Sunday, May 30, 2021
बसर
Friday, May 28, 2021
अधूरा इश्क़
Saturday, May 22, 2021
जज़्बात
जज्बातों में उलझ कर ,
सुलझ कहां कोई पाता है ,
मासूमियत का मुखौटा पहने ,
अक्सर रास्तों पर ,
कोई अजनबी मिल जाता है ।
होती हैं कहानियां सच्ची जिसकी ,
जितना वो बतलाता है ,
भूलने पर रास्तों को ,
अपनी ही मंजिल झुठलाता है ।
इश्क हो ना हो पहली नजर में ,
पर शक्स बंध जाता है ,
इश्क़ का भूखा ,
जिस्म कहां देख पाता है ।
हर कहानी सच्ची उसकी ,
उसके ही होते किरदार ,
वक्त आने पर बनता कभी वजीर ,
तो कभी हो जाता घोड़े पर सवार ।
दिल ने दिमाग पर कब्जा ,
कुछ इस कदर है कर लिया ,
वो दिए जा रहा जख्म जो ,
उसे मरहम समझ लिया ।
इश्क़ का फितूर भी ,
क्या रंग दिखाता है ,
बेवफ़ा से भी ,
वफ़ा की उम्मीद लगाता हैं ।
Thursday, May 20, 2021
ख़्वाब और तुम
चंद रातें ही गुजरी थी अभी ,
और अनगिनत मुलाकाते हो चली थी ,
अजनबी तो तब भी थी तुम और आज भी ,
बस एक कहानी चल पड़ी थी ।
तेरी मासूमियत और शिद्दत से देखती निगाहें ,
मानों ख़्वाब हर दफा सच सा लगता था,
ज़िक्र ना हो जिस ख़्वाब में तुम्हारा ,
वो ख़्वाब गुनाह सा लगता था ।
मेरी कल्पना से भी परे ,
और दीपक की रोशनी के तले ,
वो सर्द सा एहसास हो तुम ,
जब जब ख्वाबों में ,
होती मेरे बेहद पास हो तुम ।
वहां ना कोई गैर होता ,
बेवजह ही नहीं कोई बैर होता ,
ना ही होती है तेरी बेवफाई ,
ना ही मांगती जिंदगी मुझसे कोई सफाई ।
पहली दफा जो थामा था हाथ तुमने ,
और मैं किन्ही रास्तों में खो गया था ,
याद है ना वो रात और उसकी बातें ,
जब मैं ख़्वाब सुनाते सो गया था ।
वरना कैसे कोई पहले नींद चुराता है ,
ख्वाबों में आकर सुकून दे जाता है ,
होती हो बिलकुल मेरे कल्पना सी ,
होश में आते ही जो ख़्वाब तोड़ जाता है ।
कैसे कोई पल भर में अपना ,
पल भर में अजनबी बन जाता है ,
कैसे कोई देकर दर्द अंजाने गुनाहों का ,
चैन से सो जाता है ।
ख़्वाब में ही बेहतर है मौजूदगी तेरी ,
हर सुबह जो टूट जाता है ,
अनगिनत लिए ज़ख्म गुनाहों के ,
हर रात फिर ये दिल गुनेहगार बन जाता हैं ।
Sunday, May 16, 2021
वहम
Wednesday, May 12, 2021
खत
Friday, May 7, 2021
तुम याद आई मुझे
Thursday, May 6, 2021
गुनहगार
Monday, May 3, 2021
शायद
शायद अल्फाजों से करते थे उनका श्रंगार ,
फेरती ना थी जुल्फों पर उंगलियां वो हर बार ,
शायद हम ही उन्हें अधूरा छोड़ आए ,
बिन मांगे फरियाद तोड़ आए ।
शायद अक्सर हर रात के अंधेरे में ,
आज भी वो चांद को निहारती होगी ,
शायद आज भी आईने में ,
ख़ुद को संवारती होगी ।
शायद आज भी होगा कोई हमराही ,
जिसके संग वो खो जाती होगी ,
शायद हमनें ना सुने जो किस्से ,
वो उन्हें सुनाती होगी ।
शायद आज भी होंगे जिक्र में कहीं हम ,
और फिक्र भी वो जताती होगी ,
शायद मंजिल यकीनन एक नहीं ,
फिर भी रास्ते वो बनाती होगी ।
शायद हम थे गलत बेशक उसकी निगाहों में ,
उलझे अक्सर धूप और छाव में ,
शायद आज भी वो अश्क बहाती होगी ,
हर दफा जब रूठ जाती होगी ।
शायद ये पल हो आखिरी मेरा ,
और अल्फाज भी रह जाए अधूरे ,
शायद रह गई रूह जिस्म में जिंदा ,
लौटेंगे इन अल्फाजों को करने पूरा ।
शायद छोड़ जा रहे ..
कुछ पल .. कुछ एहसास ,
कुछ यादें .. और कुछ अल्फाज ।
और हां गर नहीं लौटे कभी हम ,
कर देना तुम इन्हें पूरा ,
शायद जो किस्सा रह गया अधूरा ..।।