आज के इस अकेलेपन में ,
जब रिश्ते टूट रहे ,
मिल रहे कुछ नये पराये ,
और कुछ अपने पुराने छूट रहे ।
हर बदलते शाम के साथ ,
चाँद भी कुछ अनजान है ,
कभी चमकते जुगनू ,
कभी तारों से रोशन होता आसमान है ।
रात हो अँधेरी, या ,
हो उजालों का पहेरा ,
एक ख़ूबसूरत ख़्वाब ,
होता एहसास और गहरा ।
जुगनु ,
मीलों दूर कहीं खो गये तुम ,
दिन के उजाले में सो गये तुम ।
बस इस उजाले और अँधेरे में ,
उलझे हुए लाखों जज़्बात है ,
महसूस होती मौजूदगी जिसकी ,
वो धरती और मैं आकाश हैं ।