जन्म के रोज़ ही ,
रोष जो थी वो सबमे लाइ ,
लौट आया था वो वक़्त ,
जब उसकी माँ थी दुनिया मे आई |
हर तरह बस सन्नाटा सा था छाया ,
देख मुझको माँ को छोड़ ,
कोई ना था मुस्कुराया |
अपनों से घिरी मैं को ,
सब ने पराया बना दिया ,
गोद मे तो लेना दूर ,
नज़रो से भी गिरा दिया |
सहमी मुझे देख माँ ने ,
आँचल मे छिपा लिया ,
भीगी पलकों संग मुस्कुराना ,
माँ ने मुझको भी सीखा दिया |
वक़्त के साथ सब बदलने लगा ,
माँ से जादे पिता का साथ मिलने लगा ,
औरो ने भी मेरे प्रति स्नेह बढ़ाया ,
देख जिसे मुझमे एक जुनून सा था आया |
मैं पंख लगा कर अब उड़ने को ,
तैयार खड़ी थी ,
अपनों के सहारे के लिए ,
माँ की परछाई बनी थी |
कल तक जहा अपनों ने गैर बनाया था ,
आज गैरो को भी मुझमे ,
कोई अपना नजर आया था |
एक दफा फिर वक़्त लौट कर आया ,
इस माँ के बेटी की गोद मे ,
एक बेटी को उसने था पाया ,
पर फर्क सिर्फ इतना था ,
इस बार मेरी माँ की परछाई ( मै ) संग ,
पूरा समां था मुस्कुराया |
माँ तेरी परवरिश का ही था ये असर ,
जो ये मुमकिन हो पाया ,
झुकी नजरो तो उठी ही ,
समाज ने भी हमे अपनाया ||
सोच बदलो , समाज बदलो .. बेटियाँ तो देवी का रूप थी , है और रहेंगी ... ||
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