अजनबी बन कर मिला था वो,
और तुमने उसे अपना बना लिया,
प्यास बुझाने को उसकी,
तुमने कुएं को समंदर बना दिया ।
अधूरा रहा सब कुछ,
समंदर के किनारे सा,
छोड़ गया वो भी तुम्हें,
किसी मछुआरे सा ।
हर बार तुम रेत बन कर,
क्यों खुद की तस्वीर बनाती हों,
जान कर भी फितरत लहरों की,
क्यों लहरों से गुजरने को आती हो।
मिटा कर वजूद कई दफा,
लहरों ने तुम्हें सताया हैं,
शायद ही आज तक,
कोई तुम्हें बचाने आया हैं।
किनारे पर पड़े रेत सा,
तुम खुद को क्यों मिटा रही हो,
बन कर शौख किसी और का,
क्यों इश्क़ जता रही हो ।
खोया है तुमने बहुत कुछ,
समुंदर के रेत की तरह,
पर अब और नहीं खोना हैं,
गैरमौजूदगी से तुम्हारे .. समंदर को रोना है ।
वैसे ,
समंदर से इश्क़ तुम्हें,
और भी गहरा होने लगेगा,
जिस रोज़ बाहों में भर कर,
वो तुम्हें किनारे पे छूएगा।
क्योंकि तब अंदाज इश्क़ का,
बेहद ही खास होगा,
उस पल समंदर अंदर और बाहर,
दोनों ही तेरे साथ होगा ।
छोड़ कर तन्हां नहीं,
सीपियों को साथ लायेगा,
हर दफा जब भी ,
तुझसे वो गुजर कर जाएगा ।।