Thursday, February 17, 2022

जिस्मानी इश्क़

ना परवाह जिसे ,
दिल के मासूमियत की ,
ना उससे जुड़े ,
शख्स के अहमियत की ।

उसे तो इश्क़ में बस ,
जिस्म नज़र आता हैं ,
अक्सर जो किसी के भी,
इश्क़ में पड़ जाता है ।

भूख नहीं मिटती जिसकी ,
जिस्म के मिल जाने तक ,
निभाता शिद्दत से इश्क़ ,
जिस्म में बस जाने तक ।

उसकी निगाहों का क्या कहना ,
उसे तो सब एक से लगते हैं ,
दिल का तो पता नहीं ,
बस जो जिस्म देखते रहते हैं ।

भला क्यों नहीं वो रुह से ,
कभी दिल लगाता हैं ,
जिस्म के बदले ,
रूह में बस जाता हैं ।

ख़ैर इश्क़ तो वो भी निभाता है ,
पर साथ नहीं चल पाता है ,
जिस्म की चाहत लिए बैठा ,
भला रूह कहां देख पाता है ।।

Wednesday, February 16, 2022

रूहानी इश्क़

है तलब इश्क़ की मुझे ,
पर जिस्म नहीं भाता है ,
क्या बगैर जिस्म की चाहत के ,
कोई इश्क़ मुकम्मल नहीं हो पाता है ।

सूरज और चांद को देखने वाले ,
कबसे जिस्म देखने लगे ,
हम भी इश्क़ की तलाश में ,
उन जैसों को जिस्म बेचने लगें ।

इश्क़ के हर सुख को हमने ,
हमेशा सच ही माना हैं ,
पर जिस्म का होना होता है जरूरी ,
ये तो हमने नहीं जाना है ।

जो गैर दिल से जुड़ा ,
उसे अपना बना लिया ,
जिस्म छोड़ कर ,
जिस पर सब लूटा दिया ।

पर मुझ जैसा इश्क़ ,
मुझे आज तक मिला क्यों नहीं ,
छोड़ कर चाहत जिस्म की ,
मेरे रूह तक ही कोई रहा क्यों नहीं ।

जिस्म मुझे किसी का भी ,
कभी नहीं लुभाता हैं ,
गर ये हैं कोई गुनाह ,
तो बस यही गुनाह मुझे भाता है ।।

फरेबी

हर कोई इश्क़ के लिए ,
मरा जा रहा हैं ,
देखो हमें तो इश्क़ में ,
मारा जा रहा है ।

हर पल ख्यालों में जिसके ,
उसे मेरा ख्याल क्यों नहीं ,
इतने उलझनों के बाद भी ,
मुझसे कोई सवाल क्यों नहीं ।

वक्त देने पर भी वक्त से ,
वो हर वक्त कहीं गुम रहता हैं ,
क्यों उसके जिक्र में छोड़ कर मुझे ,
अक्सर कोई और रहता है ।

ठहर कर क्यों नहीं मुझ तक ,
वो अपना सब लूटा जाता हैं ,
ना जाने किसी अधूरेपन की तलाश में ,
वो बस किसी और से मिल आता है ।

मैं तो ठहर गया था उस तक ,
उसे अपना आखिरी मुकाम मान कर ,
ना जाने क्यों वो नहीं ठहरा ,
मुसाफ़िर को अपना मान कर ।

इश्क़ में और कितना ,
वो मुझे हर रोज मारेगा ,
उतार कर नकाब फरेब का ,
कभी तो झूठ भी सच से हारेगा ।।

Thursday, February 10, 2022

रक्त चरित्र

एक पीड़ा हैं जो आती है ,
रक्त बन बह जाती है ,
हर गुजरे लम्हों के ,
अक्सर बहुत सताती है ।

कमज़ोर कड़ी नाज़ुक घड़ी ,
सब कुछ बदल देती है ,
दर्द से गुजर कर भी ,
अक्सर वो मुस्कुरा लेती है ।

उम्र के एक छोर से ,
जिंदगी के डोर तक ,
नाता उसका रहता है ,
कोई उसे रोग ,
तो कोई दवा कहता है ।

थम जाता सफ़र जिसका ,
किसी जीवन के आने से ,
रखता है खुद को दूर जो ,
खुद को बहाने से ।

जन्म की उम्मीद मिटते ही ,
ये खुद को मिटा जाता है ,
क्या खूब अपना चरित्र ,
ये दुनिया को दिखाता है ।

रक्त चरित्र हो जिसका ,
उसे कोई रंग क्या रंग पायेगा ,
हर सुबह सूरज के उगने जैसे ,
वो भी अपने वक्त पर रक्त बहायेगा ।

इश्क़ हो तुम

मुझे अब इश्क़ तुमसे ,
क्यों और गहरा होने लगा हैं ,
क्यों दिल की हर धड़कन पर ,
तेरा नाम रहने लगा है ।

रात के अंधेरे से शुरू सफ़र ,
दिन का उजाला बन गया हैं ,
तेरी हर एक अदा का जादू ,
मुझपर क्या खूब चल गया है ।

लड़ना झगड़ना और फिर ,
तुझे जी भर कर रुलाना ,
किसी और की मोहब्बत कह कर ,
अक्सर बेवजह सताना ।

जबसे गुजर कर शाम से ,
तू चांद से मिल गई है ,
देख ना खुद को आईने में ,
खातिर मेरे ... 
तू कितना बदल गई है ।

इश्क़ के हर किस्से में तू ,
सिर्फ़ अब बस तू ही रह जाना ,
मुझ जैसे किसी रोज़ तू भी ,
मुझे अपनी जिंदगी कह जाना ।

इश्क़ का ये किस्सा ,
जो मैं आज पढ़ रहा हूं ,
यकीन मानों ए जिंदगी ,
इस पल भी ,
मैं सिर्फ तुमसे गुजर रहा हूं ।।

Tuesday, February 1, 2022

बहरूपिया इश्क़

इश्क़ क्या है भला वो ,
जिसमे रकीब का भला ना हो ,
इश्क़ कैसा इश्क़ वो ,
जिसमें हर रोज़ सज़ा ना हो ।

इश्क़ की कहानियों में ,
सिर्फ़ वफा पर ही क्यों इतराते हो ,
किसी और की बेवफाई से पहले ,
क्यों नहीं खुद ही बेवफा बन जाते हो ।

इश्क़ के किस्से हर रोज़ ,
जो दुनिया हमें दिखाती हैं ,
क्यों बंद होते दरवाजों के ,
एक पल में कहीं खो जाती हैं ।

इश्क़ भला इश्क़ कैसा ,
जिसमें बिछड़ने की सज़ा ना हो ,
आप के जाने से पहले ही ,
इश्क़ को कोई और इश्क़ मिला ना हो ।

इश्क़ के पिंजड़े में कैद ,
अभी कितनो को पंख फैलाने हैं ,
छोड़ कर किसी अधूरे इश्क़ को ,
किसी के पूरे हो जाने हैं ।

इश्क़ में पड़ कर भी ,
इश्क़ में पड़ना बाकी हैं ,
मिल गया हमराही जरूर ,
पर हमसफ़र बनना बाकी हैं ।