Wednesday, November 11, 2020

अजनबी


मुमकिन नहीं या मुश्किल है ,
उलझा जज्बातों में दिल है ,
नकाबपोश चहरे है अनगिनत ,
कौन अपना और कौन अजनबी है ।

आंखो से होती अक्सर बातें ,
उलझ जिनमें कई दफा हम जाते ,
लब्जो के शोर को समझना होता मुश्किल ,
और खामोशी से धड़कता ये दिल ।

मालूम नहीं ये सिलसिला ,
आखिर शुरू ही क्यों हुआ ,
अजनबी थी निगाहें जो अब तक ,
उनमें हमारा जिक्र क्यों हुआ ।

है और भी निगाहों का पहरा ,
जिन्होंने ने दिया उसे जख्म गेंहरा ,
पर हम क्यों मरहम बनने को आ रहे ,
जब ज़ख्म से भी वो मुस्कुरा रहे ।

अजनबी निगाहों में है बसी,
किसी और की तस्वीर ,
ढूंढ रहे है देकर जख्म दिल को ,
अपनी निगाहों में उसकी तस्वीर ।

बेहतर है वो अजनबी ,
आज भी अनजान है ,
लिए अनगिनत सवाल ,
मालूम नहीं जिसकी हमे पहचान है ।