Friday, December 25, 2020

मौत

क्या यही आख़िरी शब्द होता है ,
या आख़िरी सच होता है ,
क्या यही सब खत्म होता है ,
या महज ये एक प्रश्न होता है ।

कुछ तो जरूर होता है ,
मिलना जिससे एक रोज़ जरूर होता है ,
होता है खत्म जहा सबकुछ ,
या शुरू यादों में जिक्र होता है ।

करीब आकर भी पास नहीं आती ,
मीलों दूर हो कर भी दिख जाती ,
ना होता कोई नाम और कोई पैगाम ,
रूह जब जिस्म से बिछड़ जाती ।

वो आख़िरी पल गर मालूम होता ,
शायद वो कुछ और पल जी लेता ,
कर लेता खवाईशे वो अपनी पूरी ,
रह ना जाती कहानियां अधूरी ।

आज को आख़िरी मान कर जी लेते है ,
कल देखा ही किसने है ये मान लेते है ,
मौत से मिलना तो है नहीं हाथ में हमारे ,
खुल कर ज़िन्दगी ही जी लेते है ।। 

मौत से बैर नहीं ,
ज़िन्दगी से मोहब्बत कर लेते है ।।

Saturday, December 19, 2020

छुईमुई दिल

माना की मंजूर नहीं मोहब्बत ,
शायद इस दिल को अब मेरे ,
बन बैठा ज़ख्मी घायल शेर ,
जो आज बेवजह ।

कौन कहता है की हर ज़ख्म ,
वक्त के साथ भर जाता है ,
कुछ ज़ख्म वक्त के साथ ,
और गहरा पड़ जाता है ।

ना मालूम पता खंजर का ,
ना मालूम पता मंजर का ,
बस ज़ख्मी हो आया है ,
बेवजह ही मुर्झाया है ।

छुई मुई सा होता है दिल ,
आज हकीम ने बताया ,
टूटे और ज़ख्मी दिल को ,
भला कहां था कभी ये समझ आया ।

गर हो सके तो दिल को मेरे ,
मुझ तक ही रहने देना ,
जैसा भी हो एहसास ,
मेरे धड़कनों को सहने देना ।

दिल बीमार है यकीनन आज ,
कल फिर ठीक हो जायेगा ,
आज नहीं लगने को किसी से तैयार ,
शायद कल कोई उसमे बस जायेगा ।

Monday, December 7, 2020

दिल नहीं करता

अब दिल नहीं करता,
किसी से दिल लगाने को , 
एक और दफा दिल ,
किसी और का तोड़ जाने को l 

ना ही फिज़ाओं में है खुशबू तेरी ,
ना ही हलचल पत्तियों पर ,
ना खिले है फूल कहीं ,
ना ही पैरों के निशा बिखरे पत्तों पर l

मौसम सी होती है मोहब्बत ,
कौन ये सच मानता है ,
धूप और छाव के मायने ,
सिर्फ वक्त पहचानता हैं l

कभी लगता है डर धूप से ,
कभी छाव ढूंढते है ,
बेवजह ही नहीं लगाते दिल ,
अजनबी में भी पहचान देखते है l

फरेबी कहे दिल को ,
या तुमको बेवफा ,
इश्क़ में हार बैठे हम बाज़ी ,
या ज़िन्दगी एक दफा ?

अब नहीं करता दिल ,
किसी से दिल लगाने को ,
एक और दफा किसी का ,
दिल तोड़ जाने को ll