Thursday, March 17, 2016

माँ

 रिश्ता जिससे सबसे पुराना है , 
आज इस भीड़ भाड़ मे , 
वही अनजान है . 

कोख मे रह के जिसके ,
 ढेरो हमने उसे परेशान किया , 
दुनिया मे आते ही , 
औरो की खातिर उसे अनजान किया . 

हर बार ख़ुशी मे वो याद ना आती है ,
गम के एक छोटे से लम्हे मे ही , 
रूह भी उसका नाम ले चिल्लाती है .

खुलते आँख सुबह जिसे पहला ख्याल मेरा आता है , 
सोते हुए भी जो खयालो मे जो मुझे संग ले जाता है , 
ऐ वक़्त क्या खूब खेला है खेल तूने , 
मुझे तो उसका चहेरा भी , अक्सर धुंधला नजर आता है .

मेरे तन पे देख , एक खरोच भी , 
जिसकी आँखे भर आती , 
मेरी आँखे क्यों अब उसके भीगी पलकों को ,
देख नहीं पाती .

आज अभी इस पल से , 
चलो सब एक साथ कसम खाते है , 
खून का थोड़ा ही सही , 
कर्ज चुकाते है . 

आओ चलो सब मिल कर माँ को ,
उसके बच्चे से मिलवाते है , 
आओ सभी एक बार फिरसे , 
माँ की खातिर बच्चे बन जाते है .


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