Sunday, September 20, 2015

इंतज़ार

पहली दफा मिला था जो ,
अब तक जहन मे बसी उसकी याद है , 
फिर अब कब मिलेंगे , 
बस इसका इंतज़ार है . 

यु तो हर रोज़ अब ख्यालो मे , 
आ बस जाती है तू , 
दे कर वास्ता लौट आने का ,
वहां भी इंतज़ार कराती है . 

होश मे आते ही , 
ख्यालो को अपने कोसने लग जाते ,
क्यों करता हु इंतज़ार तेरा , 
बस यही सोचने लग जाता . 

तुझे मेरी आंखो मे खूबसूरती दिखती है , 
पर अपना हाल कैसे तुझे बताऊ , 
जब तू करती है मोहब्बत पिज़ा से , 
हाले दिल कैसे बर्गेर का सुनाऊ . 

दिखा कर घड़ी मुझे ,
वक़्त का अहसास दिला गयी ,
जब तक कहता कुछ इंतज़ार की खातिर , 
खुद को कही छिपा गई . 

नज़रे तलाशती रही उसे ,
शायद वो अपने वक़्त की खातिर लौट आये ,
पता नहीं था कुछ इस कदर दगा देंगी वो , 
कह कर इंतज़ार , 
ताउम्र इंतज़ार करना पड़ जाए .. 

ना कभी वो लौटे उस इंतज़ार की खातिर , 
और हम इंतज़ार करते रह जाए ..