Saturday, March 31, 2018

आँखे

कही किसी मोड़ पर ,
जा जब मिली थी निगाहे ,
थम सा गया था वक़्त ,
और रुक गई थी फ़िज़ाये ।

आँखो में देखा जिस पल ,
वो लम्हा ही काफ़ी था ,
एक तरफ़ा मोहब्बत को ,
मिल गया साथी था ।

माना की सूरत पर ,
हम क़ुर्बान होते ,
क्या पता था कल तक ,
आँखो से भी लोग जान लेते ।

तेरी आँखों में दर्द से मोहब्बत ,
और मोहब्बत से दर्द कई दफ़ा देखा है ,
आज कल तो हटती नहीं निगाहे तुझसे ,
फ़ुर्सत से जब भी उन्हें देखा है ।

काजल आँखों का नूर होती हैं ,
ज़िंदगी में हो जिसके , नज़र दूर होती है ,
पाक सीरत से मोहब्बत है आज भी ,
फिर भी आँखों से मोहब्बत ज़रूर होती है ।

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