Saturday, July 31, 2021

ताउम्र का एहसास

क्या वक्त दोगी थोड़ा तुम मुझे ,
सब बताने के लिए ,
हर अधुरे अल्फाज़ को ,
पूरा कर जाने के लिए ।

मैं मानता हु कर बैठा गुनाह ,
और तुम्हें अक्सर यू सताता हू ,
कह कर भी सब कुछ ,
अनकहा सा रह जाता हू ।

डर लगता है ,
ये सब बताने में ,
बना बैठा हु घर एक छोटा सा ,
दिल के आशियाने में ।

हर पल हर गुजरते लम्हें के साथ ,
सब और खूबसूरत हो चला है ,
जिस पल से ये दिल ,
तुझसे जा मिला है ।

मुझे आगाज़ खूबसूरत नहीं ,
ताउम्र का एहसास बनाना है ,
हर लम्हें को जिंदगी के ,
तेरी मुस्कुराहाट से सजाना है ।

जो थाम लिया उन हाथों को ,
छोड़ना मुश्किल होगा ,
तू होगा आखिरी ,
जिसका ताउम्र मेरा दिल होगा ।

चंद अल्फाज़

दिल कह रहा अब तो कह दो ,
उनसे जो कहनी है बात ,
अधुरा रह नहीं गया दर्मियां कुछ ,
सिवाए वो चंद अल्फाज़ ।

देखा आज सुकून से ,
तुम्हें पहली बार ,
बिखरी जुल्फे और कातिल निगाहें ,
गया मैं सब हार ।

होठों पर बसी मुस्कराहट उनके , 
मानों मेरा हाले दिल बता रही हों ,
मेरे धडकनों के शोर को ,
जो जोर से बढ़ा रही हों ।

पलके जितनी दफा झुका कर ,
वो निगाहों को छिपा रही थी ,
हाले दिल निगाहों से ,
मुझे बता रही थीं । 

रुक रुक कर वो अल्फाज़ ,
जो दिल से जुबां पर आ रहे थे ,
बहुत सोच सोच कर ,
उन अल्फाजों को वो सजा रहे थे ।

कुछ था गर गैरमौजूद  ,
उस लम्हें में हमारे ,
तो वो उनके माथे की बिंदिया थी ,
और मेरे आंखो की निंदिया थी ।

कितना मुश्किल है ,
इस एहसास को बता पाना ,
तेरा हो कर भी ,
"पराया" हो जाना ।

काश मैं सौदागर होता शब्दों का ,
कुछ चुरा कर शब्द ले आता ,
पिरो कर माला जिसकी ,
तुझसे वो चंद अल्फाज़ कह जाता ।।

Friday, July 30, 2021

किसी और से मोहबब्त

तुम्हें जल्दी है ना ,
मेरा किसी और के हो जाने की, 
वक्त के साथ मेरे हर कहे को ,
खुद से झुटलाने की ।

तुम लिखो अपने इश्क़ की ,
एक और नई कहानी ,
वक्त आने पर रखना यकीन ,
हम सुनाएंगे जिसे अपनी जुबानी ।

मैं गया कई दफा दूर तुमसे ,
दिल किसी और से लगाने को ,
छोड़ कर इश्क़ तेरे हिस्से का ,
किसी और से निभाने को ।

पर ना दिल लगा किसी से ,
और ना तेरा जिक्र छूटा ,
मेरे इस अंदाज से ,
ना जाने कितनों का दिल टूटा  ।

तुम अपना इश्क़ ,
उनसे ही शिद्दत से निभाओ ,
हो सके तो उन्हीं के ,
दिल में बस जाओ ।

वक्त के साथ ,
हर जवाब मिल जायेगा ,
जब किसी रोज़ ,
वो मुझसे टकराएगा ।

खुद तो बिखरा ही होगा ,
मुझे भी अधूरा पायेगा ,
हो जाओ किसी और का ,
शायद फिर ना कह पायेगा ।

इजाज़त

इजाज़त है क्या मुझे ,
तुमसे इश्क़ करने की ,
हर रोज तुम पर ,
इतने ही शिद्दत से मरने की ।

जिक्र में हर पल हो तुम मेरे ,
और हमें क्या चाहिए ,
गर हो इजाजत इश्क की ,
तो बताइए ।

मैं कैसे कहूं शब्दों को सजा कर ,
खुद को सौदागर बना कर ,
इश्क़ में हो कर भी ,
इश्क़ को झूठला कर ।

हर पल हर दफा ,
जब कभी जिक्र में ,
तुम मेरे आ जाती हो ,
इश्क़ के मायने बदल जाती हो ।

आज भी और कल भी ,
मैं कुछ ऐसा ही रहूंगा ,
गर मिल गई इजाज़त ,
तो मोहबब्त करूंगा ।

वैसे भी वक्त है बहुत ,
अभी तेरा हो जाने में ,
बेवजह ही सही ,
मोहब्बत को निभाने में ।

इश्क़

वो मेरे इश्क़ में ,
हम तेरे इश्क़ में ,
तू उनके इश्क़ में ,
जो किसी और के इश्क़ में ।

इश्क़ में हम अधूरे ,
इश्क़ में कौन से तुम पूरे ,
इश्क़ में मैंने खोया ,
इश्क़ में तू भी तो रोया ।

इश्क़ में कौन किसके ,
इश्क़ में किसका कौन ,
इश्क़ ही बताएगा ,
इश्क़ कौन किससे निभायेगा ।

इश्क़ में कहीं शोर भी ,
इश्क में कहीं खामोशी ,
इश्क़ में कहीं आरोप भी ,
इश्क़ में कहीं आरोपी ।

इश्क़ में तन्हाई भी  ,
इश्क़ में जुदाई भी  ,
इश्क़ में रुसवाई भी  ,
इश्क में सुनवाई भी ।

इश्क़ मुझे तेरे रूह से ,
इश्क़ तुझे उसके जिस्म से ,
इश्क़ मुझे तेरे इल्म से ,
इश्क़ तुझे उसके जुल्म से ।

इश्क़ में कोई सब लूटा देता ,
इश्क़ में कोई सब लौटा देता ,
इश्क़ में कोई तुझमें खो जाता ,
इश्क़ ने कोई मुझ सा हो जाता ।

इश्क़ में कोई हमारा होता ,
इश्क़ में कोई तुम्हारा होता ,
इश्क़ किसी के पास होता है ,
इश्क़ किसी का खास होता ।

इश्क़ में मेरे दुआ हो तुम ,
इश्क़ में किसी के बद्दुआ हो तुम ,
इश्क़ में सदा हो तुम ,
इश्क़ में पर कहां हो तुम ।

इश्क़ में गर ना कोई गुनाह होता ,
इश्क़ में ना कोई खुदा होता ,
इश्क़ में ना कभी तू मेरा होता ,
इश्क़ में ना कभी वो तेरा होता ।।

इश्क़ ना होता .. तो क्या होता ।। 

नशा

जाम , शाम और तुम ,
तीनों ही महफ़िल में बैठा करते थे ,
नशा भी खुलेआम ,
उन दिनों हम क्या खूब किया करते थे ।

ज़ाम के लबों पर बसने से लेकर ,
तुम्हारे दिल में उतरने तक ,
शाम के गुजरने से ,
मेरे बिखरने तक ।

सब कुछ इश्क़ सा था मेरे लिए ,
और क्या गज़ब थी दीवानगी ,
खो जाऊ गर तुझमें  ,
हो जाती थी खूबसूरत शाम भी ।

पर एक रोज़ ,
शाम ने मुझे अंधेरे से मिलवाया ,
ना था जाम हाथों में ,
और ना तू कहीं नजर आया ।

लगा सब टूट कर बिखर गया हो ,
जैसे तू मुझसे मुंह फेर गया हो ,
अब जाम भी लबों पर यूं आता नहीं ,
हुआ क्या है क्यों कोई बताता नहीं ।

शाम को छोड़ कर ,
यहां सबका दाम लगता है ,
यूहीं अक्सर महफिलों में ,
सरेआम लगता है ।

भूल गया था नशे में मैं ,
तुम दोनों भी तो बिकते हो ,
अब तुम दोनों का नशा भी ,
बेहद आम लगता है ।

वक्त के साथ सब गुज़र गया ,
मोहब्बत मैं एक और दफा कर गया ,
पर इस दफा सिर्फ दिल्लगी है ,
नशे में पड़ने की अब किसे हड़बड़ी है ।

उदास

आज पहली दफा ,
उन आंखो को नम पाया ,
मुस्कुराहट उसके चहरे पर ,
कुछ कम पाया ।

आज वो महफिल में ,
अपना कल बता रही थी ,
पन्नों में सजे शब्दों को ,
पढ़ कर सुना रही थी ।

वो बीते पल और लम्हें ,
सब याद आ रहे थे ,
जब वो अपनी कहानी ,
दुनिया को सुना रहे थे ।

बस तभी जज़्बात बन कर आंसू ,
आंखो से उनके छलक आए ,
छोड़ गया था उनकी कहानी जो ,
उसे वो साथ ले आए ।

कितना वो तुम्हें जानता था ,
हर लम्हें को तुम्हारे पहचानता था ,
तुम्हारी जिंदगी के हर पहलू को ,
अल्फाजों में सवारता था ।

वो कहता था तुम्हे ,
हर पल खुल कर मुस्कुराओ ,
जीत कर हर जंग अपनी ,
दुनिया को दिखाओ ।


दिल में जिंदा है ताउम्र वो तुम्हारे ,
और पन्नों में जिंदा उसकी बाते ,
हो क्यों उदास इतना ,
क्या याद नहीं वो खूबसूरत मुलाकाते ।

मुस्कुराओ दिल खोल कर ,
वो भी संग तुम्हारे मुस्कुराएगा ,
जितनी दफा मुस्कुराते ,
तुमको वो पायेगा ।।

Thursday, July 29, 2021

इज़हार

दिन के आने से पहले ,
रात के गुजरने के बाद ,
बादलों में छिपे तारों के ,
रुक रुक कर टिमटिमाने के साथ ।

कुछ पल में ही ,
सब कुछ बदल गया ,
तारों से चांद ,
जब दिल की बात कह गया ।

ना अब कोई शोर है ,
और ना ही कोई बेकरारी ,
खुमारी और भी ,
चढ़ने लगी है अब तुम्हारी ।

कितना मुश्किल था तुमको बताना ,
हाले दिल इस कदर सुनाना ,
इश्क़ में होकर भी ,
इश्क को ना जताना ।

पर अब ना कोई पर्दा है ,
और ना ही कोई शिकायत ,
तुमसे नहीं खुबसुरत ,
खुदा की कोई और इनायत ।

तुम्हारे खुशियों से ही मेरी खुशियां ,
और तुम्हारे गम से मेरा गम ,
बात देना गर लगे किसी रोज़ ,
मेरी मौजूदगी थोड़ी भी कम ।

तुमको पाने की ख्वाईश नहीं ,
तुमको जीने का सुरूर है ,
इश्क़ दिल को है मेरे ,
इसमें मेरा क्या कसूर है ।

सब कुछ एक पल में ,
कैसे खूबसूरत बन जाता है ,
हर दफा जब हाले दिल ,
चांद तारों को सुनाता है ।।

Tuesday, July 27, 2021

जिल्लत

मत कर इतना भी गुनाह ,
जिसकी कोई माफी ना हो ,
क्या कम सहा है जुल्म उसने ,
जिंदगी भर भी मिले गम तुझे ,
तो काफी ना हो ।

देख जरा अपने कर्मों की सजा ,
आ रहा आज कितना मज़ा ,
तू हर रोज़ उसको रुलाता था ,
नोच कर जिस्म भी अक्सर खाता था ।

तेरे नशे को उसने होठों से लगाया ,
तेरे हर धब्बे को दुनिया से छिपाया ,
हाय रब्बा क्या क्या नहीं  ,
तूने था उससे करवाया ।

उसने सब कुछ छोड़ कर ,
बस तुझे संभाला था ,
इतने जुल्म और जिल्लत के बाद भी ,
बना रहा वो तेरा सहारा था ।

पर अब और सह पाना मुमकिन नहीं ,
फर्क नहीं पड़ता गर तू उसकी मंजिल नहीं ,
बस जो चाहिए उसे वो सुकून है ,
बगैर जिसके ये जिंदगी बेफिजूल है ।

देख जरा अब कितनी ,
वो कठोर हो गई ,
आई तेरे मौत की खबर ,
और वो भाव विभोर हो गई ।

वक्त ने वक्त के साथ ,
तुझे वही सिर्फ लौटाया ,
उस वक्त जो कुछ भी ,
उसके हिस्से तू था छोड़ आया ।

हर दर्द को भुला कर ,
अब वो मुस्कुराती है ,
जिंदगी के माईने को ,
जी कर दिखाती है ।

बिछड़ना

उससे बिछड़ने का अब डर सताता है ,
हर दफा जब वो दूर जाता है ,
क्या है सिर्फ दिल मे मेरे ही तस्वीर उसकी ,
या उसके भी दिल में मेरा जिक्र आता है ।

कल सा अब कुछ भी नहीं दर्मिया हमारे ,
दूरियां भी बढ़ चलीं है ,
खामोशियों के शोर ने ,
मानो कर दी कुछ हड़बड़ी है ।

है इश्क़ में बहुत उसके दीवाने ,
पर उसकी दीवानगी किस ओर है ,
खामोशी के इस मंजर में भी ,
कर रहा ये सवाल बहुत शोर है ।

कोई तो होगा मौजूद उसके भी दिल में ,
जो उसकी धड़कने बढ़ाता होगा ,
हर दफा जब कभी ,
जिक्र उसका आता होगा ।

तुमसे मिला ही क्यों मैं ,
जब इस कदर बिछड़ना था ,
होने लगी मोहब्बत को ,
अभी कुछ और वक्त अधूरा रहना था ।

खैर ये कहानी मेरी नहीं ,
तो आप ही बताइए ,
इश्क़ में भला इश्क़ के ,
सिवा और क्या चाहिए ।।

तुम आ जाओ

मुझे इस कदर छोड़ कर ,
बीच रास्ते मुंह मोड़ कर ,
तुम आखिर क्यों चले गए ,
बिन कुछ कहे अलविदा कह गए ।

मैं टूट कर अक्सर बिखर जाता हूं ,
हर दफा जब तुझमें खोने को आता हू,
तुम ना जाने क्यों इतनी जल्दी कर गई ,
जिस्म छोड़ रूह बन गई ।

तुम्हें मालूम भी नहीं ,
मैं कितना अक्सर तुझमें खो जाता हूं ,
हर दफा जब खुद को ,
बगैर तेरे कही पाता हु ।

चलो आज तुमसे वादा करते है ,
मोहब्बत नहीं अब आधा करते हैं ,
बिखर कर फिरसे जुड़ने की कोशिश , 
थोड़ी और जादा करते हैं ।

मेरी मुसकुराहट की वजह हो तुम ,
गम को भला क्यों सौंपी ,
होठों की हंसी हो तुम ,
आंखो की नमी इन्हें क्यों कह दू ।

आज अभी इस पल से ,
मैं सिर्फ तुम्हारा हूं ,
लिए तैयार यादों का पिटारा ,
जो ताउम्र बनेगा मेरा सहारा ,
बस तुम अब कभी दूर मत जाना ,
रूह हो रूह में मेरी बस जाना ।

मुस्कुराओ जरा और जोर से ,
मुझे तुम्हें दुनिया को सुनाना हैं ,
जिंदा हो जिक्र में मेरे हर पल ,
अमर जिसे बनाना है ।।

जश्न

थक हार कर बैठने लगा था मैं ,
और जीत नामुमकिन हो चली थी ,
थे मौजूद आप सब ,
और कुछ ऐसी ही महफिल सजी थी ।

उस रोज़ से बदला बहुत कुछ ,
बस आप आज भी वैसे ही हैं ,
हो रहे सपने सच मेरे अब ,
मानो वो भी बन रहे आप जैसे ही हैं ।

जश्न मेरे इस जीत की ,
मेरे अपने मना रहें ,
अब नहीं अकेला मैं ,
ये सब बता रहे ।

वक्त का शुक्रिया , 
आप का शुक्रिया ,
हौसला मेरा बढ़ाने को ,
हार कर भी जीत सकते हैं ,
हर दफा ये बताने को ।

शुक्रिया उनका भी ,
जो बीच रास्ते छोड़ गए ,
बेवजह ही मुंह मोड़ गए ।

आज के जश्न की वजह आप भी ,
क्योंकि ना होते हम अधूरे ,
और ना जीत से होते हम पूरे ।।

Sunday, July 25, 2021

ख़्वाब में तुम

आज पहली दफा मिल रहा था मैं ,

उनसे ख्वाबों में ,

उलझने लगा था ,

अपने ही पूछे सवालों में ।


मेरे लिए अब वो एक ख़्वाब सा,

बन कर रह गई थी ,

एक अरसा बीत गया था ,

जबसे वो खामोश रह रही थी ।


वो हुबहू तो बिलकुल वैसी थी ,

ख्यालों मे रहती जैसी थी ,

बस फर्क था उसकी आंखो के रंग में ,

और पराया कर जाने वाले ढंग में ।


आकर मेरे पास ,

वो कुछ पल सुकून से बैठी थी ,

ये बात ख्वाबों में भी ,

ख़्वाब के सच होने जैसी थी ।


पूछ बैठी एक और सवाल ,

मेरे थोड़ा और करीब आकर ,

दे दिया मैंने भी जवाब ,

गुजरते लम्हों में थोड़ा हिचकिचा कर ।


चांद तुम कब तक ऐसे ही ,

मेरा साथ निभाओगे ,

या उन अनगिनत तारों की तरह ,

गुजरते वक्त के साथ ,

मुझे भी छोड़ जाओगे ।


मैंने मुस्कुरा कर फिर से ,

उन्हें अपना हाले दिल सुनाया ,

जान कर मेरे जवाब को ,

वो भी थोड़ा मुस्कुराया ।


हर लम्हा हर एहसास ,

अब तक यूहीं जहन में ताजा है ,

बन बैठा तेरा और दीवाना ये दिल ,

जिस कदर मेरी मौजूदगी को ,

ख्वाबों में तुमने नवाजा है ।

तेरी खुशबू

पहली दफा जो देखा था उन्हें ,
तबसे ये सिलसिला शुरू हो गया ,
पहली ही नजर में ,
वो मेरा हो गया ।

आंखो से ना जाने क्या क्या ,
मैं हर बार कहता था ,
खामोशी से पलकों को झुका कर ,
वो ऐतबार करता था ।

उनकी खुसबु हर दफा मुझे ,
उनकी मौजूदगी बताती थी ,
मेरे पलकों की हड़बड़ी ,
उन्हें हाले दिल सुनाती थी ।

और वो भी इजहारे दिल ,
क्या खूब बयां करतीं थीं ,
खामोशी से पलके झुकाए ,
मेरे सामने खड़ी रहती थी ।

पर अब मकान बदलने वाला था ,
मेरे मुकाम के साथ ,
था नहीं मालूम आखिरी हो रही ,
खामोशी से हमारी बात ।

तेरी खुशबू आज भी फिजाओं में ,
घुल कर तेरी मौजूदगी बताती है ,
बिखरे मकान और उजड़े उम्मीद को ,
मानो जोड़ने की वजह दे जाती है ।

तुम्हारा एहसास ही काफी था ,
मेरे मुस्कुराने के लिए ,
दो पल में दो जिंदगियों का ,
सुकून दे जाने के लिए ।

पर अब पलकों की भाषा ,
खामोशी की परिभाषा ,
दिनों ही तो मालूम नहीं ,
बिन कहे उन अधुरे जज्बातों को ,
आज तक मुझे सुकून नहीं ।

तराज़ू

इश्क को मापने का एक तराज़ू ,
ऐसा भी कभी होता था ,
राजा के युद्ध में जाने पर ,
इश्क़ की गवाही ,
आंसुओं को बोतलों में सजो कर ,
रानी को देना होता था ।

------------


मैं जा रहा लड़ने जंग में ,
तुम भी अपनी जंग में उतर जाओ ,
मेरे लौटने तक ,
शिद्दत से अश्रु बहाओ ।

ना बल से ना छल से ,
ना डर से ना द्वेष से ,
आज़ाद हो तुम अपनी दुनिया में ,
मौजूद यहां हर एक से ।

मेरी मौजूदगी हो या गैर मौजूदगी ,
सत्यता की तुम प्रतीक बनो ,
रुकना मेरे इंतजार में बेशक तुम ,
गर हो मोहब्बत तो बहों ।

महज़ इसे ना कोई रीत कहो ,
ना बेवजह मुझे मनमीत कहो ,
बंद बोतल में मौजूद अश्रूओ को ,
मोहबब्त की जीत कहो ।

तुम हो अर्धांगिनी योद्धा की ,
वीरता का प्रतीक बनो ,
ना बह सके आसूं तो मत बहाना ,
आज़ाद हो .. जाकर किसी और की जीत बनो ।

जीत लेता हूं हर युद्ध मैं ,
तुम्हारी दुआओ का असर है ,
भर गई बोतल अश्रुओ से गर ,
मोहबब्त भी शायद दुआओं सी अमर है ।

चूड़ियां

मैं लौटने ही लगा था परदेश से ,
की तुमसे जा टकराया ,
बचा कुछ नहीं था देने को ,
ये चूड़ियां ले आया ।

हर तरफ मंज़र बहुत बदहाल था ,
हर शख्स बुरे हाल था ,
बाटने आया चंद खुशियां और 
लम्हें जिनका मैं कर्जदार था ।

पहली नजर में देख कर तुझे  ,
खुदा से शिकायत कर बैठा ,
हाथों में पड़े सन्नाटे को ,
चूड़ियों के शोर से तोड़ बैठा ।


आज भी तेरा चेहरा मेरे जहन में ,
ठीक वैसे ही जिंदा है ,
देख कर हाल तेरा ,
आज भी निगाहें शर्मिंदा है ।

क्या थी मेरी मजबूरियां ,
जो कम पड़ गई चूड़ियां ,
खूबसूरत आंखो के साथ ,
चहरे पर अनगिनत उनके झुर्रियां ।

तुम खूबसूरती की मूरत थी ,
खुशियों की जिसे सख्त जरूरत थी ,
पर क्या ही और तुझे मैं दे पाता ,
मेरे बस में होता गर ,
उस दलदल से तुम्हें ले आता ।

जिस्म से नहीं तुम्हारी रुह से मैं जुड़ गया ,
आखिरी अलविदा कह कर भी मैं मुड़ गया ,
देखा तो तुम थोड़ी मायूस खड़ी थी ,
और वो हाथों की चूड़ियां भी खामोश पड़ी थी ।।

ज़ालिम

बस कर ज़ालिम ,
अब मुझसे और नहीं सहा जायेगा ,
इश्क़ की कोशिशों से भी ,
नफ़रत हो जायेगा ।

तुम्हें मान कर दिल का सुकून ,
खुद में बसा बैठे थे ,
एकतरफा ही सही ,
मोहब्बत के कुछ पल बिता बैठे थे ।

पर देख कर भी आज कल ,
तुम अनदेखा कर जाती हो ,
क्या हर इश्क़ करने वाले को ,
ऐसे ही सताती हो ।

दिन के इंतजार में ,
मेरी रातें लंबी हो चली ,
और गुजरते पल के साथ,
खलती रही तेरी कमी ।

ना तुम आए ,
और ना तुम्हारा कोई पैगाम आया ,
ना ही तुम्हारे किसी जिक्र में ,
मेरा नाम आया ।

तेरे जिक्र से भागू गर मैं ,
तो और कितना भगाओगी ,
क्या मेरे हिस्से के बचे लम्हों को ,
अधूरा छोड़ जाओगी ।

Tuesday, July 20, 2021

नादान दिल

क्या आंखो की भाषा ,
क्या लम्हों की आशा ,
क्या जुल्फों को बिखेरना ,
अपनी लटों से खेलना ,
कुछ भी तो नहीं था उसे आता ।

ना होठों पर थी लाली ,
ना भवरे रंगो से करती वो काली ,
ना ही कोई साज़ो सामान ,
वो थी बेहद सरल और नादान ।

वक्त के साथ वक्त चलता गया ,
हर दिन के साथ कुछ बदलता गया ,
पर रुका नहीं तो वो जुनून था ,
बाकी सब बेफिजूल था ।

बदलते वक्त के साथ ,
सब बदलने लगा ,
जान कर भी  ,
जब वो अजनबी बनने लगा ।

बढ़ने लगी दूरियां और अनगिनत मजबूरियां ,
कुछ हम गिनाते कुछ वो सुनाते ,
अक्सर ऐसी ही रातें अब कटने लगी ,
और बातें घटने लगीं ।

ख़त्म हो गया सिलसिला अब ,
और ख़त्म हो गई उनकी बातें ,
ना गुजरता दिन अब हमारा ,
और ना ही कटती रातें ।

हर दफा अब वो , 
खुद को जब भी संवारती है ,
नज़रे मिला कर हमसे ,
उन्ही नज़रों से उतारती हैं ।

नादान दिल हमारा ,
आज भी उनके इस जुल्म पर मरता है ,
बदला हैं इश्क़ उन्होंने अपना ,
मेरा दिल तो आज भी ,
उन्हीं से मोहब्बत करता है ।

पायल

पायल जो उसके पांव में ,
अक्सर खनका करती थी ,
हर दफा जब कदमों से ,
बातें वो किया करती थी ।

हर पग में होता एक पैगाम था ,
लिखा जो सिर्फ मेरे नाम था ,
पर अब पायल टूट गई ,
शायद वो कदमों की खामोशी से रूठ गई ।

अब ना कोई पैगाम आता ,
ना ही मेरा जिक्र किसी शाम आता  ,
ना ही वो खनक सुनाई देती ,
बातें जिनसे दरमियान होती ।

सुना है पायल फिरसे उनके पावों में ,
खामोशी को तोड़ रही है ,
कदमों के हर शोर से ,
वो कुछ बोल रही है ।

पर अब खनक किसी और के ,
नाम की सुनाई देती है ,
ये पायल भी किसी और के ,
खुशियों की दुहाई देती है ।

बट गया था मैं तो पहले ही ,
आज मेरी पायल भी बट गई ,
इश्क़ की आखिरी निशानी भी ,
कदमों से उनके हट गई ।

अब ना वो खनकेगी कभी ,
ना ही मेरे लिए कोई पैगाम होगा ,
हर खनक पर नई पायल के ,
सिर्फ उसे देने वाले का नाम होगा ।

Sunday, July 18, 2021

खिड़कियां

आज जब सब बैठे थे महफ़िल में ,
हम नज़रे उनसे मिला रहे थे ,
मेरी सामने वाली खिड़की से ,
जितनी दफा वो गुजरते जा रहे थे ।

इन खिड़कियों के खेल में ,
देखो मैं कितना उलझ रहा था ,
पीछे वाली खिड़की के डर से ,
सामने वाली खिड़की को ,
छुप छुप कर देख रहा था ।

पीछे वाली खिड़की में मौजूद ,
मेरा बीता वो खूबसूरत कल था ,
और सामने वाली खिड़की में ,
जी रहा मैं ये हसीन पल था ।

पर भूल गया था मैं ,
ये तो मेरा ठिकाना ही नहीं ,
मौजूद दोनों खिड़कियों में ,
एक ने मुझे तो दूसरे को मैंने ,
अब तक जाना ही नहीं ।

पर कल आता ही कहां है ,
आज जाता ही कहां है ,
रात के अंधेरे के इश्क़ को ,
कोई जताता ही कहां है ।

मैं अब पीछे वाली खिड़की में ,
फिरसे लौट आया ,
था घना अंधेरा और बादलों से ,
आसमां जब घिर आया ।

मालूम चला जब लौटने लगा ,
उनके भी पीछे वाली खिड़की में ,
मौजूद उनका कल था ,
सामने वाली खिड़की में ,
महज कल्पनाओं वाला खूबसूरत पल था ।

ना बंद होंगी ये खिड़कियां कभी ,
और ना ही ये कश्मकश ,
इश्क़ तो दिल के धड़कनों से है ,
जो है ताउम्र आप का हमसफ़र ।।

Saturday, July 17, 2021

नफ़रत

मैं जो निहारती थी तुम्हें दिन रात ,
अब नज़रे क्यों चुराती हूं ,
गर देख लू किन्हीं गलियों में ,
नज़रे फेर जाती हूं ।

वक्त बेवक्त तुम आ जाया करते थे ,
मेरे नजरों के सामने ,
मिलती थी चंद लम्हों की खुशियाँ ,
और खूबसूरत होते थे जिनके मायने ।

पर एक पल में ,
कैसे सब बदल जाता है ,
खुशियां देने वाला ही ,
गम की वजह बन जाता है ।

देखो आज मैं कितना बदल गई ,
गिर कर फिरसे संभल गई ,
वरना ख़त्म होना ही बचा था ,
क्योंकि मान बैठा दिल तुझे खुदा था ।

मोहबब्त के हर एहसास को ,
यहीं छोड़ जाऊंगी ,
रखना यकीन मेरा ,
लौट कर इन रास्तों पर ,
फिर कभी नहीं आउंगी ।

नज़र और नज़रिया ,
अब दोनों बदलने लगा है ,
जबसे इश्क करने वाला दिल ,
नफ़रत करने लगा है ।।

गैर-मौजूदगी

मेरे जाने के बाद भी ,
महफिलों में आओगी क्या ,
मुझ जैसे किसी और को भी ,
सताओगी क्या ?

मेरी बातें जो होने लगी महफिलों में ,
उन्हें झुठलाओगी क्या ,
बेवजह वहा भी किसी से ,
उलझ जाओगी क्या ?

वहां हर शख्स ,
तुम्हें पहचानता होगा ,
थोड़ा भी गर मेरे मौजूदगी की , 
वजह वो जानता होगा ।

गर मेरे जाने की ,
वजह वो तुम्हें मानता होगा ,
कैसे उनकी बातों को झुठलाओगी ,
क्या एक दफा फिर मुझे ठुकराओगी ।

मेरे जाने के बाद भी ,
इन महफिलों का,
सिलसिला यूंही चलता रहेगा ,
कोई मिलता कोई बिछड़ता रहेगा ।

आना जरूर मेरी गैर मौजूदगी में ,
इन महफिलों की शान बढ़ाने ,
जान कर भी मेरे अपनो को ,
मुझ जैसे उन्हें अजनबी बनाने ।

आना जरूर मेरी गैर मौजूदगी में ,
इन महफिलों की शान बढ़ाने ।।

इश्क़ की वजह

मुझे इश्क जो हो रहा है ,
किससे हो रहा है आज कल ,
क्यों कहानियों कविताओं में ही ,
जी रहा जिन्हें मैं हर पल ।

है सवाल लाज़मी पूछना दिल से ,
वो भी ना जाने क्यों ,
आज कल बदला सा लग रहा ,
वो धड़क कम और मचल जादे रहा ।

उसकी बातों से हो रहा इश्क़ हमें ,
या उसकी मुस्कुराहट का जादू है ,
या उसकी आंखों के रंग का कमाल कहें ,
जो कर रहा हमें इश्क़ में बेकाबू है ।

कहीं मौजूद गालों पर तिल ,
या है उसकी बिखरी जुल्फे ,
या माथे की बिंदिया ,
तो इश्क़ की वजह नहीं ।

सोचना जरूर  ,
गर इश्क़ में हो किसी के ,
वजह क्या है ,
जो निभा रहे इसे इतनी खुशी से ।

इस महफिल में मौजूद हर शख्स ,
शायद अपने इश्क़ की वजह से अंजान होगा ,
सोचना जरूर धड़कता है दिल क्यों ,
मोहब्बत करना और आसान होगा ।।

फिरसे

मिलो ना मुझसे एक और बार ,
बिछड़ने के लिए ,
शिद्दत से एक और दफा ,
प्यार कर के लिए ।

मर मिटने की कसमें ,
आओ चलो फिरसे खाते है ,
कुछ हम तुम्हारी सुने ,
कुछ हम अपनी सुनाते है ।

पकड़ कर बैठेंगे फिरसे ,
वैसे ही तुम्हें बाहों में ,
पर रखना याद रास्तों को ,
क्योंकि फिर छोड़ जायेंगे इन राहों में ।

चलो ना फिर पहाड़ों पर चलते है ,
चांद तारे बन आसमां से मिलते है ,
कहो ना एक और दफा ,
कितनी मोहब्बत आप हमसे करते है ।

चलो लौट जाते है उस दौर में ,
जहां तुम हमे सताते थे ,
बेहद ही सादगी से ,
रूठने पर मानते थे ।

फिरसे पूछो ना वो सवाल ,
जो अक्सर पूछा करते थे ,
हर दफा जब कभी मुझे ,
मायूस देखा करते थे ।

अच्छा सुनो चांद ,
कौन से वाले तारे पर ,
आज कल आप मरते है ,
क्या पता है उन्हें की आप ,
सिर्फ हमसे मोहब्बत करते है । 

हां ये सच है की चांद से ,
हर कोई मोहब्बत कर सकता है ,
पर क्या चांद सिर्फ ,
किसी एक का हो सकता है ।

गर हां .. तो लौट आना !!

अधूरापन

मै थी कितनी अधूरी ,
जिसे पूरा करने तुम आ गए ,
मानो मांगी हो मन्नत जिसकी ,
वो दुआ बन कर आ गए ।

वो दिन भारी था बहुत गुजरने में ,
और रात बेचैन करने वाली थी ,
तुम्हारे सिर्फ एक जिक्र से ,
मैं मचलने वाली थी ।

पर थे कहां तुम  ,
मेरी नजरों ने तुम्हें ,
अब तक तलाशा क्यों नहीं ,
अनगिनत बीते अधूरे लम्हों को ,
अपनी मौजूदगी से ,
तुमने नवाजा क्यों नहीं ।

था कितना अधूरापन ,
रहता बेचैन मेरा मन,
सुकून तो बहुत दूर की बात ,
गूंजती थी मुझमें सिर्फ मेरी आवाज ।

मैं आज पूरी हो गई ,
जब दरमियाँ हमारे कम थोड़ी दूरी हो गई ,
पर क्या सच में इश्क़ हो तुम मेरे ,
या अधूरेपन की कोई मजबूरी हो गई ।

सोचती हूं आज भी ,
चंद रोज में फिर कैसे मैं अधूरी हो गई ,
शायद इश्क़ में बने रहना ,
अधूरेपन की मजबूरी हो गई ।।

बर्बाद

इश्क़ की एक और कहानी ,
उनके हिस्से आने वाली है ,
टूटे दिल को और तोड़ने ,
जो वाली है ।

कल भी बिखरे थे जैसे ,
आज भी वैसे ही बिखरेंगे ,
शायद इस दफा तजुर्बों से ,
थोड़ा और निखरेंगे ।

हां खूबसूरत सी ये भी शुरुआत है ,
कुछ नई सी इसमें बात है ,
पर वक्त से साथ ये भी छूट जायेगा ,
चाहिए जो उसे जिस रोज मिल जायेगा ।

तुम पहली दफा भी इश्क में सच्चे थे ,
इस दफा भी शिद्दत से ही इसे निभाओगे ,
मालूम नहीं कितनी और दफा तुम ,
छोड़ गए किसी गैर के अधूरे हिस्से को ,
किसी गैर से पूरा करवाओगे ।

फितरत है हमारी ,
अपने जख्मों को कुरेतने की ,
हर दफा खुद ही इश्क़ में रूठने की ।


क्या किसी और को ही कसूरवार ठहराए ,
इश्क़ में होना है अभी और बर्बाद ,
चलो एक और दफा इसे कर आए ।

Thursday, July 15, 2021

नजरंदाज

मुझे नजरंदाज करो थोड़ा और ,
इतने भर से क्या होगा ,
गुनाहों की सजा तो मिलनी है ,
गर नसीब में लिखा होगा ।

मैंने मांगा बस थोड़ा सा वक्त था ,
पर वक्त होना भी तो चाहिए ,
चंद लम्हों को मान लो पूरी जिंदगी ,
किसने कहां था ये गुनाह कर आइए ।

मेरी मुस्कुराहट की वजह अगर तुम ,
तो गम की वजह कोई और कैसे ,
होता है जिक्र जब सिर्फ तुम्हारा ,
तो किसी और की फिक्र कैसे ।

आसमां में चांद के रोशनी के संग ,
तारे टिमटिमाने लगे थे ,
हर दफा जुगनूओ सा बन कर ,
जब तुम आने लगे थे ।

पर एक रोज़ , 
रोज़ सा कुछ नहीं था ,
और था भी तो सब अधूरा ,
बेवजह कौन ही करता जिन्हें पूरा ।

तेरी गैर मौजूदगी अब,
हर मौजूदगी में बढ़ने लगी थी ,
अपनी नजरंदाजी से तुम मुझे ,
गैर कहने लगी थी ।

ख़्वाब था जो अब तक हम देख रहे ,
नींद के साथ वो भी टूट गया ,
माफ करना मुझे ,
गर दिल आप का रूठ गया ।

वैसे भी किसी को नजरंदाज करना ,
आप से बेहतर किसे ही आता होगा ,
हो सके तो दे जाना जवाब ,
आख़िर क्यों ,
सुकून देने वाला बेचैन कराता होगा ।।

मलाल

किसी का दिल तो टूटा होगा ,
जब वो दोनों जुड़ रहे होंगे ,
मिट रही होगी किसी के ,
किस्मत की लकीरें ,
जब वो मांग भर रहे होंगे ।

सज रही होगी दुल्हन कहीं ,
जब अपने घर जाने को ,
बेघर हो रहा होगा कोई ,
था सपना जिसका घर बसाने को ।

वो कसमें जो कोई मंडप में खा रहा होगा ,
शायद पहले कही और निभा रहा होगा ,
होते और मजबूत गठबंधन के ,
किसी की उम्मीदें ताउम्र मिटा रहा होगा ।

कोई तो होगा जिसका जिक्र ,
उनके दिल में आ रहा होगा ,
होठों पर होगी मौजूद मुस्कुराहट ,
पर अंदर से दिल को रुला रहा होगा ।

काश मेरे बगल में बैठा शख्स तुम होते ,
ये मलाल फिर उन्हें सता रहा होगा ,
यादों का कारवां जब ,
आंखो के सामने से गुजरता जा रहा होगा ।

काश खाई थी कसमें जो ,
वो निभा पाए होते ,
तो शायद आज तुम ,
मेरे मांग में सिंदूर भर रहे होते ।

इश्क़ मुकम्मल हो हर दफा ,
इतना खुश किस्मत हर शख्स कहां होता है ,
इश्क में होकर भी अक्सर किसी के पूरा ,
वो किसी के इश्क़ से अधूरा होता है ।

इश्क़ मुकम्मल हो हर दफा ,
इतना खुश किस्मत हर शख्स कहां होता है ll

Monday, July 12, 2021

इश्क़ होने लगा था

इश्क़ होने लगा था तुमसे ,
पर अब नहीं कर पाऊंगा ,
बेशक हर लम्हा खूबसूरत था संग तुम्हारे ,
पर अब नहीं उन्हें जी पाऊंगा ।

मैंने की हर कोशिश ,
खुद को मनाने की ,
सिर्फ तेरा हो जाने की ।

पर ऐसा हो नहीं पाया ,
दिल जो करने वाला था तेरे नाम ,
किसी और के नाम कर आया ।

कितना मुश्किल है ये सच बता पाना ,
की तुमसे मोहब्बत होने लगी थी ,
शायद और भी गहरी ,
जबसे तुम दूर रहने लगी थी ।

बदलेगा कुछ नहीं दरमियान हमारे ,
सिवाय अधूरे इश्क़ के ,
बहुत कुछ रह गया था कहना तुमसे ,
मिटा देंगे जिसे हम अपने जिक्र से ।

उसकी गैर मौजूदगी भी नहीं सताएगी ,
गर कभी वो महफिलों से दूर जायेगी ,
क्योंकि रोक पाना मुझे आता नहीं ,
और कोई टोके .. उसे ये भाता नहीं ।

Saturday, July 10, 2021

कंधा

सबके हिस्से में है इश्क ,
बस मुझे छोड़ कर ,
चली गई मेरी इकलौती मोहब्बत ,
जबसे मुंह मोड़ कर ।

मैंने उसे ही रब माना था ,
मेरा मंदिर उसका ठिकाना था ,
मेरी मन्नते भी हुई थी कबूल कई दफा ,
थी दरमियां हमारे जब वफा ।

अब तो महफिलों में भी भटकता हूं ,
सिर्फ उसकी ही तलाश में ,
होता है जिक्र जिसका हर रोज ,
मेरी अरदास में । 

हां ये सच है  दिल लगाने की कोशिश ,
हर दफा जब भी किसी गैर से करता हूं ,
जहन में होता है सिर्फ जिक्र तुम्हारा ,
जब भी मोहब्बत में पड़ता हू । 

पर किसी और का दिल दुखाना ,
लाकर तेरी मौजूदगी का बहाना ,
जायज़ होगा क्या ?

अगर हां तो चलो ,
एक चाल चलते है ,
इस दफा हम भगवान ,
और वो भक्त बनते हैं ।

पर इश्क़ सच में क्या ,
यही सिखाता है ,
तोड़ कर दिल किसी गैर का ,
कौन अपना घर बसाता है ।

Star

Dear Star ,
I know you are very far ,
Shine always ,
Like the way you are .

May with the time  ,
You get name and fame ,
Always remember ,
To be the same .

I don't know the way ,
u inspire many ,
I am trying to write something ,
I have tried any .

I have so much to say ,
In a very stirring way ,
Will speak with my heart ,
May the arrow hit right at the dart .

Till than bye ,
Until I say hi ,
Expect me to be far ,
Dear star .

Friday, July 9, 2021

खिलौना

मैं आज अपने दोस्त ,
मुन्ना की कहानी सुनाता हु ,
आओ सभी बैठ जाओ आराम से ,
मैं फिर बताता हु ।

खेलता था साथ मेरे ,
जबसे मैंने होश संभाला था ,
कभी वो फेकता गेंद ,
कभी मैंने विकेट उखड़ा था ।

कभी आता वो मेरे घर ,
कभी मैं उसके घर जाता था ,
कभी वो मुस्कुराता मेरी खुशियों से ,
कभी मेरे गम से रो जाता था ।

बचपन के इस दौर में,
मैं तो अब भी छोटा बच्चा था ,
पर मुन्ना पता नहीं क्यों ,
अब अक्सर चुप चुप सा रहता था ।

नहीं रोक पाया खुद को ,
घर उसके जाने से ,
था तो घर उसका ही ,
पर लग रहे थे मौजूद चहरे ,
आज थोड़े अंजाने से ।

हैरना हुआ मैं थोड़ा ,
पर कहां कुछ समझ पाता ,
छोटे बच्चे को ,
क्या ही समझ आता ।

दिन बदला और बदले साल ,
फिर एक रोज पहुंच गया ,
जानने उसका हाल ,
तब जा कर देखा मैंने वक्त का कमाल ।


मुन्ना , मुनिया और उसकी मां ,
सब बदल से गए थे ,
उम्र से बड़े ना जाने क्यों ,
वो तीनों लग रहे थे ।

देख मुझे मुन्ना थोड़ा घबराया ,
तभी पीछे से किसी ने आवाज लगाया ,
क्या भाई कितना दोगे ,
कौन सा वाला खिलौना लोगे ?

मैंने झट से पीछे पलट कर देखा ,
कर दिया था जिन चेहरों को अनदेखा ,
वो सब मुझे पहचानते थे ,
शायद मुझे मेरे ही घर में ,
खिलौनों का ग्राहक मानते थे ।

वो घर जहां ,
बेमोल खुशियां थी कभी ,
आज वहा खुशियों के ,
दाम लग रहे थे,
होती थी खूबसूरत मां जहां ,
वहा बच्चे रो रहे थे ।

हां मुन्ना अब व्यापारी बन चुका था ,
अपनो का ही सौदा करने लगा था ,
देख जिसे मैं थोड़ा घबराया ,
पर कुछ भी समझ नहीं आया ।

आखिर क्यों , कैसे , कब ,
इतना क्या हो गया था ,
मेरा मुन्ना कैसे ,
इतना बदल गया था ।

सब कुछ थम सा गया था ,
मानों गुजरता पल ,
अब रुकने लगा था ,
तभी फिर एक आवाज आई ,
और बता यहां कैसे मेरे भाई ।

सुना था तेरी शादी हो गई ,
बुलाया भी नहीं ,
गैरों से पड़ा मालूम मुझे ,
तूने तो बताया भी नहीं ।

मैंने कहा मुझे लगा तू ,
अब इस शहर में नहीं होगा ,
शायद बदलते दौर और आदत में ,
तूने घर भी बदल लिया होगा ।

वो थोड़ा मुस्कुराया ,
और झट से बोला ..

खैर बता कौन सा खिलौना लेगा ,
चलेगा अगर थोड़ा कम भी देगा ,
बस मुफ्त में कुछ नहीं दूंगा ,
कुछ ना कुछ ही सही पर दाम लूंगा ।

चल मेरे साथ ,
थामा उसने मेरा हाथ ,
आ तुझे खिलौने दिखता हूं ,
और दाम बताता हु ।

मैं कुछ भी कहता की तभी ,
एक और झटके ने मुझे झकझोर दिया ,
मुनिया ने आकर ,
जब पूछे से मेरा हाथ मोड़ दिया ।

अरे बाबू तुम तो बहुत ,
चिकने लगते हो ,
पहली बार आए हो क्या ,
इतना चुप चुप क्यों रहते हो ।

वो हाथ कभी जो राखी बांधते थे ,
आज फिर हाथ फैलाए बैठे थे ,
इस दफा खिलौना देकर ,
दाम लेने को कह रहे थे ।

वो पल काश ज़िंदगी का ,
मेरे आखिरी होता ,
जिस पल मुनिया को ,
मैंने खिलौना बनते देखा ।

पर नहीं अभी तो ये ,
महज़ एक शुरुआत थी ,
होनी बहुत सी अनहोनी ,
इसके बाद थी ।

मैंने कहा नहीं नहीं ,
तुमने शायद पहचाना नहीं ,
पगली मैं राहुल हूं ।

वो बोली तो ?
जब मेरा अपना खून ,
करता मेरा सौदा है ,
तुम तो गैर हो बाबू ,
बताओ कितने का करना सौदा है ।

मैं सुदभुद खो कर ,
एक नजर से ,
उसको देखे जा रहा था ,
की तभी मुझसे फिर बोली मुनिया ,
बोलो लेना है खिलौना तो लो ,
वरना बाबू यहां ,
बातों का भी दाम चढ़ता है ।

मुन्ना जोर से मुस्कुराया ,
क्या यार तू अब तक नहीं समझ पाया ,
चल तुझे किसी से मिलवाता हूं ,
तेरे लिए सबसे तजुर्बे वाला खिलौना लाता हु ।

एक छोटा सा कमरा , 
बिस्तर पर सिकुड़ा चादर ,
गीला तकिया ,
और
जलता सिगार लिए ,
बैठी एक अर्धनग्न लाश थी ।

अरे यो तो वही कोख है ,
जिसने मुन्ना को पाला था ,
मुनियां को नौ महीने संभाला था ।

हे ईश्वर ये मुझे क्या दिखा रहे हो ,
क्रूरता के किसी हद तक जा रहे हो ,
खिलौने का सौदा भी ,
किससे करवा रहे हो ।

बस कर मुन्ना अब नहीं देखा जाता ,
जाने दे मुझे यहां से ,
कोई खिलौना समझ नहीं आता ।

हां तो जा किसने तुझे रोका है ,
समझ रहा जिसे तू मां और मुनिया ,
तेरी आंखों का वो धोखा है ।

मैं तो खिलौने बेचता हूं ,
बेहतर दाम लगा कर ,
आज जाना कभी खरीदना हो ,
थोड़ा जाम लगा कर ।

मेरे आंखो से आंसू नहीं ,
रक्त बहने लगे था ,
मैं मौजूद था वहां ,
पर मस्तिष्क में अनगिनत सवाल उठ रहे थे ।

लौटने लगा जब आखिरी बार उस चौखट से ,
सब कुछ फिर जिंदा हो उठा था ,
वो यादें वो बाते वो पल ,
मानों मैं फांसी पर चढ़ रहा था ।

ये मंजर आज भी मेरी जिंदगी में ,
उतना ही ताज़ा है ,
कर के सौदा किसी अपने का ,
जितना बन बैठा वो अभागा है II

बदनाम

इश्क़ को जिंदा रखने के लिए ,
खुद को जिंदा रखना जरूरी नहीं ,
हां यही आखिरी है इश्क़ मेरा ,
कहना कोई मजबूरी नहीं ।

इश्क़ तो खूबसूरत एहसास है ,
पल भर में जो हो जाता है ,
बदलते धडकनों के शोर के साथ ,
चुपके से किसी में खो जाता है ।

मैंने भी किया था इश्क़ ,
मानों कोई दुआ कबूल हो चली हो ,
मैं बन बैठा हूं हीर ,
और मुझे रांझा मिल गई हो l

मेरे हिस्से की मोहब्बत तो सच्ची थी ,
तेरे हिस्से की फिर झूठी कैसे ,
होती थी जिन बातों से खुश तुम ,
उनसे ही रूठी कैसे ।

है आज भी बहुत कुछ खूबसूरत ,
दरमियान हमारे बताने को ,
एक और दफा ,
सिर्फ तेरा हो जाने को ।

खैर चलो इश्क़ को ,
इश्क़ ही रहने दो ,
बेवजह लोगों को ,
बदनाम ना कहने दो ।।

इस पल

उगते सूरज के साथ ,
एक नया इश्क होने को है ,
ढलती शाम के साथ ,
कोई इश्क़ खोने को है ।

इस पल कोई मिल रहा होगा ,
और कही कोई बिछड़ रहा होगा ,
खो रहा होगा कोई जिस्म में किसी के ,
कोई रूह में बस रहा होगा ।

कोई खा रहा होगा कसमें ,
कोई उन्हें तोड़ रहा होगा ,
होगी किसी की पहली मोहब्बत ,
कोई आखिरी बोल रहा होगा ।

तुमसे मैं मिल रहा ,
और तुम उनसे मिल रही ,
महफिल में मौजूद हर शख्स की ,
अपनी ही कहानी चल रही ।

कोई मोहब्बत अमर हो रही होगी ,
किसी की उम्र हो रही होगी ,
होगा कोई महज एक सौदा बस ,
किसी की जिंदगी चल रही होगी l

इस पल में ना जाने कितने पल ,
हर पल गुजर रहे होंगे ,
इश्क़ के मायने और मुखौटे ,
सब बदल रहे होंगे ।

ये इश्क़ भी ,
सौदा कमाल करता है ,
एक पल मालामाल ,
अगले ही पल नीलाम करता है ।

Thursday, July 8, 2021

अंत की शुरुआत

मैं अपने अंत की ,
शुरुआत लिख रहा हूं ,
बिखरने के बाद संभलने की ,
बात लिख रहा हूं ।

मैं लिख रहा हूं वो पैगाम ,
जिसके मायने भी बदल रहे हैं ,
हर दफा ठहर कर ,
बस कुछ दूर चल रहे हैं ।

सज रहा है किला भी मेरा ,
और सेज भी कोई सजा रहा ,
देखते है जश्न में किसके ,
जाता हूं मैं भला ।

मैं लिख रहा हूं एक और खत ,
खबर बताने के लिए ,
बिल्कुल अकेला हु खड़ा ,
हार जाने के लिए ।

गर हार जाऊं किसी गैर से ,
कोई मुझको मलाल नहीं ,
अपनो के जुल्मों पर गम कैसा ,
हर शख्स हारा है अपनो से तुझ जैसा ।

मैं लिख रहा हूं ,
वक्त के दिए हौसले को ,
गर है तुम्हारे हिस्से में कुछ,
बदल देना तुम भी ,
मेरे किसी अधूरे फैसले को ।

मैं अपने अंत की ,
शुरुआत लिख रहा हूं ,
शायद पहली और 
आखिरी बार लिख रहा हूं ।।

Wednesday, July 7, 2021

जिंदा लाश

हम रात में जागते हैं ,

काली रातों को रोशन करने ले लिए ,

अनगिनत मौजूद महफ़िल में ,

भूखों का पेट भरने के लिए ।


कभी गर भर पेट नहीं मिलता खाना ,

वो बहुत सताते हैं ,

मेरे बाद किसी और चौखट पर ,

जा कर भूख मिटाते है ।


किसी का हाल होता बुरा ,

कोई हमें बुरा हाल छोड़ जाते हैं ,

सोचती हूं पूंछू दुनिया वालों से ,

क्यों अपनो का पेट नहीं भर पाते हैं ।


हां मिलता है ना दाम मुझे ,

हर भूखे को खिलाने का ,

रक्त के आखिरी कतरे तक को ,

मुस्कुरा के बहाने का ।


पर आज कल ,

रौशनी में भी अंधेरा है ,

शायद सूरज को बादलों ने घेरा है ।


वरना भूखा जो रात को ,

अक्सर जगाता था ,

दिन में मुझे कभी ,

नहीं वो सताता था ।


अब अक्सर बेवक्त चला आता है ,

फर्क भी नहीं पड़ता उसे ,

गर खाने में वो ,

कोई जिंदा लाश खाता है ।


आखिर इतनी भूख ,

कहां से वो लाता है ,

क्या उसके हिस्से का भोजन ,

कोई और खाता है ,

जो आकर यहां वो भूख मिटाता है ।


क्या उसके हिस्से का भोजन ,

कोई और खाता है ll

इश्क़ - एक सफरनामा

 मेरे सफरनामे का ,

एक और इश्क़ हो तुम ,

गर कहूं आखिरी तुम्हें ,

तो पहली नहीं हो तुम ।


हर बार ठहर कर जब ,

शिद्दत से इश्क़ में खोने लगते है ,

बन कर आता है कोई बुरा सपना ,

जिसके बाद फिरसे दूर होने लगते है ।


चांद तारों से करते बातें ,

बीती जो अनगिनत रातें ,

और पहाड़ों से ऊंचे ख्वाब ,

सब अच्छा था ... पर क्या सच्चा था?


हां तुमसे कही हर बात सच्ची थी , 

लौटी चहरे पर मुस्कान सच्ची थी ,

थे मेरे सच्चे आंसू भी ,

और था सच्चा तेरे इश्क का जादू भी ।


खाई कसमें जो तेरी थी ,

माना मोहब्बत को ही था खुदा ,

शायद थी कसमें ही झूठी ,

या था किस्मत में होना जुदा । 


यकीनन पेशेवर दिल तोड़ आशिक़ ,

हो चला है दिल मेरा ,

वरना कौन छोड़ कर यू जाता है ,

जिंदा मोहब्बत को कब्र में भला ।


रही बात तेरे हिस्से के कहानी की ,

वक्त आने पर वो भी बताएंगे ,

जब आखिरी होगी मोहबब्त मेरी ,

दुनिया को सुनाएंगे ।

Sunday, July 4, 2021

इश्क़ तुमसे

कल की ही तो बात है ,
लगता जैसे वो साथ है ,
सब कुछ होता अधूरा है ,
जबतक करता नहीं वो पूरा है ।

पहली दफा नजर नहीं ,
हमारा नजरिया मिला था ,
इश्क़ में बंधने को ,
जब दिल दौड़ पड़ा था ।

हर रोज कुछ नया सा ,
मुझको लगता था ,
जितनी दफा वो ,
इजहारे मोहब्बत करता था ।

मैं उसमे इतने खो गई ,
मालूम भी नहीं चला ,
ताउम्र कब उसकी हो गई ।

मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र ,
और माथे पर बिंदी ,
अब सब गवाही देते थे ,
हम कितना उनमें हर वक्त खोते थे ।

पर वक्त के साथ ,
वो भी बदल गए ,
होते साथ हमारे ,
पर जिक्र में किसी और के हो गए ।

हर याद हर साथ हर बात ,
अब जुल्म का रूप लेने वाले थे ,
जिस पर वो हमें गैर ,
और गैर को अपना कहने वाले थे ।

मोहब्बत जो जन्नत सी थी मेरी ,
अब जहन्नुम लगने लगी ,
ताउम्र जिंदा रहने की ख्वाइश ,
मौत से मिलने लगी ।

मैं हार गई खो कर उसे ,
या खुद से जीतने वाली थी ,
था नहीं मालूम जिंदगी को ,
मैं कितनी मतवाली थी ।

आजाद हु आज खुद के जंजीरों से ,
नहीं घिरी मैं किसी भी अंधेरे से ,
इश्क तुमसे और भी गहरा हो चला है ,
आईने में जिस रोज तू आ मिला है ।

Friday, July 2, 2021

दिल दुखा बैठा

अंजाने में ही सही ,
पर आज दिल उसका दुखा बैठा ,
मुस्कुराहट पर कुर्बान सब जिसके ,
चहरे से उसके मुस्कुराहट मिटा बैठा ।

आज सुना पहली दफा ,
अपनी कहानी उसकी जुबानी ,
पर सच झुठला बैठा ,
अंजाने में आज दिल दुखा बैठा ।

उस पल के खुशी और एहसास को ,
चंद लम्हों के बनते खास को ,
मैं एक पल में गवा बैठा ,
अंजाने में आज दिल दुखा बैठा ।

तुमसे कितना कहूं और कैसे कहूं ,
ये सब नया और खूबसूरत है ,
लम्हों में है जिक्र सिर्फ तुम्हारा ,
अल्फाजों से सजी जो मूरत है ।

तुम्हारी तारीफ करने से घबराता हु ,
हर दफा मुस्कुराता हु ,
जब भी तुम्हारे जिक्र में ,
खुद को आखिरी पाता हु ।

हो सके तो माफ करना ,
और मुस्कुराहट लौटा देना ,
हुई गुस्ताखी अंजाने में जो ,
नई सुबह के साथ भुला देना ।।

हो सके तो मुस्कुरा देना ।।

मेरे हिस्से की मोहब्बत

ना मैं तैयार थी ,
ना ही मोहब्बत बेशुमार थी ,
ना थी कोई ख्वाइश अभी ,
जिंदगी भी बेहद गुलजार थी ।

तुम आ गए मेरी जिंदगी में ,
बनकर अधुरे ख़्वाब से ,
उलझते थे खुद से हर दफा ,
मिलते थे जितनी दफा आप से ।

वो पहली रात वो पहली बात ,
वो पहला साथ ,
सब बुरे ख़्वाब सा लगता है ,
हर शख्स अब मुझे आप सा लगता है ।

थे अरमान मेरे भी बहुत ,
मेरे नामंजूरी के बाद भी ,
पर कहां कोई मुझे समझ पाया ,
पहले अपनो ने पराया ,
फिर गैरों ने भगाया ।

एक रोज़ फिर नई शुरुआत ,
सुबह के साथ ,
मैंने दिल को बहुत मनाया ,
था शायद कोई बुरा सपना कल मेरा ,
भूलने का जिसे मैंने मन बनाया ।

तुम आए मेरे जिंदगी में ,
कोई खूबसूरत सा ख़्वाब बन कर ,
मन फिरसे जीने का कर उठा ,
लौटने लगा था भरोसा ,
मोहब्बत से जो था उठा ।

हर सुबह भी तुमसे ,और शाम भी ,
हर जिक्र में तुम ,और तुम्हारा नाम भी ,
बस अब तुमसे मिलने ही वाले थे ,
पर था कहां मालूम हम बिछड़ने वाले थे ।

उस रोज़ खबर आई तुम्हारे जाने की ,
फिर नहीं लौट आने की ,
पर मेरी सांसों और धडकनों से ,
कौन तुम्हें छीन पायेगा ,
सुन कर देखना कभी धडकनों को मेरे ,
तेरा ही नाम आएगा ।।