ना परवाह जिसे ,
दिल के मासूमियत की ,
ना उससे जुड़े ,
शख्स के अहमियत की ।
उसे तो इश्क़ में बस ,
जिस्म नज़र आता हैं ,
अक्सर जो किसी के भी,
इश्क़ में पड़ जाता है ।
भूख नहीं मिटती जिसकी ,
जिस्म के मिल जाने तक ,
निभाता शिद्दत से इश्क़ ,
जिस्म में बस जाने तक ।
उसकी निगाहों का क्या कहना ,
उसे तो सब एक से लगते हैं ,
दिल का तो पता नहीं ,
बस जो जिस्म देखते रहते हैं ।
भला क्यों नहीं वो रुह से ,
कभी दिल लगाता हैं ,
जिस्म के बदले ,
रूह में बस जाता हैं ।
ख़ैर इश्क़ तो वो भी निभाता है ,
पर साथ नहीं चल पाता है ,
जिस्म की चाहत लिए बैठा ,
भला रूह कहां देख पाता है ।।