Friday, March 29, 2019

ग़लतफ़हमी

क़लम में स्याही थोड़ी और दवात ख़ाली ,
अल्फ़ज़लो का सिलसिला अब भी जारी ,
कौन सा रौब्ब , कौन सी ख़ुमारी ,
चलो दूर कर जाते है ग़लतफ़मी तुम्हारी ।।

मिल कर बिछड़ने जाना का ग़म ,
उन्हें अक्सर सताता है ,
प्यार को सदियों की ज़रूरत नहीं ,
एक पल में हो जाता है ।

कौन कहता है टूट कर दिल बिखर जाता है ,
ख़ून बन आँसू बहने को आता है ,
होती है बेताबी कुछ इस क़दर ,
टूटने से जादे दिल लगने का डर सताता है ।

होती है मुलाक़ात जब भी उन निगाहों से ,
इश्क़ छलकने को आता है ,
भूल कर दर्द और उस दिल को ,
फिर वो मोहब्बत करने लग जाता है ।

कभी जो लगे अल्फ़ाज़ महज अफ़वाह ,
एक दफ़ा उस दिल से मिल आना ,
धड़कता है जो सिर्फ़ ख़ातिर तेरे ,
उफ़्फ़्फ़्फ ... ये ग़लतफ़हमी ....
बेहतर होगा इसे भूल जाना ।।