अब बस मुझे लौटा दो ,
एक और दफा इस मुसाफ़िर को ,
उसकी मंजिल तक पहुंचा दो ।
इस जंग में साथ तुम्हारे ,
मैं हर पल खड़ा रहूंगा ,
खुद को बेहतर बनाने की ,
एक आखिरी कोशिश करूंगा ।
मेरे शब्दों को चुरा कर मुझसे ,
तुम कौन से किस्से लिख रही हो ,
सब कुछ कर के मेरे हिस्से ,
अपने हिस्से क्या कर रही हो ।
इश्क़ में बर्बाद हो कर ,
भला किसे दुआ मिली हैं,
मुझे तो तेरे आने के बाद ,
लगा जैसे जिंदगी मिल गई है ।
क्या इश्क़ में मुझ जैसा ,
कोई और भी बदनसीब होगा ,
जिसकी मोहब्बत में ,
वो खुद ही रकीब होगा।