ख़्वाब भी उसके अधूरे हैं ,
मिला सब कुछ बिखरा जिसको ,
फिर भी कहते हम पूरे हैं ।
उंगली थाम कर अपनी ,
जिसने चलना सीखा है ,
बचपन में खुद को ,
बड़ा होते देखा है ।
ना साथ मिला कभी ,
ना कोई साथी बन पाया ,
मतलब होते पूरा ,
हर किसी ने उसे गैर बनाया ।
आज भी घर की तलाश में ,
वो कैद हो जाते हैं,
किसी और पिछड़े में जाकर ,
अनजाने में फस जाते हैं ।
मंजिल की तलाश और घर ,
वक्त आने पर मिलेगा ,
किसी रोज़ कोई अजनबी ,
जब उसे अपना कहेगा ।
बाकी और भी जंग ,
अभी बाकी है ,
रखना भरोसा ,
तू खुद में काफी है ।।
1 comment:
Waah khubsurat ✨
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