माँ ने नहीं बताया ,
बेटी हु जान कर उसने ,
सबसे था मेरा राज़ छिपाया .
मैं आई जब इस जग मे ,
पापा संग सबकी चहेती हो गयी ,
माँ के भी हिस्से का प्यार ,
माँ से मैं छीन ले गयी .
हर रोज़ मेरे नींद से वो जग जाती ,
ख्वाबो मे धकेल कर मुझे ,
तब कही जाकर वो सो पाती .
एक दफा मैं चोट खा कर घर आई ,
देख जिसे माँ की आँखे भर आई ,
मैं कुछ कहती उससे पहले ही बाहों मे समेट ,
पूछने लगी ये चोट कहा से लाइ .
माँ ने चोट की जोर से फटकार लगाई ,
कहा अब फिर कभी मेरी बेटी के पास ना आना ,
देख उसके इस अंदाज़ को ,
मैं जोर जोर से खिलखिलाई .
वक़्त का पहिया चल पड़ा था ,
माँ से बिछड़ने का वक़्त निकल रहा था ।
मेरी भी कोख मे एक ,
नन्ही जान आ रही थी ,
माँ के पास हो कर भी ,
मैं उससे दूर जा रही थी .
एक रोज़ वक़्त ने क्या खेल खेला ,
देख जिसे मैं दंग रह गयी ,
माँ माँ होती है ,
उस रोज़ ये बात समझ आयी ,
जिस रोज़ बेटी कीं ख़ातिर ,
मैं माँ को आख़िरी वक़्त मे छोड़ आयीं .
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