्त आने पर हर कोई ,
तेरे पीछे आयेगा ,
जिस रोज़ तुझे और तेरी सीरत ,
को पहचान जायेगा ।।


Thursday, September 16, 2021

बिंदी

मांग में तब सिंदूर भी ना था ,
मेरा इस कदर फितूर भी ना था ,
था तो बस इश्क़ होने को शुरू ,
और भला मैं क्या ही कहूं ।

मुझे आज जी भर के ,
तुम्हें ऐसे ही निहारने दो ,
माथे पर बिंदी को ,
ऐसे ही संवारने दो ।

सज संवर कर हर रोज ,
मेरे सामने जब आती हो ,
बिंदी मेरे हाथों से ही ,
अपने माथे पर लगवाती हो ।

हर बदलता रंग माथे पर ,
तुम्हारे चेहरे पर जचता है ,
श्रृंगार बिंदी का सबसे ,
खूबसूरत तुम पर लगता है ।

तुम से इश्क़ से भी पहले मुझे ,
तुम्हारी बिंदी से इश्क़ हुआ था ,
तुम्हें छूने से पहले मैंने ,
तुम्हारे माथे की बिंदी को छुआ था ।

बिंदी सा खूबसूरत कोई और ,
श्रृंगार कहां होता है ,
उम्र की हर दहलीज पे ,
खूबसूरती जो बिखेरता है ।।

काजल

मुझे मेरा इश्क़ लौटा दो ,
मेरे हिस्से की मुझे वफा दो ,
दो लौटा मेरा हर एक पल ,
छोड़ आए तुम जिन्हें कल ।

मैं सिसक सिसक कर ,
अपना दर्द छिपा रही हु ,
बह जाने के डर से ,
काजल नहीं लगा रही हु ।

तुम ख़्वाब बन कर मेरे ,
हकीकत से मिल रहे थे ,
हकीकत को ख़्वाब समझ ,
हम तुझमें खो रहे थे । 

एक नज़र के फेर ने ,
नज़र ऐसा कुछ मुझसे चुराया ,
ख़्वाब जो लगने लगे थे हकीकत ,
एक पल में जिसे वो तोड़ आया । 

किस्मत ने मेरे हिस्से ,
तेरे छुअन को कुछ ऐसे लिखा था ,
बहने पर आंखो से आंसू ,
पलकों से तू मिट रहा था ।

मेरे श्रृंगार में काजल ,
सबसे अलग है ,
और तो है रंग बिरंगे ,
बस तू ही एक रंग है ।।

फूल सा इश्क़

मैं उस फूल सा खुशनसीब ,
क्यों नहीं बन सकता हु ,
मिलकर मौत से गले ,
किसी और को जिंदगी दे सकता हु ।

लावारिस कही सड़को पर ,
टूट कर मैं पड़ा था ,
उसने अपनी मोहबब्त की खातिर ,
बस मुझे ही चुना था ।

अपने साजन के लिए ,
मुझे वो कानों पर सजा रही थी ,
मिलते ही मोहबब्त से ,
फिरसे सड़क पर ला रही थी ।

मुरझा कर मैं अब फिर ,
उसी सड़क पर टूट कर पड़ा था ,
किसी और महबूब के मोहबब्त की ,
बेवजह वजह बन रहा था ।

कही से छूट कर मैं ,
कही टूट कर पड़ा था ,
मेरी मोहब्बत का तमाशा ,
हर राहगीर देख रहा था ।

मुझे टूटना पसंद नहीं ,
पर किस्मत कौन बदल पाता है ,
कांटों वाले फूल को ,
सबसे ज्यादा तोड़ा जाता है ।।

लिपिस्टिक

आंखे और झुमकों से ,
आज बात कुछ आगे बढ़ी थी ,
पहली दफा नकाब हटा कर ,
वो मेरे सामने खड़ी थी ।

निशा कुछ रंग के ,
नकाब पर भी बिखर चुके थे ,
बिछड़ने पर होठों से ,
उसके निशा लेकर बट रहें थे ।

दाग तो लगा था नकाब पर ,
मुझ पर लगना बाकी था ,
होठों की शरारत उनके ,
ये बताने के लिए काफी था ।

रंग चढ़ा होठों पर लाल ,
मैं नज़रे कैसे उससे चुराता ,
हाले दिल छिपा रखा था जो ,
होठों पर अब कैसे लाता ।

रंग और भी जचता होगा ,
जब वो खुद को संवारती होगी ,
आफत आने से मिट जाने पर ,
खुद से आईने में सजाती होंगी ।

इश्क़ सा ही तो होठों पर ,
मौजूद श्रृंगार होता है ,
बटने को निभाने वाले से ,
अक्सर बेकरार होता है ।।

Wednesday, September 15, 2021

इत्र सा इश्क़

खुशबू थी फिज़ा में ,
तेरी सड़क से हम जब गुजर रहे थे ,
दूर हो कर भी तुम मुझसे ,
इत्र फिज़ा में छिड़क रहे थे ।

तेरे जैसी खुशबू ,
अब मुझसे भी आ रही थी ,
जहनी मोहब्बत को ,
तू सच में जता रही थी ।

देखो खींचा चला आ रहा ,
कैसे मैं तुम्हारी ओर ,
थाम ली है जबसे तुमने ,
मेरे मोहब्बत की डोर ।

वक्त गुजरने पर भी ,
सब ठहरा सा लगता हैं ,
छिप छिप कर रास्तों में ,
अक्सर तू मुझे तकता है ।

जैसे तेरे जाने के बाद भी ,
तेरी खुशबू फिज़ा से नहीं जाती ,
वैसे ही जिस्म से अलग होते ही ,
तू मेरे रूह में बस जाती ।।

पहाड़ों पे सुकून

खूबसूरत से शहर में ,
कोई उस जैसा ही आया था ,
पहली ही नज़र में जिसने ,
कइयों का दिल चुराया था ।

सब बिखरा और टूटा था ,
जबसे साथ उसका छूटा था ,
पर अब वो मुस्कुरा रही थी ,
खुद से खुद को मिलवा रही थी ।

नज़र पड़ी जो पहली दफा ,
कुछ धुंधली वो नज़र आई ,
आंखो में बसा था सुकून ,
मुस्कुराहट में सच्चाई ।

सर्द मौसम में भी ,
कैसी ये गर्माहट थी ,
मखमल का चादर ओढ़े ,
ये किसकी अमानत थी ।

पहाड़ों के इस सफर में ,
आसमां में बादल का पहरा था ,
खूबसूरत सीरत का असर,
इस दफा मुझपर काफी गहरा था ।

सुकून के तलाश में ,
मैं एक सुकून से जा मिला था ,
पहाड़ों की वादियों में ,
जो खुद को ढूंढ रहा था ।।

बिखरी जुल्फें

बिखरी जुल्फें तेरी ,
और उलझते मेरे जज़्बात ,
क्या ही बचा है रखा हमनें ,
सिवाए तेरे वो चंद "अल्फाज़ " ।

आंखे पढ़ना भूल गया मैं ,
जब से तुमको पढ़ने लगा हू ,
अजब है हाले दिल मेरा ,
बस अब तुमसे मिल रहा हू ।

हो रही मोहबब्त आज कल भी ,
मुझे हर सुबह शाम है ,
पर आज कल ना जाने ,
हर इश्क़ में बस तेरा ही नाम है ।

खोल दो दरवाज़े दिल के ,
जो अब तक बंद कर के बैठी हो ,
बड़ी मुश्किल से हो रहा मुकम्मल ख़्वाब ,
जिसे तुम अधूरा जी कर बैठी हो ।

ये लम्हा ये पल और तुम ,
सब अब सुलझने से लगे हैं ,
खुली जुल्फें भी हाले दिल ,
क्या खूब अब कहने लगे हैं ।

आज खुली बिखरी जुल्फों को ,
मैं अपने हाथों से सुलझाऊंगा ,
पहली दफा अल्फाजों को छोड़ ,
खुद तेरा श्रृंगार करने आऊंगा ।।

In My Arms

The wait was longer ,
Than the expected time ,
She justed wanted to be ,
All mine .

It wasn't just you ,
I was all in rush ,
To fall for ,
Our frozen crush .

We were lost in the world ,
And the people around ,
For we live in the world ,
That two of us just found .

It's not just love ,
It's beyond the line ,
We want to be limitless ,
Perhaps All the time .

Her voice kept on killing ,
Me hard from deep inside ,
I was so lost ,
I forget my own vibe .

It's you who is all in me ,
All I am just trying to be ,
Allow me to fall in more ,
Like no one ever did before .

Holding you in my arms ,
Was the best feeling ever ,
I will cherish these moments ,
In my thoughts Forever .

सिंदूर

मांग में सिंदूर और मेंहदी का रंग ,
दोनों कितना खिल रहे थे ,
आईने में हम भी तो ,
एक नई पहचान से मिल रहे थे ।

एक जुल्म मेरी आंखों में ,
अब चिल्ला रहा था ,
तस्वीर किसी और की ,
मुझे वो दिखा रहा था ।

पर ये रास्ते तो बंद मैंने ही ,
अपने हाथों से किए थे ,
भला आज मेरे जहन में ,
क्यों वो लौट रहे थे ।

एक पल में लगा जैसे ,
ये कैसा गुनाह मैं कर बैठी ,
मोहबब्त किसी से बेपनाह ,
किसी और के नाम का सिंदूर लगा बैठी ।

लौट आई मैं छोड़ कर सब ,
अपने महबूब के बाहों में ,
अनगिनत भूले भटके सफर के बाद ,
अपनी जिंदगी के राहों में ।

कितना शांत और सुंदर ,
इस वक्त का मंजर है ,
भीतर मुझमें लहरों से भरा ,
अंतहीन मोहबब्त का समंदर है ।।

इश्क़ का कारोबार

इश्क़ भी एक सौदा ही तो है ,
जिसमें नफा नुकसान वाज़िब हैं ,
मुकम्मल हो जाए तो वाह वाह ,
गर नहीं तो कालिख है ।

गुमनाम रास्ते और अंजाने चहरे ,
आज कल तो बेहद आम हैं ,
इश्क़ में पड़ने ही दिल ,
हो जाता किसी का गुलाम है ।

कीमत अदा भी देखो भला ,
कैसे आशिक़ किया करते हैं ,
कोई करता कुर्बान खुशियां ,
कोई जिस्म की नुमाइश करते हैं ।

आज कल इश्क़ में बिछड़ना ,
देखो कितना भाने लगा है ,
सुबह वाली मोहब्बत किसी से ,
शाम को कोई और ,
दिल धड़काने लगा है  ।

कितना आसान अब इश्क़ ,
और उसके मायने लग रहे हैं ,
हर रोज़ इश्क़ आखिरी कह कर ,
फिर किसी के इश्क़ में पड़ रहें हैं ।

अंधा हैं इश्क़ भी ,
और धुंधला इसका कारोबार ,
बड़ी मुश्किल से मिलता हैं ,
इतने मुनाफे वाला कोई व्यापार ।।

रिश्ता

लगा सब खत्म हो गया ,
जिस पल मेरी मांग में ,
सिंदूर वो भरने को आया था ,
जिसने मुझसे दिल लगाया था ।

आंखे थी नम मेरी और ,
धड़कन खामोश पड़ी थी ,
खुशियों के उस मंडप में ,
बस मैं ही मायूस खड़ी थी ।

देखो मुस्कुराहट और खुशियां ,
सब एक दूसरे को बांट रहे थे ,
एक एकले हम थे जो बस ,
किसी और की राह ताक रहे थे ।

मेरा महबूब मुझे छोड़ कर ,
अब कही जा चुका था ,
मुझसी मोहब्बत वो भी ,
मुझसे अब निभा रहा था ।

लगा सब ख़त्म हो गया ,
एक चुटकी भर सिंदूर से ,
हार गई एक और दफा ,
रांझा अपने ही हीर से ।

इश्क़ को शिद्दत से निभाने वाले ,
अक्सर इश्क़ में अधूरे रह जाते हैं , 
सच्चा हो कर भी इश्क़ जिनका ,
उसे मुकम्मल नहीं कर पाते हैं ।।

अधुरा

बिछड़ने का मजा भला ,
कभी मिलने में मिला है क्या ,
अधूरे इश्क़ से खूबसूरत हादसा ,
आज तक कोई हुआ है क्या ?

सब दौड़ रहे थे जिंदगी में ,
हम भी तो भाग रहे थे ,
भूलने की चाहत में तुझे ,
हर किसी से दिल लगा रहे थे ।

मिली मोहबब्त भी बेशुमार ,
तुझसे दूर जब हम जाने लगे ,
होने लगा था इश्क़ भी अब शुरू ,
मुकम्मल जिसे हम कर जाने लगे । 

पर तेरी एक झलक ने ,
फिरसे मुझे मुझसे उलझा दिया ,
खूबसूरत से उस सफरनामे को ,
मैंने एक पल में झुठला दिया ।

मेरा जिस्म और मेरी रूह ,
अब दोनों में तुम घुल चुके हो ,
अधूरे इश्क़ की अधूरी दास्तां ,
तुम मेरा बन चुके हो ।

भला कैसे कोई ज़हर इतना ,
इस कदर असर कर सकता है ,
असरदार जिंदगी के लम्हों को ,
एक पल में बेअसर कर सकता है ।

तुमसे मोहबब्त इतनी गहरी ,
कैसे भला हम कर बैठें ,
इश्क़ में जिंदा रहने की कोशिश में ,
खुद का कत्ल कर बैठें ।।

Tuesday, September 14, 2021

तेरा जिक्र

दिल तो लगता है अक्सर किसी से ,
पर धड़कनों पर सिर्फ तेरा ही राज है ,
बेशक वक्त दे आता हू महफिलों में ,
घर में तो बस तू ही सरताज है ।

भूल जाता हू हर शख्स को ,
और उसकी कहानियां ,
जब शुरू होती है दरमियां ,
हम दोनों की जिंदगनियां ।

रात के इस अंधेर से पहले ,
तुम मेरे ख्वाबों में आई थी ,
इस दफा पायल के संग ,
झुमके भी ले आई थी ।

आंखे खुली तो देखा ,
तुम्हारा एक पैगाम पड़ा था ,
झुमके थे कुछ रंग बिरंगे ,
जिन्हें तुमने मेरे नाम करा था ।

तुम्हारी मौजूदगी से जिंदगी में ,
सब बदलने लग जाता हैं ,
धड़कनों को भी बस ,
तेरा ही नाम भाता है ।

तुम हो मेरे खुशियों की वो ताबीज़ ,
जो हर वक्त मेरे पास है ,
हार कर भी जीत जाता हूं ,
अटूट मुझपर जो तेरा विश्वास है ।।

Sunday, September 12, 2021

आधा इश्क़

मैं देख रहा तुम्हारी आखों में ,
जो भी आज कल ,
क्या वही सच है हमारा ,
या अभी और बची है हलचल ।

तुम कितनी सादगी से ,
हर सच को बतलाती हो ,
एक ही दिल है पास मेरे ,
हर दफा चुरा ले जाती हो ।

ये बारिश गर फिर बरस गई ,
तो अब रोकना तुम्हें मुश्किल होगा ,
जो कुछ भी है दिल में अब तक ,
लबों से सब ज़ाहिर होगा ।

दिन काटे से भी अब ,
देखो कट ना रहें ,
दूर जाने की कोशिश में भी ,
हम एक दूसरे से बट ना रहे ।

अल्फाज़ का असर ,
कुछ ऐसा उनपर पर चढ़ रहा  ,
हो कर मौजूद कही ,
कही और वो रह रहा ।

बेताबी कहूं तेरी इसे ,
या खुद की बेकरारी ,
रोकने से भी नहीं रुक रही ,
ये दीवानगी हमारी ।

ख्वाइश और तमन्ना के बीच ,
फर्क नहीं कोई ज्यादा है ,
तोड़ना मुश्किल हैं जिसे ,
वो खुद से किया वादा हैं ।

यकीनन अब हद से बेहद ,
होने का हम दोनों का इरादा हैं ,
दरमियान हमारे अब भी
बहुत कुछ आधा है ।।

मैं बदलने लगा हूं

तुमसे मिलना मेरे मुकद्दर में था ,
या मैंने अपनी तकदीर बनाई है ,
तेरी छाव से गुजरा हु जबसे ,
संग मेरे चल रही तेरी परछाई है ।

तुमसे सीख रहा जिंदगी के मायने ,
तुम को ही जिंदगी बना रहा ,
हर सांस में बस रही हो तुम ,
जबसे जिक्र बस तेरा आ रहा ।

ना अब खुद से लड़ता हु ,
ना ही बची है कोई शिकायत ,
मिल गई मुझे जबसे ,
खुदा की सबसे खूबसूरत इनायत ।

मेरे खुशियों में तुम साथ होती हो ,
गम को भी मेरे बांट लेती हो ,
बदलने सा लगता हु मैं ,
जब जब तुम मेरे पास होती हो । 

तुम चांद के उस सूरज सी ,
मुझे लगने लगी हो ,
रात के अंधेरे में छिप कर ,
मुझे रौशनी से भरने लगी हो ।

तुमसा था नहीं कोई अब तक ,
जिसने मुझे मोहबब्त को ,
इस तरह जीना सिखाया हो ,
मोहबब्त होती है खूबसूरत ,
कर के जिसने बताया हो ।।

बारिश

पहले भी बरसे हो तुम ,
बादलों से टूट कर ,
बिन मौसम भी आए हो ,
अपने इश्क़ से रूठ कर ।

पर इस दफा जो तुम आए हो ,
संग अपने एक तूफान लाए हो ,
भीग रहा हर शख्स जिसमें ,
जिससे भी इश्क़ कर के आए हो ।

तेरा इंतजार पहले से अब ज्यादा है ,
बताना आखिर तेरे क्या इरादें हैं ,
वो भी भीगती है अब संग मेरे ,
जिसके बगैर हम आधे हैं ।

हमारे इश्क की कहानी का ,
तुम बहुत अहम हिस्सा हो ,
अल्फाज़ के श्रृंगार से जुड़ा ,
एक अनकहा किस्सा हो ।

तुम आए तो मिली मोहबब्त मुझे ,
किसी अधूरे अंधेरी रात में ,
थे पड़े लावारिस हम सड़क पर ,
लिए जख्मों के निशा साथ में ।

देखो अब वो तुमसा बनने लगी हैं ,
आकर जबसे बरसने लगी हैं ,
मोहबब्त तुमसे भी ज्यादा ,
अब वो किसी और करने लगी हैं ।

रिमझिम रिमझिम सा एहसास ,
बूंद बूंद जज़्बात बना रहें हैं ,
हवा के झोंके की हर छुअन में ,
वो बरसने को आ रहें है ।

बारिश सी मोहब्बत मेरी ,
किसी बारिश में ही मिली थी ,
आज बन कर बारिश ,
मुझ पर वो बरस रही थी ।।

Saturday, September 11, 2021

जीत तुम्हारी पक्की है !


तुम जिस सफ़र में निकले हो ,
उसका रास्ता तुम्हें मालूम है ,
छोड़ना मत हाथ किसी का ,
पीछे खड़ा तुम्हारे जो हुजूम है ।

हुजूम तुम्हारे अपनो का ,
तुम्हारे अनगिनत सपनो का ,
तुम्हारे इस पल के साथी का ,
और जिंदगी के हर एक ,
दिया और बाती का ।

कोई दीपक बन कर तुम्हें ,
रौशनी दिखा रहा ,
कोई सूरज के तपिश से ,
छत बन कर तुम्हें बचा रहा ।

कोई दोस्त है तुम्हारा ,
तो कोई बीता किस्सा ,
जिंदगी के इस पल तक ,
हर शख्स जो बना तुम्हारा हिस्सा ।

वो कल भी तुम्हारे साथ होंगे ,
हर हार और जीत में पास होंगे ,
बस तुम कभी दूर मत जाना ,
चाहे कितनी भी ऊंचाई छू आना ।

जीत तुम्हारी पक्की है ,
तुम्हारे इरादों सी ,
बस भूल मत जाना पोटली ,
खुद से किए वादों की ।

जीत तुम्हारी पक्की है ,
तुम्हारे इरादों सी ।।

पहली दफा

पहली दफा तो ,
हर दफा कमाल होता है ,
हर दफा गर पहला सा लगे ,
तो बेमिसाल होता है ।

मिलती है ये खुशी इश्क़ में ,
चंद खुशनसीब को ,
वरना गुजरते वक्त के साथ ,
गम लाज़मी है हर बदनसीब को ।

पहली बात हो या पहला साथ हो  ,
पहली झलक हो या पहली मुलाकात हो ,
पहली बारिश हो या पहली रात हो  ,
खुशियों के अनगिनत जिनमें सौगात हो ।

वक्त के साथ देखो अब तक ,
कुछ भी तो नहीं बदला है ,
दरमियान हम दोनों के ,
ये रिश्ता पहले सा ही गहरा है ।

पहली दफा वाले पल ,
जो हर रोज़ जीतें हैं ,
बड़े खूबसूरत रिश्ते उनके ,
और वो बेहद खुशनसीब होते है ।

पहली सी मेरी पहेली ,
तुम ऐसे ही बन कर रहना ,
पहली दफा वाली मोहब्बत ,
आखिरी वक्त तक करते रहना ।।

Friday, September 10, 2021

महफूज़

इश्क़ क्या ही बताएगा , 
जब निभाने उसे कोई आयेगा , 
शोर जो दबा रखा है अंदर ,
वो भी खामोश हो जाएगा ।

मिलने पर इश्क़ के , 
इश्क़ को भी , 
इश्क़ से , इश्क़ हो जाएगा ।

ना होगा कुछ अधूरा ,
ना पूरा करने की जंग होगी ,
मोहब्बत की कहानी में ,
इस दफा वो भी संग होगी ।

मेरा फितूर उस पर चढ़ा था ,
या मुझ पर उसका फितूर ,
अब चढ़ने लगा है ,
दिल ये सवाल बार बार करने लगा है ।

बारिश ने जबसे चुपके से आकर ,
हम दोनों को भिगोया है ,
इश्क़ के इस सफरनामे में ,
मानों हम दोनों ने कुछ खोया है ।

हम दोनों भी तो अब ,
कल्पनाओं में खो चुके हैं ,
एक दूजे की कहानियों का ,
हिस्सा हो चुके है ।

छोड़ कर तुम मत जाना रूह से ,
गर जिस्म से चली भी जाओ ,
एक और दफा मोहब्बत को ,
बगैर जिस्म के जी कर दिखाओ ।।

Thursday, September 9, 2021

रक़ीब

दिल में बसी तस्वीर तुम्हारी ,
धड़कनों पर किसी और का नाम है ,
मोहब्बत में आज कल ,
ये सिलसिला बेहद आम है ।

तुम्हारे इश्क़ में पड़ा हू मैं ,
आंखे किसी और की भी पढ़ रहा ,
मोहब्बत तुमसे करता मैं बेपनाह ,
बस थोड़ी सी इश्क़बाजी उनसे कर रहा ।

तुम मेरी दुनिया हो और रहोगी ,
क्या सच में मुझे बेवफा कहोगी ,
क्योंकि इश्क़ तो सिर्फ मुझे तुमसे है ,
चंद लम्हों की सौदेबाजी उनसे है ।

तुम मेरी जिक्र हो और 
तुम ही हो मेरी कल्पना ,
मोहबब्त करता हूं जिससे ,
बेइंतहा और बेपनाह ।

क्या इतना भी तुम्हारे लिए ,
लगता तुम्हें कम है ,
तोड़ा है दिल मैंने तो उसका ,
तुम्हारी आंखे क्यों नम हैं ।

इश्क़ में तुमने भी तो ,
मुझे कितना बर्बाद किया है ,
ठीक वैसे ही जैसे मैंने ,
ये जुल्म उसके साथ किया है ।

रक़ीब है वो मेरा ,
या तुम्हारा मैं रकीब हूं ,
देखो इश्क़ पाकर भी पूरा ,
मैं कितना बदनसीब हूं ।।

फितूर

मेरी आंखों में बसी तस्वीर तुम्हारी ,
अब शक्ल बदलने लगी है ,
मेरी मोहब्बत बदल कर चाल ,
अब बस तेरी ओर चलने लगी है ।

ना मुझे कोई रास्ता समझ आता ,
ना ही कोई और मंजिल नजर आती है ,
बस बढ़ते जो भी रास्ते तेरी ओर ,
वो मेरी मंजिल बन जाती है ।

तुमसे मोहब्बत ही नहीं ,
तुम्हारा फितूर मुझे भाने लगा है ,
तेरा जिक्र जबसे हर सुबह ,
मेरे जहन में आने लगा है ।

तेरा ख़्याल ही काफी हैं ,
मेरे ख़्वाब सजाने के लिए ,
दफ्न हो चुके इस लाश को ,
जिंदा कर जाने के लिए ।

तुम आई हो हुबहू बन कर ,
मेरी वो बिछड़ी मोहब्बत ,
जिस पर मैं सब लूटा बैठा था ,
जिससे मैं दिल लगा बैठा था ।

तुम हो मेरी जिंदगी का वो किस्सा ,
जैसे हो धड़कन दिल का हिस्सा ,
तुम हो मेरी अधूरी वो कहानी  ,
लिखनी जिसकी हो पूरी जिंदगानी ।।

Wednesday, September 8, 2021

आसूं

सफ़र मेरा भी खूब होता है ,
बड़ी मुश्किल से नसीब होता है ,
गर ना हो वजह कोई खास ,
तो भला मुझसे ,
मुखातिब कहां कोई होता है ।

दिल में आने पर ख़बर ,
असर दिल पर कुछ ऐसा होता है ,
जज्बातों की शक्ल बन कर ,
मेरा सफर शुरू होता है ।

मैं बढ़ता और घटता हू ,
जज़्बात के इशारों पर ,
अक्सर आकार रुक जाता हू ,
पलकों के किनारे पर ।

मेरे आने की वजह मुश्किल है ,
किसी को बता पाना ,
कभी आता खुशियों में बहने ,
कभी गम में मिल जाता ठिकाना ।

मुझे देख पाना आसान होता है ,
छिपाना उतना ही मुश्किल ,
बड़ी कोशिशों के बाद ही ,
मिल पाती है मुझे मंजिल ।

बस कभी कभी पलके मुझे ,
बेसहारा छोड़ देती हैं ,
कतरा कतरा तोड़ कर मुझे ,
मंजिल मेरी मोड़ देती है ।

पर आज भी हु जिंदा मैं ,
किसी की आंखो का नूर बन कर ,
किसी के दिल से बहने को बेकार ,
उसका मलाल और कसूर बन कर ।।

खुशनसीब - एक दफा खोया इश्क़

तुम खुशनसीब मानो ,
इस जहां में अपने आप को ,
तुमने खोया एक ही दफा ,
किसी बेहद खास को ।

पूछो हाल कभी मेरा ,
और मुझ जैसों का , 
हम तो हर रोज खोते हैं ,
इश्क़ में अकेला जब ,
अक्सर लोग छोड़ देते है ।

बहते नहीं सिर्फ आंखो से आंसू ,
रक्त भी कई दफा बहता है ,
हर रोज इश्क़ में पड़ता मैं ,
हर रोज इश्क़ में वो बिछड़ता है ।

बस फर्क इतना की ,
तुमने तस्वीर और तकदीर ,
दोनों को सच में जिया है ,
हमने तो मोहब्बत भी आज तक ,
बस अधूरा ही किया है ।

स्वर्ग में जा चुका है ,
यकीनन इश्क आप का ,
हम तो आज भी ,
नर्क में ही बैठे हैं ।

हर रोज़ खा कर कसम ,
इश्क में ना पड़ने की ,
एक और दफा टूटने के लिए ,
दिल लगा बैठे है ।

इश्क़ में मारता नहीं कोई ,
इश्क़ में तो जिंदा होते है ,
खुशनसीब है वो सब इश्क़ में ,
जो इश्क़ को बस एक दफा खोते हैं ।

इश्क़ में बदनसीब मुझसा ,
ए खुदा किसी और का ना बनाना ,
बड़ा मुश्किल होता है ,
सुबह जन्म देकर .. रात को दफनाना ।।

Sunday, September 5, 2021

तुमने ये क्या कर दिया

मेरे हिस्से का गम तो मैं रखता था ,
खुशियां सब में बांट देता ,
बन कर अंजान अजनबी रास्तों पर ,
मुसाफिरों को रास्ता दिखा देता ।

ना कभी कुछ मांगा उनसे ,
ना कभी उनके पीछे आया ,
जब तक रही जरूरत मेरी ,
बन कर साया साथ निभाया ।

कुछ साथ चंद मिनटों का रहा ,
कुछ घंटों में बीत गया ,
कुछ की उम्र थोड़ी लम्बी थी ,
कुछ मुझसे ही अंजाने में छूट गया ।

पर कभी ना थामा हाथ किसी का ,
कुछ पल ही रुक जाने के लिए ,
एक अकेला काफी हू ,
गम में भी मुस्कुराने के लिए ।

मैं मुसाफ़िर अपनी ही जिंदगी का ,
अपने हिस्से की खुशियां बाटने आया हूं ,
चंद लम्हों की जिंदगी में ,
ताउम्र का एहसास ले आया हूं ।

भटकता मैं मुसाफ़िर महफिलों में ,
घर को तलाश रहा था ,
अल्फाज़ और जज़्बात को पढ़ कर ,
एक मकान बना रहा था ।

तुमने ये क्या कर दिया ,
मेरे हिस्से के शब्दों को ,
अपने शब्दों के श्रृंगार से ,
अमर कर दिया ।।

पहेली

तेरे रास्तों में छिपी अनगिनत ,
मंजिलों के बिछड़ने की कहानियां ,
तुम किसको सुना रही हो ,
किसका सच किससे झुठला रही हो ।

ये हल्की सी रौशनी जो तुमको ,
दो हिस्से में बांट रही है ,
हाले दिल और गुजरते दौर की ,
कहानी वो बता रही है ।

गुमसुम भी और शोर भी है ,
कहानियों में छिपा कोई और भी है ,
तुम ऐसे ही खामोशी से नहीं मिलती हो ,
हर रोज अनगिनत शोर से गुजरती हो ।

पलकों पर नमी नहीं आती ,
आंखो में ही छिप जाती है ,
दास्ताने जिंदगी पन्नों पर लिख ,
अक्सर अब वो सुनाती है ।

मुस्कुराती है जिंदगी के फैसलों पर ,
खुद को खुद से छिपा कर ,
जिंदा पड़े ताज़ा जख्मों को ,
भरा हुआ बता कर ।

पर कब तक ऐसे ही अल्फाजों से ,
गुफ्तगू तुम खामोशी से करती रहोगी ,
शोर होने पर भी अपने इर्दगिर्द ,
क्या अब भी तुम खामोश रहोगी ।

मुस्कुराहट से खुद को ,
किसी रोज़ सजा कर देखो ,
आईने में खुद से ,
कभी नज़रे मिला कर देखो ।

सब कुछ पल भर में ,
देखना कैसे बदल जायेगा ,
रास्ता तुम्हें अपनी मंजिल का ,
अपनी आंखो में नजर आएगा ।।

Saturday, September 4, 2021

खुशियों की पोटली

आज अरसे बाद उसने ,
खुद को फिरसे सजाया था ,
माथे पर बिंदिया , कानों में झुमके ,
और बालों में झूमर लगाया था ।

पर इस दफा सजने में उनके ,
बात कुछ अलग थी ,
हर श्रृंगार से जुड़ी कहानियां ,
जिसमें अनगिनत थी ।

तुम्हारे जिक्र भर से देखो ,
कितना सब बदल सा जाता है ,
कश्मकश से भरे इस रिश्ते को ,
जो और उलझाता है ।

कभी गम का साया आता ,
तो कभी खुशियों की बारिश ,
कभी हम करते मिन्नते ,
तो कभी तुम करते सिफ़ारिश ।

ये सिलसिला शुरू जो हुआ ,
ख़त्म इसको भी तो होना है ,
पर इस दफा हर लम्हें को ,
खुशियों से सजोना है ।

गर रह गया कुछ भी अधूरा ,
तो रहने देना ,
लबों पर जो आ जाए कोई बात ,
तो कहने देना ।

क्योंकि इस रिश्ते में ,
सब कुछ अब तक पाक है ,
जज्बातों के समुंदर में ,
तेरी लहरों का साथ है ।

तुम्हारी खुशियों की पोटली में ,
अब फिरसे कुछ लम्हें आने को हैं ,
हर एक दफा आईने में देख कर ,
जो चांद का हो जाने को है ।

कबूलनामा

तुम सज संवर कर उस रोज़ ,
जब महफिल में आई थी ,
ख्वाबों की पोटली से ,
एक लम्हा चुरा लाई थी ।

वो बाली .. वो झुमके और ,
तेरे आंखो में बसा नूर ,
डूब रहा था जिनमें वो,
हो कर मजबूर ।

होठों पे बसी खामोशी और 
हया से झुकी पलके तुम्हारी ,
तुम्हें और दिलकश बना रही थीं ,
बार बार उसकी निगाहें ,
बस तुम पर आ रही थीं ।

वो पल वो लम्हा और तुम ,
सब अब तक कल से अंजान थे ,
तुम उनकी मुमताज़ और ,
वो तुम्हारे शाह जहाँ थे ।

कबूल करने की जिद्द ,
या काबिल होने का वक्त ,
अब दोनों ही गुजर चुके थे ,
वो तो बस अब तेरे हो चले थे ।

काश वक्त गर यहीं रुक जाता ,
तो आज क्या ही बात होती ,
अनगिनत दिए जख्मों पर ,
मरहम की सौगात होती ।

पर वक्त को मंजूर तेरे हिस्से ,
कुछ और ही करना था ,
खुशियों के बगैर जीना ,
और गम से तुझे मरना था ।।

Friday, September 3, 2021

सफ़र के साथी

मैं सफर का राही ऐसा ,
मिला मंजिल भी मुझ जैसा ,
सब कुछ धुंधला नजर आता है ,
जब भी ढूंढने उसे कोई निकल जाता है ।

थाम कर हाथ मेरा अक्सर ,
अपने मंजिल तक मुसाफ़िर आते है ,
मिलते ही पहचाने रास्तों पर ,
छोड़ मेरा हाथ चले जाते है ।

सपना भी देखते साथ ,
और ख़्वाब भी सजाते है ,
मिलते ही मंजिल का पता ,
हमें गैर बताते है ।

मैं शायद आप सा ,
या आप मुझ जैसे तो लगते है ,
अक्सर थाम कर हाथ जिनका ,
गुमनाम सड़को पर लोग चलते है ।

वक्त बदलते ,
इंसान आखिर क्यों ,
बदल सा जाता है ,
मुश्किल में थामे हाथ को छोड़ ,
अपनो को गैर ,
और गैरों को अपना बनाता है ।

मतलबी दुनिया में आज भी ,
हम जैसे कुछ बेमतलब ,
अक्सर फिर वही गलती दोहराते है ,
मिलने पर मंजिल हमें लोग ,
अक्सर छोड़ कर चले जाते है ।

कामयाब होने पर अपनो को खो देना ,
क्या सच में कामयाब बनाता है ,
आखिरी वक्त में कंधे पर ,
अपनो के ही आना पड़ता है ।

मतलबी दुनिया में आज भी ,
कुछ बेमतलब ही अपना बना रहें ,
अंजान सड़को पर अजनबी को ,
रास्ता दिखा रहें ।।