Sunday, May 30, 2021

बसर

तुम मेरा ख़्वाब हो ,
पर कभी सच तो होगी ,
कल्पना से बुनी खूबसूरत एहसास ,
किसी रोज उसकी मौजूदगी तो होगी ।

कितना जिता हु जिंदगी में ,
तुम को अपनी ताकत मान ,
मौत आकर भी गुजर गई ,
जब जाना उसने तुम्हारा नाम ।

मेरी प्रेरणा हो तुम और मेरी ताकत ,
करुणा भी है और है नज़ाकत ,
खूबसूरत भी हो और सीरत साफ ,
खुशनसीब हु मैं जो तुम हो मेरे साथ ।

मेरी जिंदगी का वो कोई एक पन्ना नहीं ,
जहां तुम्हारा जिक्र नहीं ,
कल्पनाओं से बुनी मूरत हो तुम ,
जिसका कोई रूप नहीं ।

पर फिर भी ,
तुम पास मेरे साथ मेरे ,
हर पल रहती हो ,
ख्वाबों में सही ,
आकर दिल की बात कहती हो ।

तुम को पाने की जिद कहूं ,
या तुम्हें खोने का डर ,
या कहूं कल्पनाओं वाली मोहब्बत ,
करना है संग जिसके जिंदगी बसर ।

Friday, May 28, 2021

अधूरा इश्क़

मुझे इश्क की जंजीरों में बांध कर ,
कैसे खुद आज़ाद घूम रहे हो ,
छोड़ कर साथ मेरा ,
किसी गैर का माथा चूम रहे हो ।

मैं कहती थी इतना भी प्यार मत जताओ ,
इस कदर खुद में ना उलझाओ ,
पर तुम इश्क़ में दिवाना किए जा रहे थे ,
और हम तेरी ओर खींचे आ रहे थे ।

उस रोज़ जब रख कर कांधे पर सिर ,
तुम मेरी उंगलियां टटोले जा रहे थे ,
भीग रहा था दुपट्टा मेरा ,
आंसू जिनपर .. तुम बहा रहे थे ।

क्या फरेब भी खूब खेला फरेबी ,
मैं तो बर्बाद हो गई ,
लिए उम्मीदों की पोटली ,
खुलेआम नीलाम हो गई ।

मांग में लगा सिंदूर आज भी ,
और कल भी इन्हें ऐसे ही सजाऊंगी,
गुनाह किया है गर मैंने ,
तो ताउम्र गुनेहगार रह जाऊंगी ।

कल जो निकले जिस्म से मेरे ,
रूह आज़ाद होने को ,
सेज पर कुछ ऐसे मुझे सजाना ,
हो मांग में सिंदूर ,
और हाथों पर मेहंदी लगाना ।

बेवफाई जो की है उसने साथ मेरे ,
मैं नहीं दोहराऊंगी ,
अधुरे इश्क़ के साथ ही सही ,
मैं मोहब्बत निभाऊंगी ।

Saturday, May 22, 2021

जज़्बात

जज्बातों में उलझ कर ,

सुलझ कहां कोई पाता है ,

मासूमियत का मुखौटा पहने ,

अक्सर रास्तों पर ,

कोई अजनबी मिल जाता है ।


होती हैं कहानियां सच्ची जिसकी ,

जितना वो बतलाता है ,

भूलने पर रास्तों को ,

अपनी ही मंजिल झुठलाता है ।


इश्क हो ना हो पहली नजर में ,

पर शक्स बंध जाता है ,

इश्क़ का भूखा ,

जिस्म कहां देख पाता है ।


हर कहानी सच्ची उसकी ,

उसके ही होते किरदार ,

वक्त आने पर बनता कभी वजीर ,

तो कभी हो जाता घोड़े पर सवार ।


दिल ने दिमाग पर कब्जा ,

कुछ इस कदर है कर लिया ,

वो दिए जा रहा जख्म जो ,

उसे मरहम समझ लिया ।


इश्क़ का फितूर भी ,

क्या रंग दिखाता है ,

बेवफ़ा से भी ,

वफ़ा की उम्मीद लगाता हैं ।

Thursday, May 20, 2021

ख़्वाब और तुम


चंद रातें ही गुजरी थी अभी ,

और अनगिनत मुलाकाते हो चली थी ,

अजनबी तो तब भी थी तुम और आज भी ,

बस एक कहानी चल पड़ी थी ।


तेरी मासूमियत और शिद्दत से देखती निगाहें ,

मानों ख़्वाब हर दफा सच सा लगता था,

ज़िक्र ना हो जिस ख़्वाब में तुम्हारा ,

वो ख़्वाब गुनाह सा लगता था ।


मेरी कल्पना से भी परे ,

और दीपक की रोशनी के तले ,

वो सर्द सा एहसास हो तुम ,

जब जब ख्वाबों में ,

होती मेरे बेहद पास हो तुम ।


वहां ना कोई गैर होता ,

बेवजह ही नहीं कोई बैर होता ,

ना ही होती है तेरी बेवफाई ,

ना ही मांगती जिंदगी मुझसे कोई सफाई । 


पहली दफा जो थामा था हाथ तुमने ,

और मैं किन्ही रास्तों में खो गया था ,

याद है ना वो रात और उसकी बातें ,

जब मैं ख़्वाब सुनाते सो गया था ।


वरना कैसे कोई पहले नींद चुराता है ,

ख्वाबों में आकर सुकून दे जाता है ,

होती हो बिलकुल मेरे कल्पना सी ,

होश में आते ही जो ख़्वाब तोड़ जाता है ।


कैसे कोई पल भर में अपना ,

पल भर में अजनबी बन जाता है ,

कैसे कोई देकर दर्द अंजाने गुनाहों का ,

चैन से सो जाता है ।


ख़्वाब में ही बेहतर है मौजूदगी तेरी ,

हर सुबह जो टूट जाता है ,

अनगिनत लिए ज़ख्म गुनाहों के ,

हर रात फिर ये दिल गुनेहगार बन जाता हैं ।

Sunday, May 16, 2021

वहम

वहम भी मेरा और गुनाह भी ,
जो उन्हें बेवजह ही वजह मान बैठे थे ,
अनगिनत अनदेखी भरे इशारों को ,
हम देख कर भी झुठला रहे थे ।

ये जिद्द थी मेरी या मेरा पागलपन ,
या कोई बेहद अलग ही एहसास था ,
हर दफा लौटता हु जब भी गलियों से उसके ,
लगता हैं रास्ता और मंजिल यहीं कही आस पास था ।

है यकीन हमें पूरा ,
दुआओं में हमारा जिक्र भी नहीं होता होगा ,
गलती से ही सही ,
फिक्र भी नहीं होता होगा ।

पर कितना मुश्किल होता है ,
एकतरफा एहसास से निकल पाना ,
वो भी तब ,
जब कोई अजनबी हो आप का ठिकाना ।

मैंने की हर कोशिश ,
और करता जा रहा हू ,
तेरे कहे हिसाब ,
खुद को "गुनेहगार" खुद से बना रहा हू ।

पर नहीं होता इतना आसान ,
किसी को भूल जाना ,
वो भी तब ,
जब बेवजह हो उसका जिंदगी में आना ।

काश मुझे मेरी वजह मिल जाय ,
बीते एकतरफा लम्हों की शाम ढल जाए ,
जिंदगी जो बची है मेरे हिस्से में ,
वो सुकून से हम जी पाए l

वहम है जो मेरा ,
वो शायद एक बार फिर टूट जाएगा ,
शायद ढूंढते तुम जैसा कोई ,
फिर मुझे गुनेहगार मिल जाएगा ।

Wednesday, May 12, 2021

खत

हुआ तो जुल्म है मुझसे ,
पर माफ़ी तो होगी ,
बांध कर सीतम के जंजीरों में ,
सजा के बाद रिहाई तो दोगी ।  

तुम्हारे हिस्से की कुछ कहानियां ,
तुम को समझ हम किसी और को सुना आए ,
खत जो लिखा करते थे खातिर तेरे ,
वो किसी और के पते पर छोड़ आए ।

हैं आज भी बचा रखे कुछ खत ,
मैंने बेहद संभाल कर ,
और कुछ छिपा रखे ,
मैंने दिल के संदुख में डाल कर ।

हां वो पहली दफा वाली ,
अब बात ना होगी ,
तुमसे कही हर बात ,
पहली बार ना होगी ।

ना होगा वो एहसास पहली बार का ,
जो सालों से तुम्हारे लिए छिपा रखा था ,
जिंदगी के पहले दिन से आखिरी तक ,
हर लम्हें को खूबसूरत बनाने की ,
कसम जो खा रखा था ।

हां तोड़ा है वादा मैंने ,
बिना तुम्हारे जिंदगी में आए ,
शायद आखिरी दफा होगा ये ,
जो तेरे हिस्से के अल्फाज़ ,
कहीं और छोड़ आए ।

गर बचा रखा है कुछ आज भी ,
बिना किसी बटवारे के ,
मोहब्बत है वो मेरी ,
जो नहीं चलेगी बिना तुम्हारे सहारे के ।

"प्रिय तुम "
मालूम नहीं इस वक्त तुम कहां होगी ,
ना जाने इन्हें तुम कब पढ़ोगी ,
पर लिख रहा हूं और खत ,
फिरसे तुम्हारे नाम के ।

अनगिनत है कहानियां जिनमें ,
कुछ हमारे कुछ गुमनाम के ।।

Friday, May 7, 2021

तुम याद आई मुझे

इतने सालों के बाद ,
पता नहीं क्यों ,
कब और कैसे ,
पर आज , अभी ,
इस वक्त ..
तुम याद आई मुझे ।

सब जानते थे तुमको ,
सब पहचानते थे तुमको ,
मेरे हर मर्ज की दवा थी तुम ,
"खुशी" ना जाने कहां हो गई गुम ।

भूल से भी जिक्र अब नहीं होता तुम्हारा ,
जिंदगी भर का होता शायद साथ हमारा ,
पर मेरी भी कुछ मजबूरियां थी ,
बेवजह ही नहीं आई दूरियां थी ।

तेरे हर पल के सुकून से ,
मेरे कुछ कर गुजरने के जुनून से ,
वाकिफ थी तुम ,
मेरी हद से बेहद के लिए काफी थी तुम ।

वो पहली बात , पहली मुलाकात ,
पहली नजर , पहला असर ,
आज सब याद आ रहा हैं ,
ना जाने क्यों तेरी ओर खींचा जा रहा है ।

मेरी ताकत हुआ करती थी तुम ,
कुछ भी कर गुजरने से नहीं डरती थी तुम ,
मांगा था तुमने ,
मांग में मेरे नाम का सिंदूर ,
नहीं दे पाया इतना भी तुमको ,  
बस यही था मेरा कसूर ।।

शादी मुबारक खुशी !! 

Thursday, May 6, 2021

गुनहगार

गुनहगार

अगर सब जीत जायेंगे मोहब्बत में ,
तो हारेगा कौन ?
मुकम्मल जो होने लगी हर ख्वाइश ,
तो खुदा को पुकारेगा कौन ?

माना की इश्क मेरा ,
तुझसे तो पूरा था ,
रह तो गई थी तेरी मोहब्बत ,
जिसमें इश्क अधूरा था ।

एक वक्त वो भी ,
क्या खूब हुआ करता था ,
चंद रोज़ ही सही ,
तू दुआओं में रहा करता था ।

तेरी नाराजगी हर दफा ,
बेहद जायज़ थी ,
शायद की ही नहीं .. हमने मोहब्बत ,
जो तेरे लायक थी ।

आज भी हर शाम तेरे होने का ,
एहसास सताता हैं ,
गर जाती हैं निगाह कभी रातों में ,
आसमां की ओर ,
आंखो से हंजु बहने लग जाता है ।

मेरी क़िस्मत मैं गर नहीं तुम ,
तो जिंदगी में क्यों आई ,
जी रहा दिल ,
लिए दर्द , जिल्लत और जुल्म ,
जो थी तुम मेरे हिस्से छोड़ आई ।

माना की गुनहगार हैं हम ,
और तुम पर जुल्म का इल्ज़ाम नहीं ,
पूछना कभी अपने दिल से ,
क्या धड़कनों पर मेरा नाम नहीं ।

Monday, May 3, 2021

शायद

शायद अल्फाजों से करते थे उनका श्रंगार ,

फेरती ना थी जुल्फों पर उंगलियां वो हर बार ,

शायद हम ही उन्हें अधूरा छोड़ आए ,

बिन मांगे फरियाद तोड़ आए ।


शायद अक्सर हर रात के अंधेरे में ,

आज भी वो चांद को निहारती होगी ,

शायद आज भी आईने में ,

ख़ुद को संवारती होगी ।


शायद आज भी होगा कोई हमराही ,

जिसके संग वो खो जाती होगी ,

शायद हमनें ना सुने जो किस्से ,

वो उन्हें सुनाती होगी ।


शायद आज भी होंगे जिक्र में कहीं हम ,

और फिक्र भी वो जताती होगी ,

शायद मंजिल यकीनन एक नहीं ,

फिर भी रास्ते वो बनाती होगी ।


शायद हम थे गलत बेशक उसकी निगाहों में ,

उलझे अक्सर धूप और छाव में ,

शायद आज भी वो अश्क बहाती होगी ,

हर दफा जब रूठ जाती होगी ।


शायद ये पल हो आखिरी मेरा ,

और अल्फाज भी रह जाए अधूरे ,

शायद रह गई रूह जिस्म में जिंदा ,

लौटेंगे इन अल्फाजों को करने पूरा ।


शायद छोड़ जा रहे ..

कुछ पल .. कुछ एहसास ,

कुछ यादें .. और कुछ अल्फाज ।


और हां गर नहीं लौटे कभी हम ,

कर देना तुम इन्हें पूरा ,

शायद जो किस्सा रह गया अधूरा ..।।