Friday, May 10, 2013

तेरे इश्क मे

काफी अरसे बाद कलम उठाई कुछ लिखने को पर पता नहीं क्यों कलम चलने को तैयार नहीं और तो और शब्दों ने मानो मुझसे तलाक ले लिया हो फिर भी इन बिसम परिस्थितियो मे एक छोटा सा प्रयास आप लोगो के बीच .
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तेरे इश्क मे हम क्या से क्या हो गए ,

तेरे ज़िन्दगी मे आते ही ,

हम अपनों से भी मीलों जुदा हो गए .


हम किस कदर थे तेरे इश्क मे दीवाने ,

ए एहसास मिलते ही तुझसे हम ,

हो गए अपनी ही दुनिया से बेगाने .


पता भी ना था हमे ,

ये एहसास किस हद तक साथ निभाएगी ,

कभी सोचा ना था ,

कुछ ही लम्हों मे वो ,

बिना कुछ कहे साथ छोड़ जाएगी .


एक वक़्त था जब तेरे इश्क मे ,

कुछ कर गुजरने की चाहत थी ,

संग तेरे रहेने से ,

ज़िन्दगी मे सुकून और राहत थी .


एक लम्हा ऐसा भी आया था ,

मानो हर शब्द मे तेरा नाम ,

और तो और

हर रूप मे तेरा ही चहेरा छाया था .


तेरे इश्क मे क्या से क्या हो गए ,

शब्द भी बेवफ़ा हो गए ,

कलम की स्याही भी रूठ गई ,

मानो लिखने की वजह ही छुट गई .

  तेरे इश्क मे हम क्या से क्या हो गए ,

तेरे ज़िन्दगी मे आते ही ,

हम अपनों से भी मीलों जुदा हो गए .



( खुदा हाफ़िज़ )


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