बहुत से अनगिनत सवाल लिए ,
खुद को खुशियां से सवार रही ,
जुल्फे भी है सुझली सुलझी ,
और बहते काजल की धार नहीं ।
आंखों में है कुछ नमी जरूर ,
और पलकों पर बिखरे काजल ,
संभाले जज्बातों को अपने ,
मुस्कुरा रही वो पागल ।
कल की खुशियां आज नहीं ,
आज की खुशियों का कोई कल नहीं ,
और उलझी जिन राहों में वो ,
उन राहों में मंजिल नहीं ।
खुल के हंसना भूल गई जो,
रोना जिसको याद नहीं ,
लम्हों की मोहताज है जो ,
पल भर भी कोई साथ नहीं ।
अनगिनत जज्बातों के ,
लाखों सजाए वादों के ,
कब तक यूंही चलता जायेगा ,
एक रोज़ तो चहरे से नकाब हट जायेगा ।
बेहतर है कल से ना मांगो कुछ ,
ना कल के लिए कुछ सजाओ ,
है बिखरा जरूर कल या था ,
आज , अभी तो मुस्कुराओ ।
तस्वीरों से बया होती कहानियां ,
अब समझ आने लगी है ,
चहरे पे छिपे जज्बात ,
बया कर जाने लगी हैं ।।