Thursday, December 24, 2015

माँ ... माँ होती है

मैं आई थी जब कोख मे ,
माँ ने नहीं बताया , 
बेटी हु जान कर उसने , 
सबसे था मेरा राज़ छिपाया . 

मैं आई जब इस जग मे , 
पापा संग सबकी चहेती हो गयी , 
माँ के भी हिस्से का प्यार , 
माँ से मैं छीन ले गयी . 

हर रोज़ मेरे नींद से वो जग जाती , 
ख्वाबो मे धकेल कर मुझे ,
तब कही जाकर वो सो पाती . 

एक दफा मैं चोट खा कर घर आई ,
देख जिसे माँ की आँखे भर आई , 
मैं कुछ कहती उससे पहले ही बाहों मे समेट , 
पूछने लगी ये चोट कहा से लाइ . 

माँ ने चोट की जोर से फटकार लगाई , 
कहा अब फिर कभी मेरी बेटी के पास ना आना , 
देख उसके इस अंदाज़ को , 
मैं जोर जोर से खिलखिलाई . 

वक़्त का पहिया चल पड़ा था ,
माँ से बिछड़ने का वक़्त निकल रहा था ।

मेरी भी कोख मे एक , 
नन्ही जान आ रही थी , 
माँ के पास हो कर भी , 
मैं उससे दूर जा रही थी . 

एक रोज़ वक़्त ने क्या खेल खेला , 
देख जिसे मैं दंग रह गयी ,
माँ माँ होती है , 
उस रोज़ ये बात समझ आयी , 
जिस रोज़ बेटी कीं ख़ातिर ,
मैं माँ को आख़िरी वक़्त मे छोड़ आयीं .

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