Tuesday, October 22, 2019

आज़ाद “आवारा” दिल

आज़ाद चिड़ियाँ सा ,
दिल अमूमन है होता ,
कभी इस डाल कभी उस डाल ,
है वो हो लेता  ।

ना रहता क़ैद पिंजड़े में ,
ना छोटी सी दुनिया सजाता ,
उड़ कर खुले आसमान में ,
आसमान को घर बताता ।

क़ैद कर के दिल को ,
क्यूँ किसी पर क़ुर्बान कर जाये ,
क्यूँ नहीं आज़ाद कर के ,
हर दफ़ा शिद्दत से मोहब्बत कर जाये ।

ना एहसासो का समंदर होगा ,
ना सुख जाने पर बंजर होगा ,
ना दिखेंगे पैरों के निशा उनके ,
जिनके जाने पर ये मंज़र होगा ।

ना खायेंगे क़समें तोड़ जाने को ,
ना निभायेंगे वादे साथ आने को ,
ना ही जज़्बातों में जंग होगी ,
बेवजह ना वो मेरे संग होगी ।

कौन कहता है आती है मौत ,
उस ज़िंदगी के जाने से ,
कौन कहता है आ जाती है ज़िंदगी ,
एक दफ़ा फिर से मौत से मिल आने से ।

आज़ाद “आवारा” दिल ,
कभी किसी का दिल नहीं दुखाता ,
धड़कनो के बदलते शोर से ,
अपने रास्ते लौट जाता ।

Friday, October 18, 2019

आँसू

दिल में भरे हर बोझ को ,
एक पल में जो हर लेता है ,
नम पलकों को कर के ,
गालों को तर देता है ।

कभी ख़ुशी में बहता ,
कभी ग़म में बरस जाता ,
बेवजह भी अक्सर ,
ये आँखों से छलक आता ।

ना कोई रंग होता इसका ,
ना ही होता कोई मौसम ,
ना ही कोई साथी ,
ना ही कोई हम दम ।

ना जाने क्यूँ लोग इसे ,
अक्सर छिपाते है ,
आते ही इसके सामने ,
बेवजह ही इसे मिटाते है ।

देता होगा ग़म ज़माने को ,
वजह किसी के मुस्कुराने को ,
पर कोई इससे दिल नहीं लगाता ,
कोई मोहब्बत की क़समें नहीं खाता ।

बहा कर ख़ुद को ग़ैरों की ख़ातिर ,
सुकून दिल को दे जाता है ,
पत्थर हो चले दिल को ,
अपने निर्मलता से पिघलाता है ।

ये आँसू ही है ,
जो ग़म और ख़ुशी ,
दोनों में साथ निभाता है ,
बेरंग हो कर भी .. रंग छोड़ जाता ।।

मेहंदी

तेरे नाम की मेहंदी ,
हाथो पर सजाई थी ,
साज सँवर कर चूड़े संग ,
खिलने को वो आई थी ।

मोहब्बत सा गाढ़ा रंग उसका ,
वक़्त के साथ खिल रहा था ,
निगाहे उनसे और दिल उससे ,
जब मिल रहा था ।

धड़कनो के शोर को छिपा रही थी ,
माँग में सिंदूर जब लगा रही थी ,
देखा था चाँद के बाद जिसे ,
क्यूँ आज नज़र नहीं आया ।

थामा था हाथ अब जिसका ,
कल क्यूँ उससे ये मेहंदी अनजान थी ,
तुझे इससे मोहब्बत ,
और तू उसकी जान थी ।

चंद लम्हों में उम्र भर का साथ ,
कैसे छूट जाता है ,
फीका पड़ने से पहले रंग मेहंदी का ,
मोहब्बत बदल जाता है ।


मेहंदी बिना बोले सब कह जाती है ,
खिलने पर जब वो आती है ,
ख़ुशबू में होती जिसके मोहब्बत ,
गर नहीं .. तो फीकी पड़ जाती है ।

मेहंदी हर दफ़ा सच्ची हो ,
ये ज़रूरी नहीं ,
खिलना हर दफ़ा उसका सिर्फ़ “तेरे लिये” ,
उसकी मजबूरी नहीं ।।

Sunday, October 13, 2019

इश्क़ तेरा

हर रोज़ बदलते जज़्बातों के ,
हर रोज़ भूलते वादों के ,
गर नहीं बदला कुछ एक है ,
वो है ... इश्क़ तेरा ..!

सुबह के ताज़गी से भी जादा ताज़ा ,
दिन के रंगो से रंगीन ,
सर्द पड़ते मौसम से गर्म ,
और शाम के लालिमा से हसीन ,
गर कुछ है .. इश्क़ तेरा ।

दिल के धड़कनो पर राज जिसका ,
मेरी मोहब्बत पर नाज़ जिसको ,
हर लम्हे में होता जो साथ मेरे ,
गर कुछ है .. इश्क़ तेरा ।

मेरी मायूस होने पर जो हँसाता ,
मेरे रूठ जाने पर जो मनाता ,
मेरे जाने पर पीछे पीछे आता ,
गर कुछ है .. इश्क़ तेरा ।

मेरी ज़िंदगी भी एक .. और मौत भी ,
वो ही समंदर और रेत भी ,
वही दिन और और वही रात ,
गर कुछ है .. इश्क़ तेरा ।

आख़िरी साँस तक मैं ,
जिसका साथ निभाऊँगा ,
हर मोड़ पर मिल जाऊँगा ,
गर कुछ है .. इश्क़ तेरा ।।

ग़ुस्सा

पहली दफ़ा तुमसे जब मिला था ,
चेहरा टमाटर हो चला था ,
तुम देख जिसे खिलखिलाई थी ,
उस रोज़ जब मिलने आई थी ।

ना मालूम था पता घर का ,
ना दिल का कोई ठिकाना था ,
थी तुम तब भी ख़ामोश ,
जब रास्ता अनजाना था ।

खोने के डर से ,
तेरे रास्तों पर चलने लगे ,
बेवजह उन रास्तों पर भी ,
तुम हमसे उलझने लगे ।

सोचा छोड़ कर बीच रास्ते ,
अपना पता ढूँढ लाते है ,
इन अनजान रास्तों पर ,
अजनबी बन जातें है ।

जाने लगे क़दम जब अलग रास्तों पर ,
पहली दफ़ा वो लड़खड़ाये थे ,
लौट आये फिर उन्ही रास्तों पर ,
जहाँ छोड़ उन्हें आये थे ।

पैरों के निशा उन रास्तों पर ,
एक क़दम भी ना बढ़े थे ,
वो थोड़े मायूसी से ,
एक कोने में जा पड़े थे ।

देख मुझे फिर से वो सताने लगे ,
बेवजह ही अनजान रास्तों पर जाने लगे ।

मिल ही गया पता मंज़िल का मुझे ,
तेरे दिल तक ही तो था जाना ,
लगने लगे थे रास्ते पहचाने से ,
जिन रास्तों पर था तेरा ठिकाना ।

क्यूँ टमाटर हो चला चहेरा मेरा ,
इस बार दिल मुस्कुराया था ,
धड़कनो में मौजूदगी उसकी ,
अब जा कर सब समझ आया था ।

ग़ुस्से से भी करते है मोहब्बत ,
मोहब्बत ने बतलाया था ,
फिर सताने जब मुझे ,
मेरे पास वो आया था ।।

उम्मीद

बिखर कर शीशे के टुकड़ों सी ,
जा गिरी थी जब , ज़िंदगी ,
उल्फ़तो के आफ़तों से ,
जा मिली थी ज़िंदगी ।

लगा जब सब छूट सा गया ,
मेरा मैं मुझसे रूठ सा गया ,
ना मिली शाम उस रात चाँद से ,
रूठी हो मानो चमचमाते आसमान से ।

हर दफ़ा कोशिश शिद्दत से करता मैं ,
दूर हो कर उसके पास रहता मैं ,
फिर भी सब ख़त्म सा मालूम होता है ,
जब पास हो कर भी वो दूर होता है ।

कभी सूरज के उगने से पहले ,
जो आँखों में चमक जाता था ,
जिस्म मेरा जिसकी ख़ुशबू से ,
हर दफ़ा महक जाता था ।

अब उग कर सूरज सुबह को ,
शाम में छिप जाता है ,
इंतज़ार में उसके लौट आने के ,
वक़्त अक्सर रूठ जाता है ।

मालूम नहीं कब तुम लौट कर आओगे ,
मेरी आँखों को चमकाओगे ,
फिर महकेगा जिस्म मेरा तेरी ख़ुशबू से ,
कब रूठे वक़्त को मनाओगे ।

है उम्मीद बस इतनी सी ,
फिर से मैं मुस्कुराऊँगा ,
आज़ाद हो चला दिल मेरा ,
कही क़ैद कर जाऊँगा ।।