रिश्ता जिससे सबसे पुराना है ,
आज इस भीड़ भाड़ मे ,
वही अनजान है .
कोख मे रह के जिसके ,
ढेरो हमने उसे परेशान किया ,
दुनिया मे आते ही ,
औरो की खातिर उसे अनजान किया .
हर बार ख़ुशी मे वो याद ना आती है ,
गम के एक छोटे से लम्हे मे ही ,
रूह भी उसका नाम ले चिल्लाती है .
खुलते आँख सुबह जिसे पहला ख्याल मेरा आता है ,
सोते हुए भी जो खयालो मे जो मुझे संग ले जाता है ,
ऐ वक़्त क्या खूब खेला है खेल तूने ,
मुझे तो उसका चहेरा भी , अक्सर धुंधला नजर आता है .
मेरे तन पे देख , एक खरोच भी ,
जिसकी आँखे भर आती ,
मेरी आँखे क्यों अब उसके भीगी पलकों को ,
देख नहीं पाती .
आज अभी इस पल से ,
चलो सब एक साथ कसम खाते है ,
खून का थोड़ा ही सही ,
कर्ज चुकाते है .
आओ चलो सब मिल कर माँ को ,
उसके बच्चे से मिलवाते है ,
आओ सभी एक बार फिरसे ,
माँ की खातिर बच्चे बन जाते है .
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