Sunday, November 15, 2015

बेटियाँ .. माँ की परछाईं

जन्म के रोज़ ही ,
रोष जो थी वो सबमे लाइ , 
लौट आया था वो वक़्त , 
जब उसकी माँ थी दुनिया मे आई |

हर तरह बस सन्नाटा सा था छाया , 
देख मुझको माँ को छोड़ , 
कोई ना था मुस्कुराया | 

अपनों से घिरी मैं को , 
सब ने पराया बना दिया , 
गोद मे तो लेना दूर , 
नज़रो से भी गिरा दिया | 

सहमी मुझे देख माँ ने ,
आँचल मे छिपा लिया , 
भीगी पलकों संग मुस्कुराना , 
माँ ने मुझको भी सीखा दिया | 

वक़्त के साथ सब बदलने लगा , 
माँ से जादे पिता का साथ मिलने लगा , 
औरो ने भी मेरे प्रति स्नेह बढ़ाया , 
देख जिसे मुझमे एक जुनून सा था आया |

मैं पंख लगा कर अब उड़ने को ,
तैयार खड़ी थी , 
अपनों के सहारे के लिए , 
माँ की परछाई बनी थी |

कल तक जहा अपनों ने गैर बनाया था ,
आज गैरो को भी मुझमे , 
कोई अपना नजर आया था | 

एक दफा फिर वक़्त लौट कर आया , 
इस माँ के बेटी की गोद मे ,
एक बेटी को उसने था पाया , 
पर फर्क सिर्फ इतना था ,
इस बार मेरी माँ की परछाई ( मै ) संग ,
पूरा समां था मुस्कुराया | 

माँ तेरी परवरिश का ही था ये असर , 
जो ये मुमकिन हो पाया , 
झुकी नजरो तो उठी ही , 
समाज ने भी हमे अपनाया ||

सोच बदलो , समाज बदलो .. बेटियाँ तो देवी का रूप थी , है और रहेंगी ... || 

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