चारो तरफ शोर है ,
मेरी आवाज़ कमजोर है ,
कास कोई सुन पाता ,
मेरी आवाज़ को उन तक पहुंचाता .
मैं लड़ रही हु मुस्कुरा के ,
पर गम छिपा नहीं पाती ,
ख़ामोशी का क्या है ,
इस शोर मे वो भी अक्सर छिप जाती .
हर रोज़ चल पड़ती हु ,
ए दर्द तुझे छिपाने ,
बस होती है यही कोशिश ,
तू है साथ मेरे , ये कोई ना जाने .
पर क्या खूब खेल खेलती है ज़िन्दगी भी ,
क्या हम किसी को बताये ,
दर्द थे कम नहीं ज़िन्दगी मे ,
दो चार और ले आये .
है भरोसा आज भी ,
ये शोर एक रोज़ थम जाएगा ,
ऐ गम
ज़िंदगी ने जो दिया है तुझे साथ मेरे ,
एक रोज़ वो भी छूट जाएगा .
ऐ दर्द फ़िक्र मत कर ,
तुझे बिता कल बनाउंगी ,
होगी फिर एक सबुह ,
तनहा अकेला छोड़ तुझे ,
अपनी ख़ुशी संग कही दूर चली जाउंगी .
अलविदा दर्द ,
लौट कर नहीं आउंगी ...
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